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Adultery मजबूर (Completed)
#2
सुनील की उम्र बीस-इक्कीस साल की थी। बीस साल का होते-होते ही उसने ग्रैजूएशन कर लिया था। उसके घर पर सिर्फ़ सुनील और उसकी माँ ही रहते थे। बचपन में ही पिता की मौत के बाद माँ ने सुनील को पाला पोसा पढ़ाया लिखाया। उसके पापा के गुज़रने के बाद माँ को उनकी जगह रेलवे में नौकरी मिल गये थी। सिर्फ़ दो जने थे... इसलिये पैसो की कभी तंगी महसूस नहीं हुई। सुनील की पढ़ायी लिखायी भी एक साधारण से कॉलेज और फिर सरकारी कॉलेज से हुई थी... इसलिये सुनील की माँ को उसकी पढ़ायी लिखायी का ज्यादा खर्च नहीं उठाना पढ़ा। सुनील पढ़ायी लिखायी में बेहद होशियार भी था। ग्रैजूएशन करते ही सुनील ने रेलवे में नौकरी के लिये फ़ॉर्म भर दिये थे। उसके बाद परिक्षायें हुई और सुनील का चयन हो गया और जल्दी ही सुनील को पोस्टिंग भी मिल गयी। सुनील बेहद खुश था पर एक दुख भी था क्योंकि सुनील की पोस्टिंग बिहार में हुई थी। सुनील पंजाब का रहने वाला था। इसलिये वहाँ नहीं जाना चाहता था कि पता नहीं कैसे लोग होंगे वहाँ के... कैसी उनकी भाषा होगी... बस यही सब ख्याल सुनील के दिमाग में थे।

सुनील की माँ भी उदास थी पर सुनील के लिये सुकून की बात ये थी कि दस दिन बाद ही सुनील की माँ का रिटायरमेंट होने वाला था। इसलिये वो अब सुकून के साथ बिना किसी टेंशन के सुनील के मामा यानी अपने भाई के घर रह सकती थी। जिस दिन माँ को नौकरी से रिटायरमेंट मिला... उसके अगले ही दिन सुनील बिहार के लिये रवाना हो गया। वहाँ एक छोटे शहर के स्टेशन पर उसे क्लर्क नियुक्त किया गया था। जब सुनील वहाँ पहुँचा और स्टेशन मास्टर को रिपोर्ट किया तो उन्होंने स्टेशन के बाहर ही बने हुए स्टाफ़ हाऊज़ में से एक फ़्लैट सुनील को दे दिया।

जब सुनील फ़्लैट के अंदर गया तो अंदर का हाल देख कर परेशान हो गया। फ़र्श जगह -जगह से टूटा हुआ था... दीवारों पर सीलन के निशान थे... बिजली की फ़िटिंग जगह-जगह से उखड़ी हुई थी। जब सुनील ने स्टेशन मास्टर से इसकी शिकायत की तो उसने सुनील से कहा कि उसके पास और कोई फ़्लैट खाली नहीं है... एडजस्ट कर लो यार! स्टेशन मास्टर की उम्र उस वक़्त पैंतालीस के करीब थी और उसका नाम अज़मल था।

अज़मल: "यार सुनील कुछ दिन गुजारा कर लो... फिर मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ!"

सुनील: "ठीक है सर!"

उसके बाद अज़मल ने सुनील को उसका काम और जिम्मेदारियाँ समझायीं! सुनील की ड्यूटी नौ बजे से शाम पाँच बजे तक ही थी। धीरे-धीरे सुनील की जान पहचान स्टेशन पर बाकी के कर्मचारियों से भी होने लगी। जब कभी सुनील फ़्री होता तो ऑफ़िस से बाहर निकल कर प्लेटफ़ोर्म पर घूमने लगता... सब कुछ बहुत अच्छा था। सिर्फ़ सुनील के फ़्लैट को लेकर अज़मल भी अभी तक कुछ नहीं कर पाया था। सुनील उससे बार-बार शिकायत नहीं करना चाहता था। एक दिन सुनील दोपहर को जब फ़्री था तो वो ऑफ़िस से निकल कर बाहर आया तो देखा अज़मल भी प्लैटफ़ोर्म पर कुर्सी पर बैठे हुए थे। सुनील को देख कर उन्होंने उसे अपने पास बुला लिया।

अज़मल: "सॉरी सुनील यार... तुम्हारे फ़्लैट का कुछ कर नहीं पा रहा हूँ!"

सुनील: "कोई बात नहीं सर... अब सब कुछ तो आपके हाथ में नहीं है... ये मुझे भी पता है!"

अज़मल: "और बताओ मैं तुम्हारे लिये क्या कर सकता हूँ... अगर किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो बेझिझक बोल देना!"

सुनील: "सर जब तक मेरे फ़्लैट का इंतज़ाम नहीं हो जाता... आप मुझे पास में ही कहीं हो सके तो किराये पर ही रूम दिलवा दें!"

अज़मल (थोड़ी देर सोचने के बाद): "अच्छा देखता हूँ!"

तभी अज़मल की नज़र प्लैटफ़ोर्म पे थोड़ी सी दूर फ़ारूक पर पड़ी। फ़ारूक रेल यातायात सेवा महकमे में ऑफिसर था। उसका ऑफिस प्लैटफ़ोर्म के दूसरी तरफ़ की बिल्डिंग में था। उसे देख कर अज़मल ने फ़ारूक को आवाज़ लगायी।

अज़मल: "अरे फ़ारूक यार ज़रा सुनो तो!"

फ़ारूक: "हुक्म कीजिये अज़मल साहब!" फ़ारूक उन दोनों के पास आकर खड़ा हो गया। फ़ारूक और अज़मल दुआ सलाम के बाद बात करने लगे।

अज़मल: "फ़ारूक यार! ये सुनील है... अभी नया जॉइन हुआ है इसके लिये कोई किराये पर रूम ढूँढना है... तुम तो यहाँ करीब ही रहते हो कोई कमरा अवैलबल हो तो बताओ!"

फ़ारूक: "जरूर... कमरा मिलने में तो कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिये...! कितना बजट है सुनील तुम्हारा?"

सुनील : "अगर दो-तीन हज़ार किराया भी होगा तो भी चलेगा!"

अज़मल: "और हाँ... रूम के आसपास कोई अच्छा सा ढाबा भी हो तो मुनासिब रहेगा ताकि इसे खाने पीने की तकलीफ़ ना हो!"

फ़ारूक (थोड़ी देर सोचने के बाद बोला): "सुनील अगर तुम चाहो तो मेरे घर में भी एक रूम खाली है ऊपर छत पर... बाथरूम टॉयलेट सब अलग है ऊपर... बस सीढ़ियाँ बाहर की बजाय घर के अंदर से हैं... अगर तुम्हें प्रॉब्लम ना हो तो... और रही खाने के बात तो तुम्हें मेरे घर पर घर का बना खाना भी मिल जायेगा... पीने की भी कोई प्रॉब्लम नहीं... है क्या कहते हो?"

सुनील: "जी आपका ऑफर तो बहुत अच्छा है... आपको ऐतराज़ ना हो तो शाम तक बता दूँ आपको?"

फ़ारूक के जाने के बाद सुनील ने अज़मल से पूछा कि क्या फ़ारूक के घर पर रहना ठीक होगा... तो उसने हंसते हुए कहा, "यार सुनील तू आराम से वहाँ रह सकता है... वैसे तुझे पता है कि ये जो फ़ारूक है ना बड़ा पियक्कड़ किस्म का आदमी है... रोज रात को दारू पिये बिना नहीं सोता... वैसे तुझे कोई तकलीफ़ नहीं होगी वहाँ पर... बहुत अच्छी फ़ैमिली है और तुझे घर का बना खाना भी मिल जायेगा!"

शाम को सुनील अपने ऑफिस से निकल कर फ़ारूक के ऑफ़िस में गया जो प्लैटफ़ोर्म के दूसरी तरफ़ था और फ़ारूक को अपनी रज़ामंदी दे दी। फ़ारूक बोला, "तो चलो मेरे घर पर... रूम देख लेना और अगर तुम्हें पसंद आये तो आज से ही रह लेना वहाँ पर!"

सुनील ने फ़ारूक की बात मान ली और उसके साथ उसके घर की तरफ़ चल पढ़ा। वो दोनों फ़ारूक के स्कूटर पर बैठ के उसके घर पहुँचे तो फ़ारूक ने डोर-बेल बजायी। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला तो फ़ारूक ने थोड़ा गुस्से से दरवाजा खोलने वाले को कहा, "क्या हुआ इतनी देर क्यों लगा दी!" सुनील बाहर से घर का मुआयना कर रहा था। घर बहुत बड़ा नहीं था लेकिन बहोत अच्छी हालत में था। अच्छे रंग-रोगन के साथ गमलों में खूबसूरत फूल-पौधे लगे हुए थे। फ़ारूक की आवाज़ सुन कर सुनील ने दरवाजे पर नज़र डाली।

सामने बीस-इक्कीस साल की बेहद ही खूबसूरत गोरे रंग की लड़की खड़ी थी... उसके बाल खुले हुए थे और उसके हाथ में बाल संवारने का ब्रश था... उसने सफ़ेद कलर का सलवार कमीज़ पहना हुआ था जिसमें उसका जिस्म कयामत ढा रहा था। सुनील को अपनी तरफ़ यूँ घूरता देख वो लड़की मार्बल के फर्श पे अपनी हील वाली चप्पल खटखटाती हुई अंदर चली गयी। तभी फ़ारूक ने सुनील से कहा, "सुनील ये मेरी बेटी सानिया है... आओ अंदर चलते हैं...!"

सुनील उसके साथ अंदर चला गया। अंदर जाकर उसने सुनील को ड्राइंग रूम में सोफ़े पर बिठाया और अंदर जाकर आवाज़ दी, "रुखसाना... ओ रुखसाना! कहा चली गयी... जल्दी इधर आ!" और फिर फ़ारूक सुनील के पास जाकर बैठ गया।
 
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मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 05:50 PM
RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 05:52 PM
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RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 06:36 PM
RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 06:46 PM
RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 06:47 PM
RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 06:50 PM
RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 06:52 PM
RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 08-04-2020, 07:01 PM
RE: मजबूर (Completed) - by kamdev99008 - 12-04-2020, 02:48 AM
RE: मजबूर (Completed) - by fasterboy - 12-04-2020, 06:54 PM
RE: मजबूर (Completed) - by Thor - 12-04-2020, 07:04 PM



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