06-02-2020, 11:56 PM
अध्याय 15
“कहाँ जा रही हो?” ऋतु को अपने बैग लेकर बाहर आते देखकर बलराज सिंह ने गुस्से से कहा
“आप चिंता मत करो.... में किसी के साथ भागकर नहीं जा रही हूँ...और न ही कुछ ऐसा करने...जिससे आपकी ही नहीं मेरी भी इज्ज़त पर दाग लगे” ऋतु ने भी उनकी आँखों में आँखें डालकर गुस्से से जवाब दिया “में आप लोगों के साथ नहीं रह सकती... यहाँ मेरा दम घुट रहा है.... में अब से रागिनी दीदी के साथ रहूँगी....”
“ऋतु बेटा सुनो तो...” मोहिनी देवी ने ऋतु को रोकते हुये कहा
“अब फिर कोई नई कहानी है सुनने के लिए?” लेकिन मेरे पास न तो सुनने के लिए वक़्त है और न ही दिमाग...” ऋतु ने फिर गुस्से से कहा
“बेटा हमने जो भी जरूरी था...तुम्हें बता दिया...कुछ बातें समय आने पर बताते... लेकिन न तो रागिनी ने ही हमें मोहलत दी और न ही तुम...वहाँ से आने के बाद तुमने हमसे कुछ भी जानने की कोशिश की? कुछ भी पूंछा? आते ही अपने कमरे में गईं और समान लेकर घर छोडकर चल दी” मोहिनी ने भी गुस्से में कहा
“हाँ! यहाँ आकर फिर आपसे पूंछती और फिर एक नई कहानी सुनती....जब मेंने आपको विक्रम भैया के साथ वहाँ उस घर में जाते देखा था तो उसका अपने बताया कि वहाँ अप उनके साथ उस मकान कि देखरेख के लिए जाती थी... लेकिन ऐसी कौन सी देखरेख है जो आपको उस घर में घंटो विक्रम भैया के साथ रहना पड़ता था....? और जब आप लोग रागिनी दीदी के बारे में सबकुछ जानते थे तो उनके साथ अंजान क्यों बने रहे...जब तक कि वो यहाँ उस मकान में नहीं आ गईं और मेंने उनको वहाँ देखकर सवाल नहीं किया? आप लोगो ने मुझे पहले तो कभी बताया ही नहीं परिवार के बारे में... विमला बुआ के बारे में, रागिनी दीदी के बारे में........... और अभी पिछले 2-3 दिन में जो आपने बताया वो बिलकुल झूठ... जिसे आपके मुंह पर ही रागिनी दीदी ने गलत साबित कर दिया.......... वो बिना किसी याद, बिना पहचान, अंजान शहर में भी सिर्फ 3 दिन में इतना जान गईं... और में इतनी काबिल, एक वकील होते हुये, परिवार के बीच में रहकर भी कभी कुछ जान ही नहीं पायी और जब जानना चाहा तो आपसे सिर्फ झूठ सुनने को मिला.... अब मुझसे कभी मिलने या बात करने कि कोशिश भी मत करना......... मुझे तो आज जो रागिनी दीदी कि हालत है और जो विक्रम भैया के साथ हुआ... उसमें भी आपका ही हाथ लगता है... इसीलिए आप इन बातों को दबाये रखना चाहते हैं.........और एक आखिरी बात...अगर रागिनी दीदी, अनुराधा या प्रबल के साथ कुछ भी बुरा हुआ तो.... उसके जिम्मेदार केवल आप ही होंगे...मेरी नज़र में” कहते हुये ऋतु ने अपने बैग लिए और बाहर खड़ी कैब में जाकर बैठ गयी.... उसके बैठते ही ड्राईवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी
......................................
उन लोगों के जाने के कुछ देर बाद रागिनी ने दोनों बच्चों को अपने से अलग किया और खाना खाने के लिए कहा तो सब अपनी अपनी सोच में डूबे खाना खाने बैठ गए.... खाना खाकर अनुराधा और रागिनी ने रसोई का काम निबटाया और तीनों ड्राविंग रूम में आकार बैठ गए
“माँ तुम्हें ये सब जानकारी कहाँ से मिली और आपको अपने माता-पिता का तो हॉस्पिटल के रेकॉर्ड से पता चला होगा... लेकिन वो भी आपने कैसे पक्का किया? और दूसरे चाचा का?” अनुराधा ने बात शुरू करते हुये कहा
“मुझे अभय ने विक्रम के गाँव का एड्रैस मैसेज किया था... और में गाँव भी गयी थी तो गाँव का नाम और तहसील, जिला सहित पूरा एड्रैस मुझे पता था.... जब हम यहाँ से कोटा गए थे तो रास्ते में मुझे हॉस्पिटल का डाटा व्हाट्सएप्प पर जो मिला उसे चेक करते समय मुझे एक बच्ची के जन्म के रेकॉर्ड में उसी गाँव का पता दिखाई दिया तो मेंने वो जानकारी नोट कर ली बाद में जब हम कल वापस लौटते हुये कोटा गए थे तब सुरेश ने बताया था की बलराज सिंह 5 भाई थे... रात मेंने सुरेश को बोला था की गाँव से इन सभी भाई बहनों के नाम पता करके बताए तो सुरेश के पिताजी ने बताया था के 2 बड़े भाइयों के नाम जय और विजय हैं... और तीसरे भाई गजराज जिन्हें गाँव में गज्जू कहते थे से छोटी 2 बहनें हैं जुड़वां, विमला और कमला उनसे छोटे 2 भाई बल्लू उर्फ बलराज और देवू उर्फ देवराज हैं।
जय की शादी के समय में वो लोग अपनी ननिहाल में रहते थे....और वहीं से की थी, विजय की शादी के समय वो गाँव में रहते थे लेकिन शादी ननिहाल के रिशतेदारों ने ही करवाई थी.... उसके बाद उनके पिताजी बीमार रहने लगे थे तो दोनों बहनों की शादी जयराज ने ही खुद रिश्ता देखकर की और लगभग 1 साल बाद पिता की मृत्यु हो जाने पर अपनी माँ और छोटे-छोटे तीनों भाइयों को अपने साथ लेकर दिल्ली चले गए फिर बहुत सालों के बाद उनकी माँ और भाइयों ने तो बड़े होकर गाँव आना जाना शुरू कर दिया था लेकिन जयराज कभी गाँव नहीं आए और उनकी वहीं मृत्यु हो गयी ऐसी सूचना मिली थी” रागिनी ने बताया
“लगता है आपको लगभग सारी जानकारी मिल गयी है.... और विजयराज के बारे में भी कुछ पता चला? जयराज के भी क्या आप अकेली ही बेटी थीं या कोई और भी? ...............लेकिन अब क्या करना है... जितनी जानकारियां मिलती जा रही हैं उनसे हम तीनों एक दूसरे से अलग दिखते जा रहे हैं.......... पहले हम आपके बच्चे थे, मेरे पास एक माँ और एक भाई थे... और विक्रम भैया को चाहे सौतेला ही समझती थी लेकिन लेकिन वो भी भाई थे..... फिर उनके बाद जो पता चला तो आप मेरी बुआ थीं अब आप मेरी दादी के बड़े भाई की बेटी हैं.... प्रबल के परिवार के बारे में तो पता चला ही नहीं.... और दूसरे देश का मामला होने की वजह से इतना आसान भी नहीं.... अब क्या हम सब ऐसे भी जिएंगे... खुद को न पहचानने का डर और पता नहीं कब कौन आ जाए और हम मे से किसी पर अपना हक जताने लगे.....” अनुराधा अभी बोल ही रही थी की बाहर कोई गाड़ी रुकने की आवाज आयी तो प्रबल उठकर बाहर की ओर चल दिया...रागिनी और अनुराधा भी उसके पीछे दरवाजे तक आए तो देखा की बाहर एक कैब से ऋतु अपना समान निकाल रही है ...प्रबल ने आगे बढ़कर गाड़ी से बैग निकले और ऋतु के साथ घर में आ गया
अनुराधा और रागिनी वापस आकर सोफ़े पर बैठ गए ऋतु ने भी अपने हाथ में पकड़े बैग को सोफ़े से टिकाकार रखा और बैठ गयी....प्रबल भी आकार उसके पास ही बैठ गया। कुछ देर तक सभी चुपचाप बैठे रहे फिर ऋतु ने बताया कि वो अपना घर छोडकर यहाँ उनके पास रहने आ गयी है
“दीदी आज सुबह की बातों से मुझे लगा की मुझसे भी बहुत कुछ छुपाया जा रहा है या झूठी कहानियाँ सुनाई जा रही हैं....लेकिन एक बात साफ हो चुकी है मेरे सामने, कि विक्रम भैया के बाद, उन दोनों लोगों के अलावा अगर इस परिवार में कोई बचा है तो आप हैं.... वो भी आपने पता लगा लिया इसलिए.... वरना तो उन्होने तो अपने आप तक ही परिवार को समेट दिया था ..... अब मुझे उनका विश्वास नहीं रहा.... अब तो में सोचती हूँ कि कहीं आपकी तरह में भी किसी और कि बेटी तो नहीं.... अब मुझे आपके अलावा किसी पर भरोसा नहीं रहा... इसलिए अब में आपके साथ ही रहने आ गयी हूँ......हमेशा के लिए.......अगर आपको कोई ऐतराज न हो तो?” ऋतु ने आखिरी वाक्य को रागिनी कि आँखों में सवालिया नज़रों से देखते हुये कहा
“देखो ऋतु मुझे तुम्हें साथ रखने में कोई ऐतराज नहीं है... बल्कि खुशी ही होगी कि अगर हम परिवार के बचे हुये सब लोग एक साथ रहें.... लेकिन कुछ बातों का तुम्हें भी ध्यान रखना होगा” रागिनी ने जवाब दिया
“किन बातों का? आपकी जो भी शर्तें होंगी... मुझे मंजूर हैं” ऋतु ने भी कहा
“मेरी कोई शर्त नहीं है... सिर्फ इतना कहना है कि अब से हम सब एक परिवार कि तरह साथ रहेंगे.... किसी के बारे में कुछ भी पता चले उससे हमारे आपस के संबंध न तो बदलेंगे और ना ही हम में से कोई एक दूसरे को छोडकर कहीं जाएगा... अगर किसी के बारे में कुछ भी पता नहीं चलता तो भी अभी हम जो रिश्ते मानते आ रहे हैं....वही मानकर नए सिरे से अपने परिवार कि शुरुआत करेंगे... मुझे फिर से कोई उलझन या मुश्किल नहीं चाहिए अपने इस घर में... इसलिए हमें और किसी से कोई मतलब नहीं रखना….. अब से तुम मेरी बहन हो और इन बच्चों की मौसी-बुआ जो भी बनना चाहो.... ये बच्चे जितने मेरे हैं उतने ही तुम्हारे” रागिनी ने साफ शब्दों में कहा जिस पर ना केवल ऋतु बल्कि अनुराधा और प्रबल ने भी सहमति जताई
और फिर सबने मिलकर प्लान किया की आगे किस तरह से किसको क्या करना है... ऋतु ने बताया की वो अभी फिलहाल अभय के साथ ही काम करती रहेगी। अनुराधा और प्रबल को आगे पढ़ने के लिए उसी कॉलेज में एड्मिशन करा दिया जाएगा जिसमें न केवल विक्रम और रागिनी पढे थे बल्कि ऋतु का भी एड्मिशन विक्रम ने उसी कॉलेज में कराया था।
साथ ही ऋतु ने बताया की विक्रम की वसीयत जो अभय के ऑफिस में आगे की कार्यवाही के लिए थी उसकी फोटोकोपी उसने निकाल ली थी.... उस फोटोकोपी में विक्रम की जो वसीयत अभय ने पढ़कर सुनाई थी उसके अलावा भी बहुत से दस्तावेज़ थे ..... जो कि न केवल विक्रम और बलराज सिंह के परिवार के बारे में पूरी जानकारी देते थे बल्कि उन लोगो कि संपत्ति का भी पूरे विस्तार से ब्योरा दिया हुआ था।
ऋतु ने वो कागजात निकाल कर रागिनी को दिये और उन चारों ने उन्हें पढ्ना शुरू किया... उसमें कुछ विवरण देवराज सिंह, रुद्र प्रताप सिंह और भानु प्रताप सिंह की जायदाद के थे और कुछ कागजात में वारिसान प्रमाण पत्र भी लगे हुये थे जिनमें परिवार के सदस्यों का ब्योरा था। उन सभी वारिसान प्रमाण पत्रों को रागिनी ने अलग किया और चारों ने उन्हें पढ़ना शुरू किया
1- रुद्र प्रताप सिंह के परिवार का विवरण उनसे संबंध और जन्म वर्ष के साथ
1- निर्मला देवी -पत्नी -1928
2- जयराज सिंह -पुत्र -1947
3- विजयराज सिंह -पुत्र -1949
4- गजराज सिंह -पुत्र -1954
5- विमला देवी -पुत्री -1960
6- कमला देवी -पुत्री -1960
7- बलराज सिंह -पुत्र -1965
8- देवराज सिंह -पुत्र -1968
2- शम्भूनाथ सिंह के परिवार का विवरण संबंध और जन्म वर्ष सहित
1- जयदेवी -पत्नी 1911
2- निर्मला देवी -पुत्री 1928
3- सुमित्रा देवी -पुत्री 1932
4- माया देवी -पुत्री 1940
इसके अलावा इसमें 2 लोगों के नाम शम्भूनाथ सिंह की समस्त चल अचल संपत्ति के वारिस के तौर पर भी दिये हुये थे
1- जयराज सिंह -1947 व 2- विजयराज सिंह -1949
पुत्रगण श्रीमती निर्मला देवी एवं श्री रूद्र प्रताप सिंह
3- भानु प्रताप सिंह के परिवार का विवरण संबंध और जन्म वर्ष सहित
1- श्यामा देवी -पत्नी -1937
2- कामिनी देवी -पुत्री -1955
3- मोहिनी देवी -पुत्री -1965
ये सारा विवरण पढ़ते ही रागिनी और ऋतु आश्चर्यचकित होकर एक दूसरे की ओर देखने लगे.........दोनों की ही समझ में नहीं आया कि अब क्या कहें। फिर ऋतु ने ही कहा
“दीदी ये तो बहुत अजीब बात है.... विक्रम भैया की माँ और मेरी माँ सगी बहनें हैं और आजतक मेरी माँ ने मुझे ये बताया ही नहीं”
“ऐसा भी तो हो सकता है कि ये विक्रम कि मौसी कोई और ही मोहिनी देवी हो” रागिनी ने कहा
“नहीं मुझे मम्मी के कुछ कागजात मे उनके मटा पिता का नाम देखने को मिला है... और वैसे भी उन्होने बताया भी था कई बार उनके पिता का नाम भानु प्रताप सिंह और माँ का नाम श्यामा देवी ही है.... और उनकी जन्म तिथि भी यही है...” इस पर ऋतु ने बताया
“हो सकता है.... शायद ये सारे कागजात इस वसीयत के साथ थे...इसीलिए इन सब बातों को विक्रम ने अपनी वसीयत मे जाहिर नहीं किया.........अब ये भी साफ हो गया कि ये 5 भाई और 2 बहनें थे.... और उनमें से 2 भाइयों की शादी तुम्हारी माँ और मौसी से हुई थी” रागिनी ने गहरी सांस छोडते हुये कहा “अगर हमने पहले ही ये सारे कागजात पढ़ लिए होते तो हमें इतना परेशान न होना पड़ता”
“दीदी इनके अलावा कुछ और भी है....इस कागज में....” ऋतु ने अपने हाथ में पकड़े हुये एक कागज को दिखते हुये कहा
“क्या है?” कहते हुये रागिनी ने वो कागज अपने हाथ में लिया और पढ़ने लगी... उस कागज में एक कोर्ट का आदेश था... जयराज सिंह और बेलादेवी के तलाक का 1974 का उसे पढ़ते ही रागिनी को और बड़ा झटका लगा....
“ये जयराज सिंह को ही तो मेरा पिता बताया था मोहिनी चाची ने.... लेकिन मेरी माँ का नाम तो उन्होने वसुंधरा बताया था.... तो ये बेला देवी कौन हैं?”
“दीदी इनका तो तलाक ही 1974 में हो गया और आपकी जन्म तिथि 1979 की है.... इसका मतलब जयराज ताऊजी की दो शादियाँ हुईं थी.... आपकी माँ वसुंधरा ताईजी उनकी दूसरी पत्नी थी। लेकिन इन कागजातों में अभी बहुत कुछ नहीं है........ हमारे पिता सब भाई-बहनों कहाँ और किससे शादियाँ हुई, उनके बच्चे ....” ऋतु अभी आगे कुछ कहती उससे पहले ही ड्राइंग रूम के दरवाजे से किसी औरत ने रागिनी को आवाज दी तो प्रबल ने जाकर दरवाजा खोला एक 40-42 साल की रागिनी कि हमउम्र औरत दरवाजे पर खड़ी थी प्रबल के बराबर से अंदर घुसकर वो सीधे रागिनी के पास आयी और उसका हाथ पकड़कर खींचा... रागिनी भी उठकर खड़ी हुई तो उसने रागिनी को अपने सीने से लगाकर रोना शुरू कर दिया.... रागिनी इस अजीब से हालात में चुपचाप खड़ी अनुराधा, ऋतु और प्रबल की ओर देखने लगी
रागिनी ने उसे अपने साथ ही पकड़कर सोफ़े पर बिताया और बोली “मेंने पहचाना नहीं आपको? अप रोईए मत.... बताइये... क्या बात हो गयी”
“तूने मुझे भी नहीं पहचाना... सही बताया था प्रवीण और माँ ने .... तेरी याददास्त सचमुच ही चली गयी है.... तू तो मुझे मेरी खुशबू से पहचान लेती थी” उसने रोते हुये ही कहा
“सुधा! तो तुम हो सुधा” रागिनी को सुबह की बात ध्यान आ गयी “अब रो मत .... देखले तेरे सामने सही सलामत बैठी हूँ.... मुझे कुछ याद नहीं तो क्या हुआ.... तुझे तो सबकुछ याद होगा.... तू बता देना”
“हाँ! में तुझे सबकुछ बताऊँगी....... वो भी जो तुझे पहले भी नहीं पता था.... तब कितनी बार तूने मुझसे पूंछा लेकिन में हमेशा टाल देती थी कि कहीं तू भी इस झमेले मे न फंस जाए.... लेकिन अब में सबकुछ बताऊँगी.... में आज यहाँ तुझसे मिलकर सबकुछ बताने ही आयी हूँ और और में तेरी गुनहगार हूँ... माफी न सही लेकिन दोस्ती को जोड़े रखना” सुधा ने रागिनी से कहा
“दीदी! आज सुधा दीदी को भी अपने साथ रोक लेते हैं.... रात में ये सब बातें होंगी.... अभी कुछ नाश्ता वगैरह कर लेते हैं... फिर रात के खाने कि तयारी करते हैं” ऋतु ने वहाँ फैले सभी कागजात समेटते हुये कहा और अनुराधा को साथ आने का इशारा करते हुये किचन कि ओर चल दी
“कहाँ जा रही हो?” ऋतु को अपने बैग लेकर बाहर आते देखकर बलराज सिंह ने गुस्से से कहा
“आप चिंता मत करो.... में किसी के साथ भागकर नहीं जा रही हूँ...और न ही कुछ ऐसा करने...जिससे आपकी ही नहीं मेरी भी इज्ज़त पर दाग लगे” ऋतु ने भी उनकी आँखों में आँखें डालकर गुस्से से जवाब दिया “में आप लोगों के साथ नहीं रह सकती... यहाँ मेरा दम घुट रहा है.... में अब से रागिनी दीदी के साथ रहूँगी....”
“ऋतु बेटा सुनो तो...” मोहिनी देवी ने ऋतु को रोकते हुये कहा
“अब फिर कोई नई कहानी है सुनने के लिए?” लेकिन मेरे पास न तो सुनने के लिए वक़्त है और न ही दिमाग...” ऋतु ने फिर गुस्से से कहा
“बेटा हमने जो भी जरूरी था...तुम्हें बता दिया...कुछ बातें समय आने पर बताते... लेकिन न तो रागिनी ने ही हमें मोहलत दी और न ही तुम...वहाँ से आने के बाद तुमने हमसे कुछ भी जानने की कोशिश की? कुछ भी पूंछा? आते ही अपने कमरे में गईं और समान लेकर घर छोडकर चल दी” मोहिनी ने भी गुस्से में कहा
“हाँ! यहाँ आकर फिर आपसे पूंछती और फिर एक नई कहानी सुनती....जब मेंने आपको विक्रम भैया के साथ वहाँ उस घर में जाते देखा था तो उसका अपने बताया कि वहाँ अप उनके साथ उस मकान कि देखरेख के लिए जाती थी... लेकिन ऐसी कौन सी देखरेख है जो आपको उस घर में घंटो विक्रम भैया के साथ रहना पड़ता था....? और जब आप लोग रागिनी दीदी के बारे में सबकुछ जानते थे तो उनके साथ अंजान क्यों बने रहे...जब तक कि वो यहाँ उस मकान में नहीं आ गईं और मेंने उनको वहाँ देखकर सवाल नहीं किया? आप लोगो ने मुझे पहले तो कभी बताया ही नहीं परिवार के बारे में... विमला बुआ के बारे में, रागिनी दीदी के बारे में........... और अभी पिछले 2-3 दिन में जो आपने बताया वो बिलकुल झूठ... जिसे आपके मुंह पर ही रागिनी दीदी ने गलत साबित कर दिया.......... वो बिना किसी याद, बिना पहचान, अंजान शहर में भी सिर्फ 3 दिन में इतना जान गईं... और में इतनी काबिल, एक वकील होते हुये, परिवार के बीच में रहकर भी कभी कुछ जान ही नहीं पायी और जब जानना चाहा तो आपसे सिर्फ झूठ सुनने को मिला.... अब मुझसे कभी मिलने या बात करने कि कोशिश भी मत करना......... मुझे तो आज जो रागिनी दीदी कि हालत है और जो विक्रम भैया के साथ हुआ... उसमें भी आपका ही हाथ लगता है... इसीलिए आप इन बातों को दबाये रखना चाहते हैं.........और एक आखिरी बात...अगर रागिनी दीदी, अनुराधा या प्रबल के साथ कुछ भी बुरा हुआ तो.... उसके जिम्मेदार केवल आप ही होंगे...मेरी नज़र में” कहते हुये ऋतु ने अपने बैग लिए और बाहर खड़ी कैब में जाकर बैठ गयी.... उसके बैठते ही ड्राईवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी
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उन लोगों के जाने के कुछ देर बाद रागिनी ने दोनों बच्चों को अपने से अलग किया और खाना खाने के लिए कहा तो सब अपनी अपनी सोच में डूबे खाना खाने बैठ गए.... खाना खाकर अनुराधा और रागिनी ने रसोई का काम निबटाया और तीनों ड्राविंग रूम में आकार बैठ गए
“माँ तुम्हें ये सब जानकारी कहाँ से मिली और आपको अपने माता-पिता का तो हॉस्पिटल के रेकॉर्ड से पता चला होगा... लेकिन वो भी आपने कैसे पक्का किया? और दूसरे चाचा का?” अनुराधा ने बात शुरू करते हुये कहा
“मुझे अभय ने विक्रम के गाँव का एड्रैस मैसेज किया था... और में गाँव भी गयी थी तो गाँव का नाम और तहसील, जिला सहित पूरा एड्रैस मुझे पता था.... जब हम यहाँ से कोटा गए थे तो रास्ते में मुझे हॉस्पिटल का डाटा व्हाट्सएप्प पर जो मिला उसे चेक करते समय मुझे एक बच्ची के जन्म के रेकॉर्ड में उसी गाँव का पता दिखाई दिया तो मेंने वो जानकारी नोट कर ली बाद में जब हम कल वापस लौटते हुये कोटा गए थे तब सुरेश ने बताया था की बलराज सिंह 5 भाई थे... रात मेंने सुरेश को बोला था की गाँव से इन सभी भाई बहनों के नाम पता करके बताए तो सुरेश के पिताजी ने बताया था के 2 बड़े भाइयों के नाम जय और विजय हैं... और तीसरे भाई गजराज जिन्हें गाँव में गज्जू कहते थे से छोटी 2 बहनें हैं जुड़वां, विमला और कमला उनसे छोटे 2 भाई बल्लू उर्फ बलराज और देवू उर्फ देवराज हैं।
जय की शादी के समय में वो लोग अपनी ननिहाल में रहते थे....और वहीं से की थी, विजय की शादी के समय वो गाँव में रहते थे लेकिन शादी ननिहाल के रिशतेदारों ने ही करवाई थी.... उसके बाद उनके पिताजी बीमार रहने लगे थे तो दोनों बहनों की शादी जयराज ने ही खुद रिश्ता देखकर की और लगभग 1 साल बाद पिता की मृत्यु हो जाने पर अपनी माँ और छोटे-छोटे तीनों भाइयों को अपने साथ लेकर दिल्ली चले गए फिर बहुत सालों के बाद उनकी माँ और भाइयों ने तो बड़े होकर गाँव आना जाना शुरू कर दिया था लेकिन जयराज कभी गाँव नहीं आए और उनकी वहीं मृत्यु हो गयी ऐसी सूचना मिली थी” रागिनी ने बताया
“लगता है आपको लगभग सारी जानकारी मिल गयी है.... और विजयराज के बारे में भी कुछ पता चला? जयराज के भी क्या आप अकेली ही बेटी थीं या कोई और भी? ...............लेकिन अब क्या करना है... जितनी जानकारियां मिलती जा रही हैं उनसे हम तीनों एक दूसरे से अलग दिखते जा रहे हैं.......... पहले हम आपके बच्चे थे, मेरे पास एक माँ और एक भाई थे... और विक्रम भैया को चाहे सौतेला ही समझती थी लेकिन लेकिन वो भी भाई थे..... फिर उनके बाद जो पता चला तो आप मेरी बुआ थीं अब आप मेरी दादी के बड़े भाई की बेटी हैं.... प्रबल के परिवार के बारे में तो पता चला ही नहीं.... और दूसरे देश का मामला होने की वजह से इतना आसान भी नहीं.... अब क्या हम सब ऐसे भी जिएंगे... खुद को न पहचानने का डर और पता नहीं कब कौन आ जाए और हम मे से किसी पर अपना हक जताने लगे.....” अनुराधा अभी बोल ही रही थी की बाहर कोई गाड़ी रुकने की आवाज आयी तो प्रबल उठकर बाहर की ओर चल दिया...रागिनी और अनुराधा भी उसके पीछे दरवाजे तक आए तो देखा की बाहर एक कैब से ऋतु अपना समान निकाल रही है ...प्रबल ने आगे बढ़कर गाड़ी से बैग निकले और ऋतु के साथ घर में आ गया
अनुराधा और रागिनी वापस आकर सोफ़े पर बैठ गए ऋतु ने भी अपने हाथ में पकड़े बैग को सोफ़े से टिकाकार रखा और बैठ गयी....प्रबल भी आकार उसके पास ही बैठ गया। कुछ देर तक सभी चुपचाप बैठे रहे फिर ऋतु ने बताया कि वो अपना घर छोडकर यहाँ उनके पास रहने आ गयी है
“दीदी आज सुबह की बातों से मुझे लगा की मुझसे भी बहुत कुछ छुपाया जा रहा है या झूठी कहानियाँ सुनाई जा रही हैं....लेकिन एक बात साफ हो चुकी है मेरे सामने, कि विक्रम भैया के बाद, उन दोनों लोगों के अलावा अगर इस परिवार में कोई बचा है तो आप हैं.... वो भी आपने पता लगा लिया इसलिए.... वरना तो उन्होने तो अपने आप तक ही परिवार को समेट दिया था ..... अब मुझे उनका विश्वास नहीं रहा.... अब तो में सोचती हूँ कि कहीं आपकी तरह में भी किसी और कि बेटी तो नहीं.... अब मुझे आपके अलावा किसी पर भरोसा नहीं रहा... इसलिए अब में आपके साथ ही रहने आ गयी हूँ......हमेशा के लिए.......अगर आपको कोई ऐतराज न हो तो?” ऋतु ने आखिरी वाक्य को रागिनी कि आँखों में सवालिया नज़रों से देखते हुये कहा
“देखो ऋतु मुझे तुम्हें साथ रखने में कोई ऐतराज नहीं है... बल्कि खुशी ही होगी कि अगर हम परिवार के बचे हुये सब लोग एक साथ रहें.... लेकिन कुछ बातों का तुम्हें भी ध्यान रखना होगा” रागिनी ने जवाब दिया
“किन बातों का? आपकी जो भी शर्तें होंगी... मुझे मंजूर हैं” ऋतु ने भी कहा
“मेरी कोई शर्त नहीं है... सिर्फ इतना कहना है कि अब से हम सब एक परिवार कि तरह साथ रहेंगे.... किसी के बारे में कुछ भी पता चले उससे हमारे आपस के संबंध न तो बदलेंगे और ना ही हम में से कोई एक दूसरे को छोडकर कहीं जाएगा... अगर किसी के बारे में कुछ भी पता नहीं चलता तो भी अभी हम जो रिश्ते मानते आ रहे हैं....वही मानकर नए सिरे से अपने परिवार कि शुरुआत करेंगे... मुझे फिर से कोई उलझन या मुश्किल नहीं चाहिए अपने इस घर में... इसलिए हमें और किसी से कोई मतलब नहीं रखना….. अब से तुम मेरी बहन हो और इन बच्चों की मौसी-बुआ जो भी बनना चाहो.... ये बच्चे जितने मेरे हैं उतने ही तुम्हारे” रागिनी ने साफ शब्दों में कहा जिस पर ना केवल ऋतु बल्कि अनुराधा और प्रबल ने भी सहमति जताई
और फिर सबने मिलकर प्लान किया की आगे किस तरह से किसको क्या करना है... ऋतु ने बताया की वो अभी फिलहाल अभय के साथ ही काम करती रहेगी। अनुराधा और प्रबल को आगे पढ़ने के लिए उसी कॉलेज में एड्मिशन करा दिया जाएगा जिसमें न केवल विक्रम और रागिनी पढे थे बल्कि ऋतु का भी एड्मिशन विक्रम ने उसी कॉलेज में कराया था।
साथ ही ऋतु ने बताया की विक्रम की वसीयत जो अभय के ऑफिस में आगे की कार्यवाही के लिए थी उसकी फोटोकोपी उसने निकाल ली थी.... उस फोटोकोपी में विक्रम की जो वसीयत अभय ने पढ़कर सुनाई थी उसके अलावा भी बहुत से दस्तावेज़ थे ..... जो कि न केवल विक्रम और बलराज सिंह के परिवार के बारे में पूरी जानकारी देते थे बल्कि उन लोगो कि संपत्ति का भी पूरे विस्तार से ब्योरा दिया हुआ था।
ऋतु ने वो कागजात निकाल कर रागिनी को दिये और उन चारों ने उन्हें पढ्ना शुरू किया... उसमें कुछ विवरण देवराज सिंह, रुद्र प्रताप सिंह और भानु प्रताप सिंह की जायदाद के थे और कुछ कागजात में वारिसान प्रमाण पत्र भी लगे हुये थे जिनमें परिवार के सदस्यों का ब्योरा था। उन सभी वारिसान प्रमाण पत्रों को रागिनी ने अलग किया और चारों ने उन्हें पढ़ना शुरू किया
1- रुद्र प्रताप सिंह के परिवार का विवरण उनसे संबंध और जन्म वर्ष के साथ
1- निर्मला देवी -पत्नी -1928
2- जयराज सिंह -पुत्र -1947
3- विजयराज सिंह -पुत्र -1949
4- गजराज सिंह -पुत्र -1954
5- विमला देवी -पुत्री -1960
6- कमला देवी -पुत्री -1960
7- बलराज सिंह -पुत्र -1965
8- देवराज सिंह -पुत्र -1968
2- शम्भूनाथ सिंह के परिवार का विवरण संबंध और जन्म वर्ष सहित
1- जयदेवी -पत्नी 1911
2- निर्मला देवी -पुत्री 1928
3- सुमित्रा देवी -पुत्री 1932
4- माया देवी -पुत्री 1940
इसके अलावा इसमें 2 लोगों के नाम शम्भूनाथ सिंह की समस्त चल अचल संपत्ति के वारिस के तौर पर भी दिये हुये थे
1- जयराज सिंह -1947 व 2- विजयराज सिंह -1949
पुत्रगण श्रीमती निर्मला देवी एवं श्री रूद्र प्रताप सिंह
3- भानु प्रताप सिंह के परिवार का विवरण संबंध और जन्म वर्ष सहित
1- श्यामा देवी -पत्नी -1937
2- कामिनी देवी -पुत्री -1955
3- मोहिनी देवी -पुत्री -1965
ये सारा विवरण पढ़ते ही रागिनी और ऋतु आश्चर्यचकित होकर एक दूसरे की ओर देखने लगे.........दोनों की ही समझ में नहीं आया कि अब क्या कहें। फिर ऋतु ने ही कहा
“दीदी ये तो बहुत अजीब बात है.... विक्रम भैया की माँ और मेरी माँ सगी बहनें हैं और आजतक मेरी माँ ने मुझे ये बताया ही नहीं”
“ऐसा भी तो हो सकता है कि ये विक्रम कि मौसी कोई और ही मोहिनी देवी हो” रागिनी ने कहा
“नहीं मुझे मम्मी के कुछ कागजात मे उनके मटा पिता का नाम देखने को मिला है... और वैसे भी उन्होने बताया भी था कई बार उनके पिता का नाम भानु प्रताप सिंह और माँ का नाम श्यामा देवी ही है.... और उनकी जन्म तिथि भी यही है...” इस पर ऋतु ने बताया
“हो सकता है.... शायद ये सारे कागजात इस वसीयत के साथ थे...इसीलिए इन सब बातों को विक्रम ने अपनी वसीयत मे जाहिर नहीं किया.........अब ये भी साफ हो गया कि ये 5 भाई और 2 बहनें थे.... और उनमें से 2 भाइयों की शादी तुम्हारी माँ और मौसी से हुई थी” रागिनी ने गहरी सांस छोडते हुये कहा “अगर हमने पहले ही ये सारे कागजात पढ़ लिए होते तो हमें इतना परेशान न होना पड़ता”
“दीदी इनके अलावा कुछ और भी है....इस कागज में....” ऋतु ने अपने हाथ में पकड़े हुये एक कागज को दिखते हुये कहा
“क्या है?” कहते हुये रागिनी ने वो कागज अपने हाथ में लिया और पढ़ने लगी... उस कागज में एक कोर्ट का आदेश था... जयराज सिंह और बेलादेवी के तलाक का 1974 का उसे पढ़ते ही रागिनी को और बड़ा झटका लगा....
“ये जयराज सिंह को ही तो मेरा पिता बताया था मोहिनी चाची ने.... लेकिन मेरी माँ का नाम तो उन्होने वसुंधरा बताया था.... तो ये बेला देवी कौन हैं?”
“दीदी इनका तो तलाक ही 1974 में हो गया और आपकी जन्म तिथि 1979 की है.... इसका मतलब जयराज ताऊजी की दो शादियाँ हुईं थी.... आपकी माँ वसुंधरा ताईजी उनकी दूसरी पत्नी थी। लेकिन इन कागजातों में अभी बहुत कुछ नहीं है........ हमारे पिता सब भाई-बहनों कहाँ और किससे शादियाँ हुई, उनके बच्चे ....” ऋतु अभी आगे कुछ कहती उससे पहले ही ड्राइंग रूम के दरवाजे से किसी औरत ने रागिनी को आवाज दी तो प्रबल ने जाकर दरवाजा खोला एक 40-42 साल की रागिनी कि हमउम्र औरत दरवाजे पर खड़ी थी प्रबल के बराबर से अंदर घुसकर वो सीधे रागिनी के पास आयी और उसका हाथ पकड़कर खींचा... रागिनी भी उठकर खड़ी हुई तो उसने रागिनी को अपने सीने से लगाकर रोना शुरू कर दिया.... रागिनी इस अजीब से हालात में चुपचाप खड़ी अनुराधा, ऋतु और प्रबल की ओर देखने लगी
रागिनी ने उसे अपने साथ ही पकड़कर सोफ़े पर बिताया और बोली “मेंने पहचाना नहीं आपको? अप रोईए मत.... बताइये... क्या बात हो गयी”
“तूने मुझे भी नहीं पहचाना... सही बताया था प्रवीण और माँ ने .... तेरी याददास्त सचमुच ही चली गयी है.... तू तो मुझे मेरी खुशबू से पहचान लेती थी” उसने रोते हुये ही कहा
“सुधा! तो तुम हो सुधा” रागिनी को सुबह की बात ध्यान आ गयी “अब रो मत .... देखले तेरे सामने सही सलामत बैठी हूँ.... मुझे कुछ याद नहीं तो क्या हुआ.... तुझे तो सबकुछ याद होगा.... तू बता देना”
“हाँ! में तुझे सबकुछ बताऊँगी....... वो भी जो तुझे पहले भी नहीं पता था.... तब कितनी बार तूने मुझसे पूंछा लेकिन में हमेशा टाल देती थी कि कहीं तू भी इस झमेले मे न फंस जाए.... लेकिन अब में सबकुछ बताऊँगी.... में आज यहाँ तुझसे मिलकर सबकुछ बताने ही आयी हूँ और और में तेरी गुनहगार हूँ... माफी न सही लेकिन दोस्ती को जोड़े रखना” सुधा ने रागिनी से कहा
“दीदी! आज सुधा दीदी को भी अपने साथ रोक लेते हैं.... रात में ये सब बातें होंगी.... अभी कुछ नाश्ता वगैरह कर लेते हैं... फिर रात के खाने कि तयारी करते हैं” ऋतु ने वहाँ फैले सभी कागजात समेटते हुये कहा और अनुराधा को साथ आने का इशारा करते हुये किचन कि ओर चल दी