29-01-2020, 01:12 PM
नरगिस – कोई चिंता की बात नहीं है, तेरी बहन सुनीता भी तेरी जैसी चुदेलन है। क्योंकि वह कहता है, कि वो पढ़ाते पढ़ाते कई बार अपने साड़ी का पल्लू गिराती है और क्लास के लड़कों का लंड खड़ा करती है वह पक्का मान जाएगी। और नहीं मानी तो तुझे मनाना है क्योंकि तू जानती है नहीं तो मैं क्या कर सकती हूं।
फिर मैंने हां में सर हिलाया और उसे कहा – यह इतना आसान नहीं है, वह तो कुंवारी है उसने कभी संभोग भी नहीं किया होगा। और अगर उसने अपनी चूत चुदवा ली, तो वो अपने पति को क्या मुंह दिखाएगी। तुम एक काम क्यों नहीं करती सुनीता से अच्छे बूब्स मेरे हैं, तुम उसे मेरे स्तनों का दूध पिलाओ।
नरगिस – तू समझती क्यों नहीं ज्योति, उसका दिल सिर्फ सुनीता पर आया है, एक बार सुनीता से मिला तो दे।
मैं – चलो ठीक है एक काम करते हैं, कल दोपहर में उस्मान से कहना की हमें फिल्म दिखाने ले चलो। तो मैं सुनीता को भी ले आऊंगी वही सादिक से उसकी मुलाकात करा दूंगी।
नरगिस – ठीक है।
अगले दिन उस्मान सादिक के साथ मेरे घर आया, मुझे बड़ा डर लग रहा था कि मैं एक चौकीदार के साथ मैं कैसे जाऊंगी। पर वह भी बड़ा होशियार था वह साथ में बुर्खा लाया था। उसने सुनीता और मुझे दो बुर्के दे दिया, जिसे हमने पहन लिया और हम नजदीक के सिनेमा हॉल में चले गए।
मैंने सुनीता को मेरी व्यथा बता दी थी, जिसके कारण वह मेरे साथ चलने को राजी हो गयी। वह समझ गई थी कि अगर वह नहीं गई तो मेरे फोटो मार्केट में वायरल हो जाएंगे। वह मेरी इज्जत बचाने के लिए आज शायद खुद की इज्जत लुटाने आई थी।
जैसे ही हम सिनेमा हॉल पहुंचे वहां उस्मान ने \”बेगम जान\” फिल्म की चार टिकट ले ली। अंदर जाने के बाद अंधेरे में उस्मान ने हम दोनों को बीच में बैठाया, और सुनीता के पास सादिक को बिठा दिया।
मुझसे तो रहा नहीं जा रहा था, मेरा सर नीचे झुककर उस्मान की पैंट की ज़िप खोल कर लंड बाहर निकाला। फिर मै उसका लंड चूसने लग गई, यह पहली बार था नहीं था जब मैं मुख चोदन करा रही थी।
मैं साथ में देखा तो, सादिक सुनीता को चुंबन दे रहा था और सुनीता भी सब शरम हया भूलकर उसका साथ दे रही थी। कुछ देर बाद मै उन्हें टॉयलेट का कहकर बाहर चली गई, और साथ में एक बैग भी ले गई थी।
फिर मैंने हां में सर हिलाया और उसे कहा – यह इतना आसान नहीं है, वह तो कुंवारी है उसने कभी संभोग भी नहीं किया होगा। और अगर उसने अपनी चूत चुदवा ली, तो वो अपने पति को क्या मुंह दिखाएगी। तुम एक काम क्यों नहीं करती सुनीता से अच्छे बूब्स मेरे हैं, तुम उसे मेरे स्तनों का दूध पिलाओ।
नरगिस – तू समझती क्यों नहीं ज्योति, उसका दिल सिर्फ सुनीता पर आया है, एक बार सुनीता से मिला तो दे।
मैं – चलो ठीक है एक काम करते हैं, कल दोपहर में उस्मान से कहना की हमें फिल्म दिखाने ले चलो। तो मैं सुनीता को भी ले आऊंगी वही सादिक से उसकी मुलाकात करा दूंगी।
नरगिस – ठीक है।
अगले दिन उस्मान सादिक के साथ मेरे घर आया, मुझे बड़ा डर लग रहा था कि मैं एक चौकीदार के साथ मैं कैसे जाऊंगी। पर वह भी बड़ा होशियार था वह साथ में बुर्खा लाया था। उसने सुनीता और मुझे दो बुर्के दे दिया, जिसे हमने पहन लिया और हम नजदीक के सिनेमा हॉल में चले गए।
मैंने सुनीता को मेरी व्यथा बता दी थी, जिसके कारण वह मेरे साथ चलने को राजी हो गयी। वह समझ गई थी कि अगर वह नहीं गई तो मेरे फोटो मार्केट में वायरल हो जाएंगे। वह मेरी इज्जत बचाने के लिए आज शायद खुद की इज्जत लुटाने आई थी।
जैसे ही हम सिनेमा हॉल पहुंचे वहां उस्मान ने \”बेगम जान\” फिल्म की चार टिकट ले ली। अंदर जाने के बाद अंधेरे में उस्मान ने हम दोनों को बीच में बैठाया, और सुनीता के पास सादिक को बिठा दिया।
मुझसे तो रहा नहीं जा रहा था, मेरा सर नीचे झुककर उस्मान की पैंट की ज़िप खोल कर लंड बाहर निकाला। फिर मै उसका लंड चूसने लग गई, यह पहली बार था नहीं था जब मैं मुख चोदन करा रही थी।
मैं साथ में देखा तो, सादिक सुनीता को चुंबन दे रहा था और सुनीता भी सब शरम हया भूलकर उसका साथ दे रही थी। कुछ देर बाद मै उन्हें टॉयलेट का कहकर बाहर चली गई, और साथ में एक बैग भी ले गई थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
