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Adultery मेहमान बेईमान
पर मुझे उस वक़्त तसल्ली से ज़्यादा अनिता की फिकर हो रही थी इस लिए मैं उन दोनो के लाख रोकने पर भी नही रुकी और वहाँ से बाहर निकल आई और उस तरफ़ जिस तरफ अनिता गयी थी उस दिशा मे चल दी. पूरे रास्ते चलते हुए मेरे कई उल्टे सीधे ख्यालात आ रहे थे समझ मे नही आ रहा था कि वो उस रिक्शे वाले को ढूँढने कहाँ पर गयी होगी.. धूप इतनी तेज पड़ रही थी कि थोड़े दूर चलते ही मेरा सर तेज धूप से चकराने लगा मुझे चक्कर से आने लग गये थे. थोड़ी छाँव की तलाश करते हुए मैं इधर उधर देखने लगी पर कही कोई छायादार जगह दिखाई ही नही दे रही थी हर तरफ बस खेत ही खेत और सर के उपर सूरज से निकलती हुई आग… गर्मी के कारण मेरा पूरा गला सुख गया था मुझे बोहोत जोरो की प्यास लगी हुई थी.

मैं मन ही मन अनिता को और फिर अपने आप को कोसने लग गयी. की मैं अनिता के साथ आई ही क्यू यहाँ ?

पर अब किया भी क्या जा सकता था चलते चलते थोड़ी ही दूरी पर एक झोपड़ी सी नज़र आने लगी जो एक खेत मे बनी हुई थी. उसके छप्पर मे थोड़ी छाया सी दिखाई दी और साथ ही एक हॅंड-पंप भी प्यास तो बोहोत ज़ोर से लगी हुई थी हॅंड-पंप देख कर मुझसे रहा नही गया और मैं सीधा उस झोपड़ी की तरफ चल दी.

झूपड़ी के पास आते ही मुझे झूपड़ी के अंदर से आपस मे बात करने की आवाज़े आती हुई सुनाई दी.. अंदर से जो आवाज़े आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे मैने वो आवाज़ पहले भी कही सुनी है. उन आवाज़ो को सोचने के चक्कर मे मे अपनी प्यास को भूल गयी और मेरे कदम खुद-ब-खुद उस झोपड़ी के दरवाजे की तरफ हो लिए.

जैसे ही मैं झोपड़ी के थोड़े और पास आई और जब आवाज़ दोबारा से आई तो मेरा मुँह खुला का खुला रह गया. अंदर से आती हुई आवाज़े किसी और की नही बल्कि अनिता की थी. और दूसरे आवाज़ उस लड़के की जो कल रात अमित के साथ था.

“दीपक मुझे बोहोत डर लग रहा है” अनिता की आवाज़ मे कुछ ऐसा था जो जिस कारण उसकी आवाज़ बोहोत डरी हुई सी लग रही थी या तो वो… अंदर वो सब कुछ चुकी थी या करने के लिए डर रही थी.

“मैने कहा ना कुछ नही होगा, तुम तो बेकार मे डर रही हो. अगर कुछ हुआ भी तो मैं हू ना.” उस लड़के की आवाज़ आती है..

“मुझे बोहोत डर लग रहा है दीपक” अनिता की आवाज़ मे एक डर सॉफ झलक रहा था.

“डरने वाली कोई बात नही है. ये तो हर लड़की के साथ होता है जब पहली बार करते है तो ऐसा ही होता है. अगर तुम्हे मेरी बात पर भरोसा ना हो तो अपनी किसी सहेली से पूछ लेना. इस खून को देख कर तुम्हे डरने की कोई ज़रूरत नही है.” उस लड़के की बात सुन कर मेरा शक़ यकीन मे बदल गया.

मैं झोपड़ी के बाहर खड़ी हुई थी सर पर बुरी तरह से धूप पड़ रही थी और पूरा गला भी सुख रहा था. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि क्या करू. क्या मेरा दरवाजा खटखटा कर दोनो को डांटना सही होगा. जो ये दोनो कर रहे है वो ग़लत है.

“नही दीपक अब नही बोहोत दर्द हो रहा है..” अनिता की दर्द भरी आवाज़ मेरे कानो मे पड़ी.

“अरे बिल्कुल दर्द नही होगा.. जितना दर्द होना था वो हो गया अब सिर्फ़ मज़ा आएगा. ऐसा मज़ा जो तुम्हे कभी नही आया होगा. बस तुम थोड़ा सा खुल जाओ.”

“दीपक बोहोत देर हो गयी है. भाभी भी परेशान हो रही होगी.” अनिता की वही दर्द भरी आवाज़.

“बस 10 मिनट की बात है अनिता..”

उन दोनो की बाते सुन कर मेरी हालत जो गर्मी की वजह से पहले ही खराब थी और भी ज़्यादा खराब होने लग गयी. मेरी छाती के दोनो उभार एक दम सख़्त होने लग गये और नीचे मेरी योनि ने अपनी लार टपकाना शुरू कर दिया. सर पर गिरती तेज धूप जो थोड़ी देर पहले तक परेशान कर रही थी अब तो उसका नाम ओ निशान भी महसूस नही हो रहा था.

“थोड़ा इधर की तरफ हो जाओ.” उस लड़के की आवाज़ सुन कर सॉफ पता चल रहा था कि वो क्या करने की कह रहा था. मेरा मन अब और भी ज़्यादा बेचैन होने लग गया था. मेरी निगाहे इधर उधर अंदर का नज़ारा देखनेके लिए बेचैन होने लग गयी. थोड़ी देर इधर उधर देखने के बाद मैं जैसे ही झोपड़ी के दूसरी तरफ को गयी वहाँ पर छाँव भी अच्छी थी और दूसरा खिड़की भी बनी हुई थी.. खिड़की ज़्यादा बड़ी नही थी छ्होटी सी थी पर अंदर का नज़ारा देखने के लिए काफ़ी थी. पर उस खिड़की से अंदर देखने मे एक मुस्किल थी वो खिड़की थोड़ा उपर की तरफ थी और मैं उस खिड़की पर ठीक से नही पहुँच पा रही थी. कई बार मैने उचक कर अंदर देखने की कोसिस की पर नही देख सकी. पास ही पड़े एक पत्थर पर निगाह पड़ते ही मैने उसे खिड़की के नीचे लगाया और उस पर खड़े हो कर देखने लगी उस पत्थर को लगाने के बादभी मुझे अपने दोनो पंजो पर खड़े हो कर देखना पड़ रहा था. अंदर का नज़ारा देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया.
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RE: मेहमान बेईमान - by Deadman2 - 23-01-2020, 08:00 AM
RE: मेहमान बेईमान - by Newdevil - 18-07-2021, 03:03 PM



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