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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक
#37
अध्याय 12


“ऋतु बेटा कहाँ पर हो तुम?” मोहिनी देवी ने दूसरी ओर से फोन उठते ही कहा

“माँ! ऑफिस में ही हूँ...आप घर पर ही हैं?” ऋतु ने जवाब के साथ सवाल भी कर दिया

“हाँ! में घर पर ही हूँ। तुम घर पर ही आ जाओ... यहीं दोनों साथ में लंच भी कर लेंगे और मुझे कहीं जाना भी था तो तुम मेरे साथ चलना” मोहिनी ने कहा

“माँ! यहाँ भी मुझे कुछ काम था... लेकिन चलो... पापा भी नहीं हैं ...में आती हूँ” कहकर ऋतु ने फोन काट दिया

फोन काटने के बाद मोहिनी ने बलराज सिंह को फोन करके रागिनी का मोबाइल नं मांगा तो उन्होने रागिनी और दोनों बच्चों के मोबाइल नं दे दिये साथ ही उन्होने बलराज सिंह को गाँव में घर पर परंपरागत जो भी व्यवस्था करनी थी करके आज ही दिल्ली आने को कह दिया और खुद लंच बनाने की तैयारी मे लग गयी।

थोड़ी देर बाद घंटी बजी तो मोहिनी ने दरवाजा खोला और ऋतु उनके साथ ही अंदर आकर अपने कमरे में फ्रेश होने चली गयी.... मोहिनी देवी खाना डाइनिंग टेबल पर लगाकर वहीं बैठकर ऋतु का इंतज़ार करने लगी... ऋतु भी अपने कमरे से आकर मोहिनी के पास ही बैठ गयी और दोनों खाना खाने लगीं...खाना खाते हुये ही ऋतु ने मोहिनी से पूंछा की उन्हें कहाँ जाना है तो उन्होने बताया

“मेरी तुम्हारे पापा से बात हो गयी है.... वो भी आज रात तक यहाँ आ रहे हैं... लेकिन उससे पहले हम दोनों को किशनगंज चलना है... रागिनी से मिलने”

“क्या? लेकिन माँ .... और मुझे बुलाने की क्या जरूरत थी... वो घर तो अपने भी देखा हुआ है... शायद कई बार” ऋतु ने उन पर ताना कसते हुये कुछ तेज आवाज मे कहा... लेकिन मोहिनी ने सामान्य स्वर में ही उससे कहा

“मेंने वो घर देखा हुआ है... लेकिन पहले विक्रम के साथ जाती थी... कई बार गयी...... लेकिन अकेली कभी नहीं गयी तो मुझे रास्ता पता नहीं... और दूसरी बात...... उन लोगो से हमारा ही नहीं तुम्हारा भी तो कुछ रिश्ता है... तुम्हें भी तो आगे बढ़कर उन्हें जानना चाहिए.... कल को विमला कि तरह हम भी न रहे तो तुम्हारा अपना कौन होगा...जिसे तुम जानती हो.... रागिनी कि तो याददास्त चली गयी... इसलिए आज उसका कोई अपना नहीं.... जिसे वो जानती हो...”

“ठीक है माँ! में चलती हूँ... लेकिन ये बात तो आपको तभी गाँव में ही कर लेनी चाहिए थी... रागिनी दीदी ने अगर हमें नहीं पहचाना था तो आप और पापा तो जानते थे...कि वो कौन हैं.....” ऋतु ने कुछ चिढ़ने वाले अंदाज में कहा

जवाब में मोहिनी देवी कुछ कहते-कहते रुक गईं और चुपचाप खाना खाती रहीं।

.................................

“रागिनी आओ पहले खाना खाते हैं फिर बैठकर बात करेंगे” सुरेश ने दरवाजे से हटकर रागिनी, अनुराधा और प्रबल को अंदर आने का रास्ता देते हुये कहा “हम तब से तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे ...”

“आज क्या ऑफिस नहीं गए तुम?” रागिनी ने पूंछा

“गया तो था लेकिन पूनम ने फोन करके बताया कि तुम आ रही हो तो में तभी वापस आ गया था”

अंदर आते ही रागिनी ने प्रबल को हाथ मुंह धोने को कहा तो प्रबल वहीं वाश बेसिन पर चला गया और रागिनी ने अनुराधा को पूनम के बैडरूम कि ओर जाने को कहा... रागिनी खुद वहीं सोफ़े पर पूनम के पास बैठ गयी, सुरेश भी आकर दूसरे सोफ़े पर बैठ गया

“रागिनी तुम्हें तो तुम्हारा घर मिल गया... तुम्हारे परिवार वालों का भी पता चल ही जाएगा... लेकिन प्रबल का क्या करोगी.... अनुराधा तो तुम्हारी अपनी भतीजी है ही...” सुरेश ने बात शुरू करते हुये कहा

“प्रबल का क्या करना है....वो पहले भी मेरा बेटा था....अब भी है...उसे जन्म से पाला है मेंने....... और अनुराधा भी मेरी भतीजी से ज्यादा मेरी बेटी है...... दिल्ली में भी जो हमारे पड़ोसी हैं वो बता रहे थे... ये 3 दिन की थी तबसे पाला है मेंने......... वहाँ हमें घर नहीं मकान मिला है......घर तो मेरा हमेशा से मेरे साथ था, अब भी है..... मेरे दोनों बच्चे” मुसकुराते हुये रागिनी ने कहा.... तब तक प्रबल भी उनके पास आकर खड़ा हो गया तो अनुराधा ने अपने हाथ बढ़ाकर उसे अपने पास ही खींचकर बैठा लिया। तब तक अनुराधा भी पूनम के बैडरूम से निकाल कर आयी तो रागिनी ने उठते हुये उसे अपनी जगह पर प्रबल और पूनम के बीच बैठा दिया और खुद पूनम के बेडरूम में फ्रेश होने चली गयी

पूनम ने दोनों बच्चो और सुरेश को डाइनिंग टेबल पर चलने को कहा और कुछ देर में ही रागिनी भी आ गयी तो सबने मिलकर खाना खाया। खाना खाकर रागिनी ने पूनम और सुरेश से कहा की उसे कुछ जरूरी बातें बाटनी हैं... इस पर सुरेश ने अनुराधा और प्रबल की ओर इशारा किया... रागिनी ने कहा की जो भी बातें होंगी इन दोनों के भी सामने होंगी

“आप दोनों ने मुझसे विक्रम की वजह से रिश्ता जोड़ा है तो इन्हें भी उसी रिश्ते मे शामिल मानिए.... ये न तो छोटे बच्चे हैं और न ही मुझसे अलग... जब विक्रम ने इन्हें मुझे पालने को दिया तो आप ये मानिए की इनको भी आप वही प्यार और विश्वास दें जो विक्रम को देते थे” रागिनी ने आगे कहा “में और ये बच्चे अब हमेशा के लिए दिल्ली जा रहे हैं... विक्रम के जीतेजी तो आप लोग किसी भी तरह से हवेली मे रहने को तयार नहीं हुये ...लेकिन आज वो हवेली जिसमें विक्रम की ज़िंदगी बीती...वीरान होने जा रही है.... हालांकि हम यहाँ आते जाते रहेंगे... फिर भी... मेरा निवेदन है की अब आप लोग उसी हवेली में रहें जिससे हमें भी सिर्फ हवेली देखने नहीं आपसे मिलने आने की वजह मिले.... अभी के हालात हम तीनों के सामने हैं उस नजरिए से हमें न चाहते हुये भी बहुत समय के लिए दिल्ली रहना पड सकता है... और वैसे भी ये हवेली विक्रम के ही परिवार की है...... और अप उसी परिवार का हिस्सा हैं... मुझे गाँव में पता चला कि आपका गाँव केवल एक ही परिवार का है और आप लोग लगभग 100 साल पहले राजस्थान से आकार यहाँ बसे हैं....एक अलग नया गाँव बसाकर.. इसीलिए आपके परिवार के अलावा इस गाँव मे और कोई अन्य है ही नहीं”

“फिर भी ...” सुरेश ने कुछ कहना चाहा तो पूनम ने उसे रोकते हुये कहा “रागिनी अब हम हवेली में ही रहेंगे...शायद तुम्हें पता नहीं कि गाँव मे सब यही समझते हैं कि हम विक्रम के साथ हवेली में ही रहते हैं... न कि कोटा शहर में अलग मकान में........ये मकान भी विक्रम का ही है... जो उन्होने ‘इनके’ नाम पर खरीद कर दिया हुआ था........... एक बात तो तुम्हें पता ही है कि मेरे विक्रम से कैसे संबंध थे.... सुरेश इनके साथ रहते थे तो पता नहीं कब इन्हें मुझसे प्यार हो गया और मुझे इनकी मासूमियत भा गयी... विक्रम अपने रिश्ते कि वजह से हमारी शादी नहीं कराना चाहते थे...... हमारी जिद के आगे मजबूर होकर उन्होने ये शादी तो हो जाने दी, लेकिन शादी से लेकर अब तक जिंदा रहते विक्रम ने कभी मुझे मिलना तो क्या देखा भी नहीं......इसीलिए उन्होने हमें हवेली मे रहने को माना कर दिया और ये मकान लेकर दिया रहने को....... सुरेश से भी वो बाहर ही मिलते थे या इन्हें हवेली बुला लेते थे........” कहते कहते पूनम कि आँखों से आँसू निकालने लगे और सुरेश भी रोने लगा

तभी रागिनी के फोन पर घंटी बजी तो रागिनी ने देखा कि ऋतु के नं से कॉल आ रही है....रागिनी के फोन उठाते ही ऋतु ने जो कहा सुनकर रागिनी चौंक गयी

“रागिनी दीदी! में ऋतु बोल रही हूँ”

“ऋतु! तुम मुझे दीदी कबसे बोलने लगी...???” रागिनी ने चोंकते हुये कहा

“दीदी! में और माँ किशनगंज आए हुये हैं.... और मुझे आज ही पापा ने बताया कि आप मेरी विमला बुआ की बेटी हैं........ आप कब तक यहाँ आ रही हैं? हमें आपसे मिलना है” ऋतु ने भर्राए हुये स्वर में कहा

“में हवेली से निकलकर कोटा आ चुकी हूँ रात तक हम दिल्ली पहुँच जाएंगे, दिल्ली पहुँचते ही में तुम्हें फोन करती हूँ” रागिनी ने अपनी बेचैनी को दबाते हुये ऋतु से कहा और फोन काट दिया

फोन काट कर रागिनी ने पूनम और सुरेश कि ओर देखा और सुरेश से पूंछा “क्या विक्रम कि कोई बुआ थी... विमला... तुम्हारे बलराज चाचा कि बहन?”

“हाँ! मेंने उन्हें देखा तो नहीं लेकिन सुना था कि... बलराज चाचा 5 भाई और 2 बहन थे.... मेरे बाबा (दादा जी को कुछ जगह बाबा भी कहते हैं) बताया करते थे.... वो मेरे बाबा के बड़े भाई के बच्चे हैं.... उनका नाम तो मुझे भी नहीं पता... पूनम ने बताया कि तुम्हारी माँ का नाम विमला था.......... यानि तुम विमला बुआ की बेटी हो” सुरेश का मुंह भी खुला रह गया

“हाँ! और अब मुझे दीदी बोला करो....” रागिनी ने अपनी पलकों पर रुके हुये आँसू साफ करते हुये मुसकुराते हुये कहा

“लेकिन विक्रम आपको क्यों नहीं जानता था.... उसने कभी मुझसे ऐसा कुछ बताया भी नहीं....... जबकि वो आपसे ही नहीं.... आपके परिवार में सभी से मिला था.... विमला बुआ, ममता भाभी, सरोज भाभी ......सभी से....” सुरेश बोला

“शायद विक्रम पहले नहीं जानता होगा ......... लेकिन बाद में उसे पता चला होगा... इसीलिए वो हमें अपने साथ रखे हुये था...... तुम भी तो नहीं जानते थे” रागिनी ने सुरेश से कहा और मन में सोचने लगी...... शायद यही वजह थी... जो विक्रम ने कभी मेरे साथ जिस्मानी रिश्ता बनाना मंजूर नहीं किया...... वो हमारे रिश्ते को जानता था

“अब हमें निकालना चाहिए दिल्ली जाकर ऋतु और उनके मम्मी-पापा से भी मिलना है.... मोहिनी जी और ऋतु अभी किशनगंज वाले घर आयीं हुईं थी.... लेकिन एक और सवाल का जवाब पूनम तुमसे चाहती हूँ.... तुमने बताया था कि विक्रम कि शादी कि खबर सुनी थी किसी से तुमने.... क्या इस बारे में कोई जानकारी मिल सकती है किसी से... कहीं से भी...... क्योंकि मेरे ख्याल से ये बात विक्रम के परिवार में भी किसी को नहीं पता थी” रागिनी ने पूंछा

“हाँ! ये बात मुझे नेहा ने बताई थी.... कॉलेज में तुम्हारी सहेली थी.... नेहा कक्कड़.... लेकिन तुम शायद तब भी ये नहीं जानती थी की नेहा विक्रम के भी संपर्क मे थी.... विक्रम को बहुत मानती थी वो.... शायद तुम्हारी और विक्रम की आपस मे नहीं बनती थी...इसलिए वो तुम्हारे सामने विक्रम के बारे में अंजान बनी रहती थी.... वो तुम्हारी क्लास में ही थी.... तुम अपने प्रवेश पत्र में दी हुई डीटेल से कॉलेज में पता लगाना ....वहाँ नेहा का एड्रैस मिल सकता है” पूनम की बात सुनकर रागिनी ने हाँ में सिर हिलाया और उठ खड़ी हुई

साथ ही अनुराधा और प्रबल भी और उन सब को बाहर तक छोडने पूनम और सुरेश भी आए

तीनों बाहर आकर गाड़ी में बैठे और दिल्ली की ओर चल पड़े
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RE: मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक - by kamdev99008 - 01-02-2020, 06:11 AM



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