25-03-2020, 11:18 AM
(This post was last modified: 12-07-2021, 12:00 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
साल्ले ,भोंसड़ी के मादरचोद ,
" साल्ले ,भोंसड़ी के मादरचोद , अकेले अकेले। "
उनके मुंह से सिग्गी छीन कर सुट्टा लगाते मैं बोली।
सच में दो सुट्टे के बाद ही मेरी हालत खराब हो गयी लेकिन मैंने उनके गोरे गुलाबी नमकीन गालों पे कस के चिकोटी काटती मैंने चिढ़ाया ,
" साल्ले , गाली नहीं दे रही सच बोल रही अरे तेरी उस अनारकली ऑफ आजमगढ़ की
जो तुम एक बार सील खोल दोगे तो बस ,
अब मेरे जीजू लोगों को तो तुमने उस छमिया की कच्ची अमिया , अपनी छुटकी बहनिया के कच्चे कोरे टिकोरे १०० रुपये में मेरे जीजू लोगों के हाथ बेच ही दिए है
तो फिर जब तुम अपने उस माल की सील तोड़ देगे तो मेरे भाई भी , माना सगे नहीं है ,दूर दराज के पास पड़ोस के ,गाँव मोहल्ले के हैं ,लेकिन ,... और फिर तुम साले ,साल्ले तो बन ही जाओगे न।
और फिर अपनी माँ के पहलौठी के तो हो नहीं ,
और तेरी माँ मेरी गारन्टी है , झांटे आने के पहले ही लगवाना चालू कर दिया होगा , तो तुम भोंसड़ी के तो हुए न।
और फिर मादरचोद ,
मम्मी की सबसे कड़ी शर्त तूने पूरी कर दी , अपनी गांड फड़वाने की ,कमल जीजू को पटा के , मम्मी का आज दिन में फोन आया था।
बहुत खुश थीं तुमसे ,कह रही थीं मेरी सास से उनकी बात आज भी हुयी थी , आज से ठीक चौदह दिन बाद , तेरी माँ को ले के वो हाजिर। कह रही थीं वो , बस चौदह दिन उस छिनार के जने से कह देना , अपनी माँ चोदने के लिए तैयार रहे , तो साल्ले अब तो मादरचोद बनने से तुझे कोई रोक नहीं सकता। "
मैं कनखियों से देख रही थी , उन खूँटा अब फिर टनटना रहा था।
मेरी बातों का असर ,या सावन के मौसम की मस्ती का या अजय जीजू के मस्त सिगरेट का , या सबका मिला जुला ,
पर शेर अंगड़ाई ले रहा था।
एक दो सुट्टे और मार के मैंने सिगरेट उनके नदीदे मुंह में खोंस दी और अब वो जम कर सुट्टे लगाने लगे।
बाहर मौसम और जबरदस्त ,...
हवा थोड़ी तेज हो गयी थी , रह रह कर आसमान में बिजली चमक रही थी।
आम का पेड़ मस्ती से झूम रहा था , और अब बौछार थोड़ी तेज हो के हम लोगों को भिगो रही थी।
मैंने शरारत से अपने दो हाथ बाहर कर के अंजुरी में झरती बारिश का ढेर सारा पानी रोप कर जब तक वो सम्हलें ,समझें
कुछ पानी मैंने इनके चेहरे पर डाला और कुछ इनके खड़े खूंटे पर ,उसे मसलते मैं बोली ,
" यार आज तेरे मायके का पहला दिन ,एकदम जैसा मैं सोच रही थी वैसा ही गुजरा तो मेरे मुन्ने को कुछ इनाम तो मिलना ही चहिये न , आओ। "
और ये कह के मैंने उन के मुंह से मसाले वाली सिगी खींच ली और बस दो खूब जोरदार सुट्टे लगा के ख़तम कर बाहर फेंक दी ,
और पलंग पर लेट गयी।
" आओ न "
मैंने बुलाया , मेरी खुली जाँघों को देख के वो समझ गए मैं किस इनाम की बात कर रही हूँ।
उनके होंठ मेरे निचले होंठों पर , जबरदस्त चूत चटोरे तो वो थे ही ,
थोड़े ही देर में सपड़ सपड़ ,... मेरी हालत खराब
क्या मस्त चाट रहे थे वो ,थोड़ी ही देर में बाहर चल रहे तूफ़ान में काँप रहे आम के पेड़ के पत्तों की तरह मेरी देह भी काँप रही थी।
लेकिन इरादा तो मेरा कुछ और चटवाने का था ,
आखिर उनके मायके का मेरा पहला दिन इत्ता स्पेशल गुजरा , खास तौर से अपनी भौजाई के सामने जिस तरह से उन्होंने मेरे तलवे चाटे , एकदम खुल के
मेरी जिठानी की हालत देखते बनती थी ,
तो उनका इनाम भी तो कुछ स्पेशल बनता था न।
और मैंने अपने कूल्हे कुछ और ऊपर उठाये ,
अक्लमंद को इशारा काफी ,
और फिर मम्मी और मंजू ने रोज रोज गांड चटाई में उन्हें ट्रेन भी अच्छा कर दिया था ,
जीभ मेरी चिकनी देह पर फिसलती आगे के छेद से पीछे के छेद की ओर ,
पर तड़पाने में उनका कोई सानी नहीं था ,एकदम मेरी तरह,
जीभ गोलकुंडा के किले के चारो ओर चक्कर काटती रही , बस छोटे छोटे लिक्स
और फिर उस भूरी सुरंग से बस एक मिलीमीटर दूर छोटे छोटे चुम्बनों की बारिश
बाहर बारिश तेज हो गयी थी ,और
अंदर मेरी गालियों की बारिश ,
साल्ले , भोंसड़ी के , तेरी माँ की फुद्दी मारूँ , रन्डी के जने ,गांड़चटटो
चाट मादरचोद चाट ,चाट गाँड़ ठीक से , चाट डाल दे जीभ अंदर ,
गांडू , मजा आया था ने मेरे जीजू से गांड मरवाने में , अभी तो बस ट्रेलर था ,
डाल न जीभ अपनी , तेरे बहन को तेरी रखैल बनाऊं ,
और उनकी जीभ सीधे मेरी गांड के कसे छेद पर
जहां कल अजय और कमल जीजू का मूसल रात भर चला था।
कल सिर्फ उनकी ही कोरी गांड नहीं फटी थी , मेरी भी पहली पहली बार।
" साल्ले ,भोंसड़ी के मादरचोद , अकेले अकेले। "
उनके मुंह से सिग्गी छीन कर सुट्टा लगाते मैं बोली।
सच में दो सुट्टे के बाद ही मेरी हालत खराब हो गयी लेकिन मैंने उनके गोरे गुलाबी नमकीन गालों पे कस के चिकोटी काटती मैंने चिढ़ाया ,
" साल्ले , गाली नहीं दे रही सच बोल रही अरे तेरी उस अनारकली ऑफ आजमगढ़ की
जो तुम एक बार सील खोल दोगे तो बस ,
अब मेरे जीजू लोगों को तो तुमने उस छमिया की कच्ची अमिया , अपनी छुटकी बहनिया के कच्चे कोरे टिकोरे १०० रुपये में मेरे जीजू लोगों के हाथ बेच ही दिए है
तो फिर जब तुम अपने उस माल की सील तोड़ देगे तो मेरे भाई भी , माना सगे नहीं है ,दूर दराज के पास पड़ोस के ,गाँव मोहल्ले के हैं ,लेकिन ,... और फिर तुम साले ,साल्ले तो बन ही जाओगे न।
और फिर अपनी माँ के पहलौठी के तो हो नहीं ,
और तेरी माँ मेरी गारन्टी है , झांटे आने के पहले ही लगवाना चालू कर दिया होगा , तो तुम भोंसड़ी के तो हुए न।
और फिर मादरचोद ,
मम्मी की सबसे कड़ी शर्त तूने पूरी कर दी , अपनी गांड फड़वाने की ,कमल जीजू को पटा के , मम्मी का आज दिन में फोन आया था।
बहुत खुश थीं तुमसे ,कह रही थीं मेरी सास से उनकी बात आज भी हुयी थी , आज से ठीक चौदह दिन बाद , तेरी माँ को ले के वो हाजिर। कह रही थीं वो , बस चौदह दिन उस छिनार के जने से कह देना , अपनी माँ चोदने के लिए तैयार रहे , तो साल्ले अब तो मादरचोद बनने से तुझे कोई रोक नहीं सकता। "
मैं कनखियों से देख रही थी , उन खूँटा अब फिर टनटना रहा था।
मेरी बातों का असर ,या सावन के मौसम की मस्ती का या अजय जीजू के मस्त सिगरेट का , या सबका मिला जुला ,
पर शेर अंगड़ाई ले रहा था।
एक दो सुट्टे और मार के मैंने सिगरेट उनके नदीदे मुंह में खोंस दी और अब वो जम कर सुट्टे लगाने लगे।
बाहर मौसम और जबरदस्त ,...
हवा थोड़ी तेज हो गयी थी , रह रह कर आसमान में बिजली चमक रही थी।
आम का पेड़ मस्ती से झूम रहा था , और अब बौछार थोड़ी तेज हो के हम लोगों को भिगो रही थी।
मैंने शरारत से अपने दो हाथ बाहर कर के अंजुरी में झरती बारिश का ढेर सारा पानी रोप कर जब तक वो सम्हलें ,समझें
कुछ पानी मैंने इनके चेहरे पर डाला और कुछ इनके खड़े खूंटे पर ,उसे मसलते मैं बोली ,
" यार आज तेरे मायके का पहला दिन ,एकदम जैसा मैं सोच रही थी वैसा ही गुजरा तो मेरे मुन्ने को कुछ इनाम तो मिलना ही चहिये न , आओ। "
और ये कह के मैंने उन के मुंह से मसाले वाली सिगी खींच ली और बस दो खूब जोरदार सुट्टे लगा के ख़तम कर बाहर फेंक दी ,
और पलंग पर लेट गयी।
" आओ न "
मैंने बुलाया , मेरी खुली जाँघों को देख के वो समझ गए मैं किस इनाम की बात कर रही हूँ।
उनके होंठ मेरे निचले होंठों पर , जबरदस्त चूत चटोरे तो वो थे ही ,
थोड़े ही देर में सपड़ सपड़ ,... मेरी हालत खराब
क्या मस्त चाट रहे थे वो ,थोड़ी ही देर में बाहर चल रहे तूफ़ान में काँप रहे आम के पेड़ के पत्तों की तरह मेरी देह भी काँप रही थी।
लेकिन इरादा तो मेरा कुछ और चटवाने का था ,
आखिर उनके मायके का मेरा पहला दिन इत्ता स्पेशल गुजरा , खास तौर से अपनी भौजाई के सामने जिस तरह से उन्होंने मेरे तलवे चाटे , एकदम खुल के
मेरी जिठानी की हालत देखते बनती थी ,
तो उनका इनाम भी तो कुछ स्पेशल बनता था न।
और मैंने अपने कूल्हे कुछ और ऊपर उठाये ,
अक्लमंद को इशारा काफी ,
और फिर मम्मी और मंजू ने रोज रोज गांड चटाई में उन्हें ट्रेन भी अच्छा कर दिया था ,
जीभ मेरी चिकनी देह पर फिसलती आगे के छेद से पीछे के छेद की ओर ,
पर तड़पाने में उनका कोई सानी नहीं था ,एकदम मेरी तरह,
जीभ गोलकुंडा के किले के चारो ओर चक्कर काटती रही , बस छोटे छोटे लिक्स
और फिर उस भूरी सुरंग से बस एक मिलीमीटर दूर छोटे छोटे चुम्बनों की बारिश
बाहर बारिश तेज हो गयी थी ,और
अंदर मेरी गालियों की बारिश ,
साल्ले , भोंसड़ी के , तेरी माँ की फुद्दी मारूँ , रन्डी के जने ,गांड़चटटो
चाट मादरचोद चाट ,चाट गाँड़ ठीक से , चाट डाल दे जीभ अंदर ,
गांडू , मजा आया था ने मेरे जीजू से गांड मरवाने में , अभी तो बस ट्रेलर था ,
डाल न जीभ अपनी , तेरे बहन को तेरी रखैल बनाऊं ,
और उनकी जीभ सीधे मेरी गांड के कसे छेद पर
जहां कल अजय और कमल जीजू का मूसल रात भर चला था।
कल सिर्फ उनकी ही कोरी गांड नहीं फटी थी , मेरी भी पहली पहली बार।