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Adultery हर ख्वाहिश पूरी की
#13
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अब अंकुश को समझ आया कि असल होल कॉन्सा है, तो उसने अपने लंड का सुपाडा उसके मूह पर रखा, उसका लंड इतना गरम हो चुका था मानो, किसी भट्टी से निकाल के लाया हो.

अब आराम से धीरे-2 इसको अंदर डालो… देवर जीि…. हाआँ … ऐसे ही… आराम से… हां.. डालते जाओ… हान्ं बस… रूको ज़रा…आअहह… कितना गया… ईसस्शह… फिर उसने खुद ही अपनी उंगलियों से टटोल कर चेक किया.

अभी तीन-चौथाई लंड ही अंदर गया था, और मोहिनी की चुदि-चुदाई चूत ऐसी धँसा-डॅस भर गयी थी, मानो अब उसकी इच्छा ही ना हो और लेने की.

मोहिनी – हां अब धीरे-2 पहले इतने से ही अंदर-बाहर करो इसे..

अंकुश ने उतना ही लंड अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया, कुच्छ देर में ही भाभी को मज़ा बढ़ने लगा और उसने नीचे से अपनी कमर उचकाना शुरू कर दिया…

अंकुश और भाभी चुदाई में ऐसे खो गये कि उन्हें पता ही नही चला कि कब पूरा लंड उसकी चूत में चला गया, अब उसको उसका सुपाडा अपनी बच्चेदानी के एन मूह पर फील होने लगा था.

अंकुश को अब अपने उपर कोई अंकुश नही रहा, और अपनी हथेलियों को पलग पर जमा कर पूरी ताक़त से तेज-तेज धक्के लगाने लगा, मज़े ने उसे अब सब सिखा दिया.

भाभी को अपनी जिंदगी की अब तक की सारी चुदाई फीकी लगने लगी आज की चुदाई के आगे. वो एक बार और झड चुकी थी, लेकिन अपने प्यारे राजा को उसने रोका नही.

चाहे जो हो जाए आज वो उसको खुशी देकर ही रहेगी.

उसने थोड़ा उसके सीने पर हाथ रखके रुकने का इशारा किया, और अपने उपर से हटा कर वो उल्टी हो गयी और अपनी चौड़ी गान्ड को अंकुश की आगे करके कुतिया की तरह औंधी हो गयी.

अंकुश को अब और कुच्छ समझने की ज़रूरत नही थी, उसे तो बस अब सिर्फ़ चूत का छेद ही दिखाई दे रहा था.

झट से पीछे आया, और सट से एक ही झटके में पूरा लंड पेल दिया भाभी की रसीली चूत में.

भाभी के मूह से फिरसे एक मादक कराह निकली, लेकिन उसे रोका नही..

इस पोज़ में अंकुश को और ज़्यादा मज़ा आ रहा था, उसके धक्कों की स्पीड इतनी तेज थी, कि अगर कोई गिनना चाहे तो डेफनेट्ली नाकाम हो जाएगा..

आख़िरकार उसको अपनी मंज़िल नज़र आने ही लगी, उसको लगा जैसे कोई बहुत बड़ा झंझावाट सा उसके पेलरों से उठ रहा है, जो झटके मारता हुआ, लंड के रास्ते भाभी की चूत में देदनादन पिचकारियाँ छोड़ने लगा.

बाप रे ! इतना माल, लंड अंदर होते हुए भी चूत से बाहर घी जैसा उसका मसाला भाभी की जांघों से रिसने लगा.

उसकी पिचकारी की धार से भाभी भी मस्त होकर फिर एक बार झड़ने लगी और इतनी झड़ी कि उसकी पूरी टंकी खाली हो गयी और वो औंधे मूह बिस्तर पर पसर गयी.

अंकुश भी भाभी की चौड़ी पीठ पर ही लद गया, और हाँफने लगा.

कुच्छ देर ऐसे ही बेसुधि में दोनो पड़े रहे, फिर वो भाभी की बगल को पलट गया, तब उसका लंड पच… की आवाज़ के साथ चूत से बाहर आया.

अपने अध्खडे लंड को भाभी की कमर से सटाये, उसकी पीठ पर अपना एक हाथ और जांघों पर अपनी एक टाँग चढ़ा कर वो भाभी की बगल में पड़ा-2 सो गया….!!

शंकर लाल शर्मा, *** गाओं के अति-प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, एक बार को अपना काम भले ही बिगड़ता रहे, लेकिन अगर कोई मदद माँगने इनके द्वार पर आगया, तो खाली हाथ तो कम-से-कम जाएगा नही. यथासंभव उसे यहाँ से मदद ज़रूर मिलेगी.

उनकी इसी नेक-नीयत के चर्चे आस-पास के सभी गाँवो में थे. अपने जमाने के इस गाओं के वो सबसे अधिक शिक्षित व्यक्ति थे और गाओं के ही स्कूल में शिक्षक के तौर पर कार्यरत थे.

अपने पिता के चारों बेटों में सबसे बड़े शंकर लाल, शिक्षा का महत्व जानते थे, इसी कारण अपने छोटे भाइयों को भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे, लेकिन वो पढ़ नही पाए.

दो बहनें भी थी जो तीन भाइयों से छोटी थी, लड़कियों को उस जमाने में ज़्यादा पढ़ाया लिखाया नही जाता था, फिर भी उनके कहने पर गाओं की आठवी क्लास तक की शिक्षा उन्हें दिलवाई ही दी.

पिता के देहांत के बाद सारे परिवार की ज़िम्मेदारी उनको ही उठानी पड़ी, हालाँकि सभी भाई बहनों की शादियाँ तो पिता के सामने ही हो गयीं थीं.

शंकर लाल की पत्नी विमला देवी ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की परिवार को एक सुत्र में बाँधने की, लेकिन छोटे भाइयों के विचार ना मिलने के कारण सभी परिवार अलग-2 रहने लगे.

पिता लंबी-चौड़ी जायदाद छोड़ कर गये थे, सो बराबर-2 हिस्सों में बाँट दी गयी. चूँकि शंकर लाल जी शिक्षक भी थे तो दूसरों से कुच्छ ज़्यादा अमन चैन से थे, उपर से उनके बच्चे भी अब बड़े हो चुके थे.

शंकर लाल के तीन बेटे और एक बेटी थी, बेटी दो बेटों के बाद पैदा हुई थी और उसके बाद फिर एक और बेटा…

सबसे छोटा बेटा जिसका नाम अंकुश है, जब आठवीं क्लास में पढ़ता था, तब उसके सबसे बड़े भाई राम मोहन की शादी हुई, शादी के समय राम मोहन शहर में रहकर ग्रॅजुयेशन कर रहे थे.

दूसरे भाई कृष्णा कांत 12थ में पढ़ रहे थे, बेहन रमा अपने भाई कृष्णा कांत के साथ ही साइकल पर बैठ कर उन्ही के स्कूल में पढ़ती थी, जो इस समय 10थ में थी.

शंकर लाल अपने सभी बच्चों का समान रूप से ध्यान रखते थे, और उनकी हर जायज़ माँगों को पूरा करने की कोशिश करते जिससे उनके बच्चों को अपना भविष्य बनाने में कोई अड़चन ना आए.

गाओं में उस दौरान शादियाँ छोटी उमर में ही करदी जाती थी. शादी के समय राम मोहन की पत्नी मोहिनी 12थ में पढ़ती थी, नयी बहू के घर आने के तीसरे दिन ही उनके मायके विदा करा ले गये और गौने का छेता लगभग दो साल बाद का निकला.
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RE: हर ख्वाहिश पूरी की - by nitya.bansal3 - 23-02-2020, 05:01 PM



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