29-03-2020, 11:01 PM
अध्याय 21
“राधा तू यहाँ... क्या यहीं एड्मिशन ले रही है??” कॉलेज में प्रिन्सिपल ऑफिस के सामने खड़े प्रबल और अनुराधा को देखकर अनुपमा जो अभी-अभी अपनी क्लास से बाहर निकली थी... उनके पास आकर बोली
“हाँ अनु! में और प्रबल अब यहीं पढ़ेंगे.... ऋतु बुआ यहीं एड्मिशन करा रही हैं हमारा” अनुराधा ने कहा
“तुम तो 2nd इयर में होगी और प्रबल 1st इयर में” अनुपमा ने पूंछा
“नहीं हम दोनों ही 1st इयर में ही हैं..... बचपन से ही में प्रबल को छोडकर कॉलेज नहीं जाती थी... इसलिए बाद में हम दोनों को एक साथ एक ही क्लास में पढ़ने भेजा गया... जब प्रबल भी कॉलेज जाने लायक हो गया” अनुराधा ने बताया
“ही...ही...ही...ही... और तो सब भाई अपनी बहन का ध्यान रखते हैं कॉलेज, कॉलेज या घर के बाहर लेकिन मुझे तो लगता है यहाँ उल्टा तुम अपने भाई का ध्यान रखोगी.... कहीं कोई लड़की उसे छेड़ न दे” अनुपमा ने हँसते हुये प्रबल की ओर देखकर उसे चिढ़ाते हुये कहा
“मज़ाक मत उड़ा मेरे भाई का.... वो कमजोर नहीं है...बस में उससे प्यार करती हूँ... इसलिए उसका ध्यान रखती हूँ... मेरा छोटा भाई है आखिर......... और मुझे लगता है...की और लड़कियों को तो वो खुद सम्हाल लेगा.... बस तुझसे मुझे ही बचाना होगा” अनुराधा ने भी हँसते हुये कहा
“दीदी आप भी मज़ाक बना रही हो मेरा” प्रबल ने शर्माते हुये अनुपमा से कहा तो अनुपमा ने भोंहें चढ़ाते हुये उसे घूरकर देखा
“मेरा नाम अनुपमा है... तुम प्यार से अनु भी कह सकते हो..... दीदी बस अपनी दीदी को कहा करो.... खबरदार जो मुझे दीदी कहा तो.......” अनुपमा ने कहा तो अनुराधा जवाब में उससे कुछ कहने को हुई तभी ऋतु प्रिन्सिपल ऑफिस से बाहर निकलकर उनके पास आ गयी...
“ये लो तुम्हारी रसीद .... तुम दोनों का एड्मिशन हो गया कल से कॉलेज आना शुरू कर दो” ऋतु ने अनुराधा को कागज देते हुये कहा तो अनुपमा ने प्रश्नवाचक दृष्टि से अनुराधा की ओर देखा
“ये मेरी ऋतु बुआ हैं... अभी बताया था न इन्होने ही एड्मिशन कराया है हमारा यहाँ...” अनुराधा ने उसे बताया और फिर ऋतु से बोली “बुआ ये अनुपमा है...अपने बराबर वाले घर में रहती है... हम दोनों बचपन में एक साथ खेलती थीं... जब में और माँ यहाँ रहा करते थे”
“बुआ जी नमस्ते” अनुपमा ने ऋतु को हाथ जोड़कर नमस्ते किया और अनुराधा से बोली “लेकिन ये बता ये बुआ कैसे हुई तेरी...क्योंकि यहाँ तुम्हारे परिवार का तो कोई कभी देखा सुना ही नहीं मेंने... और तू रागिनी बुआ को माँ क्यों कहती है”
“में बताती हूँ... विक्रमादित्य भैया को तो जानती थी न तुम... में उनकी छोटी और रागिनी दीदी मेरी बड़ी बहन हैं.... और में इसी कॉलेज में पढ़ती थी... बल्कि में ही नहीं.... रागिनी दीदी और विक्रम भैया भी इसी कॉलेज में पढे हैं.... विक्रम भैया ने मेरा एड्मिशन कराया था यहाँ.... अब मेंने इन दोनों का कराया है” ऋतु ने अनुराधा और प्रबल की पीठ पर हाथ रखते हुये कहा
“और पता है.... ऋतु बुआ वकालत करती हैं.... अब ये हमारे साथ यहीं रहेंगी....अब कल से तेरे साथ ही कॉलेज आया करेंगे हम....”अनुराधा ने अनुपमा से कहा “और तू क्या कह रही थी....माँ क्यों कहती हूँ.... अपने घर में सबसे पूंछ लेना... तुझे तो शायद याद नहीं.... में हमेशा से उन्हें माँ ही कहती थी... वो ही मेरी माँ हैं और हमेशा रहेंगी”
“ठीक है मेरी माँ, चल में भी घर चलती हूँ.... कॉलेज में पढ़के भी बंक नहीं मारा तो कॉलेज की बेइज्जती हो जाएगी” कहते हुये अनुपमा ने अनुराधा के चेहरे से नजर हटाई तो ऋतु को घूरते हुये पाया...उसकी हंसी वहीं की वहीं रुक गयी
“अच्छा तो कल से यही होगा...अब तो एक से दो बल्कि तीन का गिरोह बन जाएगा” ऋतु ने घूरते हुये कहा
“अरे नहीं बुआ... ऐसा कुछ नहीं... में कहीं और थोड़े ही जा रही हूँ…घर ही तो चल रही हूँ...वहाँ आपके पास ही आ जाऊँगी...आपसे भी तो जान पहचान करनी है....” अनुपमा ने हँसते हुये कहा और उन तीनों के आगे आगे कॉलेज के गेट की ओर चल दी...
ऋतु भी उन दोनों को लेकर बाहर की ओर चल दी... कुछ देर में वे सभी घर पहुँच गए। घर पहुँचकर अनुपमा अपने घर चली गयी। रागिनी ने उन्हें बोला की फ्रेश होकर खाना खा लें ... वो तीनों फ्रेश होकर कपड़े बदलकर आए तभी अनुपमा भी आ गयी और बोली की वो भी आज उनही के साथ खाना खाएगी... खाना खाते पर रागिनी ने अनुपमा और उसके परिवार के बारे में ऋतु को बताया और ऋतु के बारे में भी थोड़ी सी जानकारी दी जो अनुराधा पहले ही दे चुकी थी। खाना खाकर ऋतु और रागिनी एडवोकेट अभय प्रताप सिंह के ऑफिस को निकल गईं... अनुराधा, अनुपमा और प्रबल घर पर ही रहे।
प्रबल प्रताप सिंह के ऑफिस जाकर एक तो रागिनी ने विक्रम की मृत्यु से संबन्धित सिक्युरिटी कार्यवाही के बारे में जानकारी ली तो कुछ खास जानकारी नहीं मिल सकी... सिवाय इसके की मृत्यु किसी भी हथियार से नहीं हुई तो मामला हत्या का तो नहीं हो सकता.... और शायद अत्महत्या का भी नहीं.... बल्कि दुर्घटना का ज्यादा लग रहा था....
उसके बाद वसीयत से संबन्धित सारे कागजात की जानकारी ली....तो अभय ने बताया कि उसने उन कागजात का पिछला विवरण निकलवाया जो कि दिल्ली से मिले हुये उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में था...जिसे नोएडा शहर के रूप में ज्यादा पहचाना जाता है..... लेकिन उस जायदाद के पिछले विविरण में एक और बात सामने आयी कि ये सभी जायदाद विक्रमादित्य को सीधे तौर पर नहीं दी गयी थीं... इन सब जायदाद के इकलौते वारिस तो जयराज सिंह थे और उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र राणा रविन्द्र प्रताप सिंह इस परिवार के आजीवन मुखिया के तौर पर इस सारी संपत्ति के स्वामी बने....लेकिन राणा रविन्द्र प्रताप सिंह ने स्वेच्छा से अपने सारे अधिकार विक्रमादित्य सिंह पुत्र विजयराज सिंह को प्रबंधन के लिए सौंप दिये थे।
हालांकि उस संपत्ति में परिवार के सभी सदस्य बराबर के हिस्सेदार थे लेकिन उसमें एक व्यवस्था ये भी जोड़ दी गयी थी...कि .....परिवार को कोई भी सदस्य उस संपत्ति में से अपना हिस्से का बंटवारा कराकर नहीं ले सकता था.... बल्कि वो सिर्फ अपने हिस्से कि उस समय कि मौजूदा कीमत लेकर परिवार से अलग हो सकता था...... किसी भी स्थिति में शामिल परिवार की कुल संपत्ति का प्रबंधन और स्वामित्व केवल राणा रविन्द्र प्रताप सिंह का ही रहना है, विक्रमादित्य को केवल उस संपत्ति के प्रबंधन और परिवार के सदस्यों को घटाने या जोड़ने और उन्हें उस संपत्ति में हिस्सेदारी देने या निकालने का अधिकार था....उस संपत्ति से होने वाली आय को परिवार के सदस्यों में बांटने का भी अधिकार था।
इसी वजह से विक्रमादित्य ने जो संपत्ति के बँटवारे की वसीयत बनाई थी वास्तव में उसमें से सबको उस संपत्ति में हिस्सा तो मिलना था.... लेकिन वो अपने हिस्से को लेकर अलग नहीं हो सकते थे........ उसके लिए संपत्ति के कानूनी रूप से असली मालिक माने गए राणा रविन्द्र प्रताप सिंह की सहमति आवश्यक थी... विक्रमादित्य सिंह कि वसीयत के अनुसार केवल....आय में हिस्सेदारी ही ले सकते थे....
“दीदी! अब ये राणा रविन्द्र प्रताप सिंह जो बड़े ताऊजी के बेटे बताए गए हैं....इनका तो कुछ अता-पता नामोनिशान ही नहीं बल्कि यूं कहो कि बड़े ताऊजी जयराज सिंह और उनके पूरे परिवार के बारे में ही किसी भी तरह कि कोई भी जानकारी नहीं...सिवाय इसके कि उनके एक बेटी हुई 1979 में जो कि मम्मी-पापा ने बताया कि आप हो.... लेकिन सुधा दीदी ने जो बताया उसके अनुसार तो आप विजयराज ताऊजी की बेटी हैं...और हाँ........... इसमें विक्रम भैया भी तो विजयराज ताऊजी के बेटे हैं..........यानि आप और विक्रम भैया... सगे भाई बहन हैं... तो आप दोनों एक दूसरे को जानते क्यों नहीं थे...” ऋतु ने रागिनी से कहा.... सारे कागजात लेकर ऋतु रागिनी के साथ अपने केबिन में बैठी हुई थी
“मेंने तुम्हें पहले भी कहा था ऋतु! मुझे इस परिवार और परिवार कि जायदाद ....किसी के बारे में कुछ नहीं जानना..... अब हमें नए सिरे अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर शुरू करनी है..........इसलिए इस मामले को यहीं छोड़ो.........विक्रम के बारे में पता करना था मुझे....उसमें कुछ खास बात नहीं सामने आयी..... अब ये बताओ कि हम लोगों को अपने भविष्य के लिए क्या करना है... अपनी अपनी पसंद के अनुसार नौकरियाँ या व्यवसाय..... या फिर सब मिलकर एक व्यवसाय चलाएं....मेरे, प्रबल और अनुराधा के खाते में लगभग 10 करोड़ की रकम है... जो कि हमारे खातों में हर साल किसी कंपनी द्वारा प्रॉफ़िट में हिस्सेदारी के तौर पर धीरे-धीरे करके भेजी गयी....और शायद आगे भी भेजी जाएगी।“ रागिनी ने बात का रुख मोड़ते हुये ऋतु को जवाब दिया
“दीदी! मेरे ख्याल से तो हमें ऐसे काम में पैसा लगाना चाहिए जिसमें लगाया हुआ पैसा अगर तुरंत वापस न हो तो भी सुरक्षित रहे और उसकी कीमत भी बढ़े...जिससे अगर आज न सही ...भविष्य में कभी वो पैसा उस व्यवसाय से निकाल पाएँ तो उसकी कुछ अहमियत भी हो...” ऋतु ने कहा...उसने भी रागिनी के रुख को देखते हुये और वर्तमान परिस्थितियों में जरूरी समझते हुये व्यवसाय के मुद्दे पर ही आना सही समझा
“हाँ बात तो तुम्हारी सही है... इस नज़रिये से तो हमें किसी ऐसे समान में पैसा लगाना चाहिए जिसे लोग ज्यादा खरीदते हों ताकि हमारा पैसा वापस भी आता रहे....जल्दी से जल्दी...और साथ ही जो पैसा व्यवसाय में लगा हुआ रहे उसकी कीमत के बराबर का सामान भी हमारे हाथ में हो……… मेरी समझ में तो ऐसी चीजें खाना, कपड़े आदि ही हैं...जिन्हें लोग रोजाना खरीदते हैं...और हर जगह हमेशा बिकती भी हैं” रागिनी ने अपनी राय दी
“वो तो आप सही कह रही हैं दीदी! लेकिन इनके साथ एक समस्या होती है की अगर हमने ये सामान जल्दी नहीं बेचे तो इनके खराब होने पर इनकी कोई कीमत नहीं रहती और इनकी दुकानें भी हर जगह बहुत होती हैं तो शुरुआत में इतनी आसानी से बेचा भी नहीं जा सकता... धीरे-धीरे ही बाज़ार पर पकड़ बनेगी...तो मुझे लगता है की हमें इसके साथ साथ कुछ पैसा जमीन जायदाद में भी लगाना चाहिए.... क्योंकि वो बेशक न बिके या हम न बेचें.... लेकिन उसकी कीमत हमेशा बढ़ती रहेगी.... जब जरूरत हो तो उसे बेचे बिना भी कहीं से भी उसकी उस समय की कीमत का आधा तो लोन मिल ही जाएगा आसानी से....” ऋतु ने कहा
“हाँ ये भी ठीक है... लेकिन हमारे पास जो पैसा है उससे दिल्ली में कितना क्या खरीद पाएंगे... यहाँ तो जमीन जायदाद भी बहुत महंगी है....” रागिनी बोली
“दीदी इस बारे में में किसी से आपको मिलवाना चाहती हूँ...यहाँ एक जूनियर ने जॉइन किया है... उसका जमीन-जायदाद की खरीद-बेच में पिछले कई साल का अनुभव है... तो वो भी हुमें काफी सही सलाह दे सकता है” ऋतु ने बताया
“ठीक है... लेकिन यहाँ बात करना सही नहीं रहेगा.... उसे शाम को घर बुला लो...” रागिनी ने कहा तो ऋतु ने केबिन से बाहर निकलकर उस लड़के पवन को रागिनी के घर का एड्रैस देते हुये शाम को घर आने का कहा। इसके बाद दोनों बहनें वहाँ से घर को निकल गईं।
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“राधा तू यहाँ... क्या यहीं एड्मिशन ले रही है??” कॉलेज में प्रिन्सिपल ऑफिस के सामने खड़े प्रबल और अनुराधा को देखकर अनुपमा जो अभी-अभी अपनी क्लास से बाहर निकली थी... उनके पास आकर बोली
“हाँ अनु! में और प्रबल अब यहीं पढ़ेंगे.... ऋतु बुआ यहीं एड्मिशन करा रही हैं हमारा” अनुराधा ने कहा
“तुम तो 2nd इयर में होगी और प्रबल 1st इयर में” अनुपमा ने पूंछा
“नहीं हम दोनों ही 1st इयर में ही हैं..... बचपन से ही में प्रबल को छोडकर कॉलेज नहीं जाती थी... इसलिए बाद में हम दोनों को एक साथ एक ही क्लास में पढ़ने भेजा गया... जब प्रबल भी कॉलेज जाने लायक हो गया” अनुराधा ने बताया
“ही...ही...ही...ही... और तो सब भाई अपनी बहन का ध्यान रखते हैं कॉलेज, कॉलेज या घर के बाहर लेकिन मुझे तो लगता है यहाँ उल्टा तुम अपने भाई का ध्यान रखोगी.... कहीं कोई लड़की उसे छेड़ न दे” अनुपमा ने हँसते हुये प्रबल की ओर देखकर उसे चिढ़ाते हुये कहा
“मज़ाक मत उड़ा मेरे भाई का.... वो कमजोर नहीं है...बस में उससे प्यार करती हूँ... इसलिए उसका ध्यान रखती हूँ... मेरा छोटा भाई है आखिर......... और मुझे लगता है...की और लड़कियों को तो वो खुद सम्हाल लेगा.... बस तुझसे मुझे ही बचाना होगा” अनुराधा ने भी हँसते हुये कहा
“दीदी आप भी मज़ाक बना रही हो मेरा” प्रबल ने शर्माते हुये अनुपमा से कहा तो अनुपमा ने भोंहें चढ़ाते हुये उसे घूरकर देखा
“मेरा नाम अनुपमा है... तुम प्यार से अनु भी कह सकते हो..... दीदी बस अपनी दीदी को कहा करो.... खबरदार जो मुझे दीदी कहा तो.......” अनुपमा ने कहा तो अनुराधा जवाब में उससे कुछ कहने को हुई तभी ऋतु प्रिन्सिपल ऑफिस से बाहर निकलकर उनके पास आ गयी...
“ये लो तुम्हारी रसीद .... तुम दोनों का एड्मिशन हो गया कल से कॉलेज आना शुरू कर दो” ऋतु ने अनुराधा को कागज देते हुये कहा तो अनुपमा ने प्रश्नवाचक दृष्टि से अनुराधा की ओर देखा
“ये मेरी ऋतु बुआ हैं... अभी बताया था न इन्होने ही एड्मिशन कराया है हमारा यहाँ...” अनुराधा ने उसे बताया और फिर ऋतु से बोली “बुआ ये अनुपमा है...अपने बराबर वाले घर में रहती है... हम दोनों बचपन में एक साथ खेलती थीं... जब में और माँ यहाँ रहा करते थे”
“बुआ जी नमस्ते” अनुपमा ने ऋतु को हाथ जोड़कर नमस्ते किया और अनुराधा से बोली “लेकिन ये बता ये बुआ कैसे हुई तेरी...क्योंकि यहाँ तुम्हारे परिवार का तो कोई कभी देखा सुना ही नहीं मेंने... और तू रागिनी बुआ को माँ क्यों कहती है”
“में बताती हूँ... विक्रमादित्य भैया को तो जानती थी न तुम... में उनकी छोटी और रागिनी दीदी मेरी बड़ी बहन हैं.... और में इसी कॉलेज में पढ़ती थी... बल्कि में ही नहीं.... रागिनी दीदी और विक्रम भैया भी इसी कॉलेज में पढे हैं.... विक्रम भैया ने मेरा एड्मिशन कराया था यहाँ.... अब मेंने इन दोनों का कराया है” ऋतु ने अनुराधा और प्रबल की पीठ पर हाथ रखते हुये कहा
“और पता है.... ऋतु बुआ वकालत करती हैं.... अब ये हमारे साथ यहीं रहेंगी....अब कल से तेरे साथ ही कॉलेज आया करेंगे हम....”अनुराधा ने अनुपमा से कहा “और तू क्या कह रही थी....माँ क्यों कहती हूँ.... अपने घर में सबसे पूंछ लेना... तुझे तो शायद याद नहीं.... में हमेशा से उन्हें माँ ही कहती थी... वो ही मेरी माँ हैं और हमेशा रहेंगी”
“ठीक है मेरी माँ, चल में भी घर चलती हूँ.... कॉलेज में पढ़के भी बंक नहीं मारा तो कॉलेज की बेइज्जती हो जाएगी” कहते हुये अनुपमा ने अनुराधा के चेहरे से नजर हटाई तो ऋतु को घूरते हुये पाया...उसकी हंसी वहीं की वहीं रुक गयी
“अच्छा तो कल से यही होगा...अब तो एक से दो बल्कि तीन का गिरोह बन जाएगा” ऋतु ने घूरते हुये कहा
“अरे नहीं बुआ... ऐसा कुछ नहीं... में कहीं और थोड़े ही जा रही हूँ…घर ही तो चल रही हूँ...वहाँ आपके पास ही आ जाऊँगी...आपसे भी तो जान पहचान करनी है....” अनुपमा ने हँसते हुये कहा और उन तीनों के आगे आगे कॉलेज के गेट की ओर चल दी...
ऋतु भी उन दोनों को लेकर बाहर की ओर चल दी... कुछ देर में वे सभी घर पहुँच गए। घर पहुँचकर अनुपमा अपने घर चली गयी। रागिनी ने उन्हें बोला की फ्रेश होकर खाना खा लें ... वो तीनों फ्रेश होकर कपड़े बदलकर आए तभी अनुपमा भी आ गयी और बोली की वो भी आज उनही के साथ खाना खाएगी... खाना खाते पर रागिनी ने अनुपमा और उसके परिवार के बारे में ऋतु को बताया और ऋतु के बारे में भी थोड़ी सी जानकारी दी जो अनुराधा पहले ही दे चुकी थी। खाना खाकर ऋतु और रागिनी एडवोकेट अभय प्रताप सिंह के ऑफिस को निकल गईं... अनुराधा, अनुपमा और प्रबल घर पर ही रहे।
प्रबल प्रताप सिंह के ऑफिस जाकर एक तो रागिनी ने विक्रम की मृत्यु से संबन्धित सिक्युरिटी कार्यवाही के बारे में जानकारी ली तो कुछ खास जानकारी नहीं मिल सकी... सिवाय इसके की मृत्यु किसी भी हथियार से नहीं हुई तो मामला हत्या का तो नहीं हो सकता.... और शायद अत्महत्या का भी नहीं.... बल्कि दुर्घटना का ज्यादा लग रहा था....
उसके बाद वसीयत से संबन्धित सारे कागजात की जानकारी ली....तो अभय ने बताया कि उसने उन कागजात का पिछला विवरण निकलवाया जो कि दिल्ली से मिले हुये उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले में था...जिसे नोएडा शहर के रूप में ज्यादा पहचाना जाता है..... लेकिन उस जायदाद के पिछले विविरण में एक और बात सामने आयी कि ये सभी जायदाद विक्रमादित्य को सीधे तौर पर नहीं दी गयी थीं... इन सब जायदाद के इकलौते वारिस तो जयराज सिंह थे और उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र राणा रविन्द्र प्रताप सिंह इस परिवार के आजीवन मुखिया के तौर पर इस सारी संपत्ति के स्वामी बने....लेकिन राणा रविन्द्र प्रताप सिंह ने स्वेच्छा से अपने सारे अधिकार विक्रमादित्य सिंह पुत्र विजयराज सिंह को प्रबंधन के लिए सौंप दिये थे।
हालांकि उस संपत्ति में परिवार के सभी सदस्य बराबर के हिस्सेदार थे लेकिन उसमें एक व्यवस्था ये भी जोड़ दी गयी थी...कि .....परिवार को कोई भी सदस्य उस संपत्ति में से अपना हिस्से का बंटवारा कराकर नहीं ले सकता था.... बल्कि वो सिर्फ अपने हिस्से कि उस समय कि मौजूदा कीमत लेकर परिवार से अलग हो सकता था...... किसी भी स्थिति में शामिल परिवार की कुल संपत्ति का प्रबंधन और स्वामित्व केवल राणा रविन्द्र प्रताप सिंह का ही रहना है, विक्रमादित्य को केवल उस संपत्ति के प्रबंधन और परिवार के सदस्यों को घटाने या जोड़ने और उन्हें उस संपत्ति में हिस्सेदारी देने या निकालने का अधिकार था....उस संपत्ति से होने वाली आय को परिवार के सदस्यों में बांटने का भी अधिकार था।
इसी वजह से विक्रमादित्य ने जो संपत्ति के बँटवारे की वसीयत बनाई थी वास्तव में उसमें से सबको उस संपत्ति में हिस्सा तो मिलना था.... लेकिन वो अपने हिस्से को लेकर अलग नहीं हो सकते थे........ उसके लिए संपत्ति के कानूनी रूप से असली मालिक माने गए राणा रविन्द्र प्रताप सिंह की सहमति आवश्यक थी... विक्रमादित्य सिंह कि वसीयत के अनुसार केवल....आय में हिस्सेदारी ही ले सकते थे....
“दीदी! अब ये राणा रविन्द्र प्रताप सिंह जो बड़े ताऊजी के बेटे बताए गए हैं....इनका तो कुछ अता-पता नामोनिशान ही नहीं बल्कि यूं कहो कि बड़े ताऊजी जयराज सिंह और उनके पूरे परिवार के बारे में ही किसी भी तरह कि कोई भी जानकारी नहीं...सिवाय इसके कि उनके एक बेटी हुई 1979 में जो कि मम्मी-पापा ने बताया कि आप हो.... लेकिन सुधा दीदी ने जो बताया उसके अनुसार तो आप विजयराज ताऊजी की बेटी हैं...और हाँ........... इसमें विक्रम भैया भी तो विजयराज ताऊजी के बेटे हैं..........यानि आप और विक्रम भैया... सगे भाई बहन हैं... तो आप दोनों एक दूसरे को जानते क्यों नहीं थे...” ऋतु ने रागिनी से कहा.... सारे कागजात लेकर ऋतु रागिनी के साथ अपने केबिन में बैठी हुई थी
“मेंने तुम्हें पहले भी कहा था ऋतु! मुझे इस परिवार और परिवार कि जायदाद ....किसी के बारे में कुछ नहीं जानना..... अब हमें नए सिरे अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर शुरू करनी है..........इसलिए इस मामले को यहीं छोड़ो.........विक्रम के बारे में पता करना था मुझे....उसमें कुछ खास बात नहीं सामने आयी..... अब ये बताओ कि हम लोगों को अपने भविष्य के लिए क्या करना है... अपनी अपनी पसंद के अनुसार नौकरियाँ या व्यवसाय..... या फिर सब मिलकर एक व्यवसाय चलाएं....मेरे, प्रबल और अनुराधा के खाते में लगभग 10 करोड़ की रकम है... जो कि हमारे खातों में हर साल किसी कंपनी द्वारा प्रॉफ़िट में हिस्सेदारी के तौर पर धीरे-धीरे करके भेजी गयी....और शायद आगे भी भेजी जाएगी।“ रागिनी ने बात का रुख मोड़ते हुये ऋतु को जवाब दिया
“दीदी! मेरे ख्याल से तो हमें ऐसे काम में पैसा लगाना चाहिए जिसमें लगाया हुआ पैसा अगर तुरंत वापस न हो तो भी सुरक्षित रहे और उसकी कीमत भी बढ़े...जिससे अगर आज न सही ...भविष्य में कभी वो पैसा उस व्यवसाय से निकाल पाएँ तो उसकी कुछ अहमियत भी हो...” ऋतु ने कहा...उसने भी रागिनी के रुख को देखते हुये और वर्तमान परिस्थितियों में जरूरी समझते हुये व्यवसाय के मुद्दे पर ही आना सही समझा
“हाँ बात तो तुम्हारी सही है... इस नज़रिये से तो हमें किसी ऐसे समान में पैसा लगाना चाहिए जिसे लोग ज्यादा खरीदते हों ताकि हमारा पैसा वापस भी आता रहे....जल्दी से जल्दी...और साथ ही जो पैसा व्यवसाय में लगा हुआ रहे उसकी कीमत के बराबर का सामान भी हमारे हाथ में हो……… मेरी समझ में तो ऐसी चीजें खाना, कपड़े आदि ही हैं...जिन्हें लोग रोजाना खरीदते हैं...और हर जगह हमेशा बिकती भी हैं” रागिनी ने अपनी राय दी
“वो तो आप सही कह रही हैं दीदी! लेकिन इनके साथ एक समस्या होती है की अगर हमने ये सामान जल्दी नहीं बेचे तो इनके खराब होने पर इनकी कोई कीमत नहीं रहती और इनकी दुकानें भी हर जगह बहुत होती हैं तो शुरुआत में इतनी आसानी से बेचा भी नहीं जा सकता... धीरे-धीरे ही बाज़ार पर पकड़ बनेगी...तो मुझे लगता है की हमें इसके साथ साथ कुछ पैसा जमीन जायदाद में भी लगाना चाहिए.... क्योंकि वो बेशक न बिके या हम न बेचें.... लेकिन उसकी कीमत हमेशा बढ़ती रहेगी.... जब जरूरत हो तो उसे बेचे बिना भी कहीं से भी उसकी उस समय की कीमत का आधा तो लोन मिल ही जाएगा आसानी से....” ऋतु ने कहा
“हाँ ये भी ठीक है... लेकिन हमारे पास जो पैसा है उससे दिल्ली में कितना क्या खरीद पाएंगे... यहाँ तो जमीन जायदाद भी बहुत महंगी है....” रागिनी बोली
“दीदी इस बारे में में किसी से आपको मिलवाना चाहती हूँ...यहाँ एक जूनियर ने जॉइन किया है... उसका जमीन-जायदाद की खरीद-बेच में पिछले कई साल का अनुभव है... तो वो भी हुमें काफी सही सलाह दे सकता है” ऋतु ने बताया
“ठीक है... लेकिन यहाँ बात करना सही नहीं रहेगा.... उसे शाम को घर बुला लो...” रागिनी ने कहा तो ऋतु ने केबिन से बाहर निकलकर उस लड़के पवन को रागिनी के घर का एड्रैस देते हुये शाम को घर आने का कहा। इसके बाद दोनों बहनें वहाँ से घर को निकल गईं।
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