05-02-2020, 12:09 PM
(03-02-2020, 04:08 PM)neerathemall Wrote: मुंबई की चाल में पैदा हुई शालिनी, बबलू मास्टर की देखरेख में शालिनी से डांसर शालू और फिर फिल्म स्टार बन गई. विदेशी डेविड को समीप से देखने का मौका मिला तो शालू उस की नीली आंखों में ऐसा खोई कि अपना सबकुछ भूल गई. शालू को क्या पता था कि जिसे वह अपना समझ रही है वह उसे नहीं उस की शोहरत और दौलत को चाहता है…
भाग-1
शालू को पता नहीं क्या हो गया था. 50वीं बार उस ने जिगनेश से किलक कर कहा, ‘‘अमेरिका जा कर सब से पहले डिजनीलैंड देखूंगी.’’
जिगनेश ने जवाब नहीं दिया. इस से पहले वे कई बार कह चुके थे, ‘‘हां, जरूर, उसी के लिए तो हम अमेरिका जा रहे हैं.’’
लेकिन शालू की अमेरिका जाने की वजह कुछ और थी. वह सालों बाद अपने बेटे बौबी और उस के परिवार से मिलने जा रही थी. पिछली बार कब मिली थी बौबी से? वह दिमाग पर जोर डाल कर सोचने लगी. शायद 8 साल पहले. बौबी अकेला ही मुंबई उस से मिलने आया था. बौबी के आने की वजह थी कि वह अमेरिका में एक घर खरीदना चाहता था और उस के पास पैसे नहीं थे. शालू ने अपने लाड़ले बेटे का माथा चूमते हुए तब कहा था, ‘तो क्या हुआ बौबी, मैं हूं न. एकदो धारावाहिक में ज्यादा काम कर लूंगी. तू अपने लिए घर ले, पैसे मैं दूंगी.’
बौबी खुश हो कर 2 दिन बाद ही वापस चला गया था. जिंदगी यों ही बीतती गई. महीने में एकाध बार मांबेटे से बात हो जाती, बस. महीना भर पहले जब शालू ने जिगनेश से शादी करने का निश्चय किया, तब फोन किया था बौबी को. उसे पता था कि उस के निर्णय से बौबी जरूर खुश होगा. बौबी ने उस का संघर्ष और अकेलापन देखा है.
बौबी ने उस से सिर्फ एक सवाल किया, ‘‘मां, तुम सोचसमझ कर शादी कर रही हो ना?’’
‘‘हां, बेटे, जिगनेश ने और मैं ने 3 धारावाहिकों में एकसाथ काम किया है. बहुत अच्छे आदमी हैं. खुले दिल के, हंसते रहते हैं और मेरा बहुत खयाल रखते हैं,’’ शालू उत्साह से बोली थी.
‘‘वह तो ठीक है मां, पर इस उम्र में? वे तुम से क्या चाहते हैं?’’
शालू हंसी थी, ‘‘अरे, पागल, वे मुझ से उम्र में 3 साल छोटे हैं. मुझ से क्या चाहेंगे? बस, हम दोनों एकदूसरे को चाहते हैं, साथ रहना चाहते हैं, बस.’’
उस समय शालू को यह कतई नहीं लगा था कि बौबी उस की शादी से नाखुश है. जब उस ने बताया कि वे दोनों उस से मिलने अमेरिका आ रहे हैं तो वह चौंका.
शालू प्यार से बोली, ‘‘बौबी, मैं ने तेरी बेटी को नहीं देखा. बहू से भी नहीं मिली. वहां आऊंगी तो सब से मिलना भी हो जाएगा और मेरा डिजनीलैंड देखने का सपना भी पूरा हो जाएगा. तू चिंता मत कर. मैं वीजा वगैरह यहीं से बनवा रही हूं. टिकट भी बुक करवा लिया है. बस, तुझे आने की तारीख और फ्लाइट के बारे में बता दूंगी. मैं तो पागल हो रही हूं तुझ से मिलने के लिए. तुझे यहां से क्याक्या चाहिए, बता दे. मैं सब ले आऊंगी.’’
और उत्साह से निकल पड़ी थी शालू अपने बेटे से मिलने अमेरिका.
शालू जब एअर इंडिया के विमान में पति जिगनेश की बगल में बैठी, तो उस की निगाह अपनेआप लगातार उसे घूरते हुए एक अधेड़ व्यक्ति पर पड़ गई. शालू ने निगाह बचानी चाही…बेवजह जिगनेश से बात करने की कोशिश करने लगी कि वह आदमी उठ कर उस के सामने ही आ गया.
उस ने विनीत भाव से कहना शुरू किया, ‘‘क्षमा कीजिए, आप शालू हैं न, फिल्म हीरोइन?’’
शालू नहीं चाहती थी कि उस की इस यात्रा में उसे कोई भी पहचाने, पर अब जवाब तो देना ही था. वह जरा सी हंसी और बोली, ‘‘काहे की हीरोइन? वह जमाना तो गया.’’
‘‘अरे, नहीं, आप क्या कहती हैं शालूजी? आप के कैबरे देखदेख कर तो हम जवां हुए हैं.’’
उस ने सीधे शालू के मर्म पर चोट कर दी. शालू चुप लगा गई. पर उस ने यह भी देख लिया था कि उस के 50 साल के पति जिगनेश को यह सुन कर अच्छा नहीं लगा.
‘‘मैं तो फिल्मों और टीवी में मां और दादी का रोल करती हूं. आप यह कहां की पुरानी बात ले बैठे. अच्छा, आप अपनी जगह जा कर बैठिए. एअर होस्टेस इशारा कर रही है.’’
वह आदमी बेमन से अपनी जगह चला गया. शालू ने नजरें फेर लीं और सोचने लगी कि क्या वाकई उस आदमी की नजरों ने 35 साल पहले की शालू को पहचान लिया था. शालू यानी शालिनी. साथ में कोई नाम नहीं. मुंबई की एक चाल में पैदा हुई थी शालिनी और उस की बहन कामिनी. दोनों गरीबी और अभावों में पलीं. पिता स्टेशन पर कुली का काम करते थे. शालिनी जब 7 साल की थी तो पिता चल बसे थे. मां के बस की बात नहीं थी कि 2 लड़कियों को अपने दम पर पालतीं. वे दोनों बच्चियों को ले कर अपने भाई के घर चली आईं.
बस, वहां पेट भरने लायक खाना मिल जाता था. कॉलेज जाने का तो कभी सवाल ही नहीं उठा. 12 साल की शालिनी को मामा फिल्मों में ग्रुप डांस करवाने वाले बबलू मास्टर के पास ले कर गए. बबलू मास्टर 40 साल के अनुभवी व्यक्ति थे. डरीसहमी शालिनी में न जाने उन्होंने क्या देखा कि मामा को कह दिया, ‘इसे कल से मेरे पास भेज दो, कुछ बन जाएगी.’
बबलू मास्टर के पास शालिनी कथक सीखने लगी और साल भर बाद मास्टरजी उसे हीरोइन के पीछे खड़ा कर नचवाने लगे. शालिनी अपनी उम्र की दूसरी लड़कियों के मुकाबले लंबी थी. सलोना चेहरा. हमेशा चुप रहती. धीरेधीरे वह बबलू मास्टर की प्रिय शिष्या बन गई. जब हाथ में थोड़ा पैसा आने लगा तो उस ने अपनी छोटी बहन कामिनी को पढ़ने कॉलेज भेज दिया. उसी के साथ बैठ कर थोड़ा पढ़ना भी सीख लिया.
शालिनी ने कभी नहीं सोचा था कि ग्रुप डांस करतेकरते एक दिन वह एक नायिका बन जाएगी. हालांकि उस के सामने ही ऐक्स्ट्रा की भूमिका निभाने वाली मुमताज नायिका बनी थीं लेकिन अपने लिए उस ने इतना सबकुछ सोचा ही नहीं था.
वह दूर से देखती थी चमचमाती गाडि़यों में सितारों को स्टूडियो आतेजाते. सेट पर उन के आते ही भगदड़ मच जाती थी. निर्मातानिर्देशक जोर से चिल्ला उठते, ‘अरे, कोई है? ठंडा लाओ, कुरसी लाओ.’
शालिनी को अच्छा लगता था दूर से यह सबकुछ देखना. बबलू मास्टर अकसर उसे नसीहतें देते, ‘बेटी, फिल्मी चकाचौंध से जितना दूर रहोगी उतना ही खुश रहोगी. यह कभी मत सोचना कि उन के पास सबकुछ है, तुम्हारे पास कुछ नहीं.’
शालिनी के साथ काम करने वाली दूसरी ग्रुप डांसर कभी किसी जूनियर आर्टिस्ट के साथ घूमने चल देती, तो कभी आगे बढ़ कर किसी हीरो से बात करने की कोशिश करती. बबलू मास्टर उसे समझाते कि इन सब से कुछ नहीं होगा. फिल्मी दुनिया में लड़कियों को संभल कर रहना चाहिए.
2 साल बतौर ग्रुप डांसर काम करने के बाद अचानक एक दिन उस की किस्मत ने पलटा खाया. एक नामी निर्माता की फिल्म में बबलू मास्टर डांस डायरेक्टर थे. फिल्म में एक कैबरे था जो बिंदु को करना था, लेकिन ऐनवक्त पर बिंदु बीमार पड़ गई. सैट लग चुका था, सारी तैयारी हो चुकी थी. निर्माता मुरली भाई परेशान हो उठे और उन्होंने बबलू मास्टर से कहा, ‘मास्टरजी, कुछ करो. बेशक किसी नई लड़की को ले आओ पर मुझे समय पर शूटिंग करनी है, नहीं तो बहुत नुकसान हो जाएगा.’
बबलू मास्टर ने रातोंरात शालिनी को इस कैबरे के लिए तैयार कर लिया. तब शालिनी 16 साल की नहीं हुई थी, लेकिन देहयष्टि कमनीय थी. चेहरा सुंदर था और नाचने में उस का कोई सानी नहीं था. मेकअप आदि के बाद जब मास्टरजी ने शालिनी को कैबरे की पोशाक दी तो छोटी पोशाक देख कर उस का चेहरा सन्न रह गया.
मास्टरजी ने जैसे उस के दिल की बात समझ ली, ‘बेटी, इस से अच्छा मौका तुझे नहीं मिलेगा. पोशाक में क्या रखा है? दिल साफ होना चाहिए.’
शालिनी ने सुनहरे रंग की पोशाक पहन ली. बालों पर सुनहरा ताज, पैरों में सुनहरी जूती. जब मुरली भाई ने उसे देखा तो एकदम से खुश हो गए, ‘वाह, यह लड़की तो गजब ढा देगी. पर इस का नाम ठीक नहीं है, बहुत बड़ा है. हम इसे शालू कहेंगे.’
उस दिन शालिनी से वह शालू बन गई. बबलू मास्टर के नृत्यनिर्देशन में किए गए उस के कैबरे बहुत लोकप्रिय हुए. इस के बाद उसे न जाने कितनी फिल्मों में कैबरे और डांस करने का मौका मिला. जब वह कमर लचकाती, तो लाखों दिल हिल जाते. देखतेदेखते उस की तसवीर फिल्मी पत्रिकाओं में छपने लगी, उस के पोस्टर बिकने लगे.
कभीकभी तो खुद को इस रूप में देख उसे शर्म आती पर धीरेधीरे वह आदी हो गई और उसे अपने काम में मजा आने लगा. बबलू मास्टर हर कदम पर उस के साथ थे. उन से पूछे बिना वह कोई फिल्म साइन नहीं करती थी. चाल से निकल कर वह फ्लैट में आई, छोटी सी गाड़ी भी ली. मामा और मामी भी उस के साथ रहने आ गए.
शालू को पहले तो एक हौरर फिल्म में हीरोइन की भूमिका करने को मिली. बबलू मास्टर नहीं चाहते थे, पर मामा की ख्वाहिश थी कि वह सिर्फ एक डांसर बन कर न रहे. अब मामा ही उस के रुपएपैसे का हिसाब देखने लगे थे. पहली 2-3 फिल्में उस की बी ग्रेड की थीं. एक में वह दस्यु सुंदरी बनी थी, दूसरी में तांत्रिक की बेटी और तीसरी में सरकस की कलाकार. इसी समय उस का परिचय कामेडियन नजाकत अली से हुआ.
नजाकत नामी हास्य अभिनेता थे और एक कामेडी फिल्म बना रहे थे. नायक के लिए उन्होंने एक नए चेहरे बृजेश को चुन लिया था. जब उन्होंने शालू को नायिका बनने का प्रस्ताव दिया तो उसे विश्वास नहीं हुआ. फिल्म बड़े बजट की थी. भूमिका भी अच्छी थी. पहली बार उसे फिल्म में साड़ी पहनने का मौका मिला. शालू ने दिल लगा कर काम किया. फिल्म खूब चली और शालू बन गई एक सफल नायिका. बृजेश के साथ उस की कई फिल्में आईं. उन दोनों की जोड़ी हिट मानी जाने लगी.
शालू को याद नहीं कि वे दिन इतनी जल्दी और कहां उड़ गए. खूब पैसा कमाती थी वह और हमेशा शूटिंग में व्यस्त रहती थी. मुंबई के बांद्रा इलाके में बड़ा सा फ्लैट ले लिया. मामा के लिए एक गाड़ी, कामिनी के लिए दूसरी. खुद वह इंपाला में आतीजाती. बबलू मास्टर से जब कभी मुलाकात होती, वे कहते, ‘बेटी, जरा धीरे चलो. इतना तेज भागोगी तो गिर जाओगी.’
शालू हंस देती, ‘दादा, अब गिरने से डर नहीं लगता.’
लेकिन गिर ही तो गई थी शालू. कहते हैं न, सिर पर जब इश्क का जनून सवार हो जाता है तो आदमी को फिर कुछ नजर नहीं आता. ऐसा ही कुछ हुआ शालू के साथ. डेविड स्वीडन से मुंबई आया था. यहां मायानगरी पर वह एक डाक्यूमैंट्री फिल्म बना रहा था. बबलू मास्टर के यहां ही डेविड से पहली बार मिली थी शालू. उसे देखते ही डेविड अपनी कुरसी से उठ खड़ा हुआ, ‘ओह, सो यू आर द ग्रेट डांसिंग क्वीन.’
शालू सकुचा गई. बबलू मास्टर के कहने पर उस ने डेविड की एक फिल्म में डांस कर लिया.
वह पहली मुलाकात ऐसी थी कि शालू की आंखों की नींद उड़ गई. उस ने जिंदगी में पहली बार किसी विदेशी पुरुष को इतने समीप से देखा था. उस की सांसों की गरमाहट, बात करने का बेतकल्लुफ अंदाज और लहीमशहीम कदकाठी… शालू उस की ओर खिंचती चली गई. डेविड ने न जाने क्या जादू कर दिया उस के ऊपर.
दूसरी मुलाकात के बाद डेविड ने प्रस्ताव रखा कि शालू उसे आगरा ले जाए. वह संसार का 7वां आश्चर्य शालू के संगसाथ खड़ा हो कर देखना चाहता है. शालू आगरा पहले भी जा चुकी थी. ताजमहल के ठीक सामने उस ने एक मुजरा किया था, लेकिन डेविड के साथ ताजमहल देखने का रोमांच वह छोड़ नहीं पाई.
मुंबई से दिल्ली तक विमान से और फिर वहां से टैक्सी ले कर दोनों आगरा पहुंचे थे. शालू डेविड के प्यार में डूब चुकी थी. डेविड का उसे प्यार से बेबी कह कर पुकारना, उस की हर जरूरत का खयाल रखना और सब से जरूरी उस का अतीत जानने के बाद भी उस का साथ देना, उसे भा गया.
आगरा मेें वे दोनों फाइव स्टार होटल में ठहरे. डेविड ने अपने दोनों के लिए अलगअलग कमरे बुक किए थे, लेकिन वहां वे दोनों रुके एक ही कमरे में और उसी दिन यह तय कर लिया कि मुंबई जाते ही दोनों कोर्ट में शादी कर लेंगे. डेविड को उस के फिल्मों में काम करने से आपत्ति नहीं थी बल्कि वह खुद भी मुंबई में ही रह कर कुछ काम करना चाहता था.
ताजमहल जहां प्रेम का आगाज होता है और परवान चढ़ता है. शालू ने मुग्ध भाव से सफेद संगमरमर की इमारत को रात के अंधेरे में चांदनी बन चमकते देखा. ‘वाह’, डेविड ने उस का हाथ पकड़ कर कहा था, ‘अमेजिंग.’
शालू को मतलब समझ में नहीं आया, लेकिन इतना एहसास हुआ कि वह ताजमहल की तारीफ कर रहा था. उस रात दोनों देर तक ताज के सामने बैठे रहे और डेविड बारबार उसे जतलाता रहा कि वह उस से कितनी मोहब्बत करता है.
शालू ने मुंबई लौटने के बाद जैसे ही मामा को बताया कि वह डेविड से शादी करने जा रही है, वे एकदम फट पड़े, ‘तेरा दिमाग तो नहीं खराब हो गया, शालिनी? एक गोरे से शादी कर रही है, वह भी कैरियर के इस मोड़ पर? शादीशुदा हीरोइनों को फिल्म लाइन में कोई नहीं पूछता. इस समय तुझे पूरा ध्यान फिल्मों में लगाना चाहिए. मैं नहीं करने दूंगा तुझे शादी.’
मां, मामी और कामिनी ने भी उसे काफी कुछ सुनाया. शालू एकदम से सकते में आ गई. इतने बरस तक उस ने जो कुछ किया कमाया, घरवालों के हाथ में रखा. कभी अपने पैसे का हिसाब नहीं पूछा और आज जब वह अपनी गृहस्थी बसाने की सोच रही है, कोई उसे उस की जिंदगी नहीं जीने देना चाहता. रात भर बिस्तर पर पड़ीपड़ी रोती रही शालू.
सुबह हुई. दर्द से आंखों के पपोटे दुखने लगे थे. मन हुआ कि एक कप चाय पी ले. उस ने अपने कमरे का दरवाजा खोलने की कोशिश की लेकिन वह तो बाहर से बंद था.
वह अपने ही घर में कैद कर ली गई थी. शालू के दिमाग ने जैसे सोचना- समझना बंद कर दिया. 10 बजे मां कमरे में आईं, चाय और नाश्ता ले कर और सीधे स्वर में बोलीं, ‘देख शालिनी, तुम्हारे मामा बहुत गुस्से में हैं, वह तो तुम पर उन का हाथ उठ जाता, पर मैं ने ही रोक लिया कि…’
शालू धीरे से बुदबुदाई, ‘सोने का अंडा देने वाली मुरगी को कैसे मारेंगे, अम्मां?’
दोपहर को मामा उसे स्टूडियो छोड़ने आए. आज उसे एक गंभीर सीन करना था पर शालू हर बार गड़बड़ा जाती. एक बार तो सीन करतेकरते वह गिर पड़ी. उस का हाल देख कर शूटिंग कैंसिल कर दी गई. शालू कपडे़ बदलने के बहाने स्टूडियो के पिछले रास्ते से बाहर निकल एक आटो पकड़ कर सीधे डेविड के होटल पहुंच गई.
डेविड को जैसे उस का ही इंतजार था. तुरंत वे दोनों वहां से एक टैक्सी ले कर लोनावाला के लिए निकल गए. अगले दिन लोनावाला के एक मंदिर में माला बदल शादी कर ली और शालू ने एक पत्रकार को अपनी शादी की खबर बता दी.
अगले दिन सभी अखबारों में शालू की शादी की खबर छप गई. शादी के पहले कुछ दिन अच्छे गुजरे. 2 महीने बीततेबीतते डेविड ने उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि वह मामा और मां से अपने पैसों का हिसाब ले. अपना घर होते हुए भी वह किराए के घर में क्यों रहती है? इस बीच शालू को एहसास हो गया कि वह मां बनने वाली है. उस के हाथ जो बचीखुची फिल्में थीं, वे भी निकलती चली गईं.
इधर डेविड के रोज के तानों से वह आजिज आती चली गई. शादी से पहले जिस व्यक्ति की रोमांटिक बातें, रूपरंग उसे लुभाते थे, अब उसी व्यक्ति का यह रूप उसे डराने लगा. हर समय वह पैसे की बात करता. डेविड ने मामा को कानूनी नोटिस भेज दिया कि वह शालू के पैसे और घर वापस करें, लेकिन मामा ने कुछ भी शालू के नाम नहीं किया था. घर उन के नाम था और सेविंग परिवार के दूसरे सदस्यों के नाम. ज्यादातर तो कामिनी और मामा के ही नाम पर था.
डेविड के हाथ कुछ न लगा. वह बौखला गया और शालू पर दबाव बनाने लगा कि वह गर्भपात करवा ले, जिस से उसे फिल्मों में काम मिल सके.
शालू के लिए बहुत मुश्किल भरे दिन थे. बस, एक अंतिम फिल्म थी उस के हाथ ‘जादूगरनी.’ इस में वह नायिका थी. सुबह उठने का जी नहीं करता. वह उलटियां करती हुई शूटिंग करने जाती. सूखा चेहरा, हाथपांवों में थकान और मन में उदासी. डेविड ने अल्टीमेटम दे दिया था कि वह इस सप्ताह गर्भपात करवा ले.
शालू की आंखों में हर समय तूफान भरा रहता. क्या इस दिन के लिए उस ने अपने परिवार वालों से लड़झगड़ कर शादी की थी? अपना कैरियर दांव पर लगाया था? जिस प्यार के लिए जिंदगी भर तरसी उस का यह हश्र?
यह तो उस के दुखों की शुरुआत भर थी. जैसे ही शालू ने गर्भपात कराने से इनकार किया, डेविड का व्यवहार ही बदल गया. अब शालू के सामने था एक क्रूर और स्वार्थी इनसान, जिसे मतलब था तो सिर्फ शालू की कमाई से. शालू दिन भर शूटिंग में उलझी रहती, शाम को थकीहारी घर आती. डेविड शराब के नशे में चूर उसे दुत्कारता, गालियां सुनाता. जिस दिन शालू ‘जादूगरनी’ की शूटिंग पूरी कर के घर आई, डेविड ने उसे यहां तक कह दिया कि वह कहीं से भी उसे कमा कर दे, अगर फिल्मों से नहीं कमाती तो अपना शरीर बेचे…
शालू ने अपने कानों पर हाथ रख लिया. अंदर तक छलनी कर दिया था डेविड ने उसे. मामा और परिवार के दूसरे सदस्यों के मुकाबले कहीं अधिक स्वार्थी निकला था उस का डेविड. उस रात बाथरूम में अपने को बंद कर रोती रही थी शालू. सुबह हुई तो उठ नहीं पाई. शरीर गरम तवे सा जल रहा था. लग रहा था मानो उस के अंदर एक ज्वालामुखी भर गया हो, जो किसी भी वक्त फट पड़ेगा. डेविड की चिल्लाने की आवाज लगातार आती रही पर इस समय शालू को न उस की आवाज से डर लग रहा था न उस के होने की दहशत.
शालू उठी, धीरे से दरवाजा खोला. दरवाजे के सामने ही डेविड बदहवास सोया पड़ा था. किसी तरह उस के शरीर को लांघ कर शालू बाहर सड़क पर आ गई और आटो पकड़ सीधे वह बबलू मास्टर के घर पहुंची.
दादर में एक पुरानी इमारत में दूसरे माले पर बबलू मास्टर रहते थे. लकड़ी की सीढि़यां पार कर शालू उन के घर के सामने खड़ी हुई. अंदर से बबलू मास्टर के खांसने की आवाज आ रही थी. दरवाजा खुला था. शालू को देख बबलू मास्टर की बहू ने पूछा, ‘कौन? क्या मांगता है?’
शालू किसी तरह दरवाजे की टेक लगाए इतना ही बोल पाई, ‘मैं, शालू.’
अस्तव्यस्त कपड़े, बिखरे बाल और बुखार से तपता शरीर, इस समय शालू एक फिल्म की तारिका नहीं, बल्कि किस्मत की मारी दुखियारी लग रही थी.
बबलू मास्टर के सामने शालू फूटफूट कर रो पड़ी. उन्होंने उस के सिर पर हाथ रख कर सिर्फ इतना ही कहा, ‘इस बूढ़े, बीमार आदमी की बात मान जाती बेटी तो…’
शालू बिलखने लगी, ‘दादा, मुझे बचा लो. वह आदमी मेरे बच्चे को मार डालेगा.’
बबलू मास्टर को धीरेधीरे शालू ने पूरी बात बताई. यह तो वे भी जानते थे कि शालू के हाथ कोई फिल्म नहीं रही. वैसे भी शादीशुदा नायिकाओं को कोई अपनी फिल्म में लेना पसंद नहीं करता है, वह भी ग्लैमरयुक्त भूमिकाओं में.
बबलू मास्टर की एक मौसी रत्नागिरी में रहती थीं. तय हुआ कि शाम की बस से उन की पत्नी और बहू के साथ शालू रत्नागिरी जाएगी और बच्चा होने तक वहीं रहेगी.
बबलू मास्टर ने शालू को समझाते हुए कहा, ‘देख बेटी, शूटिंग पूरी होने के बाद डबिंग होने में काफी समय लगता है. तब तक तो तू लौट आएगी. इस के बाद देखते हैं क्या करना है.’
शालू के पास इस के अलावा कोई रास्ता नहीं था. बस, इतना भर याद रहा कि रत्नागिरी पहुंचतेपहुंचते उस के तन में ताकत रही न मन में जीने की आशा. बबलू मास्टर की बहू तारा उस का खूब खयाल रखती. बच्चे की दुहाई दे कर खिलातीपिलाती. शालू का दिमाग कुंद पड़ता जा रहा था. अपने बच्चे को बचाने की खातिर वह सब से भाग कर यहां तो आ गई, पर आगे क्या करेगी? मुंबई में न उस का घर रहा न कोई काम, जिस के भरोसे बच्चे को पाल सके. फिर डेविड क्या उसे इतनी आसानी से छोड़ देगा? डेविड की याद आते ही पूरे शरीर में झुरझुरी सी आ जाती. कई बार उस का मन किया कि मां को फोन करे, कामिनी से बात करे पर वह रुक जाती. इन में से किसी ने उस का तब साथ नहीं दिया था जब वह डेविड से शादी करने जा रही थी. सब उसे बांध कर रखना चाहते थे, ताकि वह पैसा कमा कर उन्हें देती रहे. क्या अब उस का साथ देंगे? कहीं वे भी उस के बच्चे के पीछे तो नहीं पड़ जाएंगे?
दिन भर बिस्तर पर पड़ीपड़ी यही सब सोचती रहती शालू. शाम को तारा उसे जबरदस्ती बाहर अपने साथ घुमाने ले जाती. शालू ने यहां आने के बाद अपने हाथ और कानों का सोना बेच अपने लिए कुछ कपड़े खरीदे और बाकी पैसे बबलू मास्टर की पत्नी के हाथ में रख दिए. इस के अलावा उस के पास देने के लिए था ही क्या?
आखिर 5 महीने बाद शालू के मन की मुराद पूरी हुई. उसे बेटा हुआ, अपने बाप की तरह गोराचिट्टा, नीली आंखों वाला. उसे देखते ही शालू अपने सारे गम भूल गई.
तारा ने ही उस का नाम बौबी रखा. अपनी गोद में बच्चे को ले कर तारा चहकते हुए बोली, ‘देखो, शालू दीदी, यह बिलकुल बौबी फिल्म के हीरो ऋषि कपूर की तरह लगता है. इतना सुंदर बच्चा मैं ने कभी नहीं देखा. इस का नाम बौबी रखो, दीदी.’
शालू को बौबी का कोई काम नहीं करना पड़ा. दिनभर तारा उस की देखभाल करती. बबलू मास्टर की पत्नी उस की मालिश करती, नहलातीधुलाती.
बौबी 1 महीने का हुआ. अब मुंबई वापस जाने का समय आ गया था. इस कल्पना से ही शालू को दहशत होने लगी.
लौट कर सब बबलू मास्टर के ही घर आए. इस बीच बबलू मास्टर ने ‘जादूगरनी’ के निर्माता को बता दिया कि शालू बच्चे के जन्म के लिए बाहर गई है, लेकिन डेविड ने खूब तमाशा किया, कहांकहां नहीं ढूंढ़ा उसे. शालू के बारे में उसे कहीं से कोई खबर नहीं मिली.
बबलू मास्टर के घर एक दिन रुक कर अगले दिन शालू बौबी को ले कर अपने मामा के घर गई. वह घर, जिसे उस ने तिनकातिनका जोड़ कर संवारा था. मां उसे देखते ही रो पड़ीं, भाग कर बौबी को गोद में उठा लिया लेकिन मामा और कामिनी का बरताव बेहद रूखा था.
कामिनी की शादी होने वाली थी और मामा नहीं चाहते थे कि उस समय शालू वहां रहे भी. ‘तुम्हारी शादी की वजह से वैसे भी बहुत बदनामी हो चुकी है हमारी. तुम्हारा पति आएदिन यहां आ कर शोर मचाता रहता है. इस समय हमें कोई झमेला नहीं चाहिए,’ मामा इतना बोल कर चले गए थे.
शालू की आंखें भर आईं. उस से यह भी कहते नहीं बना कि ये शानोशौकत और घर उस की कमाई के हैं. वह अपने बच्चे को गोद में उठाए चलने को हुई, मां ने उस की बांह पकड़ ली, ‘शालू, कहां जा रही है? मैं भी चलूंगी तेरे साथ.’
शालू अपनी मां के साथ घर से बाहर निकल आई. इस के बाद शुरू हुआ संघर्ष का लंबा दौर. इस बीच डेविड न जाने कहां निकल गया था. किराए के घर में अपने दुधमुंहे बच्चे को मां के पास छोड़ कर शालू निर्मातानिर्देशकों के पास काम मांगने जाती लेकिन हर तरफ से निराशा मिलती. चंद महीने पहले की कामयाब और चर्चित नायिका को पूछने वाला कोई न था. उस की फिल्म ‘जादूगरनी’ भी बीच में ही अटक गई थी. कई निर्माताओं ने तो उस पर कटाक्ष भी कर दिया कि अब वह पहले की तरह सैक्सी नहीं दिखती. मां बन गई है तो मां की ही भूमिकाएं मिलेंगी उसे.
2 महीने बाद उसे एक फिल्म में छोटी सी भूमिका मिली. जिस नायक के साथ साल भर पहले वह मुख्य नायिका थी, आज उस की भाभी का किरदार कर रही थी शालू. लेकिन काम तो करना ही था. घर का किराया, बच्चे का खर्च इन सब की जिम्मेदारी उठानी थी उसे. 22 साल की उम्र में भाभी और बहन की भूमिकाएं निभाने के बाद वह मां की भी भूमिका निभाने लगी. काम वह दिल लगा कर करती, लेकिन जैसे हंसना ही भूल गई थी शालू. अपना काम निबटा कर घर आने की जल्दी होती उसे. बौबी बड़ा हो रहा था और अब तुतला कर बोलने लगा था.
हर समय उसे एक ही आशंका बनी रहती कि अगर किसी दिन डेविड लौट आया तो?
एक दिन उस की आशंका सही निकली. जिंदगी पटरी पर चलने लगी थी. वह फिल्मों में छोटीमोटी भूमिकाएं करने लगी. भूल चली थी कि एक समय वह इसी फिल्म इंडस्ट्री में नायिका हुआ करती थी. पुराने सारे तार काट डाले. मुश्किल था उस के लिए यह सब करना. अभी वह युवा थी, एक बच्चे की मां, और वह भी अकेली औरत. रोज ही उस के सामने लुभावने प्रस्ताव आते, कई निर्माता- निर्देशक तो साफ कहते कि अगर वह बेहतर रोल और पैसा चाहती है तो उसे समझौता करना होगा.
शालू का चेहरा कठोर हो चला था. वह बेहद विनम्रता से उन की बात ठुकरा देती. उसे कम पैसों में एक बार फिर जिंदगी चलाना आ गया.
इस बीच, मां बीमार रहने लगीं, बौबी की जरूरतें बढ़ने लगीं और एक दिन…
शाम की शिफ्ट थी. महबूब स्टूडियो में वह हीरो की मां का रोल कर रही थी. बालों में सफेद विग, सफेद साड़ी पहने और पूरी बांह का ब्लाउज. उस से उम्र में बस 1 साल छोटी निकिता फिल्म की नायिका थी. हाथ में चाय का गिलास लिए छोटीछोटी चुस्कियां भर रही थी शालू कि अचानक सामने डेविड नजर आ गया.
और शालू के हाथ से चाय का गिलास फिसल कर साड़ी पर बिखर गया. दिल जोरों से धड़कने लगा. हां, पूरे 4 साल बाद उसे देख कर उस की तरफ चला आया डेविड.
शालू को काटो तो खून नहीं. इतने में स्पौट बौय उस के पास आ कर उस की साड़ी साफ करने लगा.
डेविड आ कर सीधे उस के कदमों में बैठ गया. पहले से कहीं दुबलापतला, अधमरा, बढ़ी दाढ़ी, पिचके गाल और खिचड़ी बाल. जैसे ही उस ने शालू के कदमों पर अपना सिर रखा, वह चिहुंक कर उठ खड़ी हुई.
डेविड कुछ लरजता सा बोला, ‘शालू डार्लिंग, मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है. तुम्हारी जिंदगी तबाह कर दी. प्लीज…मुझे अपना लो.’
शालू इस के लिए तैयार नहीं थी. उस ने हमेशा डेविड को गरजते, झगड़ते ही देखा था. डेविड का यह नया रूप था लेकिन उस की आंखें वही थीं. संशय से भरी आंखें. शालू ने धीरे से कहा, ‘मेरा पीछा छोड़ दो. मेरे पास अब तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है.’
डेविड चिरौरी करने लगा, रोने लगा, ‘शालू, मैं ने बहुत धक्के खाए हैं. अब कभी मैं तुम्हें तंग नहीं करूंगा. मुझे घर ले चलो.’
‘कौन सा घर?’ शालू के होंठों पर विद्रूप मुसकान तैर आई, ‘तुम ने मेरे लिए कुछ छोड़ा ही नहीं.’
वह उठी और लंबे डग भरती वहां से चली गई. शौट खत्म कर जब वह आई तो मन में हलचल मची थी कि कहीं डेविड बाहर उस का इंतजार तो नहीं कर रहा? किसी तरह उस ने मेकअप आर्टिस्ट लतिका को अपने साथ चलने के लिए राजी किया. स्टूडियो के बाहर से वह रोज घर जाने के लिए आटो लेती थी. उस ने लतिका से कहा कि वह आटो वाले को बुलाए, सिर पर आंचल रख कर शालू वहां से निकली और सीधे आटो में बैठ गई.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.