30-03-2020, 06:53 PM
(This post was last modified: 19-07-2021, 02:41 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
कलावती
बताया तो था न उसके बारे में। मुझसे २-३ साल छोटी होगी , यही करीब १९-२० साल की। शादी हो गयी है लेकिन मरद पंजाब कमाने गया है ,इसलिए ज्यादातर अपनी माँ के पास रहती है।
माँ उसकी हम लोगों के यहां काम करती है ,कपड़ा बरतन झाड़ू पोंछा , लेकिन जब कलावती रहती है तो अक्सर वही आती है।
रिश्ते में हम लोग उसे अपनी ननद मानते थे , इसलिए मैं और जेठानी जी खुल के उससे मजाक करते थे , और वो भी सूद ब्याज समेत जवाब देती थी , गारी गाने में तो नम्बरी।
देखने में भी अच्छी थी , थोड़ी गोल मटोल ,लेकिन सही जगहों पर , उभार खूब गदराये , कड़े कड़े ,मस्त और पिछवाड़ा भी खूब भारी।
उसे हम लोग चिढ़ाते थे
"लगता है तुझे मायके के यार बहुत पसंद है इसलिए ससुराल छोड़ के मायके में रहती है। "
और वो भी कोई कम थोड़ी ,उलटे पलट के जवाब देती,
" अरे बात आपकी एकदम सही है, मेरे मायके के मरद हैं ही बहुत दमदार ,तभी तो आप दोनों अपना अपना शहर छोड़ चुदवाने मेरे मायके में आयी। "
और मैं इनका नाम लगा के उसे चिढ़ाती ,जेठानी जी के सामने ,
" दीदी लगता है आपके देवर को भी कलावती ने अच्छी तरह ट्रेन किया है "
मेरी जेठानी भी हाँ में हाँ मिलाती बोलतीं ,
" सही कह रही हो , अरे ये आती थी तो सबेरे सबेरे दरवाजा तो मेरे देवर ही खोलते थे लेकिन पता नहीं ,वो खोलते थे या ये खोलती थी। "
" या दोनों खोलते थे "
मैं भी जोड़ती ,
और हम दोनों खिलखलाने लगते ,लेकिन कलावती वो कौन हार मानने वाली ,
मुझसे बोलती ,
" अरे छुटकी भौजी ( मुझे वो छुटकी भौजी ही कहती ) , गनीमत मनाओ अपनी छुटकी ननदिया को की तोहरे सैंया को ट्रेनिंग वेनिंग करा दी , वरना कहीं सुहागरात में बजाय अगवाड़े कही ,... पिछवाड़े पेल दिए होते न तो पता चलता। गांड में वो चिलख मचती बैठ नहीं पाती। "
एकदम खुल्लम खुल्ला मजाक होता था उसका ,
तो जेठानी जी तो सोने चली गयी थी और कलावती धोने के लिए कपडे इनसे मांग रही थी ,और ये बिचारे शरमाते लजाते ,
" दे दो न मांग रही है तो "मैंने चिढ़ाया ,
" आखिर बहन लगेगी तुम्हारी और तुम मांगोगे तो ये भी दे देगी ".
" एकदम , मैं तो बिना मांगे देने को तैयार हूँ छुटकी भौजी लेकिन तोहार झांट तो न सुलगी। "
वो क्यों चुप रहती।
लेकिन अब मैं भी
" अरे उस की चिंता मत करो ,उ सब साफ़ कर के चिक्कन मुक्कन ,न हो तो अपने भैया से पूछ लो , इस लिए सुलगने का सवाल नहीं है। "
मैंने बोला।
और इन को एक बहुत छोटा सा तौलिया दे दिया , उसे पहन के सब कपडे इन्होने उतार के कलावती के हाथ में दे दिए।
मुझे बदमाशी सूझी ,मैंने कलावती को इशारा किया और बोली ,
" हे इ तौलिया भी तो थोड़ी गन्दी हो गयी है न इसको भी धोने को ले लो। "
" एकदम छुटकी भौजी , सही कह रही हो "
और हँसते खिलखिलाते उसने तौलिया खींच ली।
अब वो एकदम ,.. खूंटा एकदम कलावती के सामने
,वो नदीदियो की तरह घूर घूर के देख रही थी ,खिलखिला रही थी।
उन्होंने हाथ से उसे छिपाने की कोशिश की लेकिन कित्ता छिपता , बड़ी मुश्किल से उन्होंने बाथरूम में शरण ली।
" अरे पहले नहीं देखा था क्या जो ऐसे देख रही थी "
मैंने कलावती को चिढ़ाया।
" देखा था लेकिन तब इत्ता मोटा और लम्बा नहीं था। "
वो साफ़ साफ़ बोली।
उनकी बहुत चिरौरी मिनती के बाद एक छोटा सा बॉक्सर शार्ट मैंने उन्हें दिया , बाथरूम में।
लेकिन जब वो पहन के निकले तो ,
फिर मैंने खींच दिया और शेर पिंजड़े से बाहर ,
" चल ठीक से देख ले और चाहे तो पकड़ के दबा के मसल के भी ,.. फिर मत कहना छुटकी भौजी ने ,... "
" एकदम छुटकी भौजी ,"
और उसने न सिर्फ पकड़ा , बल्कि रगड़ा और मसला भी।
किसी तरह वो कलावती से छुड़ा के ऊपर कमरे में भागे।
मैं और कलावती नीचे खिलखिलाते रहे.
शाम को डिनर में मैंने अपनी जेठानी का धरम भरष्ट करा दिया।
बताया तो था न उसके बारे में। मुझसे २-३ साल छोटी होगी , यही करीब १९-२० साल की। शादी हो गयी है लेकिन मरद पंजाब कमाने गया है ,इसलिए ज्यादातर अपनी माँ के पास रहती है।
माँ उसकी हम लोगों के यहां काम करती है ,कपड़ा बरतन झाड़ू पोंछा , लेकिन जब कलावती रहती है तो अक्सर वही आती है।
रिश्ते में हम लोग उसे अपनी ननद मानते थे , इसलिए मैं और जेठानी जी खुल के उससे मजाक करते थे , और वो भी सूद ब्याज समेत जवाब देती थी , गारी गाने में तो नम्बरी।
देखने में भी अच्छी थी , थोड़ी गोल मटोल ,लेकिन सही जगहों पर , उभार खूब गदराये , कड़े कड़े ,मस्त और पिछवाड़ा भी खूब भारी।
उसे हम लोग चिढ़ाते थे
"लगता है तुझे मायके के यार बहुत पसंद है इसलिए ससुराल छोड़ के मायके में रहती है। "
और वो भी कोई कम थोड़ी ,उलटे पलट के जवाब देती,
" अरे बात आपकी एकदम सही है, मेरे मायके के मरद हैं ही बहुत दमदार ,तभी तो आप दोनों अपना अपना शहर छोड़ चुदवाने मेरे मायके में आयी। "
और मैं इनका नाम लगा के उसे चिढ़ाती ,जेठानी जी के सामने ,
" दीदी लगता है आपके देवर को भी कलावती ने अच्छी तरह ट्रेन किया है "
मेरी जेठानी भी हाँ में हाँ मिलाती बोलतीं ,
" सही कह रही हो , अरे ये आती थी तो सबेरे सबेरे दरवाजा तो मेरे देवर ही खोलते थे लेकिन पता नहीं ,वो खोलते थे या ये खोलती थी। "
" या दोनों खोलते थे "
मैं भी जोड़ती ,
और हम दोनों खिलखलाने लगते ,लेकिन कलावती वो कौन हार मानने वाली ,
मुझसे बोलती ,
" अरे छुटकी भौजी ( मुझे वो छुटकी भौजी ही कहती ) , गनीमत मनाओ अपनी छुटकी ननदिया को की तोहरे सैंया को ट्रेनिंग वेनिंग करा दी , वरना कहीं सुहागरात में बजाय अगवाड़े कही ,... पिछवाड़े पेल दिए होते न तो पता चलता। गांड में वो चिलख मचती बैठ नहीं पाती। "
एकदम खुल्लम खुल्ला मजाक होता था उसका ,
तो जेठानी जी तो सोने चली गयी थी और कलावती धोने के लिए कपडे इनसे मांग रही थी ,और ये बिचारे शरमाते लजाते ,
" दे दो न मांग रही है तो "मैंने चिढ़ाया ,
" आखिर बहन लगेगी तुम्हारी और तुम मांगोगे तो ये भी दे देगी ".
" एकदम , मैं तो बिना मांगे देने को तैयार हूँ छुटकी भौजी लेकिन तोहार झांट तो न सुलगी। "
वो क्यों चुप रहती।
लेकिन अब मैं भी
" अरे उस की चिंता मत करो ,उ सब साफ़ कर के चिक्कन मुक्कन ,न हो तो अपने भैया से पूछ लो , इस लिए सुलगने का सवाल नहीं है। "
मैंने बोला।
और इन को एक बहुत छोटा सा तौलिया दे दिया , उसे पहन के सब कपडे इन्होने उतार के कलावती के हाथ में दे दिए।
मुझे बदमाशी सूझी ,मैंने कलावती को इशारा किया और बोली ,
" हे इ तौलिया भी तो थोड़ी गन्दी हो गयी है न इसको भी धोने को ले लो। "
" एकदम छुटकी भौजी , सही कह रही हो "
और हँसते खिलखिलाते उसने तौलिया खींच ली।
अब वो एकदम ,.. खूंटा एकदम कलावती के सामने
,वो नदीदियो की तरह घूर घूर के देख रही थी ,खिलखिला रही थी।
उन्होंने हाथ से उसे छिपाने की कोशिश की लेकिन कित्ता छिपता , बड़ी मुश्किल से उन्होंने बाथरूम में शरण ली।
" अरे पहले नहीं देखा था क्या जो ऐसे देख रही थी "
मैंने कलावती को चिढ़ाया।
" देखा था लेकिन तब इत्ता मोटा और लम्बा नहीं था। "
वो साफ़ साफ़ बोली।
उनकी बहुत चिरौरी मिनती के बाद एक छोटा सा बॉक्सर शार्ट मैंने उन्हें दिया , बाथरूम में।
लेकिन जब वो पहन के निकले तो ,
फिर मैंने खींच दिया और शेर पिंजड़े से बाहर ,
" चल ठीक से देख ले और चाहे तो पकड़ के दबा के मसल के भी ,.. फिर मत कहना छुटकी भौजी ने ,... "
" एकदम छुटकी भौजी ,"
और उसने न सिर्फ पकड़ा , बल्कि रगड़ा और मसला भी।
किसी तरह वो कलावती से छुड़ा के ऊपर कमरे में भागे।
मैं और कलावती नीचे खिलखिलाते रहे.
शाम को डिनर में मैंने अपनी जेठानी का धरम भरष्ट करा दिया।