28-03-2020, 08:14 AM
नाश्ता
मैंने बस किसी तरह ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी रात की साडी लपेटी , ब्लाउज बस देह पर टांग लिया और झट से नीचे ,
लेकिन तबतक दस बार वो बोले होंगे , जल्दी आना , जल्दी आना ,... .
मैं सीढ़ियों से नीचे उतर भी नहीं पायी थी की सीढ़ियों पर ही जेठानी जी मिल गयी , नाश्ते की ट्रे के साथ
जोर से मुस्करायीं वो , मेरी हालत देख कर , ...
मैं भी मुस्करायी , मालूम उन्हें भी था और मुझे भी उनके देवर को किस नाश्ते का इन्तजार है।
मैंने नाश्ते की टेबल ट्रे पर रखी , बिस्तर के सामने
और उन्होंने अपने ' नाश्ते ' खींच कर अपनी गोद में , ...
वो सिर्फ टॉवेल लपेटे ,
मेरे आते ही वो उछाल कर फर्श पर फेंक दी गयी ,
मैंने बताया था न , बस मैंने एक साडी किसी तरह देह पर लपेट ली थी , और ब्लाउज भी बस टांग लिया था , एक दो बटन बंद कर के ,...
वो बटने एक उन्होंने खुली दूसरी मैंने , और वो ब्लाउज भी उसी टॉवेल के ऊपर फर्श पर ,
और साडी बेचारी सिकुड़ मुकुड़ कर कटीली पतली मुट्ठी भर की कमर में छल्ले सी अटक गयी ,
खूंटा उनका पहले से ही खड़ा था ,
सच्ची एकदम लालची , बेताब , नदीदा था वो लड़का ,... मैं बस यही सोचती थी जब तक कोमल नहीं आयी थी तब तक क्या होता था ज़नाब का ,
मैं खुद उनकी गोद में बैठी , उन्ही की ओर मुंह कर के , और जाँघे पूरी फैलाये ,
निशाना उनका पक्का था , कुछ मैंने जोर लगाया , कुछ उन्होंने पकड़ के गोद में खींचा , खूंटा मेरे अंदर , ...
पूरा नहीं सिर्फ सुपाड़ा , लेकिन जो भी लड़की चुद गयी है वो जानती है अच्छी तरह , .
.एक बार सुपाड़ा घुस जाए अंदर , फिर तो सिर्फ टाइम की बात है ,...
पहला कौर मेरे मुंह में , मेरे हाथ से ...
उनके तो दोनों हाथ मेरे जोबन पर थे ,
चुभलाते मैं बोली , ...
' आज तेरा फेवरिट नाश्ता है '
मेरे होंठों से मेरे अध खाये , कुचले , नाश्ते को ऑलमोस्ट छीनते हुए , वो मुस्करा के बोले ,
" मेरा फेवरिट नाश्ता तो कोमल है "
सच में , ... वो भी न ,...
और अब मैंने अपने को उनके मोटे धंसे खूंटे पर जोर से पुश किया और आधा मूसल गपाक ,
उनका मुँह जेठानी के बनाये नाश्ते का मज़ा ले रहा था
और मेरा निचला मुंह , जेठानी के देवर के खूंटे का मज़ा ले रहा था।
साथ में , मेरे निचले होंठ उनके मोटे मूसल को दबा रही थी ,
भींच रही थी , सिकोड़ रही थी ,
जैसे कोई नटिनी की लड़की बांस पर चढ़ जाती है , बिना सिखाये , उसी तरह मैं भी अब बांस पर चढ़ना सीख गयी थी ,
कभी अंदर कभी बाहर , अब सब कुछ मैं कर रही थी ,
उन्हें अपने कभी हाथ से नाश्ता कराती , तो कभी होंठों से ,
पूरी ताकत से अपने को पुश कर के कभी उस मोटे , दुष्ट खूंटे को अपने अंदर घोंटती तो कभी , पुल कर के उसे बाहर ,
जब वो रगड़ता दरेरता , घिसटता .. बाहर होता तो इतना अच्छा लगता बता नहीं सकती ,
और वो भी , ...
उनका एक हाथ सरकता हुआ मेरी पीठ को कभी सहलाता , कभी मुझे कस के अपनी ओर खींचता ,
और दूसरा तो एकदम बदमाश ,
मेरे उभारों के पीछे तो ये पहले दिन से पड़े थे लालची , बस वो दबाने , मसलने , रगड़ने के पीछे , ...
पर उनके हाथों को क्यों दोष दूँ , मेरे जोबन भी तो इन्तजार करते थे उन शैतान उँगलियों का , ...
लेकिन मेरी हालत तो तब एकदम खराब होती थी जब वो उँगलियाँ सरक कर मेरी जाँघों के बीच , उस जादुई बटन पर , मटर के दाने पर पड़ती थीं , एकदम देह गिनगीना उठती , ...
नाश्ता पहले खतम हुआ और उनका नाश्ता चलता रहा , वैसे ही मुझे गोद में बिठाये ,
पर उसके बाद , ...
मैं बिस्तर पर थी , मेरी दोनों टाँगे उन के कंधे पर ,
तकिये कुशन मेरे नितम्बो के नीचे और वो धक्के पर धक्के कभी मेरी कमर पकड़ के और कभी मेरे दोनों जोबन को दबाते मसलते
मैं भी उन्हें भींचते दबाते , अपनी ओर से खींचते , नीचे से अपने चूतड़ उचकाते , उनके हर धक्के का जवाब , दूनी जोर से धक्के से देती , ...
हम दोनों को कोई फरक नहीं पड़ता था , घडी रानी साढ़े नौ बजा रही थी ,
खिड़की के परदे खुले थे और आज धूप पूरी तरह अंदर घुस कर फर्श पर पसर गयी थी ,
पलंग के किनारे अब वो चढ़ने की कोशिश कर रही थी ,
खिड़की के बाहर कबूतर का एक जोड़ा बाहर बैठा गुटरगूं कर रहा था और कभी बेशर्मों की तरह अंदर भी झांक लेता ,
बिस्तर के एक कोने पर पड़े , मेरे उनके दोनों के मोबाइल पर आधे दर्जन मेसेज , व्हाट्सऐप आ रहे थे ,
और दरवाजा भी मैंने ठीक से नहीं बंद किया था ,
और जब वो मेरे अंदर झड़े ,
मेरी देह बहुत पहले से तूफ़ान में काँप रही थी , ... कस के उन्हे भींच के , ....
वो झड़ते रहे हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में ,... और उसके बाद भी कस के आँखे बंद किये , ...
और जब मेरी आँख खुली तो , ... मुझे होश आया , ....
बस मैं चीखी नहीं।
मैंने बस किसी तरह ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी रात की साडी लपेटी , ब्लाउज बस देह पर टांग लिया और झट से नीचे ,
लेकिन तबतक दस बार वो बोले होंगे , जल्दी आना , जल्दी आना ,... .
मैं सीढ़ियों से नीचे उतर भी नहीं पायी थी की सीढ़ियों पर ही जेठानी जी मिल गयी , नाश्ते की ट्रे के साथ
जोर से मुस्करायीं वो , मेरी हालत देख कर , ...
मैं भी मुस्करायी , मालूम उन्हें भी था और मुझे भी उनके देवर को किस नाश्ते का इन्तजार है।
मैंने नाश्ते की टेबल ट्रे पर रखी , बिस्तर के सामने
और उन्होंने अपने ' नाश्ते ' खींच कर अपनी गोद में , ...
वो सिर्फ टॉवेल लपेटे ,
मेरे आते ही वो उछाल कर फर्श पर फेंक दी गयी ,
मैंने बताया था न , बस मैंने एक साडी किसी तरह देह पर लपेट ली थी , और ब्लाउज भी बस टांग लिया था , एक दो बटन बंद कर के ,...
वो बटने एक उन्होंने खुली दूसरी मैंने , और वो ब्लाउज भी उसी टॉवेल के ऊपर फर्श पर ,
और साडी बेचारी सिकुड़ मुकुड़ कर कटीली पतली मुट्ठी भर की कमर में छल्ले सी अटक गयी ,
खूंटा उनका पहले से ही खड़ा था ,
सच्ची एकदम लालची , बेताब , नदीदा था वो लड़का ,... मैं बस यही सोचती थी जब तक कोमल नहीं आयी थी तब तक क्या होता था ज़नाब का ,
मैं खुद उनकी गोद में बैठी , उन्ही की ओर मुंह कर के , और जाँघे पूरी फैलाये ,
निशाना उनका पक्का था , कुछ मैंने जोर लगाया , कुछ उन्होंने पकड़ के गोद में खींचा , खूंटा मेरे अंदर , ...
पूरा नहीं सिर्फ सुपाड़ा , लेकिन जो भी लड़की चुद गयी है वो जानती है अच्छी तरह , .
.एक बार सुपाड़ा घुस जाए अंदर , फिर तो सिर्फ टाइम की बात है ,...
पहला कौर मेरे मुंह में , मेरे हाथ से ...
उनके तो दोनों हाथ मेरे जोबन पर थे ,
चुभलाते मैं बोली , ...
' आज तेरा फेवरिट नाश्ता है '
मेरे होंठों से मेरे अध खाये , कुचले , नाश्ते को ऑलमोस्ट छीनते हुए , वो मुस्करा के बोले ,
" मेरा फेवरिट नाश्ता तो कोमल है "
सच में , ... वो भी न ,...
और अब मैंने अपने को उनके मोटे धंसे खूंटे पर जोर से पुश किया और आधा मूसल गपाक ,
उनका मुँह जेठानी के बनाये नाश्ते का मज़ा ले रहा था
और मेरा निचला मुंह , जेठानी के देवर के खूंटे का मज़ा ले रहा था।
साथ में , मेरे निचले होंठ उनके मोटे मूसल को दबा रही थी ,
भींच रही थी , सिकोड़ रही थी ,
जैसे कोई नटिनी की लड़की बांस पर चढ़ जाती है , बिना सिखाये , उसी तरह मैं भी अब बांस पर चढ़ना सीख गयी थी ,
कभी अंदर कभी बाहर , अब सब कुछ मैं कर रही थी ,
उन्हें अपने कभी हाथ से नाश्ता कराती , तो कभी होंठों से ,
पूरी ताकत से अपने को पुश कर के कभी उस मोटे , दुष्ट खूंटे को अपने अंदर घोंटती तो कभी , पुल कर के उसे बाहर ,
जब वो रगड़ता दरेरता , घिसटता .. बाहर होता तो इतना अच्छा लगता बता नहीं सकती ,
और वो भी , ...
उनका एक हाथ सरकता हुआ मेरी पीठ को कभी सहलाता , कभी मुझे कस के अपनी ओर खींचता ,
और दूसरा तो एकदम बदमाश ,
मेरे उभारों के पीछे तो ये पहले दिन से पड़े थे लालची , बस वो दबाने , मसलने , रगड़ने के पीछे , ...
पर उनके हाथों को क्यों दोष दूँ , मेरे जोबन भी तो इन्तजार करते थे उन शैतान उँगलियों का , ...
लेकिन मेरी हालत तो तब एकदम खराब होती थी जब वो उँगलियाँ सरक कर मेरी जाँघों के बीच , उस जादुई बटन पर , मटर के दाने पर पड़ती थीं , एकदम देह गिनगीना उठती , ...
नाश्ता पहले खतम हुआ और उनका नाश्ता चलता रहा , वैसे ही मुझे गोद में बिठाये ,
पर उसके बाद , ...
मैं बिस्तर पर थी , मेरी दोनों टाँगे उन के कंधे पर ,
तकिये कुशन मेरे नितम्बो के नीचे और वो धक्के पर धक्के कभी मेरी कमर पकड़ के और कभी मेरे दोनों जोबन को दबाते मसलते
मैं भी उन्हें भींचते दबाते , अपनी ओर से खींचते , नीचे से अपने चूतड़ उचकाते , उनके हर धक्के का जवाब , दूनी जोर से धक्के से देती , ...
हम दोनों को कोई फरक नहीं पड़ता था , घडी रानी साढ़े नौ बजा रही थी ,
खिड़की के परदे खुले थे और आज धूप पूरी तरह अंदर घुस कर फर्श पर पसर गयी थी ,
पलंग के किनारे अब वो चढ़ने की कोशिश कर रही थी ,
खिड़की के बाहर कबूतर का एक जोड़ा बाहर बैठा गुटरगूं कर रहा था और कभी बेशर्मों की तरह अंदर भी झांक लेता ,
बिस्तर के एक कोने पर पड़े , मेरे उनके दोनों के मोबाइल पर आधे दर्जन मेसेज , व्हाट्सऐप आ रहे थे ,
और दरवाजा भी मैंने ठीक से नहीं बंद किया था ,
और जब वो मेरे अंदर झड़े ,
मेरी देह बहुत पहले से तूफ़ान में काँप रही थी , ... कस के उन्हे भींच के , ....
वो झड़ते रहे हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में ,... और उसके बाद भी कस के आँखे बंद किये , ...
और जब मेरी आँख खुली तो , ... मुझे होश आया , ....
बस मैं चीखी नहीं।