14-02-2020, 04:27 PM
एक तीर , कई शिकार
और डेढ़ बजे क्या एक बजे ही अनुज मौजूद था।
असल में मैं एक तीर से दो नहीं तीन नहीं , कई शिकार कर रही थी।
पहला तो खुद वो तीर ही था , जी आपने सही समझा , मेरा देवर , अनुज ,...अकेला वही तो था जो उस शहर में था , ...
उस के जीवन का पहला चक्कर मैंने ही चलवाया था , गुड्डो के साथ ,
वो बनारस वाली हाईस्कूल वाली ,...
लेकिन एक बार जब उसने उस हाईस्कूल वाली की झिल्ली फाड़ दी , फिर तो बिना नागा और , ...किसी भी बार , दो बार से कम नहीं , ....
और गुड्डो खुद मुझे पूरा का पूरा हाल सुनाती , हर राउंड का ,...
लेकिन गुड्डो के जाने के बाद से उसका उपवास चल रहा था , ...
बेचारा , शेर एक बार शिकार कर ले न तो और , ... फिर उस उमर में तो लौंडों का हरदम फनफनाया रहता है , ...
कोई मिले तो बस चांप दें , ...
तो बस उसका फायदा हो जाता , और अबकी तो उसकी शहर वाली थी ये , उसी की गली की , उस की छुटकी बहिनिया की सहेली , ...
फिर तो बस एक दो बार मैं मौका दिलवा देती , फिर तो वो दोनों खुद ही ,...
और अनुज एक बार मेरे ,...
तो फिर अगला नंबर उसकी छुटकी बहिनिया गुड्डी रानी का पक्का था।
दूसरा शिकार रेनू , गुड्डी की पक्की सहेली , ...
उसकी फटते फटते रह गयी थी , इसलिए वो बहुत छनछनाई थी , और खैर वो एक तरह से अच्छा हुआ , ...मैंने उसे बहुत समझाया था , ...
एक तो वो केंचुआ मार्का था , ... फिर नंबरी डरपोक ,... फिर छुपते छुपाते , किसी तरह दस पांच मिनट में , ... मज़ा थोड़े ही आता।
इस लिए मैंने पूरे तीन चार घंटे का , बिस्तर पर ,...एकदम जब प्राइवेसी हो ,... वैसा रेनू के फटने का इंतजाम किया था।
रेनू एक बार अच्छी तरह , ...
फिर तो गुड्डी रानी की बिना फटे बच नहीं सकती थी , ...
उसकी एक सहेली लीला तो अपने भाई के साथ बिना नागा ,... और अब दूसरी सहेली रेनू भी रोज अपनी चक्की चलवाने लगती तो बस , दोनों रोज अपनी अपनी मस्ती के किस्से सुनाती और गुड्डी रानी जो लंड के नाम से उछलती थीं , ...खुद उनकी गुलाबों में चींटी काटने लगती और उसका इलाज मेरे पास था ही ,
एक बात और थी ,
रेनू खुद उसके भैया से फंसने वाली थी , कभी न कभी चुम्मा चाटी करते , ...
और क्या पता , कबड्डी खेलते ही गुड्डी उसे देख लेती ,
रेनू अनुज को भइया ही तो बोलती और उसी के सामने अपनी चड्ढी खोलने वाली थी तो गुड्डी रानी को बस थोड़ा चढाने उकसाने , नहीं हुआ तो थोड़ा जबरदस्ती करने की बात होगी तो वो भी मैं कर लुंगी ,
और गुड्डी रानी भी अपनी टाँगे अपने भैया , मेरे सैंया के आगे खोल देतीं ,...
इसलिए मेरा उसकी शिकार तो गुड्डी रानी ही थी , ...
असल में उसका एट्टीट्यूड , जरा सा गारी सुनाते ही वो ऐसा उछलती थी ,
इसलिए शादी के तीसरे रात मैंने सारी की सारी गारियां वो भी असली वाली ,...
उसके ऊपर उसके भैया , मेरे सैंया को तो चढ़ाया ही , गदहे , घोड़े से भी चुदवाया उसको , ... और मेरी सारी जेठानियों ने भी खुल के मेरा साथ दिया था ,...
अब धीरे धीरे खुल गयी थी वो , मैं हर बार इन्ही का नाम लेके उसे चिढ़ाती थी , मस्तराम न उसको दिया बल्कि उससे बोल कर पढ़वाया , और ऑपरेशन गुड्डी में उसकी दोनों सहेलियां , खास तौर से रेनू मेरा पूरा साथ देती ,
और एक बार मैंने रेनू की फड़वा दी तो शर्तिया , रेनू गुड्डी की फड़वाने में मेरी पूरी मदद करती।
और डेढ़ बजे क्या एक बजे ही अनुज मौजूद था।
असल में मैं एक तीर से दो नहीं तीन नहीं , कई शिकार कर रही थी।
पहला तो खुद वो तीर ही था , जी आपने सही समझा , मेरा देवर , अनुज ,...अकेला वही तो था जो उस शहर में था , ...
उस के जीवन का पहला चक्कर मैंने ही चलवाया था , गुड्डो के साथ ,
वो बनारस वाली हाईस्कूल वाली ,...
लेकिन एक बार जब उसने उस हाईस्कूल वाली की झिल्ली फाड़ दी , फिर तो बिना नागा और , ...किसी भी बार , दो बार से कम नहीं , ....
और गुड्डो खुद मुझे पूरा का पूरा हाल सुनाती , हर राउंड का ,...
लेकिन गुड्डो के जाने के बाद से उसका उपवास चल रहा था , ...
बेचारा , शेर एक बार शिकार कर ले न तो और , ... फिर उस उमर में तो लौंडों का हरदम फनफनाया रहता है , ...
कोई मिले तो बस चांप दें , ...
तो बस उसका फायदा हो जाता , और अबकी तो उसकी शहर वाली थी ये , उसी की गली की , उस की छुटकी बहिनिया की सहेली , ...
फिर तो बस एक दो बार मैं मौका दिलवा देती , फिर तो वो दोनों खुद ही ,...
और अनुज एक बार मेरे ,...
तो फिर अगला नंबर उसकी छुटकी बहिनिया गुड्डी रानी का पक्का था।
दूसरा शिकार रेनू , गुड्डी की पक्की सहेली , ...
उसकी फटते फटते रह गयी थी , इसलिए वो बहुत छनछनाई थी , और खैर वो एक तरह से अच्छा हुआ , ...मैंने उसे बहुत समझाया था , ...
एक तो वो केंचुआ मार्का था , ... फिर नंबरी डरपोक ,... फिर छुपते छुपाते , किसी तरह दस पांच मिनट में , ... मज़ा थोड़े ही आता।
इस लिए मैंने पूरे तीन चार घंटे का , बिस्तर पर ,...एकदम जब प्राइवेसी हो ,... वैसा रेनू के फटने का इंतजाम किया था।
रेनू एक बार अच्छी तरह , ...
फिर तो गुड्डी रानी की बिना फटे बच नहीं सकती थी , ...
उसकी एक सहेली लीला तो अपने भाई के साथ बिना नागा ,... और अब दूसरी सहेली रेनू भी रोज अपनी चक्की चलवाने लगती तो बस , दोनों रोज अपनी अपनी मस्ती के किस्से सुनाती और गुड्डी रानी जो लंड के नाम से उछलती थीं , ...खुद उनकी गुलाबों में चींटी काटने लगती और उसका इलाज मेरे पास था ही ,
एक बात और थी ,
रेनू खुद उसके भैया से फंसने वाली थी , कभी न कभी चुम्मा चाटी करते , ...
और क्या पता , कबड्डी खेलते ही गुड्डी उसे देख लेती ,
रेनू अनुज को भइया ही तो बोलती और उसी के सामने अपनी चड्ढी खोलने वाली थी तो गुड्डी रानी को बस थोड़ा चढाने उकसाने , नहीं हुआ तो थोड़ा जबरदस्ती करने की बात होगी तो वो भी मैं कर लुंगी ,
और गुड्डी रानी भी अपनी टाँगे अपने भैया , मेरे सैंया के आगे खोल देतीं ,...
इसलिए मेरा उसकी शिकार तो गुड्डी रानी ही थी , ...
असल में उसका एट्टीट्यूड , जरा सा गारी सुनाते ही वो ऐसा उछलती थी ,
इसलिए शादी के तीसरे रात मैंने सारी की सारी गारियां वो भी असली वाली ,...
उसके ऊपर उसके भैया , मेरे सैंया को तो चढ़ाया ही , गदहे , घोड़े से भी चुदवाया उसको , ... और मेरी सारी जेठानियों ने भी खुल के मेरा साथ दिया था ,...
अब धीरे धीरे खुल गयी थी वो , मैं हर बार इन्ही का नाम लेके उसे चिढ़ाती थी , मस्तराम न उसको दिया बल्कि उससे बोल कर पढ़वाया , और ऑपरेशन गुड्डी में उसकी दोनों सहेलियां , खास तौर से रेनू मेरा पूरा साथ देती ,
और एक बार मैंने रेनू की फड़वा दी तो शर्तिया , रेनू गुड्डी की फड़वाने में मेरी पूरी मदद करती।