10-02-2020, 08:38 PM
वियोग के , विरह के प्रसंग लिखना शायद ज्यादा कठिन होता है , ...पर मेरे लिखे यह भी जीवन का अंग है , बिना वियोग के संयोग भी शायद अधूरा है , ' फागुन के दिन चार ' में करन और रीत का विरह का प्रसंग , ... और कहानी का अंत जो मैंने भी नहीं सोचा था , दो मुख्य पात्र , हाथ में फोन लिए , ... बिन बोले सिर्फ आँखों में आंसू ,... लेकिन विरह के बाद छेड़ छाड़ भी आती है , मिलन भी ,... विरह लेकिन नितांत वैयक्तिक होता है , खुद का भोगा ,... और इन पलों को भी इन पोस्ट्स में मैं आपके साथ शेयर कर रही हूँ ,