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Adultery मेहमान बेईमान
“तुम सच में सुवर हो.” मैने अपने गुस्से को बाहर निकाल कर उसे गाली देते हुए कहा.
“हा...हा...हा वो तो मैं हूँ. बोलो क्या दीखओगि चूत या चुचिया.” उसने फिर से गंदी सी हँसी हस्ते हुए कहा. जैसी उसकी सुवर सी शक्ल थी वैसे ही उसकी हँसी भी थी. जिसे सुन कर मेरा खून खोल रहा था.
“तुम मुड़ो तो सही प्लीज़.” मैने उस से फिर से रिक्वेस्ट करते हुए कहा.
“दीखओगि ना फिर अपनी चूची.” उसने मेरी बात पर तुरंत रिप्लाइ करते हुए कहा.
“हां दीखा दूँगी, अब मुड़ो.” मेरे मूह से ना जाने कैसे हां निकल गया जबकि मेरा उस बुढहे को हां बोलने का कोई इरादा नही था.
वो गंदी सी हँसी हंसते हुवे मूड गया. मैने फ़ौरन डब्बे को अपने नीचे सरकाया और उसमें मूतने लगी. जब मैने कर लिया तो वो मूड गया. मगर तब तक मैं उठ चुकी थी. मैने गौर किया कि उसने अपनी जेब से एक देसी दारू की बॉटल निकाल कर पूरी गटक ली थी.
“दीखाओ अब.” वो नशे में थोड़ा ज़ोर से बोला.
“धीरे बोलो कोई सुन लेगा. नही दिखाउन्गि.” मैने सॉफ इनकार करते हुए कहा.
“नही ऐसा मत कहो मैं मरा जा रहा हूँ इन संतरों को देखने के लिए.” उसने इस बार थोड़ा गिड़गिदने वाली स्टाइल मे कहा.
मैं अजीब मुसीबत में फँस गयी थी.अब मैं बाहर कैसे जाउ.. उपर से यह देहाती अपने कपड़े उतार के खड़ा है…ई नो ही ईज़ नोट इन सेन्सस क्यूंकी वो पीया हुआ है. इसलिए अब मुझे ही समझदारी से काम लेना होगा. मुझे उसे प्यार से बहलाना होगा नही तो मेरी इज़्ज़त ख़तरे में पड़ जाएगी. उसने कही ज़ोर से कुछ बोल दिया तो बाहर खड़े लोग ज़रूर अंदर आ जाएँगे.
मुझे अब इन लोगों के जाने का वेट करना है मगर उसके न्यूड बॉडी को देखके मेरी साँसे फूलने लगी. हालाँकि वो बत्सूरत है फिर भी जिस तरह से वो अपने भीमकाय लिंग को अपने हाथ से सहला रहा था मुझे कुछ मदहोशी सी होने लगी थी. मैने सोचा क्यूँ नही लोगो के जाने तक थोड़ा टाइम पास करलूँ मैं. इस से ये कंट्रोल में भी रहेगा और इसके मन की बात भी पता चल जाएगी मुझे. लेट मी सी क्या है इसके दिमाग़ में. वैसे भी मैं उसे अपने साथ कुछ करने तो नही दूँगी.
मेरे मन में यह भी था कि अगर मैं किसी तरह इसका वीर्य निकालने में कामयाब हो गयी तो शायद यह शांत हो जाएगा, क्यूंकी आदमी के अंदर जोश तबतक रहता है जबतक उसके अंदर वीर्य रहता है. एक बार अगर उसका वीर्य बाहर निकल गया तो फिर उसके आगे कितनी भी सुंदर से सुंदर औरत हो वो कुछ नही कर सकता है.
इस बात का पता मुझे पीछले चार पाँच दिनो मे चल गया था जैसे मनीष करते थे. मेरे पास इस समय और कोई रास्ता नही था इस बूढ़े से अपना पीछा छुड़ाने का सिवाय इसके कि मैं उसे अपनी बातो मे फँसा कर उसका पानी निकलवा दू. इसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी था मेरा उसके साथ खुल कर बात करना. इसलिए अब मैं भी उसके साथ बात करने लगी.
“इसे यू ही निकाल कर रखोगे क्या. अंदर कर लो इसे.” मैने उसके भीमकाय लिंग की तरफ देखते हुवे कहा.
“तुम ले लो अंदर मेरी जान मैं तो कब से तैयार खड़ा हूँ.”
“धत्त अपने अंदर की बात नही कर रही मैं. इसे पॅंट में रख लो.”
“दे दो ना प्लीज़ एक बार. तूने पीनू को भी तो दी थी.”
उसका यू गिड़गिडना मुझे अप्रिय लगा. मैने उसे और सताने का प्लान बनाया.
“तुम्हे नही मिलेगा कुछ भी. तुमने तो मुझे यहाँ फँसाया है. जाओ तुम से कत्ति.”
“नही नही ऐसा मत कहो मेरी जान निकल जाएगी. बस एक बार दे दो ना.”
“यहाँ कैसे दूं तुम्हे. देखते नही बाहर लोग खड़े हैं. फिर किसी दिन दूँगी.”
“सच कह रही हो.”
“हां बिल्कुल सच.”
“मेरे लंड पे हाथ रख कर बोलो.”
“पागल हो क्या. मेरा यकीन करो. बाद में देखेंगे.”
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RE: मेहमान बेईमान - by Deadman2 - 26-01-2020, 07:57 AM
RE: मेहमान बेईमान - by Newdevil - 18-07-2021, 03:03 PM



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