05-04-2020, 08:09 AM
(05-04-2020, 04:24 AM)Niharikasaree Wrote:निहारिका जी क्या बात है बहुत खूबहम्म , जो डर था वो ही हुआ..... देख ली माँ ने ब्रा और पैंटी। ......
अब आगे ,
मेरा चेहरा शर्म से लाल था , आँखे माँ को ही देख रही थी की वो क्या बोले
माँ ने ब्रा और पैंटी को हाथ मैं लिया , कहा -
माँ - वाह अच्छी क्वालिटी की ब्रा है , कलर भी मस्त है , जब हम जवान हुए थे तो इतनी अच्छी ब्रा नहीं आती थी चल लेते थे काम, जो मिल जाती थी।
मैं - कुछ रिलैक्स हुई , फिर माँ ने पूछा , सहेली से अरी इसे भी दिला लाती ब्रा , देखो अब तो दिखने लगे है जोबन कुर्ती मैं से।
सहेली - ऑन्टी , निहारिका को ही तो दिला कर लायी हूँ , और देखो पैंटी भी है साथ मैं,
माँ - हम्म, अच्छी यही, कलर भी डार्क है , उन दिनों मैं भी काम आएगा और कपड़ो मैं से दिखगी भी नहीं। अच्छा किया जो तू साथ चली गई , नहीं तो ये बुद्धू ऐसे ही दिखती फिरती अपना जोबन।
मैं - हा , माँ, मैं ले आयी, अच्छा किया न ,
माँ - हम्म, ठीक है , पर आँचल ठीक से पहना कर , संभाल के जमाना ख़राब है, लोगों की नज़र जोबन पर ही रहती है।
सहेली - हाँ ,ऑन्टी जी, जरा समझा दो , पगली है एकदम।
सहेली भी, चुटी लेने से नहीं चुकती , "हर एक दोस्त कमीना होता है, ये तो कामिनी थी, जिसमे कोई कमी न थी"मैं - अच्छा जी, समझ गई , बस।
सहेली - आंटी , अब मैं चलती हु , बाई निहारिका।
मैं - बाई
फिर सहेली , अपने घर को निकल गई, और मैंने माँ को देखा और माँ ने मुझे देखा , कुछ था जो हम एक दूसरे से कहना चाहते थे
मैं - माँ, अब अंदर चले , मने शॉपिंग बैग उठाये और कमरे मैं चल दी, थोड़ा तेज़ , शायद बचना चाहती थी, बातचीत से।
जैसे ही कमरे मैं पुहंची , आँचल उतार के बिस्तर पर फेंका और बिस्तर पर बैठ गई , पांच मिनिट ही हुए होंगे की माँ आ गई, अब क्या। .....
माँ - निहारिका , दिखा तो तेरी ब्रा , कैसे है बाहर तो ठीक से देख नहीं पायी।
मैं- हम्म, माँ लो ये देखो , ये पैडेड है और सॉफ्ट है, नई कंपनी की है. और पैंटी भी सॉफ्ट है.
माँ - हम्म, सॉफ्ट तो है, और पैंटी मैं भी ये बीच का हिस्सा अच्छा है, सपोर्ट के लिए।
मैं - हाँ , माँ
माँ- जरा पहन कर दिखा तेरी नई ब्रा। ...
..............................
बिल्कुल बचपन का हूबहू चित्रांकन किया है
वो हम लड़कियों की मस्ती बाहर घूमना फिरना चुहलबाजी ओर फिर नए कपड़ो का तो ख़ुमार 10 दिन नहीं उतरता था मन से
बहुत बढ़िया लिख रही हो इस घर ग्रहस्ती के झमेले में पता नहीं बचपन कैसे बिल्कुल भूल गयी हम सब पर आप ने इस थर्ड के माध्यम से जीवंत कर दिया है
वेसे हम लड़कियां बचपन मे होती बहुत नटखट थी,,
ब्रा पेंटी किसी सहेली के लिए खरीदती भी हम ही थी फिर लाखों कसमें खिला के देखती भी हम ही थी
ओर साथ पढ़ने लिखने के समय तो कुछ मस्तियाँ ओर टाइप की भी हो ही जाती थी जब कुछ फ़िल्म या पत्रिका या किताब में कुछ ऐसा वेसा दिख जाता तुरंत सामने वाली के ऊपर डाल देना ये तुं है ये तेरा है,
ओर पलट के उस का जवाब ये तेरी शादी के बाद का हाल है ये फोटो तेरा है ऊफ़्फ़ कहाँ खो गयी वो चुहलबाजी अठखेलियाँ