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Misc. Erotica मजा पहली होली का ससुराल में ,
#41
देवर संग फागुन 

[Image: maxresdefault-3.jpg]


“और क्या फागुन लग गया है|” पीठ मलते वो बोली| एकदम और उसको ये भी बोल देना इस होली में ना, तुम मेरी अकेली देवरानी हो पूरे गाँव में तो मैं और सबको भले छोड़ दूं, लेकिन उसको नहीं छोड़ने वाली|



“सच में...” उसने पूछा| 
[Image: Geeta-2.jpg]

“एकदम..” साड़ी पहनते मैं बोली| 

सच बात तो ये थी कि मैंने उसे कई बार कुएं पे पानी भरते देखा था| था तो वो आबनूस जैसा, लेकिन क्या गठा बदन था, एक-एक मसल पे नजर फिसल जाती थी| ताकत छलकती थी और ऊपर से जो कुसुमा ने उसके बारे में कहा कि वो कैसे जबरदस्त चोदता था| 


[Image: male-tumblr-p1jw0e-Q3ao1sr7n27o2-540.jpg]

मैं एकदम पास पहुँच के, एक पेड़ की आड़ में खड़े होके देख रही थी|



लेकिन...लग रहा था जैसे होली उन लोगों के घर को बचा के निकल गई थी| 




जहाँ चारों ओर फाग की धूम मची थी, वहीं उसके देह पे रंग के एक बूंद का भी निशान नहीं था| चारों ओर रंगों की बरसात और यहाँ एकदम सूखा...होली में तो कोई भेद भाव नहीं होता, कोई छोटा बड़ा नहीं...लेकिन..| 


मुझे बुरा तो बहुत लगा पर मैं समझ गई| 

फिर मैंने दोनों हाथों में खूब गाढ़ा लाल पेंट लगाया और पीछे हाथ छिपा के...उसके सामने जा के खड़ी हो गई और पूछा,

“क्यों लाला, अभी से नहा धो के साफ वाफ हो के...”

“नहीं भौजी, अभी तो नहाने जा हीं रहा था...” 


वो बोला|

“तो फिर होली के दिन इतने चिक्कन मुक्कन कैसे बचे हो? रंग नहीं लगवाया...

“रंग...होली...हमसे कौन होली खेलेगा, कौन रंग लगायेगा...?”



औरों का तो मुझे नहीं पता, लेकिन ये तेरी भौजी आज तुझे बिना रंग लगाये नहीं छोड़ने वाली|” 

[Image: maxresdefault-1.jpg]


दोनों हाथों में लाल पेंट मैंने कस के रगड़-रगड़ के उसके चेहरे पे लगा दिया|

मैं उससे अब एकदम सट के खड़ी थी| सिर्फ धोती में उसकी एक-एक मसल्स साफ दिख रही थीं, पूरी मर्दानगी की मूरत हो जैसे|

लेकिन वो अब भी झिझक रहा था|

मैंने बचा हुआ पेंट उसकी छाती पे लगा के, उसके निप्पल्स को कस के पिंच कर दिया और चिढ़ाते हुए बोली, 


“देवरानी तो बहुत तारीफ करती है तुम्हारी| तो सिर्फ लगवाओगे हीं या लगाओगे भी|”

“भौजी, कहाँ लगाऊं...?” 



अब पहली बार मुस्कुरा के मेरी देह की ओर देखता वो बोला|

मैंने भी अपनी देह की ओर देखा, सच में पहले तो मेरी सास, ननद और फिर 'जो कुछ' नंदोई और ननद ने मिल के लगाया था, फिर सुनील और उसके दोस्तों ने जिस तरह कीचड़ में रगड़ा था, उसके बाद चंपा भाभी के यहाँ...मेरी देह का कोई हिस्सा बचा नहीं था|

“एक मिनट रुको...” 

मैं बोली और फिर पेड़ के पीछे जा के मैंने सब कुछ उतार के सिर्फ साड़ी लपेट ली, अपने स्तनों को कस के उसी में बाँध के...रंगों और पेंट की झोली, कुएं के पास रख दी और कुएं पे जा के बैठ के बोली, 



[Image: Holi-Poonam-3a206d2c3e444f99aba989578eb43522.jpg]

“रोज तो तुम्हारे निकाले पानी से नहाती थी| आज अपने हाथ से पानी निकालो और मुझे नहलाओ भी, धुलाओ भी|” 

थोड़ी हीं देर में पानी की धार से मेरा सारा रंग वंग धुल गया|

पतली गुलाबी साड़ी अच्छी तरह देह से चिपक गई थी| 

गदराए जोबन के उभार, यहाँ तक की मेरे इरेक्ट निप्पल्स एकदम साफ साफ झलक रहे थे| दोनों जांघे फैला के मैं बोली, 

[Image: boobs-8.jpg]


“अरे देवर जी, जरा यहाँ भी तो डालो, साड़ी अपने आप सरक के मेरी जाँघों के ऊपरी हिस्से तक आ गई थी|


पूरे डोल भर पानी उसने सीधे वहीं डाला और अब मेरी चूत की फांक तक झलक रही थी| जवान मर्द और वो भी इतना तगड़ा...धोती के अंदर अब उसका भी खूंटा तन गया था|


“क्यों हो गई न अब डालने के लायक...” 

सीना उभार कर मैंने पूछा| 

और उसका इन्तजार किये बिना रंग उसके चेहरे, छाती हर जगह लगाने लगी| 

अब वो भी जोश में आ गया था| कस-कस के मेरे गाल पे, चेहरे पे और जो भी रंग उसके देह पे मैं लगाती वो रगड़-रगड़ के मेरी देह पे...साड़ी के ऊपर से हीं कस-कस के मेरे रसीले जोबन पे भी...

लेकिन अभी भी उसका हाथ मेरी साड़ी के अंदर नहीं जा रहा था|

“अरे सारी होली बाहर हीं खेल लोगे तुम दोनों, अंदर ले आओ भौजी को|” 

अंदर से निकल के कुसुमा बोली| और वो मुझे गोद में उठा के अंदर आंगन में ले आया| कुसुमा ने दरवाजा बंद कर दिया| उसके बाद तो...


पूरे आंगन में रंग बरसने लगा, हर पेड़ टेसू का हो गया| 

बस लग रहा था कि सारा गाँव नगर छोड़ के फागुन यहीं आ गया हो| 

कुसुमा भी हमारे साथ, कभी मेरी तरफ से तो कभी उसकी| उसने अपने मरद को ललकारा, 
[Image: Holi-hot-tumblr-p689im4ry-C1vllqj4o3-540.jpg]


“हे अगर सच्चे मर्द हो तो आज भौजी को पूरी ताकत दिखा दो|” 

मैं भी बोली 


“हाँ देवर, जरा मैं भी तो देखूं कि मेरी देवरानी सही तारीफ करती थी या...अगर अपने बाप के हो तो...” 

और मैंने उसकी धोती खींच दी|

मैंने अब तक जितने देखे थे, सबसे ज्यादा लंबा और मोटा...


फिर वो मेरी साड़ी क्यों छोड़ता| 


उसे मैंने अपने ऊपर खींच के कहा, 

“देवर जरा आज फागुन में भाभी को इस पिचकारी का रंग तो बरसा के दिखाओ|” 


पल भर में वो मेरे अंदर था| चुदाई और होली साथ-साथ चल रही थी| 
[Image: fucking-ruff-18556438.gif]

कुसुमा ने कहा, “जरा हम लोगों का रंग तो देख लो और एक घड़े में गोबर और कीचड़ के घोल से बना (और भी 'पता नहीं क्या-क्या' पड़ा था) मेरे ऊपर डाल दिया| मैंने उसके मर्द को उसके सामने कर दिया| क्या ताबड़ तोड़ चुदाई कर रहा था| मस्त हो कर मेरी चूत भी कस-कस के उसके लंड को भींच रही थी| 


अब तक जितने भी लंड से मैं चुदी थी उनसे ये २० नहीं २२ रहा होगा| जैसे हीं वो झड़ के अलग हुआ मैंने कुसुमा को धर दबोचा और रंग लगाने के साथ निहुरा कर, उसे पटक के, सीधे उसकी चूत कस-कस के चाटने लगी और बोली, 

[Image: lez-lick-18087029.gif]


“देखूं, इसने कितना मेरे देवर का माल घोंटा है|”


जैसे दो पहलवान अखाड़े में लड़ रहे हों, हम दोनों कस-कस के एक दूसरे की चूचियाँ रगड़ रहे थे, रंग, गोबर और कीचड़ लगा रहे थे| उधर मौका देख के वो पीछे से हीं कुतिया की तरह मुझे चोदने लगा| 

[Image: FFM-15965786.gif]
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RE: ससुराल की पहली होली - by komaalrani - 06-02-2019, 11:09 PM



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