23-03-2020, 08:25 PM
(This post was last modified: 24-03-2020, 07:49 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
***** *****पिछली होली
हाँ, पिछली होली की एक बात। मेरी सहेली सुलभा ने, अनुजा को धर दबोचा था।
आखिर उसकी भी तो छोटी ननद ही लगती, उसका भी पूरा हक़ बनता था।
ब्रा, पैंटी में हर जगह।
मुझे तो उस समय कालोनी के मर्दों ने जकड़ रखा था।
बाद में सुलभा बोली-
“यार तेरी ननद तो एकदम मक्खन मलाई है, किसी दिन दावत करवाओ। हाँ लेकिन… उसकी घास फूस तो साफ कर दो…”
कालोनी में होली होती जबरदस्त थी।
पीछे एक बड़ा सा मैदान था उसी में।
एक छोटा सा पोखर था ज्यादा गहरा नहीं, ज्यादा से ज्यादा सीने तक, उसमें रंग भर दिया जाता था।
खूब घने पेड़ थे, किनारे की ओर एक बँसवाड़ी सी भी थी।
बस सुबह-सुबह सारे लोग, मर्द औरतें, लड़के लड़कियां सब वहीं इकट्ठे होते थे और अगर नौ साढ़े नौ तक कोई भी घर में रह गया तो बाकी उसे पकड़ के जबरदस्ती… फिर सबसे ज्यादा रगड़ाई उसी की होती थी।
नो होल्ड्स बार्ड और नो होल्स बार्ड, सिर्फ एक रिस्ट्रिक्शन था, पति पत्नी आपस में नहीं खेल सकते थे।
पहले तो औरतें आपस में, और फिर अगर कोई लड़की पकड़ में आ गई तो उसकी तो…
आदमी भी आपस में, लेकिन कुछ देर में ही आखिर कालोनी के रिश्ते से सब देवर भाभी तो लगते ही थी, इसलिए, कोई किसी के साथ भी।
खाने पीने का इंतजाम भी, भांग वाली गुझिया, भांग वाली ठंडाई।
नहाते समय, मैं और अनुजा एक ही बाथरूम में साथ-साथ नहा रहे थे (दूसरे बाथरूम में संदीप थे)।
उसकी पैंटी देखकर मैंने कहा-
“इतने ढेर सारे रंग, चल बैंगनी तो सुलभा का ट्रेड मार्क है लेकिन बाकी किसकी-किसकी उंगलियां गयीं?”
भाभियां तो भाभियां… सहेलियां भी।
वो क्यों पीछे रहती, मेरी पैंटी उठा के देखते बोली-
“भाभी मैं भी तो देखूं? अरे रे आपकी में तो मुझसे भी दुगुने रंग। अच्छा ये वाला, ये तो मदन भैया का, जो भैया के दोस्त हैं उनका है न?
ऐसी सुनहली बार्निश वही इश्तेमाल करते हैं और आपकी ब्रा के अंदर भी उन्हीं का…
और ये गाढ़ा लाल पिछवाड़े एकदम अंदर तक, बताओ न किसका है?”
अंदाज अनुजा का एकदम सही था।
मिस्टर अरोड़ा, ये हरकत उन्हीं की थी,
मेरे पिछवाड़े के जबरदस्त दीवाने थे। मैं शलवार सूट पहनकर जाती थी होली में की कुछ बचत हो जायेगी
लेकिन कैसी बचत… रंग भरे पोखर में कमर के नीचे क्या हो रहा है कहाँ दिखता था, फिर दो तीन मिल के घेर लेती थी।
फिर रेन डांस, उसमें भी ग्राइंड जो थोड़ी देर में ही ड्राई हम्पिंग में बदल जाती थी, कई बार तो एक साथ दो-दो एक आगे एक पीछे…
बात बदल के मैंने अनुजा को छेड़ा-
“लगता है होली में ठीक से गरमी उतरी नहीं, बुलाती हूँ तेरे भैया को। भांग के नशे में पूरे टुन्न हैं, बहनचोद बनने में कोई कसर नहीं है…”
खिलखिलाते हुए वो बोली।
“नहीं भाभी… अपनी भूख आप पहले मिटा लीजिये। जल्दी निकलिए बाहर भूखा शेर इन्तजार कर रहा होगा…”
बात अनुजा की एकदम सही थी।
हाँ, पिछली होली की एक बात। मेरी सहेली सुलभा ने, अनुजा को धर दबोचा था।
आखिर उसकी भी तो छोटी ननद ही लगती, उसका भी पूरा हक़ बनता था।
ब्रा, पैंटी में हर जगह।
मुझे तो उस समय कालोनी के मर्दों ने जकड़ रखा था।
बाद में सुलभा बोली-
“यार तेरी ननद तो एकदम मक्खन मलाई है, किसी दिन दावत करवाओ। हाँ लेकिन… उसकी घास फूस तो साफ कर दो…”
कालोनी में होली होती जबरदस्त थी।
पीछे एक बड़ा सा मैदान था उसी में।
एक छोटा सा पोखर था ज्यादा गहरा नहीं, ज्यादा से ज्यादा सीने तक, उसमें रंग भर दिया जाता था।
खूब घने पेड़ थे, किनारे की ओर एक बँसवाड़ी सी भी थी।
बस सुबह-सुबह सारे लोग, मर्द औरतें, लड़के लड़कियां सब वहीं इकट्ठे होते थे और अगर नौ साढ़े नौ तक कोई भी घर में रह गया तो बाकी उसे पकड़ के जबरदस्ती… फिर सबसे ज्यादा रगड़ाई उसी की होती थी।
नो होल्ड्स बार्ड और नो होल्स बार्ड, सिर्फ एक रिस्ट्रिक्शन था, पति पत्नी आपस में नहीं खेल सकते थे।
पहले तो औरतें आपस में, और फिर अगर कोई लड़की पकड़ में आ गई तो उसकी तो…
आदमी भी आपस में, लेकिन कुछ देर में ही आखिर कालोनी के रिश्ते से सब देवर भाभी तो लगते ही थी, इसलिए, कोई किसी के साथ भी।
खाने पीने का इंतजाम भी, भांग वाली गुझिया, भांग वाली ठंडाई।
नहाते समय, मैं और अनुजा एक ही बाथरूम में साथ-साथ नहा रहे थे (दूसरे बाथरूम में संदीप थे)।
उसकी पैंटी देखकर मैंने कहा-
“इतने ढेर सारे रंग, चल बैंगनी तो सुलभा का ट्रेड मार्क है लेकिन बाकी किसकी-किसकी उंगलियां गयीं?”
भाभियां तो भाभियां… सहेलियां भी।
वो क्यों पीछे रहती, मेरी पैंटी उठा के देखते बोली-
“भाभी मैं भी तो देखूं? अरे रे आपकी में तो मुझसे भी दुगुने रंग। अच्छा ये वाला, ये तो मदन भैया का, जो भैया के दोस्त हैं उनका है न?
ऐसी सुनहली बार्निश वही इश्तेमाल करते हैं और आपकी ब्रा के अंदर भी उन्हीं का…
और ये गाढ़ा लाल पिछवाड़े एकदम अंदर तक, बताओ न किसका है?”
अंदाज अनुजा का एकदम सही था।
मिस्टर अरोड़ा, ये हरकत उन्हीं की थी,
मेरे पिछवाड़े के जबरदस्त दीवाने थे। मैं शलवार सूट पहनकर जाती थी होली में की कुछ बचत हो जायेगी
लेकिन कैसी बचत… रंग भरे पोखर में कमर के नीचे क्या हो रहा है कहाँ दिखता था, फिर दो तीन मिल के घेर लेती थी।
फिर रेन डांस, उसमें भी ग्राइंड जो थोड़ी देर में ही ड्राई हम्पिंग में बदल जाती थी, कई बार तो एक साथ दो-दो एक आगे एक पीछे…
बात बदल के मैंने अनुजा को छेड़ा-
“लगता है होली में ठीक से गरमी उतरी नहीं, बुलाती हूँ तेरे भैया को। भांग के नशे में पूरे टुन्न हैं, बहनचोद बनने में कोई कसर नहीं है…”
खिलखिलाते हुए वो बोली।
“नहीं भाभी… अपनी भूख आप पहले मिटा लीजिये। जल्दी निकलिए बाहर भूखा शेर इन्तजार कर रहा होगा…”
बात अनुजा की एकदम सही थी।