21-03-2020, 05:41 AM
(13-04-2019, 06:40 PM)komaalrani Wrote: बेसबरा
मैं सिहर रही थी , सिसक रही थी ,...
और कुछ देर बाद , जब वो बौराया मूसलचंद मेरी गुलाबों के होठों को फैलाकर सटा
कर ,
सच , एक बार फिर मन में डर छाने लगा , ..
कल और सुबह की ,...
अभी तक जाँघे फट रही थीं , ज़रा सा चलती थी तो 'वहां' चिलख उठती थी , खूब जोर से , किसी तरह मैं दर्द पी जाती थी , ...
और अब तो मैंने देख भी लिया था , सिर्फ लम्बाई में ही मेरी नन्दोई से २५ नहीं था , मोटाई में मेरी कलाई इतना कम से कम ,...
लेकिन आज उन्होंने भी कोई जल्दी नहीं की ,
थोड़ी देर अपने ' उसको ' मेरे ' वहां ' रगड़ते रहे ,...
डर का जगह मस्ती ने ले लिया , मेरी देह मेरे काबू में नहीं रही , मैं सिसक रही थी , मचल रही थी , अब मन कर रहा था , डाल ही दो न , क्यों तड़पा रहे हो ,
डाल दिया उन्होंने , ...
लेकिन बहुत सम्हालकर ,... पर तभी भी दर्द उठा , जोर का उठा ,
...मैंने कस के दोनों मुट्ठी में पलंग की चादर भींच ली , आँखे मुंद ली
पर अब उन्हें भी रोकना मुश्किल था , एक धक्का बहुत करारा ,...
दूसरा उससे भी तेज ,... और रोकते रोकते भी मेरी चीख निकल गयी , ...
और उनका धक्का रुक गया ,
मैं समझ गयी , दर्द को मैं पी गयी , मुस्कराते हुए मैंने आँखे खोली ,
सच में ये लड़का कुछ जरूरत से ज्यादा ही केयरिंग था , इस बुद्धू को कौन समझाये लड़की जब करवाती है तो शुरू में चीखती चिल्लाती है ही , पर ये भी न
इनका चेहरा एक बार फिर घबड़ाया , जैसे कोई इनसे बहुत बड़ी गलती हो गयी हो ,...
पर जब उन्होंने मेरा मुस्कराता चेहरा देखा , और,... मैंने इन्हे कस के अपनी बाहों में भींच कर अपनी ओर खींचा ,... और,... मैं अपने को रोक नहीं पायी
एक छोटी सी किस्स्सी मेरे होंठों ने इनके होंठों पर ले ली ,
इससे बड़ा ग्रीन सिंग्नल इन्हे क्या मिलता , फिर न ये रुके न मैं ,
कुछ ही देर में मेरी आह सिसकियों में बदल गयी , और ये लड़का भी एकदम खुल के , पूरी ताकत से ,...
रगड़ता , दरेरता , घिसटता , फाड़ता जब वो मोटा मूसल अंदर घुसता , तो
दर्द तो बहुत होता , लेकिन दर्द से ज्यादा मज़ा आ रहा था ,
और असली ख़ुशी मुझे हो रही थी , उस लालची , बेसबरे लड़के के चेहरे पर छायी ख़ुशी को देखकर ,.. उस ख़ुशी के लिए तो मैं अपनी जान दे सकती थी।
और अब सिर्फ मूसलचंद ही नहीं , ... वो तो आलमोस्ट अंदर तक धंसे ,...
लेकिन इनके हाथ , इनकी उँगलियाँ , कभी मेरे जोबन , कभी मेरे गाल , मेरे होंठ
जैसे भौंरा उड़ कर कभी इस कली पर तो कभी उस कली पर ,... उनके होंठ कभी मेरे होंठों पर तो कभी गालों पर तो कभी कड़े कड़े गोरे गुलाबी उरोजों पर ,...
कभी मेरे उरोजों को चूम चूस लेते तो कभी कच कच्चा के काट लेते ,
अब मुझे इस बात पर कोई परेशानी नहीं थी की ननदें देख कर चिढ़ाएँगी ,...
मैं भी रुक रुक कर हलके हलके उंनका साथ दे रही थी , किस कर के , ... कभी हलके से से उन्हें अपनी ओर भींच के , और शर्माते झिझकते
कभी कभी मैं भी हलके से ही नीचे से धक्के लगा लेती , और बस वो आग में घी डालने को काफी था ,
फिर तो वो जोर जोर से धक्के , एकदम तूफ़ान मेल ,...
मेरी देह तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी मैं थोड़ी देर ढीली , आँखे बंद ,... जो मजा आ रहा था बता नहीं सकती ,
एक बार दो बार ,... और तीसरी बार वो भी साथ साथ ,... देर तक ,...
उनकी रबड़ी मलाई , मैंने पूरी जाँघे फैला रखी थी , प्यासी धरती की तरह रोप रही थी
बूँद बूँद
और वो सफ़ेद रस की नदी , मेरी प्रेम गली से निकल जाँघों पर ,...
हम दोनों एक दूसरे को बाँहों में भींचे एक दसरे को वैसे ही पड़े रहे बहुत देर तक , मेरा साजन मेरे अंदर , धंसा , घुसा।
बोली मैं ही सबसे पहले ,मौन चादर की उठाकर ,
और बोली भी क्या
" तुम न , बहुत ही बुद्धू हो ,... एकदम बुद्धू हो। "
uff, komal ji , bas jaan hi le lo.............
Niharika
इंतज़ार मैं। ........
आपकी निहारिका
सहेलिओं , पाठिकाओं, पनिहारिनों, आओ कुछ अपनी दिल की बातें करें -
लेडीज - गर्ल्स टॉक - निहारिका