18-03-2020, 05:28 PM
“नहीं भाभी, काफी छोटी हैं उसकी साइज़ तो!”
“फिर यह कैसे पहनेंगी वो, तुझे काफी टाइम लगेंगा यह साइज़ करने में!” मैंने डबल मीनिंग वाला डायलोग मारा और अशफ़ाक भी हंस पड़ा.
फिर मैंने काली पेंटी उठाई और उसे अपने ऊपर रखा. अशफ़ाक की नजर मेरे ऊपर ही थी.
“ये भी फिट बैठती हैं आप के ऊपर भाभी.”
“तू हुस्ना की साइज़ की जगह मेरी साइज़ का ले आया सब कुछ. वापस कर देना महंगा होंगा यह सब तो.”
” मुझे यह ख्याल पहले क्यूँ नहीं आया, अगर मैं दुबई से आप को फोन करता तो आप मेरी मदद कर देती ना भाभी.”
“अब तूने फोन नहीं किया तो मैं क्या कर सकती थी!”
“भाभी आप रख लो इसे, वैसे भी मैंने हुस्ना को नहीं बताया हैं इसके बारे में.”
“अरे मैं कैसे रख सकती हूँ इसे पागल, कोई भाभी को भी लौन्जरी गिफ्ट देता हैं क्या?”
“आप के ऊपर मस्त दिखती हैं भाभी, और मैं इसे वापस नहीं ले जाऊँगा.”
“नहीं अशफ़ाक बहुत महंगी लगती हैं ये तो.”
“आप के लिए क्या महंगा क्या सस्ता.”
“मैंने एक शर्त पर इसे रखूंगी?”
“कैसी शर्त?”
“मैं यह पहन के दिखाउंगी तुझे और अगर तुझे अच्छी लगी तो मैं रख लुंगी.”
अशफ़ाक का गला सुख गया और उसने मेरी आँखों से आँखे मिलाई. मेरी आँखों में उसे मादकता ही दिखी होंगी.
“ठीक हैं भाभी.”
“मैं अभी आई इसे पहन के.”
मैं उठी और बगल वाले कमरे में जाके मैंने अपने कपडे उतार दिए. अशफ़ाक दरवाजे की दरार से मुझे नंगा देख रहा था वो मुझे पता था. उसकी आँख को मैंने दरार पर देखा था. और इसलिए मैं ज्यादा से ज्यादा समय नंगी रही और आहिस्ता आहिस्ता ब्रा पेंटी को पहना.
जैसे ही मैं दरवाजे की और बढ़ी अशफ़ाक वहां से भाग के वापस सोफे पर बैठ गया. मैंने दरवाजा खोला और अशफ़ाक के सामने ब्रा और पेंटी में आ गई. अशफ़ाक मुझे ताड़ ताड़ के देखने लगा. मेरे मोटे बूब्स स काली मखमली ब्रा में कयामत लग रहे थे. अशफ़ाक कभी मेरे बूब्स को देखता तो कभी मेरी फ्लेट पेट को. मैं जानती थी की उसका लंड मुझे ऐसे देख के खड़ा तो होना ही था.
“मैं कैसी लग रही हूँ अशफ़ाक?”
“फिर यह कैसे पहनेंगी वो, तुझे काफी टाइम लगेंगा यह साइज़ करने में!” मैंने डबल मीनिंग वाला डायलोग मारा और अशफ़ाक भी हंस पड़ा.
फिर मैंने काली पेंटी उठाई और उसे अपने ऊपर रखा. अशफ़ाक की नजर मेरे ऊपर ही थी.
“ये भी फिट बैठती हैं आप के ऊपर भाभी.”
“तू हुस्ना की साइज़ की जगह मेरी साइज़ का ले आया सब कुछ. वापस कर देना महंगा होंगा यह सब तो.”
” मुझे यह ख्याल पहले क्यूँ नहीं आया, अगर मैं दुबई से आप को फोन करता तो आप मेरी मदद कर देती ना भाभी.”
“अब तूने फोन नहीं किया तो मैं क्या कर सकती थी!”
“भाभी आप रख लो इसे, वैसे भी मैंने हुस्ना को नहीं बताया हैं इसके बारे में.”
“अरे मैं कैसे रख सकती हूँ इसे पागल, कोई भाभी को भी लौन्जरी गिफ्ट देता हैं क्या?”
“आप के ऊपर मस्त दिखती हैं भाभी, और मैं इसे वापस नहीं ले जाऊँगा.”
“नहीं अशफ़ाक बहुत महंगी लगती हैं ये तो.”
“आप के लिए क्या महंगा क्या सस्ता.”
“मैंने एक शर्त पर इसे रखूंगी?”
“कैसी शर्त?”
“मैं यह पहन के दिखाउंगी तुझे और अगर तुझे अच्छी लगी तो मैं रख लुंगी.”
अशफ़ाक का गला सुख गया और उसने मेरी आँखों से आँखे मिलाई. मेरी आँखों में उसे मादकता ही दिखी होंगी.
“ठीक हैं भाभी.”
“मैं अभी आई इसे पहन के.”
मैं उठी और बगल वाले कमरे में जाके मैंने अपने कपडे उतार दिए. अशफ़ाक दरवाजे की दरार से मुझे नंगा देख रहा था वो मुझे पता था. उसकी आँख को मैंने दरार पर देखा था. और इसलिए मैं ज्यादा से ज्यादा समय नंगी रही और आहिस्ता आहिस्ता ब्रा पेंटी को पहना.
जैसे ही मैं दरवाजे की और बढ़ी अशफ़ाक वहां से भाग के वापस सोफे पर बैठ गया. मैंने दरवाजा खोला और अशफ़ाक के सामने ब्रा और पेंटी में आ गई. अशफ़ाक मुझे ताड़ ताड़ के देखने लगा. मेरे मोटे बूब्स स काली मखमली ब्रा में कयामत लग रहे थे. अशफ़ाक कभी मेरे बूब्स को देखता तो कभी मेरी फ्लेट पेट को. मैं जानती थी की उसका लंड मुझे ऐसे देख के खड़ा तो होना ही था.
“मैं कैसी लग रही हूँ अशफ़ाक?”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.