11-02-2020, 08:48 AM
(10-02-2020, 08:38 PM)komaalrani Wrote: वियोग के , विरह के प्रसंग लिखना शायद ज्यादा कठिन होता है , ...पर मेरे लिखे यह भी जीवन का अंग है , बिना वियोग के संयोग भी शायद अधूरा है , ' फागुन के दिन चार ' में करन और रीत का विरह का प्रसंग , ... और कहानी का अंत जो मैंने भी नहीं सोचा था , दो मुख्य पात्र , हाथ में फोन लिए , ... बिन बोले सिर्फ आँखों में आंसू ,... लेकिन विरह के बाद छेड़ छाड़ भी आती है , मिलन भी ,... विरह लेकिन नितांत वैयक्तिक होता है , खुद का भोगा ,... और इन पलों को भी इन पोस्ट्स में मैं आपके साथ शेयर कर रही हूँ ,बिल्कुल कोमल जी वियोग श्रृंगार के बिना,मिलन का कहाँ सुख होता है !!
विरह वेदना,में जब नायिका प्रेमी की यादों में तड़पती है छटपटाती उन मिलन के पलों को याद करती है ये जो इतंज़ार होता है,,जब संयोग मिलन के क्षण आते है,,तो सावन बन के रात दिन बरसता है,,अगर सिर्फ मिलन का ही वर्णन हो तो एक तरफा सा लगता है,,आप की लेखनी इसी लिए सर्वोत्कृष्ट है इस मे विरह है,प्रेमी के मिलन की तड़प है,,ओर फिर संयोग मिलन में खूब सारा प्यार है, बिल्कुल असली वाला प्यार ??
इसी तरह लिखती रहो,,शुभकामनाएं कोमल जी इस उत्कृष्ट लेखन के लिए ??