25-03-2020, 10:55 AM
(This post was last modified: 11-07-2021, 08:13 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
सावन अपने पूरे जोबन पे
मैंने लेकिन मोर्चा बदल दिया।
" इनकी माँ का कोई फोन वोन आया या फिर वहां पंडो दबवाने मिजवाने में ही ,... "
मेरी बात काट के खिलखिलाती मेरी जेठानी बोली ,
" अरे बिचारे पंडों की क्या गलती , वो खुद ही धक्का मारती रगड़वाती ,.. "
और अबकी बात काटने की बारी मेरी थी , मैंने उन्ही से पूछा ,
" क्यों तुम्हारी भौजी सही कह रही हैं न , खूब दबवाती मिजवाती हैं न
लेकिन अभी है भी उनका कितना कड़क बड़ा बड़ा ,दबाने मीजने के लायक। "
जेठानी जी ने जुम्हाई ली तो हम दोनों ने इशारा समझ लिया और हम दोनों भी ऊपर अपने कमरे की ओर ,
सीढ़ी चढ़ते हुए इनके बॉक्सर शार्ट्स में , इनके पिछवाड़े की दरार में ऊँगली करते ,रगड़ते हलके से मैं बोली
चल मादरचोद ऊपर।
पता नहीं मेरी जेठानी ने सुना तो नहीं,
सुना हो तो सुना हो।
ये इनकी अपने मायके में, पहली रात थी अपने नए रूप में।
और क्या रात थी वो ,
सावन अपने पूरे जोबन पे।
काली काली घटाएं घिरी हुयी थीं , हलकी पुरवाई चल रही थी ,भीगी भीगी सी बस लगा रहा था की कि कहीं आसपास पानी बरसा हो ,
मिटटी की सोंधी सोंधी महक हवा में घुली हुयी ,
कमरे में पहुँच के बजाय दरवाजा बंद करने के
मैंने खिड़की भी खोल दी ,
और बाहर आम का बड़ा पेड़ झूम झूम के , जैसे कजरी गा रहा हो ,
इससे पहले रात में इस कमरे की खिड़की दरवाजे कभी नहीं खुलते थे ,
( कहीं कोई देख ले तो , कोई क्या कहेगा , सेक्स के साथ जुडी गिल्ट फ़ीलिंग , हर चीज एक घुटन के साथ जुडी , छुपी सहमी )
और मैंने अपना कुर्ता उतार के उनकी ओर उछाल दिया , वो उसे तहियाने में लगे थे
की मैं उनके पास ,और नीचे झुक के बॉक्सर शार्ट ,
सररर , नीचे , वो नंगे।
…………………………………..
लेकिन अब वो भी तो ,
उन्होंने भी मेरे शलवार का नाडा खींच दिया और शलवार उनके हाथ में
अंडर गारमेंट्स न उन्होंने पहने थे न मैंने।
वो कपडे तह कर के रख रहे थे और मैं निसुती खिड़की के पास ,
खुली खिड़की से आती सावन की गीली गीली हवा का मजा लेती
( ये भी पहली बार था इस कमरे में , सेक्स तो हम लोग बिना नागा करते थे और खूब मजे ले ले कर लेकिन ,
उनका बस चले तो बस ज़िप खोल के काम चला लेते ,
और ज्यादातर कपडे तभी उतरते जब हम दोनों चद्दर के अंदर होते ,लेकिन अब )
सावन की एक मोटी सी बूँद मेरे चेहरे पर पड़ी और फिर कुछ देर में दूसरी मेरे गदराये मस्ताए जुबना पे ,
निपल के बस थोड़ा ऊपर ,
मैं नीचे तक गीली हो गयी।
वो अलमारी बंद ही कर रहे थे ,मेरे ही हालत में बर्थ डे सूट में ,
" ए ज़रा एक सिगी तो सुलगाना , ... अरे वो स्पेशल वाली जो अजय जीजू ने दी थी न। "
मैंने खिड़की के पास से खड़े खड़े ही आवाज लगाई।
अब रुक रुक कर बूंदो की आवाज ,कमरे की छत पर से नीचे जमीन पर से ,आम के पेड़ की खिड़कियों पर से ,
अलग अलग एक सिम्फोनी मस्ती की ,
खिड़की से हाथ बाहर निकाल के मैंने चार पांच बूंदे रोप लीं और सीधे अपने उभारों पर मसल दिया।
तब तक वो मेरे पास आके खड़े हो गए थे वही अजय जीजू वाली स्पेशल सिग्गी सुलगा के सुट्टा लगाते ,
क्या जबरदस्त अजय जीजू की वो ,... एक दो सुट्टे में ही बुर की बुरी हालात हो जाती थी , बस मन करता था की कोई लौंडा दिखे तो उसे पटक के रेप कर दूँ।
" साल्ले ,भोंसड़ी के मादरचोद , अकेले अकेले। "
उनके मुंह से सिग्गी छीन कर सुट्टा लगाते मैं बोली।
मैंने लेकिन मोर्चा बदल दिया।
" इनकी माँ का कोई फोन वोन आया या फिर वहां पंडो दबवाने मिजवाने में ही ,... "
मेरी बात काट के खिलखिलाती मेरी जेठानी बोली ,
" अरे बिचारे पंडों की क्या गलती , वो खुद ही धक्का मारती रगड़वाती ,.. "
और अबकी बात काटने की बारी मेरी थी , मैंने उन्ही से पूछा ,
" क्यों तुम्हारी भौजी सही कह रही हैं न , खूब दबवाती मिजवाती हैं न
लेकिन अभी है भी उनका कितना कड़क बड़ा बड़ा ,दबाने मीजने के लायक। "
जेठानी जी ने जुम्हाई ली तो हम दोनों ने इशारा समझ लिया और हम दोनों भी ऊपर अपने कमरे की ओर ,
सीढ़ी चढ़ते हुए इनके बॉक्सर शार्ट्स में , इनके पिछवाड़े की दरार में ऊँगली करते ,रगड़ते हलके से मैं बोली
चल मादरचोद ऊपर।
पता नहीं मेरी जेठानी ने सुना तो नहीं,
सुना हो तो सुना हो।
ये इनकी अपने मायके में, पहली रात थी अपने नए रूप में।
और क्या रात थी वो ,
सावन अपने पूरे जोबन पे।
काली काली घटाएं घिरी हुयी थीं , हलकी पुरवाई चल रही थी ,भीगी भीगी सी बस लगा रहा था की कि कहीं आसपास पानी बरसा हो ,
मिटटी की सोंधी सोंधी महक हवा में घुली हुयी ,
कमरे में पहुँच के बजाय दरवाजा बंद करने के
मैंने खिड़की भी खोल दी ,
और बाहर आम का बड़ा पेड़ झूम झूम के , जैसे कजरी गा रहा हो ,
इससे पहले रात में इस कमरे की खिड़की दरवाजे कभी नहीं खुलते थे ,
( कहीं कोई देख ले तो , कोई क्या कहेगा , सेक्स के साथ जुडी गिल्ट फ़ीलिंग , हर चीज एक घुटन के साथ जुडी , छुपी सहमी )
और मैंने अपना कुर्ता उतार के उनकी ओर उछाल दिया , वो उसे तहियाने में लगे थे
की मैं उनके पास ,और नीचे झुक के बॉक्सर शार्ट ,
सररर , नीचे , वो नंगे।
…………………………………..
लेकिन अब वो भी तो ,
उन्होंने भी मेरे शलवार का नाडा खींच दिया और शलवार उनके हाथ में
अंडर गारमेंट्स न उन्होंने पहने थे न मैंने।
वो कपडे तह कर के रख रहे थे और मैं निसुती खिड़की के पास ,
खुली खिड़की से आती सावन की गीली गीली हवा का मजा लेती
( ये भी पहली बार था इस कमरे में , सेक्स तो हम लोग बिना नागा करते थे और खूब मजे ले ले कर लेकिन ,
उनका बस चले तो बस ज़िप खोल के काम चला लेते ,
और ज्यादातर कपडे तभी उतरते जब हम दोनों चद्दर के अंदर होते ,लेकिन अब )
सावन की एक मोटी सी बूँद मेरे चेहरे पर पड़ी और फिर कुछ देर में दूसरी मेरे गदराये मस्ताए जुबना पे ,
निपल के बस थोड़ा ऊपर ,
मैं नीचे तक गीली हो गयी।
वो अलमारी बंद ही कर रहे थे ,मेरे ही हालत में बर्थ डे सूट में ,
" ए ज़रा एक सिगी तो सुलगाना , ... अरे वो स्पेशल वाली जो अजय जीजू ने दी थी न। "
मैंने खिड़की के पास से खड़े खड़े ही आवाज लगाई।
अब रुक रुक कर बूंदो की आवाज ,कमरे की छत पर से नीचे जमीन पर से ,आम के पेड़ की खिड़कियों पर से ,
अलग अलग एक सिम्फोनी मस्ती की ,
खिड़की से हाथ बाहर निकाल के मैंने चार पांच बूंदे रोप लीं और सीधे अपने उभारों पर मसल दिया।
तब तक वो मेरे पास आके खड़े हो गए थे वही अजय जीजू वाली स्पेशल सिग्गी सुलगा के सुट्टा लगाते ,
क्या जबरदस्त अजय जीजू की वो ,... एक दो सुट्टे में ही बुर की बुरी हालात हो जाती थी , बस मन करता था की कोई लौंडा दिखे तो उसे पटक के रेप कर दूँ।
" साल्ले ,भोंसड़ी के मादरचोद , अकेले अकेले। "
उनके मुंह से सिग्गी छीन कर सुट्टा लगाते मैं बोली।