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Adultery मेहमान बेईमान
एक शिहरन सी दौड़ गयी मेरे शरीर मे. उसकी बात सुन कर एक पल के लिए तो मेरी आँखो की आगे पूरा सीन ही बन गया कि रामकुमार मेरी योनि को सक कर रहा है और मैं पूरी नंगी खड़ी हो कर अपनी योनि उसके साथ सक करवा रही हू. पर अगले ही पल मुझे होश आया कि नही.. मैं ये सब क्या उल्टा सीधा सोच रही हू इसलिए वापस अपने होश-ओ-हवास मे आते हुए उनसे बोली “मुझे ये सब अच्छा नही लगता.”
“पर मैने तो सुना है की लड़कियो को अपनी चूत चुसवाने मे बोहोत मज़ा आता है और वो चुदाई से पहले दो तीन बार अपनी चूत चुस्वाति है.” संजय अपने चेहरे पर एक घिनोना भाव लाते हुए बोला. और उसकी नज़रे भी कभी मेरी छाती तो कभी मेरी दोनो टाँगो के बीच मे घूमती हुई महसूस हो रही थी.
“आता होगा लड़कियो को मज़ा पर मुझे नही ये सब अच्छा नही लगता और ना ही मैं ये सब करती हू.” मैने अपने चेहरे पर गुस्से के भाव लाते हुए कहा.. मुझसे इस वक़्त वहाँ से जल्द से जल्द वापस अपने घर पर निकलने की पड़ी थी पर यहा ये दोनो मुझे फ्री ही नही होने दे रहे थे.
रामकुमार अपनी जगह से मेरे नज़दीक आकर सोफे पर बैठ गया और अपना एक हाथ बढ़ा कर मेरी जाँघ पर फिराते हुए बोला “तो तू एक बार ट्राइ क्यू नही करके देख लेती है. तुझे भी पता चल जाएगा कि चूत चुसाई मे कितना मज़ा आता है”
मैने उसका हाथ फॉरन अपनी जाँघ से हटा कर दूर झटक दिया. इतनी देर मे संजय भी मेरी दूसरी तरफ आकर बैठ गया और उसने मेरे एक उभार को अपने हाथ मे थाम लिया.
उन दोनो की इस हरकत से मैं बुरी तरह से घबरा गयी समझ मे नही आ रहा था कि क्या करू. मुझे अब डर लगने लग गया था कि कही ये दोनो मिल कर मेरा रॅप ना कर दे. पर फिर भी अपनी हिम्मत को जुटा कर मैने उन दोनो से कहा कि “दूर हटो मुझसे. ये क्या कर रहे है तुमने वादा किया था कि केवल बात करोगे हाथ भी नही लगाओगे मुझे.. मैं जा रही हूँ.” उन दोनो को अपने से दूर झटक कर मैं सोफे से खड़ी हो गयी और दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी.
संजय ने बाला की फुर्ती के साथ खड़े हो कर मुझे पीछे से दबोच लिया.. उसके मुझे पकड़ते ही रामकुमार सोफे से उठ कर मेरे आगे आ गया और अपने घुटनो के बल नीचे बैठ गया. वो मेरी साडी उपर उठाने लगा. उसकी इस हरकत से बचने के लिए मैने अपने हाथ पैर चलाए पर उन दोनो पर तो जैसे कोई असर ही नही हो रहा था.
मैं उन दोनो के आगे मजबूर हो गयी थी लेकिन अपने आप को छुड़ाने के लिए भरसक प्रयास कर रही थी “दूर हटो कमीनो मुझसे.. रुक जाओ वरना मैं चिल्लाउन्गि.” मैने अपने आप को उनकी क़ैद से छुड़ाने की पूरी कोसिस करते हुए कहा.
“उस आदमी को भी तो देकर आई है. मैं तो बस तेरी चूत को चूसना चाहता हूँ.” रामकुमार अपने हाथो को मेरी साडी और पेटिकोट को उपर उठा कर मेरी योनि तक ले जाते हुए बोला. रामकुमार का हाथ अपनी योनि पर महसूस होते ही मेरे पूरे शरीर मे एक झूर-झूरी सी दौड़ गयी.
उसने अपने हाथ को थोड़ी देर मेरी पॅंटी के उपर से ही घुमाता रहा और फिर मेरी पॅंटी के अंदर हाथ डाल कर मेरी पॅंटी को थोड़ा नीचे सरका दिया. मैं संजय की क़ैद मे बुरी तरह से छट-पटा रही थी आज़ाद होने के लिए. पर संजय की पकड़ बोहोत मजबूत थी उसकी पकड़ से बाहर निकलने मे मैं पूरी तरह से नाकामयाब थी.
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RE: मेहमान बेईमान - by Deadman2 - 05-02-2020, 09:36 PM
RE: मेहमान बेईमान - by Newdevil - 18-07-2021, 03:03 PM



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