24-03-2020, 08:31 AM
(23-03-2020, 11:46 PM)Niharikasaree Wrote: और फिर मैंने वो सीन देखा जिसे देखने के लिए मेरी आँखे तड़प रही थीं। मेरा मन तरस रहा था न जाने कबसे ,Bilkul Ak Orat ki bhavnaon ko bahut khubsurati k saath prastut kiya gya hai
मेरी जेठानी दरवाजे पर खड़ी , न उनसे देखा जा रहा था न हटा जा रहा था।
ये उठे और अनजाने में मेरा पैर उनके पैर से छू गया ,
बस कहर बरपा हो गया , पहले तो उनकी बुआ बरसीं ,
" अरी बहू ज़रा देख समझ के , पति को पैर से छूने पे पक्का नरक मिलता है कोई प्रायश्चित नहीं , बिल्ली मारने से भी बढ़कर "
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कोमल जी,
उफ़, क्या डिटेल मैं भावनाओ को प्रतुत किया है, यह एक औरत ही महसूस कर सकती है, यह होना , ताने मरना। ..... यह न करो , वो न करो। .....
एक औरत जो ें सब मैं से निकली हुई हो, सब समझ सकती है , यह भी कबीले तारीफ है की आपने किस खूबसूरती से चित्रतः किया है, अगर सिचुएशन वही हो पर अब काम अपने हिसाब से हो, तब एक मन को शांति मिलती है, जीत की ख़ुशी, जैसे सारा जहाँ मेरा, मेरा पति मेरे साथ फिर क्या बात।
सब कुछ एक चलचित्र के भांति सामने आता है , जैसे एक ही समय मैं दो चलचित्र चल रही हो, समय रुक सा गया हो, उफ़। ..... मै ही मैं हूँ। ......
आपके अपडेट के इंतज़ार मैं। .....
निहारिका।
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ओर ये जीत कई मायनों में अहम है
माफ करना आप की शाब्दिक खूबसूरती को देख के रोक नहीं पाया खुद को