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Adultery हर ख्वाहिश पूरी की
#36
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हम दोनो तैयार होकर कॉलेज के लिए निकल लिए. दोनो एक ही साइकल से कॉलेज जाते थे, मे साइकल लेके घर से बाहर निकला तो देखा दीदी अपना बॅग लिए मेरे इंतजार में ही खड़ी थी.

मे भी अपने पिताजी और भाइयों की तरह काफ़ी तंदुरुस्त शरीर का था, इस उमर में भी मेरी हाइट भाभी के बराबर थी (5’5”) दीदी से लंबा था..

अच्छा खाना पीना दूध घी का, उपर से भाभी का एक्सट्रा लाड प्यार, तो थोड़ा भारी भी होता जा रहा था मेरा शरीर.

वैसे तो माँ का दर्जा तो कोई और नही ले सकता, पर सच कहूँ तो भाभी के लाड प्यार ने मुझे अपनी माँ की ममता को भी भूलने पर विवश कर दिया था.

मेने दीदी को अनदेखा करके साइकल लेके चल दिया, तो दीदी ने आवाज़ देकर रुकने को कहा और बोली – अरे ! मुझे कॉन ले जाएगा..? तू तो अकेला ही भगा जा रहा है..

मेने साइकल तो रोक ली लेकिन कोई जबाब नही दिया और उल्टे अपने गाल फूला लिए, जैसे मे उनसे बहुत ज़्यादा नाराज़ हूँ.

दीदी मेरे पास आई और अपने दोनो कानों को पकड़ कर सॉरी बोला – छोटू ! भैया अपनी दीदी को माफ़ कर्दे..! 

मेने कहा ठीक है.. माफ़ किया.. लेकिन मेरे हाथ में अभी भी दर्द है तो मुझसे डबल बिठा कर साइकल नही चलेगी, आप चलो…

मजबूरी में दीदी ने साइकल लेली, और में पीछे कॅरियर पर बैठ गया. गाओं से निकल कर हम सड़क पर आ गये, लेकिन दीदी की साँस फूलने लगी, और वो साइकल खड़ी करके हाँफने लगी…

आ..स्सा..आ..सससा.. उफ़फ्फ़…छोटू.. तू बहुत भारी है रे… मेरे से नही चलेगी.. तू जा अकेला.. मे पैदल ही आ जाती हूँ… ज्यदा दूर भी नही है… थोड़ा लेट ही होंगी और क्या..?

मे – हूंम्म… फिर शाम को बाबूजी से जूते पड़वाना हैं…! अगर उन्हें पता चला कि आप अकेली पैदल कॉलेज गयी हो तो जानती हो ना क्या करेंगे वो…?

वो – तो फिर क्या करें..? तेरे हाथ में तो दर्द है, डबल सवारी हॅंडल कैसे साधेगा तू..?

मे – एक काम हो सकता है, आप हॅंडल पकडो, मे कॅरियर पर दोनो ओर को पैर करके पेडल मारता हूँ..!

वो – चला पाएगा तू ऐसे.. ?

मे – हां आप शुरू करो.. . फिर हम ने ऐसे ही साइकल चलाना शुरू कर दिया, मे पीछे से पेडल मारने लगा, लेकिन बिना कुच्छ पकड़े ताक़त लग ही नही पा रही थी..

नोट : जिन लोगों ने इस तरह से साइकल चलाई हो वो इस सिचुयेशन को भली भाँति समझ सकते हैं..

मे – दीदी ! बिना कुच्छ पकड़े मेरी ताक़त पेडल के उपर नही लग पा रही, क्या करूँ?

दीदी- तो सीट को आगे से पकड़ ले..

मेने दोनो हाथों को सीट के आगे ले गया लेकिन उनकी दोनो जांघे बीच में आ रही थी, मेने कहा दीदी अपने पैर तो उपर करो, तो उन्होने अपने दोनो पैर उठा कर आगे सामने वाले फ्रेम के डंडे पर रख लिए..

मेने सीट के दोनो साइड से हाथ आगे ले जाकर अपने हाथों की उंगलियों को एक-दूसरे में फँसा लिया और साइकल पर पेडल मारने लगा, अब मुझे ताक़त लगाने में आसानी हो रही थी.

लेकिन दीदी अपने पैर ज़्यादा देर तक डंडे से टिका नही पाई और उनके पैर नीचे की ओर सरकने लगे जिससे उनकी मोटी-2 मुलायम जांघे मेरी कलाईयों पर टिक गयी.

जोरे लगाने में मेरा सर भी आगे पीछे को होता तो मेरी नाक और सर उनकी पीठ से टच होने लगते.

रामा को आज दूसरी बार अपने भाई के शरीर के टच का अनुभव हो रहा था, जो शुरू तो मजबूरी से हुआ लेकिन अब उसके कोमल मन की भावनाएँ कुच्छ और ही तरह से उठने लगी.

जांघों पर हाथों का स्पर्श, पीठ पर नाक और सर के बार टच होने से उसको सुबह अपने स्तनों पर हुए अपने भाई के हाथों का मसलना याद आने लगा, उसके कोमल अंगों में सुरसूराहट होने लगी.

ना चाहते हुए भी वो थोड़ा सा और आगे को खिसक गयी और आगे-पीछे हिला-हिलाकर अपनी मुनिया को अपने भाई की उंगलियों से टच करने लगी.

उसकी पेंटी में गीला पन का एहसास उसे साफ महसूस हुआ और वो मन ही मन गुड-गुडाने लगी. वो अपने आप को कोस रही थी कि क्यों उसने सुबह अपने भाई को नाराज़ किया, थोड़ी देर और अपने स्तनों को मसलवा लेती तो कितना मज़ा आता.

यही सब सोचती हुई वो मन ही मन खुश हो रही थी, और अब उसने अपने भाई को और अपने पास आने का मंसूबा बना लिया.

वो दोनो कॉलेज पहुँचे और अपनी-2 क्लास में जा कर पढ़ाई में लग गये.

उमर कोई भी हो, साथ के यार दोस्त सब तरह की बातें तो करते ही हैं, आप चाहो या ना चाहो, वो सब बातें आपको भी असर तो डालती ही हैं.

रामा की भी क्लास में कुच्छ ऐसी लड़कियाँ थी, जो इस उमर में भी लंड का स्वाद ले चुकी थी, और आपस में वो एक दूसरे से इस तरह की बातें भी करती थी.

तो ऐसा तो बिल्कुल भी नही था कि रामा को इन सब बातों की कोई समझ ही ना हो, लेकिन वो उन दूसरी लड़कियों जैसी नही थी की कहीं भी किसी के भी साथ मज़े ले सके.

उसके अपने घर के संस्कार इसके लिए कतई उसको इस तरह की इज़ाज़त नही दे सकते थे..

सारे दिन रामा का पढ़ाई में मन नही लगा, रह-रह कर आज उसको दिन की घटनयें याद आ रही थी, और उनसे पैदा हुई अनुभूतयों को सोच-2 कर रोमांचित होती रही.

टाय्लेट करते समय आज पहली बार उसका मन किया कि अपनी पूसी को सहलाया जाए, और ये ख्याल आते ही उसका हाथ स्वतः ही अपनी पयर मुनिया पर चला गया, और वो उसे सहलाने लगी. 

थोड़ा अच्छा भी लगा उसे, पर अब वो अपनी बंद आँखों से इस आभास को अपने भाई की उंगलियों के टच से हुई अनुभूति से कंपेर करने लगी…..!

कॉलेज 9 बजे सुबह शुरू होता था और 3 बजे ऑफ हो जाता था, छुट्टी के बाद दोनो भाई बेहन घर लौट लिए. रामा ने लौटते वक़्त का कुच्छ और ही प्लान सोच लिया था.

छुट्टी होते ही वो छोटू के पास आई जो स्टॅंड से अपनी साइकल निकाल कर पैदल ही गेट की तरफ आ रहा था. रामा पहले से ही गेट पर जाकर खड़ी हो गयी थी. 

अपना कॉलेज बॅग भी हॅड्ल पर लटकाते हुए बोली – भाई तेरे हाथ का दर्द अब कैसा है, कुच्छ कम हुआ या वैसा ही है..

मे – वैसे फील नही होता है, लेकिन कुच्छ करने पर थोड़ा दुख़्ता है.. 

रामा – मेने सोचा तुझे कॅरियर से पेडल मारने में थोड़ा ज़्यादा ताक़त लगानी पड़ रही थी ना सुबह, तो इधर से हम दोनो साथ में पेडल चलाएँगे…

मे – अरे ! लेकिन पेडल तो इतना छोटा है, उसपर दोनो के पैर कैसे आ पाएँगे..?

रामा – अरे ! तू देख तो सही, आ जाएँगे, मे अपनी एडी से ज़ोर लगाउन्गी, तू बाहर से पंजों से लगाना. हो जाएगा देखना.

तो वो सीट पर बैठ गयी और मे कॅरियर पर दोनो ओर पैर करके बैठ गया.

मे – लेकिन दीदी ! अब मे पाकडूँगा कैसे..?

रामा – तू मेरी जांघों के उपर से सीट को पकड़ ले… और उसने अपनी एडियों से साइकल आगे बढ़ाई, मेने भी उसकी एडियों की बगल से बाहर की तरफ अपने पंजे जमा लिए और हम दोनो मिलकर पेडलों पर ज़ोर लगाने लगे.

जैसे ही कॉलेज की भीड़ से बाहर निकले, रामा ने सीट पकड़ने के लिए कहा. मेने अपने दोनो हाथ उसकी कमर की साइड से लेजा कर सीट की आगे की नोक पर जमा लिए.

सुबह के मुकाबले अब मुझे ताक़त भी कम लगानी पड़ रही थी, रामा बोली- क्यों भाई अब तो ज़्यादा ज़ोर नही लगाना पड़ रहा तुझे…?

मे – हां दीदी ! अब सही है, और साइकल भी तेज चल रही है…

हम दोनो मिलकर साइकल चलने लगे, दीदी के शरीर से उठने वाले पसीने की गंध मेरी नाक से अंदर जा रही रही थी.. और धीरे-2 मेने अपना गाल उसकी पीठ पर टिका दिया.

उधर अपने भाई की बाजुओं का दबाब अपनी जांघों पर बिल्कुल उसकी पूसी के बगल से पाकर रामा की मुनिया में सुर-सुराहट होने लगी और वो उसे आगे-पीछे हिल-हिल कर उसके हाथों से रगड़ने लगी.

मज़े से उसकी आँखें बंद होने लगी, जिसकी वजह से साइकल लहराने लगी, छोटू को लगा कि साइकल गिरने वाली है, तो वो चिल्लाया – दीदी क्या कर रही हो..? साइकल गिर जाएगी..

अपने भाई की आवाज़ सुनकर रामा को होश आया और वो ठीक से बैठ कर हॅंडल पर फोकस करने लगी.

रामा – भाई तू मेरी पीठ से क्यों चिपका है.. ?

मे – अरे दीदी ! सीट पकड़ने के लिए हाथ आगे करूँगा तो मुझे भी आगे खिसक कर बैठना पड़ेगा ना..!

रामा – तो तू एक काम कर..! सीट की जगह मुझे पकड़ ले.. और अपने एक हाथ से मेरा उधर का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ के जोड़ पर अंदर की तरफ रख दिया और बोली- दूसरा हाथ भी ऐसे ही रख ले… ठीक है..

मेने हां बोलकर दूसरा हाथ भी ऐसे ही रख लिया, अब मेरे दोनो हाथों की उंगलिया एकदम उसकी पूसी के उपर थी, मेरे मन में ऐसी कोई भावना नही थी कि अपनी बेहन को टीज़ करूँ लेकिन वो आगे-पीछे होकर अब मेरे हाथों से अपनी मुनिया की फुल मसाज करा रही थी.

घर पहुँचते पहुँचते रामा इतनी एक्शिटेड हो गयी, की उसका फेस लाल भभुका हो गया, कान गरम हो गये, और उसकी पेंटी पूरी तरह गीली हो गयी, जो मुझे लगा शायद पसीने की वजह से हो. 

घर पहुँचते ही वो जल्दी से साइकल मुझे पकड़ा कर बाथरूम को भागी, और करीब 10 मिनिट बाद उसमें से निकली, तब तक मेने साइकल आँगन में खड़ी की, दोनो बाग उतारे, और अपने कपड़े निकाल कर फ्रेश होने बाथ रूम की तरफ गया, वो उसमें से निकल रही थी.

मेने पुछा- दीदी इतनी तेज़ी से बाथरूम में क्यों भागी..? तो वो बोली- अरे यार बहुत ज़ोर्से बाथरूम लगी थी….. मेने सोचा शायद ठीक ही कह रही होगी.

मे फ्रेश होकर भाभी के रूम में चला गया, वो बेसूध होकर सो रही थी, अब मुझे तो पता नही था कि बेचारी, रात भर भैया के साथ पलंग तोड़ कुश्ती खेलती रही हैं. 

सोते हुए वो इतनी प्यारी लग रही थी मानो कोई देवी की मूरत हो, साँसों के साथ उनका वक्ष उपर नीचे हो रहा था, जो आज कुच्छ ज़्यादा ही उठा हुआ लगा मुझे.

मे उनके पास बैठ गया और उनका एक हाथ अपने हाथों मे लेकर अपने गाल पर रख कर सहलाया और धीरे से आवाज़ लगाई… लेकिन वो गहरी नींद में थी सो कोई असर नही पड़ा.

तो मेने उनका हाथ हिलाकर थोड़ा उँची आवाज़ में पुकारा – भाभी ! भाभी .. उठिए ना… भूख लगी है.. खाना दो ..!

वो थोड़ा सा कुन्मुनाई और मेरी ओर करवट लेकर फिर सो गयी, करवट लेते समय उनका दूसरा हाथ मेरी जाँघ पर आ गया. उनका साड़ी का पल्लू सीने से अलग हो गया और ब्लाउस में कसे उनके उरोजो का उपरी हिस्सा लगभग 1/3 दिखाई पड़ने लगा.

दोनो उरोज एक-दूसरे से सट गये थे, अब उन दोनो के बीच एक पतली सी दरार जैसी बनी हुई थी.

मेरा मन किया कि इस दरार में उंगली डाल कर देखूं, लेकिन एक ममतामयी भाभी की छवि ने मुझे रोक दिया, और मे उनके पास से चला आया.

बाहर आकर देखा तो दीदी खाना लेकर खा रही थी, मेने कहा – मुझे नही बुला सकती थी खाने के लिए. 

वो बोली – मुझे लगा तू बिना भाभी के दिए नही खाएगा.. सो इसलिए नही पुछा, चल आजा मेरे साथ ही खाले दोनो मिलकर खाते हैं.

मे भी दीदी के साथ ही बैठ गया खाने और फिर हम दोनो बेहन भाई ने एक ही थाली में बैठ कर खाना खाया, जो मुझे कुच्छ ज़्यादा अच्छा लगा एक साथ खाने में.

आप भी कभी अपने परिवार के साथ एक थाली में ख़ाके देखना ज़्यादा टेस्टी लगेगा, ये मेरा अपना अनुभव है…
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RE: हर ख्वाहिश पूरी की - by nitya.bansal3 - 06-03-2020, 03:03 PM



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