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Adultery मेहमान बेईमान
अभी मैं या वो कुछ और बोलते या कुछ समझते इस से पहले ही घर मे एक साथ दोनो लोगो के चलने की आहट सुनाई देने लगी. मेरी तो हालत ही बुरी हो गयी थी. पता नही कों होगा. मुझे इस हालत मे किसी ने देख लिया तो पता नही मेरा क्या होगा. क्या सोचेगे लोग मेरे बारे मे. ये बात जब मनीष को पता चलेगी तो… नही… पूरा गाँव मेरा मज़ाक बनाएगा.. ऐसे ही हज़ारो तरह के ख़यालात एक ही पल मे मेरे जहन मे घूमने लग गये और मेरी हालत और भी ज़्यादा खराब हो गयी. तभी उन दोनो लोगो के चलने की आवाज़ धीरे धीरे करके हमारे और नज़दीक आने लग गयी. जैसे जैसे उन कदमो के चलने की आवाज़ हमारे नज़दीक आती जा रही थी. मेरी हालत और भी ज़्यादा खराब होती जा रही थी. मैने एक नज़र संजय की तरफ देखा तो डर के कारण उसकी आँखो से भी आँसू निकल रहे थे.
वो कदमो की आहट चलते हुए बिल्कुल हमारे नज़दीक आ गयी और बाथरूम का दरवाजा खाट-ख़ताने की आवाज़…


दरवाजे पर खटकने की आवाज़ ने तो जैसे मुझे लगभग कोमा की इस्थिति मे ले जा कर खड़ा कर दिया. समझ मे नही आ रहा था कि कॉन होगा दरवाजे पर.. हम दोनो के चेहरे एक दूसरे की तरफ थे वो भी डर के कारण बुरी तरह से घबरा रहा था. उसकी ये हालत देख कर मेरी खुद की हालत और ज़्यादा खराब होने लगी. बाहर जिस तरह की खामोशी भरा महॉल था उसने जैसे डर मे दुगना इज़ाफ़ा कर दिया. सिर्फ़ दरवाजा खटखटने की आवाज़ आ रही थी. बाकी कॉन आदमी है दरवाजे पर ये पता नही चल रहा था.
मैने बोहोत डरते हुए काँपति हुई आवाज़ मे संजय से कहा कि “देखो तो सही आख़िर कॉन है दरवाजे पर”
उसने अपनी गर्दन ना मे हिला दी. वो इतना ज़्यादा डर गया था कि उसका पूरा शरीर डर के कारण काँप रहा था. यहा दरवाजा बराबर खटक रहा था. मैने ही हिम्मत करके दरवाजे को थोड़ा सा खोला. मैं दरवाजे की पीछे की तरफ थी और आगे की तरफ संजय. थोड़ा सा दरवाजा खुलते ही. अंदर की तरफ एक हाथ आया और संजय का गला पकड़ कर उसे बाहर की तरफ खींच लिया. डर के कारण उसके हाथ से मेरी साडी पहले ही निकल कर ज़मीन पर गिर गयी थी.
उसके बाहर खींचे जाते ही मैने अपनी साडी को जल्दी से उठाया और दोनो हाथो से पकड़ कर उसे अपनी छाती से लगा कर वही दरवाजे के पीछे की तरफ खड़ी हो गयी. मुझ मे इतनी भी हिम्मत नही थी कि मैं दरवाजे से बाहर की तरफ झाँक कर भी देख सकु की आख़िर बाहर है कॉन ?
बाहर से संजय और रामकुमार दोनो के ज़ोर ज़ोर से रोने की आवाज़ आ रही थी. डर के कारण मेरी आँखे अपने आप बंद हो कर उपर वाले को याद करने लग गयी थी. पर अगले ही पल मैने अपने आप को संभाला और अपनी हालत को सही करने लगी. जल्दी से मैने अपने ब्लाउस के दोनो बटन लगाए और उतनी ही फुर्ती के साथ अपनी साडी को सही करके पहन लिया.
थोड़ी ही देर ही दोबारा से दरवाजे को किसी ने बाहर से धक्का दे कर पूरा खोल दिया. दरवाजा खुलते ही अमित मेरे सामने खड़ा हुआ था. उसके चेहरे पर गुस्से के भाव सॉफ नज़र आ रहे थे. वो मुँह से कुछ नही बोला बस गुस्से से मेरी तरफ घूरे जा रहा था. मैं जल्दी से बाथरूम से बाहर निकल आई. मेरे बाहर आते ही वो फिर से उन दोनो की तरफ बढ़ा और दोनो को बारी बारी से मारने लग गया.
उसकी खामोशी और गुस्से को देख कर डर के कारण मेरी हालत और भी ज़्यादा खराब होने लग गयी थी. कुछ भी समझ मे नही आ रहा था कि क्या करू क्या ना करू. पर उसके आ जाने से जो डर थोड़ी देर पहले लग रहा था वो डर काफ़ी हद तक कम हो गया था.
वो दोनो मार खाते हुए अमित से यही कह रहे थे कि “पीनू भैया हमारी कोई ग़लती नही है ये खुद ही हमारे पास आई थी.” पर अमित तो जैसे उनकी एक भी बात सुनने को तैयार नही था और उनको बे इंतहहा मारे जा रहा था. थोड़ी देर तक उन दोनो की भर पेट मार लगाने के बाद उसने मेरी तरफ देखा… उसकी आँखो मे मेरे लिए गुस्सा और नफ़रत का भाव सॉफ देखाई दे रहा था. मैं उसकी आँखो के इशारे को समझते हुए तुरंत वहाँ से हट कर बाहर दरवाजे की तरफ बढ़ गयी.
बाहर दरवाजे पर आ कर मैने इधर उधर की तरफ देखा कि कोई देख तो नही रहा है. किसी को वहाँ पर माजूद ना पा कर मैं फ़ौरन वहाँ से बाहर निकल आई. मेरे पीछे ही अमित भी बाहर आ गया. वो एक दम खामोश था. मैं उस से बात करना चाह रही थी. पर उसकी आँखो मे अपने लिए गुस्सा देख कर मेरी हिम्मत नही हो रही थी कि मैं उस से कुछ भी बात कर सकु.
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RE: मेहमान बेईमान - by Deadman2 - 05-02-2020, 09:40 PM
RE: मेहमान बेईमान - by Newdevil - 18-07-2021, 03:03 PM



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