09-03-2020, 06:24 PM
होली के रंग -
अनुज़ा
ये कहानी मेरी है, मेरी चन्दा भाभी की है,
और है मेरे दो दोस्तों की, मनोज़ और तरंग की।
लेकिन वो सब अपने-अपने बारे में बतायेंगे ही, पहले मैं अपने बारे में बता दूं।
ए॰स॰ल॰ चैट में कहते हैं ना… एज, सेक्स, लोकेशन (उम्र, लिंग, स्थान)।
एज… उंह्ह… लड़कियों से उमर नहीं पूछते। हाँ, चलिये मैं बता देती हूं की मैं ग्रेजुएशन कर रही हूं, पहला साल है, पिछले साल ही मैंने डी॰पी॰एस॰ से 12वीं पास की है। कॉलेज से कालेज आने में एकदम से फर्क पड़ जाता है, है ना? ना युनिफार्म का चक्कर…
ओके ओके पहले अपने बारे में और सब बता दूं।
लगती कैसी हूं? अच्छी लगती हूं और क्या?
हाँ करीना कपूर नहीं हूं, लम्बाई 5’6”, गोरी, नहीं बहुत स्लिम नहीं, लेकिन जहां पे मोटी हूं…
मेरे दोस्त कहते हैं कि अच्छा लगता है, और सहेलियां कहती हैं… कहती क्या जलती हैं सब, एनोरेक्सिक।
एक-दो तो वहां पिंच भी कर देती हैं। इस होली में दुष्टों ने मुझे ‘बिग बी’ की टाइटिल दी थी।
हाँ हाँ , जो आप जानना चाहते हैं न , सब समझती हूँ मैं , ... पिक्स से तो अंदाज लग ही गया होगा आपको ,... मेरी फिगर मेरी क्लास की लड़कियों से २० नहीं २२ है , ... इसलिए भौंरे भी कुछ ज्यादा ही
लेकिन मुझे अच्छा लगता है, जब सब लड़कों की निगाहें वहीं पे आकर टंग जाती हैं।
शुरू-शुरू में जब मैं हाई-कॉलेज में पढ़ती थी, तभी से कालोनी के लड़के छेड़ते थे-
“रेशमा जवान हो गई…”
मैं कॉलेज की किताबें और बैग से सीना दबा लेती तो कोई बोलता-
“अरे दबवाना है तो हम हैं ना…”
मैं और भाभी अकेले रहते हैं।
भैया दुबई में काम करते हैं और साल में दो बार आते हैं, 10-15 दिनों के लिये और उन दिनों तो भाभी तो बस पागल हो जाती हैं, दिन रात बस एक ही काम।
और उन दिनों मैं बहुत सम्हल के अपने कमरे से बाहर निकलती हूं, कहीं वो दोनों डिस्टर्ब ना हो जायं?
कई बार तो लाबी में ही… ड्राइंग रूम में… यहां तक की किचेन में भी…
कई बार जब मैं खाना बनाने में भाभी की हेल्प करती तो वो शर्माकर कहतीं-
“हे, तूने कुछ देखा तो नहीं?”
और मैं हँसकर कहती-
“नहीं भाभी कुछ नहीं… लेकिन जब आप किचेन में चाय बनाने आईं थीं तो इस तरह झुकी क्यों थीं?
और नाइटी भी आपकी कमर तक ऊपर, और भैया पीछे से… और हाँ लाबी में…”
वो बनावटी गुस्से से कहतीं-
“ये बेलन डाल दूंगी तेरे में…”
तो मैं हँसकर हल्के से कान में कहती-
“डालने वाला आ गया है…”
क्योंकी हर रोज 8:00 बजते-बजते भैया को खाने की जल्दी रहती थी।
भाभी मुझसे 5-6 साल बड़ी होंगी लेकिन मेरी पक्की दोस्त, गोरी, थोड़ा गदराया शरीर और एकदम खुली।
मुझे याद है उनकी शादी में… मैं हाई-कॉलेज में थी, लेकिन मेरा नाम ले-लेकर एक से एक गंदी गालियां दी गईं।
उस समय तो मुझे बुरा लगा, लेकिन बाद में मजा आने लगा। हम दो ही लोग तो थे घर में।
भाभी मुझे चिढ़ातीं-
“अनुज़ा तेरी भो… अनुज़ा तेरी भो… …”
और जब मैं चिढ़ जाती तो गातीं-
“अनुज़ा तेरी भोली सुरतिया…”
कमरा तो मेरा अलग था लेकिन जब भैया बाहर होते थे तो मैं सोती भाभी के साथ ही थी, और सोते समय हर तरह की बातें…
भाभी मुझे इतना छेड़ती थीं, बार-बार पूछतीं है तेरा कोई ब्वायफ्रेंड है की नहीं?
और जब से मैं कालेज में पहुँच गई तो और ज्यादा।
कई बार तो मेरी चड्ढी के ऊपर से हाथ दबाकर कहतीं-
“हे, कब तक बेचारी को भूखी रखेगी? इंटर पास कर लिया, और इंटर-कोर्स नहीं किया। अब चौदहवें में पहुँचने वाली है अब तो चु… …”
और मैं उनका मुँह बंद कर देती।
हाथ छुड़ाकर वो बोलतीं-
“अरे आजकल तो लड़कियां हाई-कॉलेज में पहुँचती हैं तो एक दो यार पाल लेती हैं और तू तो अब कालेज में पहुँच गई है… मैं मान नहीं सकती की तेरे यार नहीं हैं, और फिर तेरा ये गदराया जोबन…”
बात बदलने के लिये मैं कहती-
“भाभी, आपका मन नहीं करता?”
तो वो साफ-साफ बोलतीं-
“यार, सच बोलूं तो मन तो बहुत करता है… इसीलिये तो जब तेरे भैया आते हैं तो न दिन देखते हैं न रात… न वो न मैं…”
“और ये भी नहीं की एक जवान ननद घर में है…”
मैंने चिढ़ाया।
तो वो बोलीं- “अरे उसके लिये तो खास तौर पे… उसकी तो ट्रेनिंग हो जाती है। क्या कहते हैं आजकल सेक्स एजुकेशन…”
बात काटकर मैं फिर मुद्दे पे लाती-
“भाभी, मुझे आप बोलती रहती हैं ब्वायफ्रेंड… ब्वायफ्रेंड, तो आप क्यों नहीं पटा लेतीं?
आप ही तो कहती हैं की तुम्हारे भैया को वहां कोई कमी नहीं…”
“चल छोड़…”
और धौल मारतीं बोलतीं-
“हाँ, तू ब्वायफ्रेंड पटा ले तो मैं भी हिस्सा बंटा लूंगी। ननद के यार में तो भाभी का पूरा हिस्सा रहता है…”
अनुज़ा
ये कहानी मेरी है, मेरी चन्दा भाभी की है,
और है मेरे दो दोस्तों की, मनोज़ और तरंग की।
लेकिन वो सब अपने-अपने बारे में बतायेंगे ही, पहले मैं अपने बारे में बता दूं।
ए॰स॰ल॰ चैट में कहते हैं ना… एज, सेक्स, लोकेशन (उम्र, लिंग, स्थान)।
एज… उंह्ह… लड़कियों से उमर नहीं पूछते। हाँ, चलिये मैं बता देती हूं की मैं ग्रेजुएशन कर रही हूं, पहला साल है, पिछले साल ही मैंने डी॰पी॰एस॰ से 12वीं पास की है। कॉलेज से कालेज आने में एकदम से फर्क पड़ जाता है, है ना? ना युनिफार्म का चक्कर…
ओके ओके पहले अपने बारे में और सब बता दूं।
लगती कैसी हूं? अच्छी लगती हूं और क्या?
हाँ करीना कपूर नहीं हूं, लम्बाई 5’6”, गोरी, नहीं बहुत स्लिम नहीं, लेकिन जहां पे मोटी हूं…
मेरे दोस्त कहते हैं कि अच्छा लगता है, और सहेलियां कहती हैं… कहती क्या जलती हैं सब, एनोरेक्सिक।
एक-दो तो वहां पिंच भी कर देती हैं। इस होली में दुष्टों ने मुझे ‘बिग बी’ की टाइटिल दी थी।
हाँ हाँ , जो आप जानना चाहते हैं न , सब समझती हूँ मैं , ... पिक्स से तो अंदाज लग ही गया होगा आपको ,... मेरी फिगर मेरी क्लास की लड़कियों से २० नहीं २२ है , ... इसलिए भौंरे भी कुछ ज्यादा ही
लेकिन मुझे अच्छा लगता है, जब सब लड़कों की निगाहें वहीं पे आकर टंग जाती हैं।
शुरू-शुरू में जब मैं हाई-कॉलेज में पढ़ती थी, तभी से कालोनी के लड़के छेड़ते थे-
“रेशमा जवान हो गई…”
मैं कॉलेज की किताबें और बैग से सीना दबा लेती तो कोई बोलता-
“अरे दबवाना है तो हम हैं ना…”
मैं और भाभी अकेले रहते हैं।
भैया दुबई में काम करते हैं और साल में दो बार आते हैं, 10-15 दिनों के लिये और उन दिनों तो भाभी तो बस पागल हो जाती हैं, दिन रात बस एक ही काम।
और उन दिनों मैं बहुत सम्हल के अपने कमरे से बाहर निकलती हूं, कहीं वो दोनों डिस्टर्ब ना हो जायं?
कई बार तो लाबी में ही… ड्राइंग रूम में… यहां तक की किचेन में भी…
कई बार जब मैं खाना बनाने में भाभी की हेल्प करती तो वो शर्माकर कहतीं-
“हे, तूने कुछ देखा तो नहीं?”
और मैं हँसकर कहती-
“नहीं भाभी कुछ नहीं… लेकिन जब आप किचेन में चाय बनाने आईं थीं तो इस तरह झुकी क्यों थीं?
और नाइटी भी आपकी कमर तक ऊपर, और भैया पीछे से… और हाँ लाबी में…”
वो बनावटी गुस्से से कहतीं-
“ये बेलन डाल दूंगी तेरे में…”
तो मैं हँसकर हल्के से कान में कहती-
“डालने वाला आ गया है…”
क्योंकी हर रोज 8:00 बजते-बजते भैया को खाने की जल्दी रहती थी।
भाभी मुझसे 5-6 साल बड़ी होंगी लेकिन मेरी पक्की दोस्त, गोरी, थोड़ा गदराया शरीर और एकदम खुली।
मुझे याद है उनकी शादी में… मैं हाई-कॉलेज में थी, लेकिन मेरा नाम ले-लेकर एक से एक गंदी गालियां दी गईं।
उस समय तो मुझे बुरा लगा, लेकिन बाद में मजा आने लगा। हम दो ही लोग तो थे घर में।
भाभी मुझे चिढ़ातीं-
“अनुज़ा तेरी भो… अनुज़ा तेरी भो… …”
और जब मैं चिढ़ जाती तो गातीं-
“अनुज़ा तेरी भोली सुरतिया…”
कमरा तो मेरा अलग था लेकिन जब भैया बाहर होते थे तो मैं सोती भाभी के साथ ही थी, और सोते समय हर तरह की बातें…
भाभी मुझे इतना छेड़ती थीं, बार-बार पूछतीं है तेरा कोई ब्वायफ्रेंड है की नहीं?
और जब से मैं कालेज में पहुँच गई तो और ज्यादा।
कई बार तो मेरी चड्ढी के ऊपर से हाथ दबाकर कहतीं-
“हे, कब तक बेचारी को भूखी रखेगी? इंटर पास कर लिया, और इंटर-कोर्स नहीं किया। अब चौदहवें में पहुँचने वाली है अब तो चु… …”
और मैं उनका मुँह बंद कर देती।
हाथ छुड़ाकर वो बोलतीं-
“अरे आजकल तो लड़कियां हाई-कॉलेज में पहुँचती हैं तो एक दो यार पाल लेती हैं और तू तो अब कालेज में पहुँच गई है… मैं मान नहीं सकती की तेरे यार नहीं हैं, और फिर तेरा ये गदराया जोबन…”
बात बदलने के लिये मैं कहती-
“भाभी, आपका मन नहीं करता?”
तो वो साफ-साफ बोलतीं-
“यार, सच बोलूं तो मन तो बहुत करता है… इसीलिये तो जब तेरे भैया आते हैं तो न दिन देखते हैं न रात… न वो न मैं…”
“और ये भी नहीं की एक जवान ननद घर में है…”
मैंने चिढ़ाया।
तो वो बोलीं- “अरे उसके लिये तो खास तौर पे… उसकी तो ट्रेनिंग हो जाती है। क्या कहते हैं आजकल सेक्स एजुकेशन…”
बात काटकर मैं फिर मुद्दे पे लाती-
“भाभी, मुझे आप बोलती रहती हैं ब्वायफ्रेंड… ब्वायफ्रेंड, तो आप क्यों नहीं पटा लेतीं?
आप ही तो कहती हैं की तुम्हारे भैया को वहां कोई कमी नहीं…”
“चल छोड़…”
और धौल मारतीं बोलतीं-
“हाँ, तू ब्वायफ्रेंड पटा ले तो मैं भी हिस्सा बंटा लूंगी। ननद के यार में तो भाभी का पूरा हिस्सा रहता है…”