03-04-2020, 04:51 PM
बनारस की ख़ास गारी
उड़ आया दुपट्टा बनारस से , उड़ आया ,...
उडी आवा दुपट्टा बनारस से , उडी आवा दुपट्टा बनारस से ,
हमारी जेठानी जी के देवर क बहिनी को आज मारेंगे , काल मारेंगे , हर रोज मारेंगे ,
अरे गुड्डी छिनरो को निहुराय मारेंगे , लेटाय मारेंगे , दोनों टंगिया फैलाय मारेंगे ,
गपागप मारेंगे , सटासट मारेंगे , गुड्डी क दुनो जोबना पकड़ के मारेंगे , ...
अरे एलवल वाली छिनरो को हमार सैयां मारेंगे , उनके साले मारेंगे , खचाखच मारेंगे ,
अगवाड़ा मारेंगे , पिछवाड़ा मारेंगे
....
मेरी सास ने तारीफ़ की नजर से मेरी ओर देखा
और मैंने बात आगे बढ़ाई , इनके बचपन के माल की तारीफ़ में ,
....
एक और गारी शुरू की , टिपिकल बनारसी
ई बटुआ आया बनारस से केकरे केकरे घर जाए की वाह वाह
ई बटुआ जाए सैंया क घर में , जेकर बहन बड़ी गोरी की वाह
अरे जेकर गुड्डी बड़ी गोरी की वाह ,
अरे गुड्डी बुलावे दस दस यार , सबसे चोरीचोरी की वाह , वाह
अरे गुड्डी मरवावें , अरे हमरे सैंया क बहिनी मरवावे , दस दस यारन से
जेठानी ने मुझे घूर कर देखा तो मैं एकदम बनारस वाले लेवल पर आ गयी
अरे गुड्डी चुदवावे , हमार ननद छीनार चुदवावे दस दस यारन से
मेरी जेठानी ने फिर गुड्डी की कटोरी भरते बोला , ...
"अरे मैं तो एक ही जानती थी , जो उसके बगल में बैठा है , छह फुट वाला ,..."
मेरे मुंह से निकल गया , ...दीदी वो अकेले दस दस के बराबर है , ... फिर खुद ही अपनी बात पर शरमा गयी , ...ये क्या बोल गयी मैं ,
और मेरी ननद को भी बोलने का मौका मिला गया , रोज तो वो लजा जाती थी वो गुस्सा हो जाती थी , पर आज उनके कंधे पर हाथ रख कर ठसके से बोली ,
" मान गयी भौजी न आजमगढ़ वालों को , तभी तो बनारस वाली यहाँ आती हैं , ... "
मैंने दूसरी गारी शुरू कर दी ,
' बिन बदरा के बिजुरिया कहाँ चमके ,हो कहाँ चमके ,
अरे हमरी ननदी छिनार के गाल चमके , आल चमके ,चोली के भीतर अनार झलके
अरे ब्रा के भीतर जोबन छलके , अरे दोनों जांघन के बीच दरार झलके , ...
और फिर मेरी जेठानी चालू ,
लहुरी ननदिया की रगड़ाई करने का इतना बढ़िया मौका रोज रोज थोड़े ही मिलता है वो भी उसके भइया के सामने ,
और ऊपर से गुड्डी ने खुद आग लगा दी , ...
नमक थोड़ा कम था बोल कर ,
मजे की बात ये थी की हमारी सासु जी भी गाने में साथ दे रही थीं , चमच से थाली बजा बजा कर और मैं तो जेठानी जी के साथ थी ,
गा रही थी मुस्करा रही थी ,
छोटे दाने वाला बिछुआ गजबे बना , छोटे दाना वाला ,
ु बिछुआ पहने हमार ननदी छिनार , अरे गुड्डी छिनार
छोटे दाने वाला
करवट बाजे , अरवट बाजे , दोनों टांग उठावत बाजे ,
छोट छोट जोबना मिसावत बाजे
अरे हमरे देवरा से रोज चोदावत बाजे , अपने भैया से रोज चोदावत बजे ,
छोटे दाना वाला
अगला गाना मैंने शुरू किया
गुड्डी भाई चोदी पक्की छिनार ,
अरे अपनी भइया के होंठन पर, हमरे सैंया के होंठें पर आपन बुर रगड़े ,
आपन गाल रगड़े ,
उनके गोदी में बैठ के दोनों जोबन रगड़े , अरे गुड्डी छिनार , ...
जो खाना बीस मिनट में ख़तम हो जाता वो पूरे डेढ़ घंटे चला और दर्जन भर से ज्यादा गारी , भाई बहन को पड़ी।
और गारियों की गंगा तब रुकी , जब बाहर इनको बनारस ले जाने के लिए टैक्सी वाला आ गया और हल्ला करने लगा।
ये प्रस्ताव मेरी सास जी ने ही रखा ,
" अरे तुम टैक्सी से तो जा ही रहे हो , इसको इसके घर छोड़ देना , ... "
और समर्थन मेरी जेठानी ने किया ,
" एकदम कहींइतना गरमाई लौंडिया है , कोई पकड़ के , ...या खुद ही किसी यार के साथ छिनार , बांधे के नीचे , रहरी के खेते ,... "
और उनकी बात काटते मैंने गुड्डी से धीरे से कहा ,
" खबरदार ये सील वही खोलेगा , जिसकी तू बचपन से माल है , और किसी के आगे नाड़ा मत खोलना ,... "
उसके मुंह से निकला गया ,
' एकदम नहीं भाभी ,... "
और पहले तो उनका चेहरा चमक गया ख़ुशी से फिर जोर से शरमा गए ,...
और मैं , जेठानी जी मेरी सास जोर जोर से ठहाके लगा रहा थीं , ...
सबसे जोर से तो मेरी सास ,...
गुड्डी न शर्मायी , न गुस्साई बस बात बदलने की कोशिश की उसने ,
उड़ आया दुपट्टा बनारस से , उड़ आया ,...
उडी आवा दुपट्टा बनारस से , उडी आवा दुपट्टा बनारस से ,
हमारी जेठानी जी के देवर क बहिनी को आज मारेंगे , काल मारेंगे , हर रोज मारेंगे ,
अरे गुड्डी छिनरो को निहुराय मारेंगे , लेटाय मारेंगे , दोनों टंगिया फैलाय मारेंगे ,
गपागप मारेंगे , सटासट मारेंगे , गुड्डी क दुनो जोबना पकड़ के मारेंगे , ...
अरे एलवल वाली छिनरो को हमार सैयां मारेंगे , उनके साले मारेंगे , खचाखच मारेंगे ,
अगवाड़ा मारेंगे , पिछवाड़ा मारेंगे
....
मेरी सास ने तारीफ़ की नजर से मेरी ओर देखा
और मैंने बात आगे बढ़ाई , इनके बचपन के माल की तारीफ़ में ,
....
एक और गारी शुरू की , टिपिकल बनारसी
ई बटुआ आया बनारस से केकरे केकरे घर जाए की वाह वाह
ई बटुआ जाए सैंया क घर में , जेकर बहन बड़ी गोरी की वाह
अरे जेकर गुड्डी बड़ी गोरी की वाह ,
अरे गुड्डी बुलावे दस दस यार , सबसे चोरीचोरी की वाह , वाह
अरे गुड्डी मरवावें , अरे हमरे सैंया क बहिनी मरवावे , दस दस यारन से
जेठानी ने मुझे घूर कर देखा तो मैं एकदम बनारस वाले लेवल पर आ गयी
अरे गुड्डी चुदवावे , हमार ननद छीनार चुदवावे दस दस यारन से
मेरी जेठानी ने फिर गुड्डी की कटोरी भरते बोला , ...
"अरे मैं तो एक ही जानती थी , जो उसके बगल में बैठा है , छह फुट वाला ,..."
मेरे मुंह से निकल गया , ...दीदी वो अकेले दस दस के बराबर है , ... फिर खुद ही अपनी बात पर शरमा गयी , ...ये क्या बोल गयी मैं ,
और मेरी ननद को भी बोलने का मौका मिला गया , रोज तो वो लजा जाती थी वो गुस्सा हो जाती थी , पर आज उनके कंधे पर हाथ रख कर ठसके से बोली ,
" मान गयी भौजी न आजमगढ़ वालों को , तभी तो बनारस वाली यहाँ आती हैं , ... "
मैंने दूसरी गारी शुरू कर दी ,
' बिन बदरा के बिजुरिया कहाँ चमके ,हो कहाँ चमके ,
अरे हमरी ननदी छिनार के गाल चमके , आल चमके ,चोली के भीतर अनार झलके
अरे ब्रा के भीतर जोबन छलके , अरे दोनों जांघन के बीच दरार झलके , ...
और फिर मेरी जेठानी चालू ,
लहुरी ननदिया की रगड़ाई करने का इतना बढ़िया मौका रोज रोज थोड़े ही मिलता है वो भी उसके भइया के सामने ,
और ऊपर से गुड्डी ने खुद आग लगा दी , ...
नमक थोड़ा कम था बोल कर ,
मजे की बात ये थी की हमारी सासु जी भी गाने में साथ दे रही थीं , चमच से थाली बजा बजा कर और मैं तो जेठानी जी के साथ थी ,
गा रही थी मुस्करा रही थी ,
छोटे दाने वाला बिछुआ गजबे बना , छोटे दाना वाला ,
ु बिछुआ पहने हमार ननदी छिनार , अरे गुड्डी छिनार
छोटे दाने वाला
करवट बाजे , अरवट बाजे , दोनों टांग उठावत बाजे ,
छोट छोट जोबना मिसावत बाजे
अरे हमरे देवरा से रोज चोदावत बाजे , अपने भैया से रोज चोदावत बजे ,
छोटे दाना वाला
अगला गाना मैंने शुरू किया
गुड्डी भाई चोदी पक्की छिनार ,
अरे अपनी भइया के होंठन पर, हमरे सैंया के होंठें पर आपन बुर रगड़े ,
आपन गाल रगड़े ,
उनके गोदी में बैठ के दोनों जोबन रगड़े , अरे गुड्डी छिनार , ...
जो खाना बीस मिनट में ख़तम हो जाता वो पूरे डेढ़ घंटे चला और दर्जन भर से ज्यादा गारी , भाई बहन को पड़ी।
और गारियों की गंगा तब रुकी , जब बाहर इनको बनारस ले जाने के लिए टैक्सी वाला आ गया और हल्ला करने लगा।
ये प्रस्ताव मेरी सास जी ने ही रखा ,
" अरे तुम टैक्सी से तो जा ही रहे हो , इसको इसके घर छोड़ देना , ... "
और समर्थन मेरी जेठानी ने किया ,
" एकदम कहींइतना गरमाई लौंडिया है , कोई पकड़ के , ...या खुद ही किसी यार के साथ छिनार , बांधे के नीचे , रहरी के खेते ,... "
और उनकी बात काटते मैंने गुड्डी से धीरे से कहा ,
" खबरदार ये सील वही खोलेगा , जिसकी तू बचपन से माल है , और किसी के आगे नाड़ा मत खोलना ,... "
उसके मुंह से निकला गया ,
' एकदम नहीं भाभी ,... "
और पहले तो उनका चेहरा चमक गया ख़ुशी से फिर जोर से शरमा गए ,...
और मैं , जेठानी जी मेरी सास जोर जोर से ठहाके लगा रहा थीं , ...
सबसे जोर से तो मेरी सास ,...
गुड्डी न शर्मायी , न गुस्साई बस बात बदलने की कोशिश की उसने ,