06-02-2020, 04:55 PM
केशव : "ठीक है दीदी...अब जल्दी से खाना लगाओ...बड़ी भूख लगी है मुझे..''
और फिर हंसते हुए काजल उसके लिए खाना परोसने लगी..
खाना खाते हुए अचानक काजल ने कहा : "तुम रम्मी खेलते हो या पत्ते पर पत्ता ..''
केशव खाना खाते-2 अचानक रुक गया और ज़ोर-2 से हँसने लगा , और बोला : "हा हा हा, दीदी आप भी ना, ये बच्चों वाले खेल तो घर पर खेले जाते हैं..''
काजल ने भी ये बात इसलिए कही थी क्योंकि वो खुद अपने भाई के साथ बचपन मे यही खेल खेलती थी..और कई बार क्या, हमेशा ही केशव को उसमें हरा देती थी..
केशव : "हम लोग खेलते हैं, तीन पत्ती ..यानी फ्लेश ''
काजल : "ये कैसे होता है....''
केशव : "उम्म्म.....आप ऐसा करो...खाना खाने के बाद में आपके रूम मे आता हू...वहीं दिखाता हूँ की ये कैसे होता है..''
काजल भी खुश हो गयी....वैसे भी खाना खाने के बाद वो रात को 12 बजे तक जागती रहती थी...ऐसे मे अपने भाई के साथ कुछ वक़्त गुजारने की बात सुनकर वो काफ़ी खुश हुई..और उसने खुशी-2 हाँ कर दी.
किचन समेटने के बाद वो अपने कमरे मे गयी, जहाँ पहले से ही केशव अपने हाथ मे ताश की गड्डी लेकर उसका इंतजार कर रहा था.
आने से पहले काजल अपना मुँह अच्छी तरह फेस वॉश से धोकर आई थी...ये काम वो रोज रात को करती थी...अपने चेहरे को चमका कर रखती थी वो हमेशा..इसलिए जब वो केशव के पास पहुँची तो उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे वो अभी नहा धोकर आई है..
और मुँह धोने की वजह से उसकी टी शर्ट भी आगे से गीली हो गयी थी..और इसलिए उसके उभारों वाली जगह टी शर्ट से चिपक कर पारदर्शी हो गयी थी..पर निप्पल्स वाली जगह से नही, सिर्फ़ उपर-2 से..पर इतना गीलापन भी काफ़ी था केशव के लंड की नोक पर गीलापन लाने के लिए..आज उसके साथ लगातार दूसरी बार ऐसी घटना हो रही थी ,आज से पहले उसने अपनी बड़ी बहन को ऐसी नज़रों से देखा ही नही था...दोनो अलग-2 और अपने मे मस्त रहते थे..पर आज जिस तरह से उसने केशव के सिर को अपने सीने से लगाया और अब अपनी गीली चुचियों के दर्शन भी करवा रही है..ऐसे मे इंसान का अपने लंड पर बस चलना काफ़ी मुश्किल हो जाता है.
काजल धम्म से आकर उसके सामने पालती मार कर बैठ गयी और बोली : "हांजी ...अब बताओ...क्या होता है ये तीन पत्ती''
केशव : "जीतने भी खेलने वाले होते हैं, उन्हे 3-3 पत्ते बाँट दिए जाते हैं...और जिसके पत्ते बड़े होंगे, वही जीत जाएगा..''
काजल : "बस....इतना सा ...ये तो बड़ी आसान सी गेम है...बिल्कुल बच्चों वाली...हा हा ..''
वो तो ऐसे बिहेव कर रही थी जैसे वो एक ही बार मे सीख चुकी है..
और फिर हंसते हुए काजल उसके लिए खाना परोसने लगी..
खाना खाते हुए अचानक काजल ने कहा : "तुम रम्मी खेलते हो या पत्ते पर पत्ता ..''
केशव खाना खाते-2 अचानक रुक गया और ज़ोर-2 से हँसने लगा , और बोला : "हा हा हा, दीदी आप भी ना, ये बच्चों वाले खेल तो घर पर खेले जाते हैं..''
काजल ने भी ये बात इसलिए कही थी क्योंकि वो खुद अपने भाई के साथ बचपन मे यही खेल खेलती थी..और कई बार क्या, हमेशा ही केशव को उसमें हरा देती थी..
केशव : "हम लोग खेलते हैं, तीन पत्ती ..यानी फ्लेश ''
काजल : "ये कैसे होता है....''
केशव : "उम्म्म.....आप ऐसा करो...खाना खाने के बाद में आपके रूम मे आता हू...वहीं दिखाता हूँ की ये कैसे होता है..''
काजल भी खुश हो गयी....वैसे भी खाना खाने के बाद वो रात को 12 बजे तक जागती रहती थी...ऐसे मे अपने भाई के साथ कुछ वक़्त गुजारने की बात सुनकर वो काफ़ी खुश हुई..और उसने खुशी-2 हाँ कर दी.
किचन समेटने के बाद वो अपने कमरे मे गयी, जहाँ पहले से ही केशव अपने हाथ मे ताश की गड्डी लेकर उसका इंतजार कर रहा था.
आने से पहले काजल अपना मुँह अच्छी तरह फेस वॉश से धोकर आई थी...ये काम वो रोज रात को करती थी...अपने चेहरे को चमका कर रखती थी वो हमेशा..इसलिए जब वो केशव के पास पहुँची तो उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे वो अभी नहा धोकर आई है..
और मुँह धोने की वजह से उसकी टी शर्ट भी आगे से गीली हो गयी थी..और इसलिए उसके उभारों वाली जगह टी शर्ट से चिपक कर पारदर्शी हो गयी थी..पर निप्पल्स वाली जगह से नही, सिर्फ़ उपर-2 से..पर इतना गीलापन भी काफ़ी था केशव के लंड की नोक पर गीलापन लाने के लिए..आज उसके साथ लगातार दूसरी बार ऐसी घटना हो रही थी ,आज से पहले उसने अपनी बड़ी बहन को ऐसी नज़रों से देखा ही नही था...दोनो अलग-2 और अपने मे मस्त रहते थे..पर आज जिस तरह से उसने केशव के सिर को अपने सीने से लगाया और अब अपनी गीली चुचियों के दर्शन भी करवा रही है..ऐसे मे इंसान का अपने लंड पर बस चलना काफ़ी मुश्किल हो जाता है.
काजल धम्म से आकर उसके सामने पालती मार कर बैठ गयी और बोली : "हांजी ...अब बताओ...क्या होता है ये तीन पत्ती''
केशव : "जीतने भी खेलने वाले होते हैं, उन्हे 3-3 पत्ते बाँट दिए जाते हैं...और जिसके पत्ते बड़े होंगे, वही जीत जाएगा..''
काजल : "बस....इतना सा ...ये तो बड़ी आसान सी गेम है...बिल्कुल बच्चों वाली...हा हा ..''
वो तो ऐसे बिहेव कर रही थी जैसे वो एक ही बार मे सीख चुकी है..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.