14-03-2020, 07:19 PM
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जैसे ही हम सड़क पर पहुँचे.. तो दीदी बोली – छोटू ! भाई ऐसे तो हम लोग लेट हो जाएँगे, पहला पीरियड नही मिल पाएगा, वो भी मेरा तो फिज़िक्स का है..
मे – तो क्या करें आप ही बताओ..
वो – एक काम करते हैं, में आगे डंडे पर बैठ जाती हूँ.. कैसा रहेगा.
मे – मुझे कोई प्राब्लम नही है, आप बैठो.. तो वो आगे डंडे पर बैठ गयी और मे फिरसे साइकल चलाने लगा….!!
कॉलेज के लिए थोड़ा लेट हो रहा था तो मेने साइकल को तेज चलाने के लिए ज़्यादा ताक़त लगाई जिससे मेरे दोनो घुटने अंदर की तरफ हो जाते और सीना आगे करना पड़ता पेडल पर ज़्यादा दबाब डालने के लिए.
मेरे लेफ्ट पैर का घुटना दीदी के घुटनो में अड़ने लगा तो वो और थोड़ा पीछे को हो गयी, जिससे उनके कूल्हे राइट साइड को ज़यादा निकल आए और उनकी पीठ मेरे पेट से सटने लगी.
मेरी राइट साइड की जाँघ उनके कूल्हे को रब करने लगी और लेफ्ट पैर उनकी टाँगों को..
उनके कूल्हे से मेरी जाँघ के बार-बार टच होने से मेरे शरीर में कुच्छ तनाव सा बढ़ने लगा, और मेरी पॅंट में क़ैद मेरी लुल्ली, जो अब धीरे-2 आकर लेती जा रही थी थी अकड़ने लगी.
दीदी भी अब जान बूझकर अपनी पीठ को मेरे पेट और कमर से रगड़ने लगी, अपना सर उन्होने और थोड़ा पीछे कर लिया और अपना एक गाल मेरे चेहरे से टच करने लगी.
ज़ोर लगाने के लिए मे जब आगे को झुकता तो हम दोनो के गाल एक दूसरे से रगड़ जाते.. और पूरे शरीर में एक सनसनी सी फैलने लगती.
आधे रास्ते पहुँच, दीदी बोली- छोटू थोड़ा और तेज कर ना लेट हो रहे हैं.. तो मेने अपने दोनो हाथ हॅंडल के बीच की ओर लाया जिससे और अच्छे से दम लगा सकूँ..
लेकिन सही से पकड़ नही पा रहा था…. हॅंडल….! क्योंकि दीदी के दोनो बाजू बीच में आ रहे थे. तो उसने आइडिया निकाला और अपने दोनो बाजू मेरे बाजुओं के उपर से लेजाकर हॅंडल के दस्तानों को पकड़ लिया, जहाँ नोर्मली चलाने वाला पकड़ता है.
हॅंडल को बीच की तरफ पकड़कर अब साइकल चलाने में दम तो लग रहा था और साइकल भी अब बहुत तेज-तेज चल रही थी लेकिन अब मेरे लेफ्ट साइड की बाजू दीदी के बूब्स को रगड़ने लगी.
दूसरी ओर मेरी दाई जाँघ दीदी के मुलायम चूतड़ को रगड़ा दे रही थी..
मेरे शरीर का करेंट बढ़ता ही जा रहा था, उधर दीदी की तो आँखें ही बंद हो गयी, वो और ज़्यादा अपने बूब्स को जानबूझ कर मेरे बाजू पर दबाते हुए अपनी जांघों को ज़ोर-ज़ोर्से भींचने लगी.
उत्तेजना के मारे हम दोनो के ही शरीर गरम होने लगे थे.
कॉलेज पहुँच दीदी ने साइकल से उतरते ही मेरे गाल पर एक किस कर दिया और थॅंक यू बोलकर भागती हुई अपनी क्लास रूम में चली गयी.
छुट्टी के बाद लौटते वक़्त जब मेने दीदी को पुछा की आपने थॅंक्स क्यो बोला था, तो बोली – अरे यार समय पर कॉलेज पहुँचा दिया तूने इसके लिए और क्या..! वैसे तू क्या समझा था..?
मे – कुच्छ नही, मे क्या समझूंगा.., आज पहली बार आपने थॅंक्स बोला इसलिए पुछा. वो नज़र नीची करके स्माइल करने लगी.
घर लौटते वक़्त भी ऐसा ही कुच्छ हमारे साथ हुआ, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर दीदी ने अपनी लेफ्ट बाजू मेरी जाँघ पर ही रखड़ी थी और अपने अल्प-विकसित उभारों को मेरी बाजू से रग़ाद-2 कर खुद भी उत्तेजित होती रही और मुझे भी बहाल कर दिया.
अब ये हमारा रोज़ का ही रूटिन सा बन गया था, दिन में एक बार कम से कम मे भाभी का चुम्मा लेता, बदले में वो भी मेरे गाल काट कर अपने होठों से सहला देती, कभी-2 तो मे अपना सर या गाल या फिर मुँह उनके स्तनों पर रख कर रगड़ देता.
दूसरी तरफ दीदी और मे भी दिनों दिन मस्ती-मज़ाक में बढ़ते ही जा रहे थे, लेकिन सीमा में रह कर.
ऐसे ही मस्ती मज़ाक में दिन गुज़रते चले गये, और ये साल बीत गया, मे अब नयी क्लास में आ गया था, दीदी 12थ में पहुँच गयी, ये साल हम दोनो का ही बोर्ड था, सो शुरू से ही पढ़ाई पर फोकस करना शुरू कर दिया….
उधर बड़े भैया का बी.एड कंप्लीट होने को था, घर में खर्चे भी कंट्रोल में होने शुरू हो गये थे क्योंकि बड़े भैया की पढ़ाई का खर्चा तो अब नही रहा था, और आने वाले कुच्छ महीनो में अब वो भी जॉब करने वाले थे.
हम दोनो भाई-बेहन ने भाभी से जुगाड़ लगा कर एक व्हीकल लेने के लिए पहले भैया के कानो तक बात पहुँचाई और फिर हम सबने मिलकर बाबूजी को भी कन्विन्स कर लिया, जिसमें छोटे भैया का भी सपोर्ट रहा.
अब घर के सभी सदस्यों की बात टालना भी बाबूजी के लिए संभव नही था, ऐसा नही था कि उनको पैसों का कोई प्राब्लम था, लेकिन एक डर था कि मे व्हीकल मॅनेज कर पाउन्गा या नही.
सबके रिक्वेस्ट करने पर वो मान गये और उन्होने एक बिना गियर की टू वीलर दिलवा दी, अब हम दोनो भाई-बेहन टाइम से कॉलेज पहुँच जाते थे.
दीदी ने भी चलाना सीख लिया तो कभी मे ले जाता और कभी वो, जब मे चलाता तो वो मेरे से चिपक कर बैठती और अपने नये विकसित हो रहे उरोजो को मेरी पीठ से सहला देती.
जब वो चलती तो जानबूझ कर अपने हिप्स मेरे आगे रगड़ देती, जिससे मेरा पप्पू बेचारा पॅंट में टाइट हो जाता और कुच्छ और ना पता देख मन मसोस कर रह जाता, लेकिन दीदी उसे अच्छे से फील करके गरम हो जाती.
ऐसे ही कुच्छ महीने और निकल गये, इतने में बड़े भैया को भी एक इंटर कॉलेज में लेक्चरर की जॉब मिल गयी, लेकिन शहर में ही जिससे उनके घर आने के रूटिन में कोई तब्दीली नही हुई.
इस बार कॉलेज में आन्यूयल स्पोर्ट्स दे मानने का आदेश आया था, रूरल एरिया का कॉलेज था सो सभी देहाती टाइप के देशी गेम होने थे, जैसे खो-खो, कबड्डी, लोंग जंप, हाइ जंप…लड़कियों के लिए अंताक्षरी, संगीत, डॅन्स…
मेरी बॉडी अपने क्लास के हिसाब से बहुत अच्छी थी, सो स्पोर्ट्स टीचर ने मेरे बिना पुच्छे ही मेरा नाम स्पोर्ट्स के लिए लिख लिया, और सबसे प्रॅक्टीस कराई, जिसमें
मेरा कबड्डी और लोंग जंप में अच्छा प्रद्र्षन रहा और मे उन दोनो खेलों के लिए सेलेक्ट कर लिया.
सारे दिन खेलते रहने की वजह से शरीर तक के चूर हो रहा था, पहले से कभी कुच्छ खेलता नही था, तो थकान ज़्यादा महसूस हो रही थी.
कॉलेज से लौटते ही मेने बॅग एक तरफ को पटका और बिना चेंज किए ही आँगन में पड़ी चारपाई पर पसर गया. सारे कपड़े पसीने और मिट्टी से गंदे हो रखे थे.
थोड़ी ही देर में मेरी झपकी लग गयी, जब भाभी ने आकर मुझे इस हालत में देखा तो वो मेरे बगल में आकर बैठ गयी, और मेरे बालों में उंगलिया फिराते हुए मुझे आवाज़ दी.
मेने आँखें खोल कर उनकी तरफ देखा तो वो बोली – क्या हुआ, आज ऐसे आते ही पड़ गये, ना कपड़े चेंज किए, और देखो तो क्या हालत बना रखी है कपड़ों की.. बॅग भी ऐसे ही उल्टा पड़ा है…
किसी से कुस्ति करके आए हो..? मेने कहा नही भाभी, असल में आज कॉलेज में स्पोर्ट्स दे के लिए गेम हुए, और मेरा दो खेलों के लिए सेलेक्षन हो गया है.
सारे दिन खेलते-2 बदन टूट रहा है, कभी खेलता नही हूँ ना.. इसलिए.. प्लीज़ थोड़ी देर सोने दो ना भाभी..
अरे.. ! ये तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन ऐसे में कैसे नींद आ सकती है, शरीर में कीटाणु लगे हुए हैं, चलो उठो ! पहले नहा के फ्रेश हो जाओ, कुच्छ खा पीलो, फिर देखना अपनी भाभी के हाथों का चमत्कार, कैसे शरीर की थकान छुमन्तर करती हूँ.. चलो.. अब उठो..!
और उन्होने जबर्दुस्ति हाथ से पकड़ कर मुझे खड़ा कर दिया, और पीठ पर हाथ रख कर जबर्जस्ति पीछे से धकेलते हुए बाथरूम में भेज दिया….!
जैसे ही हम सड़क पर पहुँचे.. तो दीदी बोली – छोटू ! भाई ऐसे तो हम लोग लेट हो जाएँगे, पहला पीरियड नही मिल पाएगा, वो भी मेरा तो फिज़िक्स का है..
मे – तो क्या करें आप ही बताओ..
वो – एक काम करते हैं, में आगे डंडे पर बैठ जाती हूँ.. कैसा रहेगा.
मे – मुझे कोई प्राब्लम नही है, आप बैठो.. तो वो आगे डंडे पर बैठ गयी और मे फिरसे साइकल चलाने लगा….!!
कॉलेज के लिए थोड़ा लेट हो रहा था तो मेने साइकल को तेज चलाने के लिए ज़्यादा ताक़त लगाई जिससे मेरे दोनो घुटने अंदर की तरफ हो जाते और सीना आगे करना पड़ता पेडल पर ज़्यादा दबाब डालने के लिए.
मेरे लेफ्ट पैर का घुटना दीदी के घुटनो में अड़ने लगा तो वो और थोड़ा पीछे को हो गयी, जिससे उनके कूल्हे राइट साइड को ज़यादा निकल आए और उनकी पीठ मेरे पेट से सटने लगी.
मेरी राइट साइड की जाँघ उनके कूल्हे को रब करने लगी और लेफ्ट पैर उनकी टाँगों को..
उनके कूल्हे से मेरी जाँघ के बार-बार टच होने से मेरे शरीर में कुच्छ तनाव सा बढ़ने लगा, और मेरी पॅंट में क़ैद मेरी लुल्ली, जो अब धीरे-2 आकर लेती जा रही थी थी अकड़ने लगी.
दीदी भी अब जान बूझकर अपनी पीठ को मेरे पेट और कमर से रगड़ने लगी, अपना सर उन्होने और थोड़ा पीछे कर लिया और अपना एक गाल मेरे चेहरे से टच करने लगी.
ज़ोर लगाने के लिए मे जब आगे को झुकता तो हम दोनो के गाल एक दूसरे से रगड़ जाते.. और पूरे शरीर में एक सनसनी सी फैलने लगती.
आधे रास्ते पहुँच, दीदी बोली- छोटू थोड़ा और तेज कर ना लेट हो रहे हैं.. तो मेने अपने दोनो हाथ हॅंडल के बीच की ओर लाया जिससे और अच्छे से दम लगा सकूँ..
लेकिन सही से पकड़ नही पा रहा था…. हॅंडल….! क्योंकि दीदी के दोनो बाजू बीच में आ रहे थे. तो उसने आइडिया निकाला और अपने दोनो बाजू मेरे बाजुओं के उपर से लेजाकर हॅंडल के दस्तानों को पकड़ लिया, जहाँ नोर्मली चलाने वाला पकड़ता है.
हॅंडल को बीच की तरफ पकड़कर अब साइकल चलाने में दम तो लग रहा था और साइकल भी अब बहुत तेज-तेज चल रही थी लेकिन अब मेरे लेफ्ट साइड की बाजू दीदी के बूब्स को रगड़ने लगी.
दूसरी ओर मेरी दाई जाँघ दीदी के मुलायम चूतड़ को रगड़ा दे रही थी..
मेरे शरीर का करेंट बढ़ता ही जा रहा था, उधर दीदी की तो आँखें ही बंद हो गयी, वो और ज़्यादा अपने बूब्स को जानबूझ कर मेरे बाजू पर दबाते हुए अपनी जांघों को ज़ोर-ज़ोर्से भींचने लगी.
उत्तेजना के मारे हम दोनो के ही शरीर गरम होने लगे थे.
कॉलेज पहुँच दीदी ने साइकल से उतरते ही मेरे गाल पर एक किस कर दिया और थॅंक यू बोलकर भागती हुई अपनी क्लास रूम में चली गयी.
छुट्टी के बाद लौटते वक़्त जब मेने दीदी को पुछा की आपने थॅंक्स क्यो बोला था, तो बोली – अरे यार समय पर कॉलेज पहुँचा दिया तूने इसके लिए और क्या..! वैसे तू क्या समझा था..?
मे – कुच्छ नही, मे क्या समझूंगा.., आज पहली बार आपने थॅंक्स बोला इसलिए पुछा. वो नज़र नीची करके स्माइल करने लगी.
घर लौटते वक़्त भी ऐसा ही कुच्छ हमारे साथ हुआ, बल्कि इससे भी आगे बढ़कर दीदी ने अपनी लेफ्ट बाजू मेरी जाँघ पर ही रखड़ी थी और अपने अल्प-विकसित उभारों को मेरी बाजू से रग़ाद-2 कर खुद भी उत्तेजित होती रही और मुझे भी बहाल कर दिया.
अब ये हमारा रोज़ का ही रूटिन सा बन गया था, दिन में एक बार कम से कम मे भाभी का चुम्मा लेता, बदले में वो भी मेरे गाल काट कर अपने होठों से सहला देती, कभी-2 तो मे अपना सर या गाल या फिर मुँह उनके स्तनों पर रख कर रगड़ देता.
दूसरी तरफ दीदी और मे भी दिनों दिन मस्ती-मज़ाक में बढ़ते ही जा रहे थे, लेकिन सीमा में रह कर.
ऐसे ही मस्ती मज़ाक में दिन गुज़रते चले गये, और ये साल बीत गया, मे अब नयी क्लास में आ गया था, दीदी 12थ में पहुँच गयी, ये साल हम दोनो का ही बोर्ड था, सो शुरू से ही पढ़ाई पर फोकस करना शुरू कर दिया….
उधर बड़े भैया का बी.एड कंप्लीट होने को था, घर में खर्चे भी कंट्रोल में होने शुरू हो गये थे क्योंकि बड़े भैया की पढ़ाई का खर्चा तो अब नही रहा था, और आने वाले कुच्छ महीनो में अब वो भी जॉब करने वाले थे.
हम दोनो भाई-बेहन ने भाभी से जुगाड़ लगा कर एक व्हीकल लेने के लिए पहले भैया के कानो तक बात पहुँचाई और फिर हम सबने मिलकर बाबूजी को भी कन्विन्स कर लिया, जिसमें छोटे भैया का भी सपोर्ट रहा.
अब घर के सभी सदस्यों की बात टालना भी बाबूजी के लिए संभव नही था, ऐसा नही था कि उनको पैसों का कोई प्राब्लम था, लेकिन एक डर था कि मे व्हीकल मॅनेज कर पाउन्गा या नही.
सबके रिक्वेस्ट करने पर वो मान गये और उन्होने एक बिना गियर की टू वीलर दिलवा दी, अब हम दोनो भाई-बेहन टाइम से कॉलेज पहुँच जाते थे.
दीदी ने भी चलाना सीख लिया तो कभी मे ले जाता और कभी वो, जब मे चलाता तो वो मेरे से चिपक कर बैठती और अपने नये विकसित हो रहे उरोजो को मेरी पीठ से सहला देती.
जब वो चलती तो जानबूझ कर अपने हिप्स मेरे आगे रगड़ देती, जिससे मेरा पप्पू बेचारा पॅंट में टाइट हो जाता और कुच्छ और ना पता देख मन मसोस कर रह जाता, लेकिन दीदी उसे अच्छे से फील करके गरम हो जाती.
ऐसे ही कुच्छ महीने और निकल गये, इतने में बड़े भैया को भी एक इंटर कॉलेज में लेक्चरर की जॉब मिल गयी, लेकिन शहर में ही जिससे उनके घर आने के रूटिन में कोई तब्दीली नही हुई.
इस बार कॉलेज में आन्यूयल स्पोर्ट्स दे मानने का आदेश आया था, रूरल एरिया का कॉलेज था सो सभी देहाती टाइप के देशी गेम होने थे, जैसे खो-खो, कबड्डी, लोंग जंप, हाइ जंप…लड़कियों के लिए अंताक्षरी, संगीत, डॅन्स…
मेरी बॉडी अपने क्लास के हिसाब से बहुत अच्छी थी, सो स्पोर्ट्स टीचर ने मेरे बिना पुच्छे ही मेरा नाम स्पोर्ट्स के लिए लिख लिया, और सबसे प्रॅक्टीस कराई, जिसमें
मेरा कबड्डी और लोंग जंप में अच्छा प्रद्र्षन रहा और मे उन दोनो खेलों के लिए सेलेक्ट कर लिया.
सारे दिन खेलते रहने की वजह से शरीर तक के चूर हो रहा था, पहले से कभी कुच्छ खेलता नही था, तो थकान ज़्यादा महसूस हो रही थी.
कॉलेज से लौटते ही मेने बॅग एक तरफ को पटका और बिना चेंज किए ही आँगन में पड़ी चारपाई पर पसर गया. सारे कपड़े पसीने और मिट्टी से गंदे हो रखे थे.
थोड़ी ही देर में मेरी झपकी लग गयी, जब भाभी ने आकर मुझे इस हालत में देखा तो वो मेरे बगल में आकर बैठ गयी, और मेरे बालों में उंगलिया फिराते हुए मुझे आवाज़ दी.
मेने आँखें खोल कर उनकी तरफ देखा तो वो बोली – क्या हुआ, आज ऐसे आते ही पड़ गये, ना कपड़े चेंज किए, और देखो तो क्या हालत बना रखी है कपड़ों की.. बॅग भी ऐसे ही उल्टा पड़ा है…
किसी से कुस्ति करके आए हो..? मेने कहा नही भाभी, असल में आज कॉलेज में स्पोर्ट्स दे के लिए गेम हुए, और मेरा दो खेलों के लिए सेलेक्षन हो गया है.
सारे दिन खेलते-2 बदन टूट रहा है, कभी खेलता नही हूँ ना.. इसलिए.. प्लीज़ थोड़ी देर सोने दो ना भाभी..
अरे.. ! ये तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन ऐसे में कैसे नींद आ सकती है, शरीर में कीटाणु लगे हुए हैं, चलो उठो ! पहले नहा के फ्रेश हो जाओ, कुच्छ खा पीलो, फिर देखना अपनी भाभी के हाथों का चमत्कार, कैसे शरीर की थकान छुमन्तर करती हूँ.. चलो.. अब उठो..!
और उन्होने जबर्दुस्ति हाथ से पकड़ कर मुझे खड़ा कर दिया, और पीठ पर हाथ रख कर जबर्जस्ति पीछे से धकेलते हुए बाथरूम में भेज दिया….!