31-03-2020, 10:16 AM
मैं एक बार फिर झड़ी कर्टसी मेरी सैयां की जीभ ,
क्लिट
पहले जीभ की टिप से हलके से क्लिट पर सुरसुरी करते थे वो , एकदम पूरी देह गिनगीना उठती थी ,
उसके बाद दोनों होंठों के बीच क्लिट को लेकर हल्के से चुभलाते चूसते थे , धीमे धीमे चूसने की रफ़्तार बढ़ती जाती
और एक बार फिर से जीभ क्लिट को फ्लिक करने लगती
जैसे किस बरसों से सोये सितार के तार को कोई छेड़ दे और चारों ओर सुर लहरी पूरे कमरे में भर जाए ,
बिलकुल उसी तरह , मेरी क्लिट चूसी जा रही थी , चाटी जा रही थी , ...
वो दुष्ट , बदमाश मुझे बार बार झाड़ने के किनारे ले जा कर छोड़ देता था
पर झाड़ता नहीं था ,
मैं इतनी थेथर हो गयी थी की उसे गालियां भी नहीं दे पा रही थी , बस अपनी देह उठाती , चूतड़ उचकाती जैसे बार बार कह रही होऊं
गुहार लगा रही होऊं
झाड़ झाड़ दे , अपनी कोमलिया को , प्लीज मेरे राजा झाड़ दे न ,
बस,ये जो तड़प होती है कोई बता ही नहीं सकती सिर्फ महसूस की जा सकती है
मर्द तो जब चाहें झड़ सकते है उन के खुद के हाथ मे होता है पर औरत उस समय सिर्फ उन के रहमों करम पर होती है अगर वो चाहें तो ही वरना कितना भी चूतड़ पटके एक बूंद नहीं निकलती हमारी
हां मुझे अच्छी तरह याद है कहानी थी आप की कालजयी रचना " फ़ागुन के दिन चार "
एक दृश्य था ट्रेन का जिस में रीत मीनल के ऊपर चढ़ के मजे लूट रही थी और मीनल को बोल रही थी वो सब बोलने के लिए मीनल अपने जीजू के सामने शर्मा रही थी पर रीत ने वो घिस्से मारे बेचारी की चुत पे बिलबिला उठी मज़े से फिर रीत बोलती है बोल जो मैंने कहा और ओर एक करारा धक्का मारती है मज़े के मारे मीनल बोलती है जो रीत बुलवाना चाहती है
ऐसे दृश्य सिर्फ आप की कहानियों में ही मिल सकते है ये जो मीठी मस्ती होती है औरतोँ के बीच वो कमाल की होती है
मुझे पूरी उम्मीद है ऐसे प्रसंग JKG में बहुत आएंगे और वो भी बहुत ही कामुक फिर आप के निच्चे गुड्डी,जेठानी, मिसेस मोइत्रा,उस की दोनों कबूतरियाँ ओर आप की मुख्य टारगेट आप की सासु माँ
सब ये धक्के खायेगी
प्यार के साथ प्रणाम आप की कुसुम सोनी
क्लिट
पहले जीभ की टिप से हलके से क्लिट पर सुरसुरी करते थे वो , एकदम पूरी देह गिनगीना उठती थी ,
उसके बाद दोनों होंठों के बीच क्लिट को लेकर हल्के से चुभलाते चूसते थे , धीमे धीमे चूसने की रफ़्तार बढ़ती जाती
और एक बार फिर से जीभ क्लिट को फ्लिक करने लगती
जैसे किस बरसों से सोये सितार के तार को कोई छेड़ दे और चारों ओर सुर लहरी पूरे कमरे में भर जाए ,
बिलकुल उसी तरह , मेरी क्लिट चूसी जा रही थी , चाटी जा रही थी , ...
वो दुष्ट , बदमाश मुझे बार बार झाड़ने के किनारे ले जा कर छोड़ देता था
पर झाड़ता नहीं था ,
मैं इतनी थेथर हो गयी थी की उसे गालियां भी नहीं दे पा रही थी , बस अपनी देह उठाती , चूतड़ उचकाती जैसे बार बार कह रही होऊं
गुहार लगा रही होऊं
झाड़ झाड़ दे , अपनी कोमलिया को , प्लीज मेरे राजा झाड़ दे न ,
बस,ये जो तड़प होती है कोई बता ही नहीं सकती सिर्फ महसूस की जा सकती है
मर्द तो जब चाहें झड़ सकते है उन के खुद के हाथ मे होता है पर औरत उस समय सिर्फ उन के रहमों करम पर होती है अगर वो चाहें तो ही वरना कितना भी चूतड़ पटके एक बूंद नहीं निकलती हमारी
हां मुझे अच्छी तरह याद है कहानी थी आप की कालजयी रचना " फ़ागुन के दिन चार "
एक दृश्य था ट्रेन का जिस में रीत मीनल के ऊपर चढ़ के मजे लूट रही थी और मीनल को बोल रही थी वो सब बोलने के लिए मीनल अपने जीजू के सामने शर्मा रही थी पर रीत ने वो घिस्से मारे बेचारी की चुत पे बिलबिला उठी मज़े से फिर रीत बोलती है बोल जो मैंने कहा और ओर एक करारा धक्का मारती है मज़े के मारे मीनल बोलती है जो रीत बुलवाना चाहती है
ऐसे दृश्य सिर्फ आप की कहानियों में ही मिल सकते है ये जो मीठी मस्ती होती है औरतोँ के बीच वो कमाल की होती है
मुझे पूरी उम्मीद है ऐसे प्रसंग JKG में बहुत आएंगे और वो भी बहुत ही कामुक फिर आप के निच्चे गुड्डी,जेठानी, मिसेस मोइत्रा,उस की दोनों कबूतरियाँ ओर आप की मुख्य टारगेट आप की सासु माँ
सब ये धक्के खायेगी
प्यार के साथ प्रणाम आप की कुसुम सोनी