08-04-2020, 10:08 AM
वो सात दिन
बिछोह के
उनकी निगाहें उस किशोरी की लजाती मुस्कान पर चिपकी थी , और दोनों ने एक दूसरे को देखा जोर से दोनों मुस्करा उठे ,
सास और जेठानी दोनों बाहर बरामदे में थी , और हम लोग भी , ...
कुछ देर में गुड्डी और वो टैक्सी पे ,...और चल दिए ,...
ढाई घंटे बाद उनका मेसेज आया बाबतपुर ( बनारस का एयरपोर्ट) पहुँच गए हैं।
---
सच में उनके जाते ही दिन पहाड़ से हो जाते हैं , एक एक पल , रहती कही हूँ मन वहीँ लगा रहता है ,
हालंकि दिन में कम से कम चार पांच बार बात होती है , व्हाट्सऐप और मेसेज की तो गिनती ही नहीं ,
पर मेरी सास , जेठानी , ननदें , देवर किसी से ये हाल मेरी छुपी नहीं रहती , कोई बोलता नहीं , ...
लेकिन वो सब बस यही कोशिश करते रहते हैं , किसी तरह मेरा मन लगा रहे , ..
दुपहरिया तो अक्सर जेठानी के साथ ही बीतती , उन्ही के बिस्तर में , ... कभी कोई सीरियल तो कभी ' अच्छी ' वाली फ़िल्में ,...
और कई कई बार तो मेरी सासू भी आ जाती
फिर तो हम जेठानी देवरानी मिल के उनसे 'उन दिनों 'की बातें , गाँव की ,
मैं तो उनके पीछे पड़ के रात में ससुर जी के साथ कैसे , कितनी बार ,
और वो भी खुल के गाँव के किस्से , मरद सब अलग सोते थे , बाहर ,
और औरतें अंदर या तो अंदर वाले आंगन में अपने कमरे में , रात में जब सब लोग सो जाते तो ससुर जी आते ,
और अगर कभी सासु जी को आंगन में सोना पड़ता , अपनी सास जेठानी के साथ , तो सोने के पहले अपनी पायल उतार लेतीं
और जैसे ही सब लोग सोते , वो दबे पाँव , सांस रोक के अपने कमरे में , बस ससुर जी का इन्तजार करतीं , ...
हाँ हंस के उन्होंने कबूला ,
अलग अलग जगह सोने के बाद भी , कोई रात नागा नहीं जाता था ,
और उनकी सास कडुवा तेल की बोतल रोज चेक करती थीं , शाम को फिर वो बोतल भरी रहती थी।
और मैंने और जेठानी जी ने एक साथ हँसते हुए बोला और ये पारिवारिक परम्परा अभी तक कायम है ,
लेकिन मैं इतने आसानी से सासू जी को नहीं छोड़ती थी ,
सब कुछ , कितनी बार ,
और वो भी एकदम सहेलियों की तरह ,... सब कुछ एकदम खोल के
शाम की चाय जेठानी और मैं मिल के बनाते , ...
हफ्ते में दो तीन दिन , रेनू, लीला और गुड्डी , ..कॉलेज से सीधे , ( बगल में ही तो था जी जी आई सी , छत से दिखता था )
सीधे मेरे कमरे में ,...
फिर तो वो धमाचौकड़ी मचती ,...
और अब गुड्डी भी की शरम धीमे धीमे खुलने लगती थी , ...
और कहीं थोड़ा भी छिनारपना किया न
बिछोह के
उनकी निगाहें उस किशोरी की लजाती मुस्कान पर चिपकी थी , और दोनों ने एक दूसरे को देखा जोर से दोनों मुस्करा उठे ,
सास और जेठानी दोनों बाहर बरामदे में थी , और हम लोग भी , ...
कुछ देर में गुड्डी और वो टैक्सी पे ,...और चल दिए ,...
ढाई घंटे बाद उनका मेसेज आया बाबतपुर ( बनारस का एयरपोर्ट) पहुँच गए हैं।
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सच में उनके जाते ही दिन पहाड़ से हो जाते हैं , एक एक पल , रहती कही हूँ मन वहीँ लगा रहता है ,
हालंकि दिन में कम से कम चार पांच बार बात होती है , व्हाट्सऐप और मेसेज की तो गिनती ही नहीं ,
पर मेरी सास , जेठानी , ननदें , देवर किसी से ये हाल मेरी छुपी नहीं रहती , कोई बोलता नहीं , ...
लेकिन वो सब बस यही कोशिश करते रहते हैं , किसी तरह मेरा मन लगा रहे , ..
दुपहरिया तो अक्सर जेठानी के साथ ही बीतती , उन्ही के बिस्तर में , ... कभी कोई सीरियल तो कभी ' अच्छी ' वाली फ़िल्में ,...
और कई कई बार तो मेरी सासू भी आ जाती
फिर तो हम जेठानी देवरानी मिल के उनसे 'उन दिनों 'की बातें , गाँव की ,
मैं तो उनके पीछे पड़ के रात में ससुर जी के साथ कैसे , कितनी बार ,
और वो भी खुल के गाँव के किस्से , मरद सब अलग सोते थे , बाहर ,
और औरतें अंदर या तो अंदर वाले आंगन में अपने कमरे में , रात में जब सब लोग सो जाते तो ससुर जी आते ,
और अगर कभी सासु जी को आंगन में सोना पड़ता , अपनी सास जेठानी के साथ , तो सोने के पहले अपनी पायल उतार लेतीं
और जैसे ही सब लोग सोते , वो दबे पाँव , सांस रोक के अपने कमरे में , बस ससुर जी का इन्तजार करतीं , ...
हाँ हंस के उन्होंने कबूला ,
अलग अलग जगह सोने के बाद भी , कोई रात नागा नहीं जाता था ,
और उनकी सास कडुवा तेल की बोतल रोज चेक करती थीं , शाम को फिर वो बोतल भरी रहती थी।
और मैंने और जेठानी जी ने एक साथ हँसते हुए बोला और ये पारिवारिक परम्परा अभी तक कायम है ,
लेकिन मैं इतने आसानी से सासू जी को नहीं छोड़ती थी ,
सब कुछ , कितनी बार ,
और वो भी एकदम सहेलियों की तरह ,... सब कुछ एकदम खोल के
शाम की चाय जेठानी और मैं मिल के बनाते , ...
हफ्ते में दो तीन दिन , रेनू, लीला और गुड्डी , ..कॉलेज से सीधे , ( बगल में ही तो था जी जी आई सी , छत से दिखता था )
सीधे मेरे कमरे में ,...
फिर तो वो धमाचौकड़ी मचती ,...
और अब गुड्डी भी की शरम धीमे धीमे खुलने लगती थी , ...
और कहीं थोड़ा भी छिनारपना किया न