23-03-2020, 08:26 PM
***** *****संदीप
और खाते समय मैंने और अनुजा का नाम ले-लेकर उन्हें इतना चिढ़ाया, और ऊपर से शुरू में ही अनुजा को डबल भांग की दो गुझिया जबरदस्ती उसके मुँह में ठेल दी। वो लाख ना नुकुर करती रही लेकिन उसका असर तो 15-20 मिनट में हो ही जाना था।
मालपुआ संदीप को देते हुए मैं बोली- “ये तेरी बहन ने अपने भैया के लिए प्यार से बनाया है, जैसे अनुजा के गाल हैं न कचकचा के काटने लायक मुलायम-मुलायम, बस वैसे ही मुलायम-मुलायम हैं, चाहे तो एक बार चख के देख लो…”
बिचारी अनुजा, वैसे तो मैं छेड़ती ही रहती थी लेकिन संदीप के सामने, गाल उसके गुलाल हो गए।
संदीप भी… उन्होंने कुछ बोलने की कोशिश की तो मैंने फिर अनुजा की ओर इशारा करके बोला- “इत्त्ते दिन बाद आये हो, देख लो ठीक से, हो गई है न मस्त माल…”
मैंने नहाने के बाद तो एक टाइट सा शलवार सूट पहना था, लेकिन उसे एक फेड टाप और छोटा सा शार्ट पहनाया था, जिसमें उसके कड़क उभार खूब दिख रहे थे। खाना हम लोग खत्म कर चुके थे, अनुजा और उसके भैय्या ने मिलकर मुझे भी भांग वाली गुझिया और ठंडाई पिला दी थी।
किसी बात पे मैंने बोल दिया- “तेरी बहन की फु… … मारूं…”
तो पलट के वो बोले- “चल पहले अपनी बचा…”
मैं भागी बेडरूम की ओर, लेकिन उन्होंने बिस्तर के पहले ही मुझे दबोच लिया। और सोफे के सहारे, वहीं निहुरा के… शलवार भी नहीं बचा पायी, न कस के बांधा नाड़ा उन्हें रोक पाया। उन्होंने इस बात का इन्तजार भी नहीं किया कि दरवाजा अभी खुला है और टेबल समेटती अनुजा हम लोगों को खुल्लम खुल्ला देख रही है। और ऊपर से संदीप जब जोश में होते थे तो बस एकदम गाली दे दे के- “बहुत मुझे अनुजा का नाम लेकर छेड़ रही थी न… अब दिखाता हूँ तुझे असली पिचकारी का मजा। चोद-चोद के तेरी चुनमुनिया का…”
मुझे भी खूब मजा आ रहा था और मैं उन्हें उकसा भी रही थी। जब वो मेरे टाइट कुर्ते के ऊपर से मेरी बड़ी-बड़ी चूंचियां दबा रहे थे जोर-जोर से। मैंने कहा- “अरे अनुजा के टिकोरे समझ के दबा रहे हो क्या? आज ज्यादा ही जोश में हो…”
दूसरा राउंड भी उन्होंने आधे घंटे के अंदर फिर से लगा दिया। और इस बार मेरे पिछवाड़े का नंबर लग गया।
संदीप को जो मैं हर बार बोलकर चिढ़ाती थी, मैंने फिर बोला- “यार, या तो तुम पिछले जनम में गधे घोड़े थे या मेरी सासू माँ किसी गधे घोड़े के पास गई थीं…”
बस संदीप ने मुझे घोड़ी बनाकर पिछवाड़े का बाजा बजा दिया।
अनुजा बगल के कमर में थी और मुझे पूरा यकीन था की कान फाड़े सुन रही होगी।
शाम को अबीर गुलाल सूखी होली में भी खूब मजा आया। सुलभा, मेरी और सहेलियां, उनके हसबैंड… उन लोगों ने संदीप की खूब रगड़ाई तो की ही, संदीप को दिखा-दिखा के अनुजा के टाप के अंदर हाथ डाल-डाल के… और रात भर बाहर चांदनी छटकती रही, और कमरे के अंदर संदीप की पिचकारी रंग बिखेरती रही, एकदम नान स्टाप।
कहाँ की बात ले बैठी मैं, दिल उदास हो गया। इस बार होली में संदीप नहीं आ पा रहे हैं, उनकी छुट्टी कैंसल हो गई।
और खाते समय मैंने और अनुजा का नाम ले-लेकर उन्हें इतना चिढ़ाया, और ऊपर से शुरू में ही अनुजा को डबल भांग की दो गुझिया जबरदस्ती उसके मुँह में ठेल दी। वो लाख ना नुकुर करती रही लेकिन उसका असर तो 15-20 मिनट में हो ही जाना था।
मालपुआ संदीप को देते हुए मैं बोली- “ये तेरी बहन ने अपने भैया के लिए प्यार से बनाया है, जैसे अनुजा के गाल हैं न कचकचा के काटने लायक मुलायम-मुलायम, बस वैसे ही मुलायम-मुलायम हैं, चाहे तो एक बार चख के देख लो…”
बिचारी अनुजा, वैसे तो मैं छेड़ती ही रहती थी लेकिन संदीप के सामने, गाल उसके गुलाल हो गए।
संदीप भी… उन्होंने कुछ बोलने की कोशिश की तो मैंने फिर अनुजा की ओर इशारा करके बोला- “इत्त्ते दिन बाद आये हो, देख लो ठीक से, हो गई है न मस्त माल…”
मैंने नहाने के बाद तो एक टाइट सा शलवार सूट पहना था, लेकिन उसे एक फेड टाप और छोटा सा शार्ट पहनाया था, जिसमें उसके कड़क उभार खूब दिख रहे थे। खाना हम लोग खत्म कर चुके थे, अनुजा और उसके भैय्या ने मिलकर मुझे भी भांग वाली गुझिया और ठंडाई पिला दी थी।
किसी बात पे मैंने बोल दिया- “तेरी बहन की फु… … मारूं…”
तो पलट के वो बोले- “चल पहले अपनी बचा…”
मैं भागी बेडरूम की ओर, लेकिन उन्होंने बिस्तर के पहले ही मुझे दबोच लिया। और सोफे के सहारे, वहीं निहुरा के… शलवार भी नहीं बचा पायी, न कस के बांधा नाड़ा उन्हें रोक पाया। उन्होंने इस बात का इन्तजार भी नहीं किया कि दरवाजा अभी खुला है और टेबल समेटती अनुजा हम लोगों को खुल्लम खुल्ला देख रही है। और ऊपर से संदीप जब जोश में होते थे तो बस एकदम गाली दे दे के- “बहुत मुझे अनुजा का नाम लेकर छेड़ रही थी न… अब दिखाता हूँ तुझे असली पिचकारी का मजा। चोद-चोद के तेरी चुनमुनिया का…”
मुझे भी खूब मजा आ रहा था और मैं उन्हें उकसा भी रही थी। जब वो मेरे टाइट कुर्ते के ऊपर से मेरी बड़ी-बड़ी चूंचियां दबा रहे थे जोर-जोर से। मैंने कहा- “अरे अनुजा के टिकोरे समझ के दबा रहे हो क्या? आज ज्यादा ही जोश में हो…”
दूसरा राउंड भी उन्होंने आधे घंटे के अंदर फिर से लगा दिया। और इस बार मेरे पिछवाड़े का नंबर लग गया।
संदीप को जो मैं हर बार बोलकर चिढ़ाती थी, मैंने फिर बोला- “यार, या तो तुम पिछले जनम में गधे घोड़े थे या मेरी सासू माँ किसी गधे घोड़े के पास गई थीं…”
बस संदीप ने मुझे घोड़ी बनाकर पिछवाड़े का बाजा बजा दिया।
अनुजा बगल के कमर में थी और मुझे पूरा यकीन था की कान फाड़े सुन रही होगी।
शाम को अबीर गुलाल सूखी होली में भी खूब मजा आया। सुलभा, मेरी और सहेलियां, उनके हसबैंड… उन लोगों ने संदीप की खूब रगड़ाई तो की ही, संदीप को दिखा-दिखा के अनुजा के टाप के अंदर हाथ डाल-डाल के… और रात भर बाहर चांदनी छटकती रही, और कमरे के अंदर संदीप की पिचकारी रंग बिखेरती रही, एकदम नान स्टाप।
कहाँ की बात ले बैठी मैं, दिल उदास हो गया। इस बार होली में संदीप नहीं आ पा रहे हैं, उनकी छुट्टी कैंसल हो गई।