08-04-2020, 05:50 PM
मजबूर (एक औरत की दास्तान)
लेखक: तुषार ©
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रुखसाना की पहली शादी बी-ए खतम करते ही एक्कीस साल की उम्र में हुई थी... पर शादी के कुछ ही महीनों बाद उसके शौहर की मौत एक हादसे में हो गयी। रुखसाना बेवा हो लखनऊ में अपने माँ-बाप के घर आ गयी। उनका मिडल-क्लास घर था। रुखसाना के वालिद की रेडिमेड गार्मेंट्स की दुकान थी। रुखसाना माँ-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी इसलिये वो शहर के एक बड़े अपस्केल लेडिज़ बुटीक में असिस्टेंट के तौर पे काम करने लगी। बुटीक में ही ब्यूटी पार्लर भी था तो रुखसाना के लिये ये अच्छा तजुर्बा था... कपड़े-लत्ते पहनने और बनने संवरने के सलीके सीखने का। इस दौरान उसके माँ-बाप रूकसाना की दूसरी शादी के लिये बहोत कोशिश कर रहे थे। रुखसाना बेहद गोरी और खूबसूरत और स्मार्ट थी लेकिन इसके बावजूद कहीं अच्छा और मुनासिब रिश्ता नहीं मिल रहा था। फिर साल भर बाद एक दिन उसके मामा ने उसकी शादी फ़ारूक नाम के आदमी से तय कर दी। तब फ़ारूक की उम्र अढ़तीस साल थी और रुखसाना की तेईस साल। फ़ारूक की पहली बीवी का इंतकाल शादी के तेरह साल बाद हुआ था और उसकी एक नौ साल की बेटी भी थी। फ़ारूक रेलवे में जॉब करता था। इसलिये घर वालों ने सोचा कि सरकारी नौकरी है... और किसी चीज़ की कमी भी नहीं... इसलिये रुखसाना की शादी फ़ारूक के साथ हो गयी। फ़ारूक की पोस्टिंग शुरू से ही बिहार के छोटे शहर में थी जहाँ उसका खुद का घर भी था।
शादी कहिये या समझौता... पर सच तो यही था कि शादी के बाद रुखसाना को किसी तरह की खुशी नसीब ना हुई.... ना ही वो कोई अपना बच्चा पैदा कर सकी और ना ही उसे शौहर का प्यार मिला। बस यही था कि समाज में शादीशुदा होने का दर्ज़ा और अच्छा माकूल रहन-सहन। शादी के डेढ़-दो साल बाद उसे अपने शौहर पर उसके बड़े भाई की बीवी अज़रा के साथ कुछ नाजायज़ चक्कर का शक होने लगा और उसका ये शक ठीक भी निकला। एक दिन जब फ़ारूक के भाई के बीवी उनके यहाँ आयी हुई थी, तब रुखसाना ने उन्हें ऊपर वाले कमरे में रंगरलियाँ मनाते... ऐय्याशी करते हुए देख लिया।
जब रुखसाना ने इसके बारे में फ़ारूक से बात की तो वो उल्टा उस पर ही बरस उठा। पता नहीं अज़रा ने फ़ारूक पर क्या जादू किया था कि फ़ारूक ने रुखसाना को साफ़-साफ़ बोल दिया कि अगर ये बात किसी को पता चली तो वो रुखसाना को तलाक़ दे देगा... और उसकी बुरी हालत कर देगा। रुखसाना ये सब चुपचाप बर्दाश्त कर गयी। जितने दिन अज़रा उनके यहाँ रुकती... फ़ारूक और अज़रा दोनों खुल्ले आम शराब के नशे में धुत्त होकर हवस का नंगा खेल घर में खेलते। उन दोनों को अब रुखसाना की जैसे कोई परवाह ही नहीं थी.... कभी-कभी तो रुखसाना के बगल में ही बेड पर फ़ारूक और अज़रा चुदाई करने लगते। ये सब देख कर रुखसाना भी गरम हो जाती थी पर अपनी ख्वाहिशों को अपने सीने में दबाये रखती और ज़िल्लत बर्दाश्त करती रहती। रुखसाना के पास और कोई चारा भी नहीं था। बेशक अज़रा बेहद खूबसूरत और सेक्सी थी लेकिन रुखसाना भी खूबसूरती और बनने-संवरने में उससे ज़रा भी कम नहीं थी। अज़रा ने फ़ारूक की ज़िंदगी इस क़दर तबाह कर दी थी कि वो जो कभी-कभार रुखसाना के साथ सैक्स करता भी था.... वो भी करना छोड़ दिया। धीरे-धीरे उसकी मर्दाना ताकत शराब में डूबती चली गयी। कोई दिन ऐसा नहीं होता जब वो नशे में धुत्त गिरते पड़ते घर ना आया हो। इस सबके बावजूद फ़ारूक चुदक्कड़ नहीं था कि कहीं भी मूँह मारता फिरे। उसका जिस्मानी रिश्ता सिर्फ़ अज़रा के साथ ही था जिसे वो दिलो-जान से चाहता था।
रुखसाना ने शुरू-शुरू में अपने हुस्न और खूबसूरती और अदाओं से फ़ारूक को रिझाने और सुधारने की बेहद कोशिश की... लेकिन उसे नाकामयाबी ही हासिल हुई। फिर रुखसाना ने सानिया... जो कि फ़ारूक की पहली बीवी से बेटी थी... उसकी परवरिश में और घर संभालने में ध्यान लगाना शुरू कर दिया। अपनी जिस्मानी तस्कीन के लिये रुखसाना हफ़्ते में एक-दो दफ़ा खुद-लज़्ज़ती का सहारा लेने लगी। इसी तरह वक़्त गुज़रने लगा और रुखसाना और फ़ारूक की शादी को दस-ग्यारह साल गुज़र गये। रुखसाना चौंतीस साल की हो गयी और सानिया भी बीस साल की हो चुकी थी और कॉलेज में फ़ायनल इयर में थी। रुखसाना कभी सोचती थी कि सानिया ही इस दुनिया में उसके आने की वजह है... उसका दुनिया में होना ना होना एक बराबर है.... पर कर भी क्या सकती थी... जैसे तैसे ज़िंदगी कट रही थी। इस दौरान रुखसाना ने खुद को भी मेन्टेन करके रखा था लेकिन फ़ारूक़ ने उसकी तारीफ़ में कभी एक अल्फ़ाज़ भी नहीं कहा। शौहर की नज़र अंदाज़गी और सर्द महरी के बावजूद अपनी खुद की खुशी और तसल्ली के लिये हमेशा मेक-अप करके... नये फैशन के सलवार-कमीज़ और सैंडल पहने... सलीके से बन-संवर कर हमेशा तैयार रहती थी। वो उन गिनी चुनी औरतों में से थी जिसे शायद ही कभी किसी ने बे-तरतीब हालत में देखा हो। चाहे शाम के पाँच बजे हों या सुबह के पाँच बजे.... वो हमेशा बनी संवरी रहती थी।
फिर एक दिन वो हुआ जिसने उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल दी। उसने कभी सोचा भी ना था कि ये बेरंग दिखने वाली दुनिया इतनी हसीन भी हो सकती है... पर रुखसाना को इसका एहसास तब हुआ जब उन सब की ज़िंदगी में सुनील आया।
लेखक: तुषार ©
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रुखसाना की पहली शादी बी-ए खतम करते ही एक्कीस साल की उम्र में हुई थी... पर शादी के कुछ ही महीनों बाद उसके शौहर की मौत एक हादसे में हो गयी। रुखसाना बेवा हो लखनऊ में अपने माँ-बाप के घर आ गयी। उनका मिडल-क्लास घर था। रुखसाना के वालिद की रेडिमेड गार्मेंट्स की दुकान थी। रुखसाना माँ-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी इसलिये वो शहर के एक बड़े अपस्केल लेडिज़ बुटीक में असिस्टेंट के तौर पे काम करने लगी। बुटीक में ही ब्यूटी पार्लर भी था तो रुखसाना के लिये ये अच्छा तजुर्बा था... कपड़े-लत्ते पहनने और बनने संवरने के सलीके सीखने का। इस दौरान उसके माँ-बाप रूकसाना की दूसरी शादी के लिये बहोत कोशिश कर रहे थे। रुखसाना बेहद गोरी और खूबसूरत और स्मार्ट थी लेकिन इसके बावजूद कहीं अच्छा और मुनासिब रिश्ता नहीं मिल रहा था। फिर साल भर बाद एक दिन उसके मामा ने उसकी शादी फ़ारूक नाम के आदमी से तय कर दी। तब फ़ारूक की उम्र अढ़तीस साल थी और रुखसाना की तेईस साल। फ़ारूक की पहली बीवी का इंतकाल शादी के तेरह साल बाद हुआ था और उसकी एक नौ साल की बेटी भी थी। फ़ारूक रेलवे में जॉब करता था। इसलिये घर वालों ने सोचा कि सरकारी नौकरी है... और किसी चीज़ की कमी भी नहीं... इसलिये रुखसाना की शादी फ़ारूक के साथ हो गयी। फ़ारूक की पोस्टिंग शुरू से ही बिहार के छोटे शहर में थी जहाँ उसका खुद का घर भी था।
शादी कहिये या समझौता... पर सच तो यही था कि शादी के बाद रुखसाना को किसी तरह की खुशी नसीब ना हुई.... ना ही वो कोई अपना बच्चा पैदा कर सकी और ना ही उसे शौहर का प्यार मिला। बस यही था कि समाज में शादीशुदा होने का दर्ज़ा और अच्छा माकूल रहन-सहन। शादी के डेढ़-दो साल बाद उसे अपने शौहर पर उसके बड़े भाई की बीवी अज़रा के साथ कुछ नाजायज़ चक्कर का शक होने लगा और उसका ये शक ठीक भी निकला। एक दिन जब फ़ारूक के भाई के बीवी उनके यहाँ आयी हुई थी, तब रुखसाना ने उन्हें ऊपर वाले कमरे में रंगरलियाँ मनाते... ऐय्याशी करते हुए देख लिया।
जब रुखसाना ने इसके बारे में फ़ारूक से बात की तो वो उल्टा उस पर ही बरस उठा। पता नहीं अज़रा ने फ़ारूक पर क्या जादू किया था कि फ़ारूक ने रुखसाना को साफ़-साफ़ बोल दिया कि अगर ये बात किसी को पता चली तो वो रुखसाना को तलाक़ दे देगा... और उसकी बुरी हालत कर देगा। रुखसाना ये सब चुपचाप बर्दाश्त कर गयी। जितने दिन अज़रा उनके यहाँ रुकती... फ़ारूक और अज़रा दोनों खुल्ले आम शराब के नशे में धुत्त होकर हवस का नंगा खेल घर में खेलते। उन दोनों को अब रुखसाना की जैसे कोई परवाह ही नहीं थी.... कभी-कभी तो रुखसाना के बगल में ही बेड पर फ़ारूक और अज़रा चुदाई करने लगते। ये सब देख कर रुखसाना भी गरम हो जाती थी पर अपनी ख्वाहिशों को अपने सीने में दबाये रखती और ज़िल्लत बर्दाश्त करती रहती। रुखसाना के पास और कोई चारा भी नहीं था। बेशक अज़रा बेहद खूबसूरत और सेक्सी थी लेकिन रुखसाना भी खूबसूरती और बनने-संवरने में उससे ज़रा भी कम नहीं थी। अज़रा ने फ़ारूक की ज़िंदगी इस क़दर तबाह कर दी थी कि वो जो कभी-कभार रुखसाना के साथ सैक्स करता भी था.... वो भी करना छोड़ दिया। धीरे-धीरे उसकी मर्दाना ताकत शराब में डूबती चली गयी। कोई दिन ऐसा नहीं होता जब वो नशे में धुत्त गिरते पड़ते घर ना आया हो। इस सबके बावजूद फ़ारूक चुदक्कड़ नहीं था कि कहीं भी मूँह मारता फिरे। उसका जिस्मानी रिश्ता सिर्फ़ अज़रा के साथ ही था जिसे वो दिलो-जान से चाहता था।
रुखसाना ने शुरू-शुरू में अपने हुस्न और खूबसूरती और अदाओं से फ़ारूक को रिझाने और सुधारने की बेहद कोशिश की... लेकिन उसे नाकामयाबी ही हासिल हुई। फिर रुखसाना ने सानिया... जो कि फ़ारूक की पहली बीवी से बेटी थी... उसकी परवरिश में और घर संभालने में ध्यान लगाना शुरू कर दिया। अपनी जिस्मानी तस्कीन के लिये रुखसाना हफ़्ते में एक-दो दफ़ा खुद-लज़्ज़ती का सहारा लेने लगी। इसी तरह वक़्त गुज़रने लगा और रुखसाना और फ़ारूक की शादी को दस-ग्यारह साल गुज़र गये। रुखसाना चौंतीस साल की हो गयी और सानिया भी बीस साल की हो चुकी थी और कॉलेज में फ़ायनल इयर में थी। रुखसाना कभी सोचती थी कि सानिया ही इस दुनिया में उसके आने की वजह है... उसका दुनिया में होना ना होना एक बराबर है.... पर कर भी क्या सकती थी... जैसे तैसे ज़िंदगी कट रही थी। इस दौरान रुखसाना ने खुद को भी मेन्टेन करके रखा था लेकिन फ़ारूक़ ने उसकी तारीफ़ में कभी एक अल्फ़ाज़ भी नहीं कहा। शौहर की नज़र अंदाज़गी और सर्द महरी के बावजूद अपनी खुद की खुशी और तसल्ली के लिये हमेशा मेक-अप करके... नये फैशन के सलवार-कमीज़ और सैंडल पहने... सलीके से बन-संवर कर हमेशा तैयार रहती थी। वो उन गिनी चुनी औरतों में से थी जिसे शायद ही कभी किसी ने बे-तरतीब हालत में देखा हो। चाहे शाम के पाँच बजे हों या सुबह के पाँच बजे.... वो हमेशा बनी संवरी रहती थी।
फिर एक दिन वो हुआ जिसने उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल दी। उसने कभी सोचा भी ना था कि ये बेरंग दिखने वाली दुनिया इतनी हसीन भी हो सकती है... पर रुखसाना को इसका एहसास तब हुआ जब उन सब की ज़िंदगी में सुनील आया।