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Adultery मेहमान बेईमान
मैने जल्दी से अपने सब कपड़े पहने और जैसे ही पेटिकोट पहनने जा रही थी वो ज़मीन से उठ कर बैठ गया और मेरी दोनो टाँगो के बीच मे आ कर बैठ गया.
:”अब क्या है ?” मैने उसके इस तरह वापस अपनी टाँगो के बीच आ जाने के कारण उस पर गुस्सा करते हुए कहा
“एक चुम्मा तो ले लेने दो” इतना कह कर उसने अपना मुँह मेरी योनि के उपर लगा कर उसे चाटने लग गया.
मैने उसे अपने से दूर किया और जल्दी से अपने कपड़े पहन कर दरवाजे से बाहर झाँकते देखा कि कोई देख तो नही रहा. किसीको ना पा कर मैं फॉरन वहाँ से बाहर निकल आई


.जैसे ही मैं स्टोर रूम से निकली तो मैने देखा कि हमारे घर के सामने जो घर था उसकी छत पर संजय और रामकुमार खड़े थे. हमारे परिवार की इन सामने वालो से बिल्कुल नही बनती थी. इसीलिए हमने उन्हे शादी मे भी इन्वाइट नही किया था. मेरी और मनीष की जब नयी नयी शादी हुई थी तब मैं और मनीष मार्केट मे घूम रहे थे तो मनीष का झगड़ा हो गया था इन दोनो के साथ. बात सिर्फ़ इतनी सी थी कि मनीष की बाइक टकरा गयी थी पार्क करते वक्त इन दोनो की बाइक से. बस लड़ने लगे दोनो. मैं मनीष को मना कर रही थी कि इन लोगो के मुँह लगने से कोई फ़ायदा नही है. पर वो दोनो तो जैसे जान भुज कर मेरे और मनीष के उपर गंदे कॉमेंट पास किए जा रहे थे.. ये सब मुझ पर देखा नही गया इसलिए मैने भी खूब खरी खोटी सुनाई थी दोनो को उसी दिन विकास को जब पता चला कि उन दोनो ने हमारे साथ बदतमीज़ी की है विकास ने उन दोनो लड़को की जम कर पिटाई कर दी.
उसी दिन के बाद से हमरे परिवार की इन दोनो के परिवार से बोल चाल बंद हो गयी. संज़ज दुबला पतला था और रामकुमार थोड़ा हेल्ती था. दोनो 12थ स्टॅंडर्ड मे पढ़ते थे. पढ़ते क्या थे बस सारा दिन आवारा गार्दी करते थे. संजय और रामकुमार चचेरे भाई थे और दोनो का घर पास पास ही था. दोनो एक दम काले रंग के थे जैसे कि कोयला होता है. पता नही आज क्या कर रहे थे ये अपनी छत पर. और ना जाने क्यों टकटकी लगा कर हमारी छत पर ही देख रहे थे. मुझे कुछ घबराहट हो रही थी. हे भगवान कही इन दोनो ने मुझे और इस सुवर को स्टोर रूम मे जाते हुवे तो नही देखा था. स्टोर रूम मे घुसते वक्त मैने सामने वाले घर की तरफ नही देखा था. कही ये दोनो तब भी तो वहाँ नही थे जब मैं और मुकेश कमरे मे घुस्से थे.
अचानक दोनो के चेहरों पर एक घिनोनी सी मुस्कान देखी मैने. शायद सच मे उन दोनो ने हम दोनो को अंदर जाते देखा था. एक मन तो हुआ की स्टोर रूम मे वापिस जाकर मुकेश को रुकने को बोलूं. मगर तभी कुछ लोग फिर से छत पर आ गये और मैं कोई चारा ना देख कर सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आ गयी. मेरा दिल किसी अंजाने डर से बुरी तरह से धक धक कर रहा था. मुकेश के साथ जो स्टोर रूम मे मज़े किए थे मैने अब उसका नशा उतर चुका था. और मेरे लिए एक नयी मुसीबत पैदा हो गयी थी.. नही नही उन दोनो ने कुछ नही देखा होगा. और अगर देखा भी होगा हमे कमरे मे जाते हुवे तो भी वो ये नही जान पाएँगे की हमने अंदर क्या किया. हम दोनो वहाँ कुछ काम भी तो कर सकते हैं. मेरे दिमाग़ मे इसी तरह के बोहोत सारे सवाल उठ रहे थे और खुद ही मैं अपने आप को समझाने के लिए उनके जवाब दिए जा रही थी.
नीचे आ कर मैं मेहमानो के साथ घुल मिल कर अपने दीमाग से सभी उलझने दूर रखने की कोशिस कर रही थी. अचानक रेणु आई मेरे पास और मेरे हाथ मे एक फोल्ड हुआ काग़ज़ थमा दिया. रेणु हमारे पड़ोस मे मधुबाला भाभी की लड़की थी, वो छ्टी कक्षा मे पढ़ती थी. मैने हैरानी से काग़ज़ पकड़ लिया. काग़ज़ दे कर वो चली गयी. मैने काग़ज़ को खोला. उस पर लिखा था “1 घंटे तक क्या कर रही थी स्टोर रूम मे तुम. हमे सब पता है. अभी तुरंत मेरे घर आ जाओ वरना ये खबर तेरे पति को पहुँच जाएगी. संजय” मेरे तो पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गयी. जिस बात का डर था वही हुआ दोनो सुवरो ने मुझे मुकेश के साथ स्टोर रूम मे जाते हुए देख लिया.
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RE: मेहमान बेईमान - by Deadman2 - 30-01-2020, 10:16 PM
RE: मेहमान बेईमान - by Newdevil - 18-07-2021, 03:03 PM



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