23-02-2020, 05:10 PM
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शादी के समय मोहिनी एकदम पतली दुबली कमजोर सी लड़की, लगता था मानो किसी लकड़ी के फ्रेम पर बनारसी साड़ी टाँग दी हो, और वैसे भी कुच्छ ज़्यादा समय अपनी ससुराल में गुज़ार भी नही पाई, ये भी हो सकता है कि भाई राम मोहन अपनी पत्नी की शक्ल भी देख पाए थे कि नही.
अब गाओं की रस्मो-रिवाज.. निभानी तो थी ही. बेचारे राम मोहन… शादी हुई ना हुई एक बराबर.
खैर घर परिवार के लिए तो खुशी की बात थी, उनके भरे-पूरे परिवार में वो सबसे पहली शादी जो थी, तो स्वाभाविक था कि खूब धूम-धाम से खुशियाँ मनाई गयी. सभी चाचा भतीजों ने खूब बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया.
शादी के एक साल के अंदर ही राम मोहन का ग्रॅजुयेशन पूरा हो गया और अब वो बी.एड की पढ़ाई में जुट गये, पिता का प्लान उनको किसी कॉलेज में लेक्चरर बनाने का था.
अब कृष्णा कांत भी बड़े भाई के पास शहर पहुँच गये थे अपने ग्रॅजुयेशन करने के लिए,
सब कुच्छ सही चल रहा था, कि ना जाने विमला देवी को कोन्सि बीमारी ने घेर लिया, उन्होने बिस्तर ही पकड़ लिया, बहुत इलाज़ कराया लेकिन कोई फ़ायदा नही हुआ.
बेटे के गौने की तिथि में अभी 6 महीने वाकी थे लेकिन माँ की हालत दिनो दिन गिरती देख पिताजी ने बेटे का गौना अति-शीघ्र करने के लिए अपने समधी से बात की.
वो भी भले लोग समस्या को समझ, राज़ी हो गये और आनन-फानन में बेटे का गौना करा लिया, बहू के आते ही माँ विमला देवी परलोक सिधार गयी.
मोहिनी अभी खुद भी एक बच्ची ही थी, जो अभी 19 वे साल में चल ही रही थी, उसको अपने छोटी ननद और देवर को अपने बच्चों की तरह संभालना था… कैसे ? ये उसकी समझ में नही आ रहा था.
पति शहर में रहकर शिक्षा ले रहे थे, ससुर से घूँघट करना पड़ता था.
ससुर बहू के बीच का कम्यूनिकेशन ज़्यादा तर छोटे बेटे अंकुश के या ननद रमा के माध्यम से ही होता था.
वैसे ननद- भौजाई में 3-4 साल का ही एज डिफरेन्स था, रमा ने समझदारी दिखाते हुए, अपनी भाभी को अपनी दोस्त की तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया, जिसके चलते मोहिनी का दिल इस घर में लगने लगा, और जल्दी ही वो परिश्थितियो के हिसाब से ढलने लगी.
कुच्छ ही दिनो में अंकुश का अपनी भाभी के प्रति एक माँ बेटे जैसा लगाव हो गया, अब वो उसकी हर ख्वाइश का ध्यान रखती, अंकुश भी हर छोटी बड़ी ज़रूरतों के लिए अपनी भाभी को ही बोलता.
देवर भाभी का लगाव इतना बढ़ गया कि अब उसको अपनी भाभी के दुलार के वगैर नींद नही आती थी, कभी-2 तो वो उसकी गोद में ही सर रख कर सो जाता था. फिर वो बेचारी सोते हुए को जैसे-तैसे उठा कर उसके बिस्तर तक पहुँचाती या फिर वो खुद भी उसके बगल में ही सो जाती.
मोहिनी अब शादी के समय वाली दुबली पतली लड़की नही रही थी, बीते डेढ़ सालों में उसके शरीर में काफ़ी बदलाव आ गया था, वो अब एक सुंदर नयन नक्श की गोरी-चिटी मध्यम कद काठी 5’5” की हाइट 32-27-30 के फिगर वाली सुन्दर युवती हो गयी थी.
पतले-2 गुलाबी होठ, गोल चेहरा, हल्के भरे हुए गुलाबी गाल जिनमे दोनो साइड हँसने पर डिंपल पड़ते थे, सुराही दार लंबी गर्दन, कमर तक लंबे घने काले स्याह बाल, कुल मिलाकर एक पूर्ण युवती थी.
गौने के बाद अंकुश ने जब अपनी भाभी को बिना घूँघट के देखा तो वो उसे किसी देवी के मानिंद लगी, और वही छवि उसने अपने मनो-मस्तिष्क में उसकी बिठा ली…
पति-पत्नी का मिलन उनके गौने के भी काफ़ी दिनो के बाद ही हुआ था, क्योंकि सास के देहांत के बाद कुच्छ महीनो तक तो सभी शोक संतप्त ही थे.
राम मोहन जब भी घर आते थे, तो जैसे-तैसे सकुच-संकोच करके समय निकाल पाते, उपर से दुलारा देवर, जो हर समय अपनी प्यारी भाभी के दामन से ही चिपका रहता था.
माँ का दुलारा, सबसे छोटा बेटा ही होता है, उनकी मौत के बाद भाभी उसको संभालने में कोई कसर नही रखना चाहती थी, बेचारे राम मोहन संकोच वश कुच्छ कह भी नही पाते थे, बिन माँ का बच्चा वो भी छोटा भाई… कहें भी तो क्या..?
बहू के घर में रहते, पिता घर में कम ही आते थे… उनका ज़्यादा तर समय तो कॉलेज में बच्चों के बीच, उसके बाद खेतिवाड़ी की देखभाल में ही चला जाता था. घर वो बस खाने के लिए ही आते थे.
गौने के तीन महीने तक भी उनकी सुहागरात का कोई अता-पता नही था, फिर एक दिन रमा जो अब ऐसी परिस्थितियों को समझने लगी थी, उसने इशारों-2 में अपने छोटू (अंकुश को प्यार से सभी छोटू ही बुलाते थे) को समझाने की कोशिश की….
अगर आप लोगों की इज़ाज़त हो तो यहाँ से ये कहानी अंकुश (छोटू) की ज़ुबानी शुरू करता हूँ.. इज़ाज़त है ना..! ओके दॅन..
हम राम मोहन भैया को बड़े भैया और कृष्णा कांत भैया को छोटे भैया कह कर बुलाते हैं.
बड़े भैया हर शनिवार की शाम घर आते थे, और मंडे अर्ली मॉर्निंग निकल जाते थे.
एक दिन शनिवार देर शाम को भैया घर आने वाले थे, मे और भाभी आपस में बातें करते हुए, मस्ती मज़ाक भी कर रहे थे.
भाभी जब हसती हैं तो उनके दोनो गालों में गड्ढे (डिम्पले) पड़ते हैं, मे उनमें अपनी उंगली घुसा कर हल्के-2 सहला देता था, तो भाभी और ज़्यादा मस्ती करने लगती.
तो उस दिन भैया आने वाले थे, रमा दीदी ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया और बोली – छोटू ! भैया मेरी एक बात मानेगा..?
मे – हां ! दीदी बोलो क्या बात है…?
रामा – बड़े भैया जब आते हैं ना तब तू ना ! थोड़ा भाभी से अलग रहा कर..!
मे भोलेपन से बोला – क्यों दीदी ? ऐसा क्यों बोल रही हो..? उन्होने तो मुझे कभी ऐसा बोला नही ..!
रामा – वो शर्म की वजह से कुच्छ नही बोलती, तू ना ! उतने टाइम मेरे पास आकर पढ़ लिया कर…!
मे – नही दीदी ! मुझे तो भाभी के पास बैठ कर पढ़ना ज़्यादा अच्छा लगता है..
रामा – ओफफफू…तू समझा कर पागल..! देख भैया उनके पति हैं ना !
मे – तो उसमें क्या..? मे थोड़ी ना उनको भाभी से बात करने के लिए ना बोलता हूँ..!
रामा – तू बिल्कुल पागल ही है… अरे बुद्धू.. पति-पत्नी अकेले में ही ज़्यादा अच्छे से बात कर पाते हैं.. ! अब बोल मानेगा ना मेरी बात..!
मे – ठीक है दीदी, मे भाभी से बोलके आपके पास आ जाउन्गा.. लेकिन भाभी की तरह आपको मेरे साथ मस्ती करनी पड़ेगी जब बोर हो जाउन्गा तो..
रामा – ठीक है ! मेरा प्यारा छोटू कितना समझदार है..! चल अब तू खेलने जा और आज हम दोनो रात को एक साथ बैठ कर पढ़ेंगे.. ओके.
मे उनको ओके बोलकर बाहर खेलने चला गया. वैसे मे बहुत कम ही साथ के मोहल्ले के बच्चो के साथ खेलता था, क्योंकि वो सब आवारा किस्म के थे, पढ़ने लिखने से उनको कोई मतलब नही था.
उनके परिवार में भी कोई पढ़ने लिखने वाला नही था, जो उनको रोके. इसलिए बाबूजी (पिताजी) ज़्यादा खेलने भी नही देते ऐसे बच्चों के साथ.
उस दिन देर शाम भैया घर आए, हम सबने मिलकर खाना खाया, बाबूजी ने भैया से दोनो भाइयों की पढ़ाई लिखाई के बारे में बात-चीत की फिर कुच्छ देर खाने के बाद भी बैठे साथ में.
भाभी और दीदी ने मिलकर घर का काम निपटाया, फिर जब बाबूजी, बाहर चले गये तो दीदी ने मुझे अपने पास पढ़ने के बहाने से बुला लिया. हम दोनो पढ़ाई में लग गये.
जब हम सब वहाँ से चले गये, भाभी किचेन में बर्तन साफ कर रही थी, भैया ने चुपके से उनको पीछे से जाकड़ लिया और उनके गले पर किस कर लिया.
अचानक बिना किसी उम्मीद के भाभी को एक झटका सा लगा और वो हड़बड़ा कर पलट गयी, हड़बड़ाहट में उनका सर भैया की नाक में लगा, भैया हाथों से नाक दबाए खड़े रह गये, दर्द से उनकी आँखों में पानी आ गया..
भाभी झट से उनके पैरों में गिर गयी और गिडगिडाते हुए बोली- सॉरी जी ! माफ़ करदो ! मुझे नही पता था कि आप इस तरह से….! मे डर गयी थी कि पता नही कॉन…आ गया…?
शादी के समय मोहिनी एकदम पतली दुबली कमजोर सी लड़की, लगता था मानो किसी लकड़ी के फ्रेम पर बनारसी साड़ी टाँग दी हो, और वैसे भी कुच्छ ज़्यादा समय अपनी ससुराल में गुज़ार भी नही पाई, ये भी हो सकता है कि भाई राम मोहन अपनी पत्नी की शक्ल भी देख पाए थे कि नही.
अब गाओं की रस्मो-रिवाज.. निभानी तो थी ही. बेचारे राम मोहन… शादी हुई ना हुई एक बराबर.
खैर घर परिवार के लिए तो खुशी की बात थी, उनके भरे-पूरे परिवार में वो सबसे पहली शादी जो थी, तो स्वाभाविक था कि खूब धूम-धाम से खुशियाँ मनाई गयी. सभी चाचा भतीजों ने खूब बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया.
शादी के एक साल के अंदर ही राम मोहन का ग्रॅजुयेशन पूरा हो गया और अब वो बी.एड की पढ़ाई में जुट गये, पिता का प्लान उनको किसी कॉलेज में लेक्चरर बनाने का था.
अब कृष्णा कांत भी बड़े भाई के पास शहर पहुँच गये थे अपने ग्रॅजुयेशन करने के लिए,
सब कुच्छ सही चल रहा था, कि ना जाने विमला देवी को कोन्सि बीमारी ने घेर लिया, उन्होने बिस्तर ही पकड़ लिया, बहुत इलाज़ कराया लेकिन कोई फ़ायदा नही हुआ.
बेटे के गौने की तिथि में अभी 6 महीने वाकी थे लेकिन माँ की हालत दिनो दिन गिरती देख पिताजी ने बेटे का गौना अति-शीघ्र करने के लिए अपने समधी से बात की.
वो भी भले लोग समस्या को समझ, राज़ी हो गये और आनन-फानन में बेटे का गौना करा लिया, बहू के आते ही माँ विमला देवी परलोक सिधार गयी.
मोहिनी अभी खुद भी एक बच्ची ही थी, जो अभी 19 वे साल में चल ही रही थी, उसको अपने छोटी ननद और देवर को अपने बच्चों की तरह संभालना था… कैसे ? ये उसकी समझ में नही आ रहा था.
पति शहर में रहकर शिक्षा ले रहे थे, ससुर से घूँघट करना पड़ता था.
ससुर बहू के बीच का कम्यूनिकेशन ज़्यादा तर छोटे बेटे अंकुश के या ननद रमा के माध्यम से ही होता था.
वैसे ननद- भौजाई में 3-4 साल का ही एज डिफरेन्स था, रमा ने समझदारी दिखाते हुए, अपनी भाभी को अपनी दोस्त की तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया, जिसके चलते मोहिनी का दिल इस घर में लगने लगा, और जल्दी ही वो परिश्थितियो के हिसाब से ढलने लगी.
कुच्छ ही दिनो में अंकुश का अपनी भाभी के प्रति एक माँ बेटे जैसा लगाव हो गया, अब वो उसकी हर ख्वाइश का ध्यान रखती, अंकुश भी हर छोटी बड़ी ज़रूरतों के लिए अपनी भाभी को ही बोलता.
देवर भाभी का लगाव इतना बढ़ गया कि अब उसको अपनी भाभी के दुलार के वगैर नींद नही आती थी, कभी-2 तो वो उसकी गोद में ही सर रख कर सो जाता था. फिर वो बेचारी सोते हुए को जैसे-तैसे उठा कर उसके बिस्तर तक पहुँचाती या फिर वो खुद भी उसके बगल में ही सो जाती.
मोहिनी अब शादी के समय वाली दुबली पतली लड़की नही रही थी, बीते डेढ़ सालों में उसके शरीर में काफ़ी बदलाव आ गया था, वो अब एक सुंदर नयन नक्श की गोरी-चिटी मध्यम कद काठी 5’5” की हाइट 32-27-30 के फिगर वाली सुन्दर युवती हो गयी थी.
पतले-2 गुलाबी होठ, गोल चेहरा, हल्के भरे हुए गुलाबी गाल जिनमे दोनो साइड हँसने पर डिंपल पड़ते थे, सुराही दार लंबी गर्दन, कमर तक लंबे घने काले स्याह बाल, कुल मिलाकर एक पूर्ण युवती थी.
गौने के बाद अंकुश ने जब अपनी भाभी को बिना घूँघट के देखा तो वो उसे किसी देवी के मानिंद लगी, और वही छवि उसने अपने मनो-मस्तिष्क में उसकी बिठा ली…
पति-पत्नी का मिलन उनके गौने के भी काफ़ी दिनो के बाद ही हुआ था, क्योंकि सास के देहांत के बाद कुच्छ महीनो तक तो सभी शोक संतप्त ही थे.
राम मोहन जब भी घर आते थे, तो जैसे-तैसे सकुच-संकोच करके समय निकाल पाते, उपर से दुलारा देवर, जो हर समय अपनी प्यारी भाभी के दामन से ही चिपका रहता था.
माँ का दुलारा, सबसे छोटा बेटा ही होता है, उनकी मौत के बाद भाभी उसको संभालने में कोई कसर नही रखना चाहती थी, बेचारे राम मोहन संकोच वश कुच्छ कह भी नही पाते थे, बिन माँ का बच्चा वो भी छोटा भाई… कहें भी तो क्या..?
बहू के घर में रहते, पिता घर में कम ही आते थे… उनका ज़्यादा तर समय तो कॉलेज में बच्चों के बीच, उसके बाद खेतिवाड़ी की देखभाल में ही चला जाता था. घर वो बस खाने के लिए ही आते थे.
गौने के तीन महीने तक भी उनकी सुहागरात का कोई अता-पता नही था, फिर एक दिन रमा जो अब ऐसी परिस्थितियों को समझने लगी थी, उसने इशारों-2 में अपने छोटू (अंकुश को प्यार से सभी छोटू ही बुलाते थे) को समझाने की कोशिश की….
अगर आप लोगों की इज़ाज़त हो तो यहाँ से ये कहानी अंकुश (छोटू) की ज़ुबानी शुरू करता हूँ.. इज़ाज़त है ना..! ओके दॅन..
हम राम मोहन भैया को बड़े भैया और कृष्णा कांत भैया को छोटे भैया कह कर बुलाते हैं.
बड़े भैया हर शनिवार की शाम घर आते थे, और मंडे अर्ली मॉर्निंग निकल जाते थे.
एक दिन शनिवार देर शाम को भैया घर आने वाले थे, मे और भाभी आपस में बातें करते हुए, मस्ती मज़ाक भी कर रहे थे.
भाभी जब हसती हैं तो उनके दोनो गालों में गड्ढे (डिम्पले) पड़ते हैं, मे उनमें अपनी उंगली घुसा कर हल्के-2 सहला देता था, तो भाभी और ज़्यादा मस्ती करने लगती.
तो उस दिन भैया आने वाले थे, रमा दीदी ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया और बोली – छोटू ! भैया मेरी एक बात मानेगा..?
मे – हां ! दीदी बोलो क्या बात है…?
रामा – बड़े भैया जब आते हैं ना तब तू ना ! थोड़ा भाभी से अलग रहा कर..!
मे भोलेपन से बोला – क्यों दीदी ? ऐसा क्यों बोल रही हो..? उन्होने तो मुझे कभी ऐसा बोला नही ..!
रामा – वो शर्म की वजह से कुच्छ नही बोलती, तू ना ! उतने टाइम मेरे पास आकर पढ़ लिया कर…!
मे – नही दीदी ! मुझे तो भाभी के पास बैठ कर पढ़ना ज़्यादा अच्छा लगता है..
रामा – ओफफफू…तू समझा कर पागल..! देख भैया उनके पति हैं ना !
मे – तो उसमें क्या..? मे थोड़ी ना उनको भाभी से बात करने के लिए ना बोलता हूँ..!
रामा – तू बिल्कुल पागल ही है… अरे बुद्धू.. पति-पत्नी अकेले में ही ज़्यादा अच्छे से बात कर पाते हैं.. ! अब बोल मानेगा ना मेरी बात..!
मे – ठीक है दीदी, मे भाभी से बोलके आपके पास आ जाउन्गा.. लेकिन भाभी की तरह आपको मेरे साथ मस्ती करनी पड़ेगी जब बोर हो जाउन्गा तो..
रामा – ठीक है ! मेरा प्यारा छोटू कितना समझदार है..! चल अब तू खेलने जा और आज हम दोनो रात को एक साथ बैठ कर पढ़ेंगे.. ओके.
मे उनको ओके बोलकर बाहर खेलने चला गया. वैसे मे बहुत कम ही साथ के मोहल्ले के बच्चो के साथ खेलता था, क्योंकि वो सब आवारा किस्म के थे, पढ़ने लिखने से उनको कोई मतलब नही था.
उनके परिवार में भी कोई पढ़ने लिखने वाला नही था, जो उनको रोके. इसलिए बाबूजी (पिताजी) ज़्यादा खेलने भी नही देते ऐसे बच्चों के साथ.
उस दिन देर शाम भैया घर आए, हम सबने मिलकर खाना खाया, बाबूजी ने भैया से दोनो भाइयों की पढ़ाई लिखाई के बारे में बात-चीत की फिर कुच्छ देर खाने के बाद भी बैठे साथ में.
भाभी और दीदी ने मिलकर घर का काम निपटाया, फिर जब बाबूजी, बाहर चले गये तो दीदी ने मुझे अपने पास पढ़ने के बहाने से बुला लिया. हम दोनो पढ़ाई में लग गये.
जब हम सब वहाँ से चले गये, भाभी किचेन में बर्तन साफ कर रही थी, भैया ने चुपके से उनको पीछे से जाकड़ लिया और उनके गले पर किस कर लिया.
अचानक बिना किसी उम्मीद के भाभी को एक झटका सा लगा और वो हड़बड़ा कर पलट गयी, हड़बड़ाहट में उनका सर भैया की नाक में लगा, भैया हाथों से नाक दबाए खड़े रह गये, दर्द से उनकी आँखों में पानी आ गया..
भाभी झट से उनके पैरों में गिर गयी और गिडगिडाते हुए बोली- सॉरी जी ! माफ़ करदो ! मुझे नही पता था कि आप इस तरह से….! मे डर गयी थी कि पता नही कॉन…आ गया…?