26-01-2020, 07:59 PM
(This post was last modified: 25-04-2021, 07:36 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
५२ पत्ते की किताब
जब थोड़ी देर बाद लौटी तो ५२ पत्ते की किताब खुली थी।
( शादी के बाद ,एक बार इनके घर में ज़रा सा कभी ताश का जिक्र कर लिया था तो ,
मेरी जिठानी और इनकी उस बहन कम माल ने वो हालत कर दी ,
भाभी आप ये सोच भी कैसे सकती है इस तरह के खेल ,और मेरे भैय्या तो ,... }
थोड़ा बहुत ताश तो मैंने और मुझसे ज्यादा उनकी असली से भी ज्यादा बढकर पक्की साली ,मेरी सहेली सुजाता ने सिखा दिया ,
लेकिन तब भी वो कच्चे खिलाड़ी ही रहे ,पक्का खिलाड़ी उन्हें मॉम ने बनाया
और सिर्फ ताश में नहीं बल्कि दांव लगा के जुए की तरह खेलने में ,रमी हो ,तीन पत्ती हो या पोकर।
एक बार तो उन्होंने सुजाता ,अपनी साली को हरा भी दिया था।
पर आज मम्मी ने तगड़ी शर्त लगाई थी , उन दोनों ने मुझे भी बुलाया पर मैं किचेन में आज बिजी थी ,
" साले गांडू ,रोज हार जाता है। ध्यान लगा के खेल अगर आज हार गया न तो अपनी समधन का नाम ले के तुझसे सड़का लगवाउंगी। "
हार तो वो उस बार भी गए लेकिन मम्मी ने उन्हें मेरी सास के नाम दस गाली दिलवा के छोड़ दिया ,
पर अगला राउंड उनके हाथ में ही रहा।
ये बात अलग थी की उस समय मैं आके उनके पास बैठ गयी थी ,
और कुछ मैंने उन्हें हिंट दी , कुछ नकल कराई , मम्मी के पत्ते भी इधर उधर से देख के उन्हें इशारे से बताये।
बिना बेईमानी के आखिर ताश के खेल का क्या मजा ,और आखिर मेरा पति सिर्फ मेरा है , और उसकी जीत में मेरी जीत थी।
लेकिन एक खतरनाक बात और थी मम्मी ने धमकी दी थी ,
अगर तू हारा न तो बस भले ही तेरी बीबी लाख बहाने बना के बचाने की कोशिश करे ,
उस दस इंच के डिलडो से मैं तेरी कुँवारी गांड मार के ही रहूंगी।
उनकी कोरी गांड बच गयी ,कम से कम आज।
और फिर तीसरी बाजी लग गयी थी ,दांव पर एक बार मेरी सास थीं ,
और अपनी सास को बचाने के लिए तो मैं उनकी हेल्प करने से रही।
लेकिन खेल वो अच्छा रहे थे।
तभी एक बार दो बार तीन बार घंटी बजी , मुश्किल से बाजी बीच में छोड़ के वो उठे और दरवाजा खोला।
गीता थी .
मॉम की ,ट्रेनिंग का असर , गीता को आज थोड़ी देर हो गयी थी , वो बोल उठे,
" कमीनी ,किससे चोदवा रही थी ,जो इतनी देर हो गयी आज ,... "
" हरामजादे ,, अरे तेरी माँ के यार से , चल हट। "
गीता कौन कम थी , अदा से जुबना उभार के , बड़े नखड़े से उसने जवाब दिया ,और किचेन की ओर चल दी।
" अरे अपनी माँ का सबसे बड़ा यार तो यही है , ... "
हँसते हुए मम्मी ने और आग में घी डाला , और गीता रुक गयी।
सीधे उनके शार्ट के ऊपर से ,उनके थोड़े सोये ,थोड़े जागे बल्ज को पकड़ते बोली ,
" अररे , ... तभी तो मैं कहूँ जिस बुर से निकला है उसी भोंसडे में , गपागप्प , ... जा जा के ये इतना मस्त मूसल हो गया है।
चल चेक करके देखतीं हूँ सारी ताकत उसी के भोंसडे में खर्च कर दी या कुछ मालमसाला बचा के भी रखा है। "
गीता हंस के उनका औजार पकड़ के ड्रैग करते बोली।
वो थोड़ा सकपकाए , हिचके पर गीता ने जोर से दबाते ,मसलते बोला ,
" अरे बहुत काम करवाना है तुझसे अभी ,चल। "
मैंने और मम्मी ने इशारा किया उन्हें आँख से ,लाइन क्लियर और गीता उन्हें खींचते किचन में ,
थोड़ी ही देर में किचेन से सडप सडप की आवाजे आ रही थीं।
मम्मी मुझे देख के मुस्करा रही थीं।
" मुन्ना दुध्धू पीना है तो नीचे अर्जी लगाना पडेगा। "
किचेन से गीता की आवाज आ रही थी।
और कुछ देर बाद टारगेट बदल गया , गीता ने उनके सर को दबाते बोला ,
" अरे बहन के यार ज़रा पिछवाड़े का भी तो स्वाद चख ले, हाँ हाँ अरे जीभ पूरी अंदर डाल के। "
लेकिन थोड़ी देर बाद उनकी मुराद पूरी हो गयी थी , गीता ने अपनी दूध से छलकती एक छाती उनके मुंह में लगा दी थी ,
यही नहीं , उस पहलौठी की बियाई ने थोड़ा सा दूध ले के उनके औजार पर भी लपेट कर हलके हलके मुठियाना शुरू कर दिया,
उधर वो सपड़ सपड़ कर गीता के छाती से दूध,
मम्मी ने उनके लिए शिलाजीत,अश्वगन्धा ,शतावर ,कौंच और न जाने क्या क्या मिला के ताकत का स्पेशल मलहम बनाया था ,
लेकिन उनका भी मानना था की पहलौठी के दूध का कोई मुकाबला नहीं ,
दस पंद्रह दिन भी लन्ड पे कस के लगाया जाए तो एकदम लोहे का खम्भा ,
और सच में उनकी हालत अब वही हो गयी थी। साइज में भी कड़े पन में भी,
" अरे अबकी मायके जाओगे न तो बस अपनी उस बहिनिया को पटा के लाना ,
बस आगे की जिमेदारी मेरी , कैसे उसे तेरे नीचे लिटाना है , कैसे तेरे वीर्य से उसे गाभिन कराना है ,
और एक बार गाभिन हो गयी न बस , ९ महीने बाद बियाएगी ,
फिर एक बार पहलौठी के दूध का मजा मिलेगा , ...सारी जिम्मेदारी मेरी,सीधे से नहीं मानेगी तो जबरन ,
गाभिन तो उसे करवा के रहूंगी मैं तुमसे , ... "
गीता उनके मोटे कड़े लन्ड पे अपने दूध की मालिश करती उन्हें समझा रही थी।
वो गयी लेकिन बिना उन्हें झाड़े।
बिचारे का एकदम तना ,खड़ा ,
जब थोड़ी देर बाद लौटी तो ५२ पत्ते की किताब खुली थी।
( शादी के बाद ,एक बार इनके घर में ज़रा सा कभी ताश का जिक्र कर लिया था तो ,
मेरी जिठानी और इनकी उस बहन कम माल ने वो हालत कर दी ,
भाभी आप ये सोच भी कैसे सकती है इस तरह के खेल ,और मेरे भैय्या तो ,... }
थोड़ा बहुत ताश तो मैंने और मुझसे ज्यादा उनकी असली से भी ज्यादा बढकर पक्की साली ,मेरी सहेली सुजाता ने सिखा दिया ,
लेकिन तब भी वो कच्चे खिलाड़ी ही रहे ,पक्का खिलाड़ी उन्हें मॉम ने बनाया
और सिर्फ ताश में नहीं बल्कि दांव लगा के जुए की तरह खेलने में ,रमी हो ,तीन पत्ती हो या पोकर।
एक बार तो उन्होंने सुजाता ,अपनी साली को हरा भी दिया था।
पर आज मम्मी ने तगड़ी शर्त लगाई थी , उन दोनों ने मुझे भी बुलाया पर मैं किचेन में आज बिजी थी ,
" साले गांडू ,रोज हार जाता है। ध्यान लगा के खेल अगर आज हार गया न तो अपनी समधन का नाम ले के तुझसे सड़का लगवाउंगी। "
हार तो वो उस बार भी गए लेकिन मम्मी ने उन्हें मेरी सास के नाम दस गाली दिलवा के छोड़ दिया ,
पर अगला राउंड उनके हाथ में ही रहा।
ये बात अलग थी की उस समय मैं आके उनके पास बैठ गयी थी ,
और कुछ मैंने उन्हें हिंट दी , कुछ नकल कराई , मम्मी के पत्ते भी इधर उधर से देख के उन्हें इशारे से बताये।
बिना बेईमानी के आखिर ताश के खेल का क्या मजा ,और आखिर मेरा पति सिर्फ मेरा है , और उसकी जीत में मेरी जीत थी।
लेकिन एक खतरनाक बात और थी मम्मी ने धमकी दी थी ,
अगर तू हारा न तो बस भले ही तेरी बीबी लाख बहाने बना के बचाने की कोशिश करे ,
उस दस इंच के डिलडो से मैं तेरी कुँवारी गांड मार के ही रहूंगी।
उनकी कोरी गांड बच गयी ,कम से कम आज।
और फिर तीसरी बाजी लग गयी थी ,दांव पर एक बार मेरी सास थीं ,
और अपनी सास को बचाने के लिए तो मैं उनकी हेल्प करने से रही।
लेकिन खेल वो अच्छा रहे थे।
तभी एक बार दो बार तीन बार घंटी बजी , मुश्किल से बाजी बीच में छोड़ के वो उठे और दरवाजा खोला।
गीता थी .
मॉम की ,ट्रेनिंग का असर , गीता को आज थोड़ी देर हो गयी थी , वो बोल उठे,
" कमीनी ,किससे चोदवा रही थी ,जो इतनी देर हो गयी आज ,... "
" हरामजादे ,, अरे तेरी माँ के यार से , चल हट। "
गीता कौन कम थी , अदा से जुबना उभार के , बड़े नखड़े से उसने जवाब दिया ,और किचेन की ओर चल दी।
" अरे अपनी माँ का सबसे बड़ा यार तो यही है , ... "
हँसते हुए मम्मी ने और आग में घी डाला , और गीता रुक गयी।
सीधे उनके शार्ट के ऊपर से ,उनके थोड़े सोये ,थोड़े जागे बल्ज को पकड़ते बोली ,
" अररे , ... तभी तो मैं कहूँ जिस बुर से निकला है उसी भोंसडे में , गपागप्प , ... जा जा के ये इतना मस्त मूसल हो गया है।
चल चेक करके देखतीं हूँ सारी ताकत उसी के भोंसडे में खर्च कर दी या कुछ मालमसाला बचा के भी रखा है। "
गीता हंस के उनका औजार पकड़ के ड्रैग करते बोली।
वो थोड़ा सकपकाए , हिचके पर गीता ने जोर से दबाते ,मसलते बोला ,
" अरे बहुत काम करवाना है तुझसे अभी ,चल। "
मैंने और मम्मी ने इशारा किया उन्हें आँख से ,लाइन क्लियर और गीता उन्हें खींचते किचन में ,
थोड़ी ही देर में किचेन से सडप सडप की आवाजे आ रही थीं।
मम्मी मुझे देख के मुस्करा रही थीं।
" मुन्ना दुध्धू पीना है तो नीचे अर्जी लगाना पडेगा। "
किचेन से गीता की आवाज आ रही थी।
और कुछ देर बाद टारगेट बदल गया , गीता ने उनके सर को दबाते बोला ,
" अरे बहन के यार ज़रा पिछवाड़े का भी तो स्वाद चख ले, हाँ हाँ अरे जीभ पूरी अंदर डाल के। "
लेकिन थोड़ी देर बाद उनकी मुराद पूरी हो गयी थी , गीता ने अपनी दूध से छलकती एक छाती उनके मुंह में लगा दी थी ,
यही नहीं , उस पहलौठी की बियाई ने थोड़ा सा दूध ले के उनके औजार पर भी लपेट कर हलके हलके मुठियाना शुरू कर दिया,
उधर वो सपड़ सपड़ कर गीता के छाती से दूध,
मम्मी ने उनके लिए शिलाजीत,अश्वगन्धा ,शतावर ,कौंच और न जाने क्या क्या मिला के ताकत का स्पेशल मलहम बनाया था ,
लेकिन उनका भी मानना था की पहलौठी के दूध का कोई मुकाबला नहीं ,
दस पंद्रह दिन भी लन्ड पे कस के लगाया जाए तो एकदम लोहे का खम्भा ,
और सच में उनकी हालत अब वही हो गयी थी। साइज में भी कड़े पन में भी,
" अरे अबकी मायके जाओगे न तो बस अपनी उस बहिनिया को पटा के लाना ,
बस आगे की जिमेदारी मेरी , कैसे उसे तेरे नीचे लिटाना है , कैसे तेरे वीर्य से उसे गाभिन कराना है ,
और एक बार गाभिन हो गयी न बस , ९ महीने बाद बियाएगी ,
फिर एक बार पहलौठी के दूध का मजा मिलेगा , ...सारी जिम्मेदारी मेरी,सीधे से नहीं मानेगी तो जबरन ,
गाभिन तो उसे करवा के रहूंगी मैं तुमसे , ... "
गीता उनके मोटे कड़े लन्ड पे अपने दूध की मालिश करती उन्हें समझा रही थी।
वो गयी लेकिन बिना उन्हें झाड़े।
बिचारे का एकदम तना ,खड़ा ,