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Adultery मेहमान बेईमान
मुकेश ये सुन कर बुरी तरह से चोव्न्क गया. “क्या हुआ जानू अभी तो तुम इतने अच्छे से लंड चूस रही थी फिर यूँ अचानक जाने की बात क्यू कर रही हो ? मैने तुम्हे बताया ना कि मेरे लंड से पानी तभी निकलेगा जब वो तुम्हारी चूत देख लेगा जब तक चूत नही देख लेता ये पानी नही छ्चोड़ता है.” मुकेश ने अपने लंड पर हाथ फिराते हुए कहा.

“अब तुम्हरा पानी निकले या ना निकले मुझे इस से कोई लेना देना नही है. मैं जा रही हू यहाँ से बस.” कह कर मैं वहाँ से वापस मूड गयी. उसने बैठे बैठे मेरे नितंबो को थाम लिया और साड़ी के उपर से ही मेरी योनि पर मूह रगड़ने लगा.



मैं उसकी इस हरकत से हड़बड़ा कर पीछे हट गयी. और उस से बोली “छ्चोड़ो मुझे ये क्या कर रहे हो”

उसने कहा “अब कम से कम च्छू कर उपर से महसूस ही कर लेने दो दिखा तो तुम रही हो नही उपर से ही महसूस कर के मैं तुम्हारी चूत को महसूस कर लू”

मैने उसे कोई जवाब नही दिया उस वक़्त ना जाने मुझे क्या हो गया था कि मैं उसे रोक ही नही पा रही थी. ओर मैं वही किसी पत्थर की मूर्ति के जैसे जम गयी थी. और वो साड़ी के उपर से ही मेरी योनि को चाटने मे लगा रहा. मैं इस समय चाह कर भी खुद से उसको रोक नही पा रही थी जब की मुझे अच्छे से पता था कि अगर मैं बहक गयी तो मेरा खुद का थमना मुश्किल नही ना मुमकिन हो जाएगा. पर ना जाने क्यू मैं उसे नही रोक पा रही थी और वो बराबर मेरी साड़ी के उपर से ही मेरी योनि पर अपना मुँह लगा रहा था.

वक्त जैसे खुद को दोहरा रहा था, जैसा कल हुआ था, वैसा ही आज भी हो रहा था. फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि कल पीनू था और आज ये मुकेश. मैं चुपचाप वहाँ खड़ी रही और वो मेरी योनि को कपड़ो के उपर से ही चूमता रहा, मैने खुद को थामने की बहुत कॉसिश की पर मैं मदहोश होती चली गयी. उसके दोनो हाथ मेरे नितंबो को आटे की तरह घूथे जा रहे थे. जिस कारण मेरी मदहोशी और भी बढ़ती जा रही थी. मैं कयि दिनो से चाहती थी कि मनीष मेरे नितंबो को इसी तरह जैसे आज ये बुढहा मुकेश मसल मसल कर दबा रहा है ऐसे ही दबाए.. पर वो ना हो सका और आज हुआ भी तो इस मरियल बुढहे के हाथो से.


थोड़ी देर बाद यूँ ही साड़ी के उपर से योनि को चूमने के बाद वो बोला “जान मज़ा नही आ रहा अपनी साड़ी खोल दो ना.”

पीनू के साथ एक्सपीरियेन्स के कारण मैं खुद ऐसा ही चाहती थी, पर मैं खुद उसके लिए अपनी साडी नही खोल सकती थी. उसकी बात सुन कर भी मैने अनसुनी कर दी.

जिस पर उसने फिर से गिड-गिदाते हुए कहा “प्लीज़ जानेमन खोल दो ना, मज़ा नही आ रहा.”

मेरी साँसे तेज हो गयी, मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ क्या नही. बाहर से लोगो की आवाज़ आनी भी लगभग अब ना के बराबर रह गयी थी एक बार को तो मन मे आया कि अब बाहर निकल जाउ पर मेरे सरीर ने मेरा साथ छ्चोड़ दिया वो इस समय पूरी तरह से बहक गया था.
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RE: मेहमान बेईमान - by Deadman2 - 30-01-2020, 10:03 PM
RE: मेहमान बेईमान - by Newdevil - 18-07-2021, 03:03 PM



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