06-02-2019, 10:45 PM
एक अनूठा देवर
अब तक ,…
कोई लड़की, कोई औरत बच नहीं पा रही थी|
यहाँ तक की भाभी लड़कों को भी नहीं बख्शती थीं| एक छोटा लड़का पकड़ में आया तो मुझसे बोलीं,
“खोल दे, इस साल्ले का पजामा|”
मैं जरा सा झिझकी तो बोलीं,
“अरे तेरा देवर लगेगा, जरा देख अभी नूनी है कि लंड हो गया| चेक कर के बता, इसने अभी गांड़ मरवानी शुरू की या नहीं, वरना तू हीं नथ उतार दे साल्ले की|”
वो बेचारा भागने लगा, लेकिन हम लोगों की पकड़ से कहाँ बच सकता था|
मैंने आराम से उसके पजामे का नाड़ा खोला, और लंड में, टट्टे में खूब जम के तो रंग लगाया हीं, उसकी गांड़ में उंगली भी की और गुलाल भरे कंडोम से गांड़ भी मार के बोला,
“जा जा, अपनी बहन से चटवा के साफ करवा लेना|”
कई कई बार लड़कों का झुंड एक दो को पकड़ भी लेता या वो खुद हीं कट लेतीं और मजे ले के ग्रुप में वापस| तीन चार बार तो मैं भी पकड़ी गई और कई बार मैं खुद भी कट के...मजे ले के...|
आगे
तिजहरिया के समय तक होली खेल के सब वापस लौट रही थीं|
चंपा भाभी और कई औरतें अपने घर रास्ते में रुक गईं| हमलोग दो तीन हीं बचे थे कि रास्ते में एक मर्दों का झुंड दिखा, शराब के नशे में चूर, शायद दूसरे गाँव के थे|
एक तो हमलोग कम रह गये थे, दूसरा उनका भाव देख के हम डर से तितर बितर हो गये| थोड़ी देर में मैंने देखा तो मैं अब गाँव के एकदम बाहरी हिस्से में आ गई थी|
मुख्य बस्ती से थोड़ा दूर, चारों ओर गन्ने और अरहर के खेत और बगीचे थे| तभी मैंने देखा कि वहाँ एक कुआं और घर है|
उसे पहचान के मेरी हिम्मत बढ़ गई, वो मेरी कहारिन कुसुमा का घर था| और उसका मरद कल्लू कुएं पे पानी भर रहा था|
कुसुमा गाँव में मेरी अकेली देवरानी लगती थी|
उसकी शादी मेरी शादी के दो तीन महीने बाद हीं हुई थी|
गोरी, छुई मुई सी, छरहरी, लेकिन बहुत ताकत थी उसमें, छातियाँ छोटी छोटी, लेकिन बहुत सख्त, पतली कमर, भरे चूतड़| लेकिन मरद का हाथ लगते हीं वो एकदम गदरा गई|
कहते हैं कि मरद का रस सोखने के बाद हीं औरत की असली जवानी चढ़ती है|
घर में वो काम करती थी, नहाने के लिए पानी लाने से देह दबाने तक|
पानी बाहर कुएं पे उसका मरद भरता था और अंदर वो लाती थी| हम दोनों की लगभग साथ हीं शादी हुई थी इसलिए दोस्ती भी हो गई थी| रोज तेल लगवाते समय मैं उसे छेड़-छेड़ के रात की कहानी पूछती, पहले कुछ दिन तो शर्माई, लेकिन मैंने सब उगलवा हीं लिया|
रात भर चढ़ा रहता है वो, वो बोली|
मैंने हँस के कहा,
“हे मेरे देवर को कुछ मत कहना, मेरी देवरानी का जोबन हीं ऐसा है| क्यों दो बार किया या तीन बार?”
मेरी जाँघें दबाती बोली,
“अरे दो तीन बार की बात हीं नहीं, झड़ने के बाद वो बाहर हीं नहीं निकालता मुआ, थोड़ी देर में फिर डंडे ऐसा और फिर चोदना चालू,
कभी चार बार तो कभी पाँच बार और घर में और कोई तो है नहीं, ना पास पड़ोसी, इसलिए जब चाहे तब, दिन दहाड़े भी|”
सुन के मैं गिनगिना गई| उसको 'माला डी' भी मैंने हीं दी|
एक बार वो आंगन में मुझे नहला रही थी| मैंने उसे छेड़ा,
“अरे अपने मरद से बोल ना, एक बार उसके असली पानी से नहाउंगी|”
तो वो हँस के बोली,
“हाँ ठीक है, मैं बोल दूंगी, लेकिन वो शर्माता बहुत है|”
ठसके से वो बोली|
“अरे मेरा देवर लगता है, मेरा हक है, क्या रोज-रोज सिर्फ देवरानी को हीं...”
“और क्या फागुन लग गया है|”
पीठ मलते वो बोली|
"एकदम और उसको ये भी बोल देना इस होली में ना, तुम मेरी अकेली देवरानी हो पूरे गाँव में तो मैं और सबको भले छोड़ दूं, लेकिन उसको नहीं छोड़ने वाली|