21-01-2020, 10:24 AM
जी लगभग रोज ही होता है” मैने उसे जवाब दे तो दिया था पर मैं शर्म से ज़मीन मे गढ़ी जा रही थी.
“हां रोज तो करेगा ही तुम खूबसूरत जो हो इतनी..” उसने एक अजीब तरह से अपनी नज़रे मेरे पूरे बदन पर चलाई जिसे देख कर मेरी नज़रे खुद बा खुद शरम से नीचे की तरफ झुक गयी
“मेरे मियाँ तो इस उमर मे भी ऐसा कोई दिन नही जाता जब मेरे उपर ना चढ़ते हो. जब भी मौका मिलता है शुरू हो जाते है. हमारी शादी जब हुई थी तो शादी के 2 महीने तक तो दिन और रात पता ही नही चलते थे कभी भी शुरू हो जाते थे.” उसने पूरी तरह से खुल कर गंदी गंदी बात करना शुरू कर दिया था और मैं शर्म से ज़मीन मे गढ़ी जा रही थी.
“अभी आते होगे बाज़ार से तब तुम ही देखना कि कैसी बाते करते है. मैं चाहे लाख कोसिस करू इनकार करने की पर ना जाने क्या जादू है उनके बात करने मे मुझे तुरंत राज़ी कर लाते है. लड़के बच्चे बड़े हो गये है और काम काज करने सहर चले गये है. तो घर पर कोई होता नही है. अगर ये काम काज ना हो तो ये तो बस मेरे उपर ही चढ़े रहे.. हहहे. पर जो मज़ा उस समय आता था वो मज़ा अब नही आता है. हर वक़्त डर लगा रहता है कि कही किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगे कि इस उमर मे भी बुड्ढे बुढ़िया को चैन नही है” उसने फिर से मुस्कुराते हुए कहा.
“वैसे आप को देख कर कोई नही कह सकता है आप बूढ़े हो गये हो” मैने भी इस बार थोड़ी सी मस्ती भरे अंदाज मे कहा.
“अरे अब कहाँ ये तो सब केवल अपने मियाँ को खुस करने के लिए बाल काले पीले कर लेती हू. वरना बुढ़ापा तो आ ही गया है. अब तो जैसे ही मेरा निकल जाता है करने की इच्छा ही नही होती है. और ये मानते ही नही है.”
उसकी बात सुन कर मुझे बड़ी शर्म आ रही थी और हँसी भी की कैसे वो अपनी पर्सनल लाइफ को किसी और के साथ मे शेर कर रही है.. मैं भी उसकी बात सुन कर दबी हुई हँसी हंस दी.
हम दोनो को बात करते हुए काफ़ी समय हो गया था और अभी तक अनिता का कोई पता नही था घर भी वापस जाना था मुझे चिंता होने लग गयी.
मैं वहाँ से उठ कर अनिता को देखने बाहर जाने ही वाली थी कि तभी दरवाजे पर एक बुड्ढ़ा आ कर खड़ा हो गया उसके हाथ मे एक बॅग था और वो मुझे बोहोत हैरत भरी नज़ारो से देख रहा था. वो आदमी अपने हाथ मे बॅग पकड़े हुए ही अंदर आ गया और कभी उस औरत की तरफ तो कभी मेरी तरफ हैरत भरी नजारो से देख रहा था. उसको देख कर मुझे लगा कि वो भी कोई गाँव वाला है और इस शॉप पर अपने कपड़े सिलवाने के लिए आया है.
पर अगले ही पल उसने उस औरत को आँखो ही आँखो मे कुछ इशारा किया और वो औरत उसके हाथ से बॅग लेकर अंदर की तरफ चली गयी. वो आदमी एक टक मुझे उपर से नीचे तक देखे जा रहा था उसकी नज़रे मुझे अपने जिस्म पर किसी आरी के जैसे चलती हुई महसूस हो रही थी मेरे जिस्म से होती हुई उसकी नज़र आ कर मेरे हाथ मे लगी पॉलयथीन बॅग जिसमे मैं सिलवाने के लिए कपड़े ले कर आई थी पर टिक गयी.
उस आदमी के सर पर एक ,., टोपी लगी हुई थी और दाढ़ी के बाल बढ़े हुए थे बाल ज़रूरत से ज़्यादा काले हो रखे थे जिस से सॉफ पता चल रहा था कि उसने अपनी दाढ़ी को कलर/डाई किया है. बिल्कुल दुबला सा शरीर था उसका अगर कोई एक हाथ उसमे जमा कर मार दे तो वो वही के वही अपना दम तोड़ दे. कद भी ज़्यादा नही था. मगर उसे ठिगना भी नही कहा जा सकता था. सफेद कुर्ता पायज़मा पहन रखा था उसने जो की सफेद कम काला ज़्यादा लगता था. ऐसा लगता था जैसे बरसो से धोया नही है. एक दो जगह से उसका कुर्ता फटा भी हुवा था. ऐसे बेकार से टेलर को देख कर मेरा खून खोल गया और मुझे अनिता पर गुस्सा आने लगा. अनिता का ख़याल आते ही मुझे और भी चिंता होने लगी पता नही कहाँ रह गयी वो अभी तक आई क्यू नही..
“जी कहिए मोहतार्मा क्या सिलवाना है आप को ?” उस आदमी ने अपनी आँखो पर लगे चश्मे को जो गाँधी टाइप वाले स्टाइल मे था को अपनी आँखो पर सही करते हुए कहा.
“आप टेलर है ?” मुझे अभी भी यकीन नही आ रहा था इस लिए मैने उस से सवाल पूछ लिया.
“क्या बात कर रही हैं मोहतार्मा गाँव का बच्चा बच्चा जावेद टेलर को अच्छे से जानता है अरे हमारी सिलाई के किस्से तो दूर दूर के गाँव तक माशूर है. और आप हम से हमारे ही पेशे के बारे मे ऐसा सवाल कर रही है.” उसने मेरी तरफ फिर से हैरानी भरे अंदाज मे देखते हुए कहा. पर इस बार मैने गौर किया कि उसकी निगाहे मेरी छाती पर ही जमी हुई है जैसे वो आँखो ही आँखो मेरी छाती को मापने की कोसिस कर रहा हो.. “अब भी आप को यकीन ना आए तो अंदर जो हमारी जाने जिगर जानेमन जाने तम्म्न्ना हमारी बेगम है उसने गवाही दिलवादे कि हम है इस गाँव के माशूर टेलर मास्टर मियाँ जावेद ख़ान”
“जी उसकी कोई ज़रूरत नही” मैने उस से कम बातो मे ही पीछा छुड़ाने की सोची.
“तो मोहतार्मा आप को क्या सिलवाना है” उसने मेरे हाथ मे लगी पॉलयथीन को देखते हुए कहा..
“जी कुछ नही” मैने अपन
“हां रोज तो करेगा ही तुम खूबसूरत जो हो इतनी..” उसने एक अजीब तरह से अपनी नज़रे मेरे पूरे बदन पर चलाई जिसे देख कर मेरी नज़रे खुद बा खुद शरम से नीचे की तरफ झुक गयी
“मेरे मियाँ तो इस उमर मे भी ऐसा कोई दिन नही जाता जब मेरे उपर ना चढ़ते हो. जब भी मौका मिलता है शुरू हो जाते है. हमारी शादी जब हुई थी तो शादी के 2 महीने तक तो दिन और रात पता ही नही चलते थे कभी भी शुरू हो जाते थे.” उसने पूरी तरह से खुल कर गंदी गंदी बात करना शुरू कर दिया था और मैं शर्म से ज़मीन मे गढ़ी जा रही थी.
“अभी आते होगे बाज़ार से तब तुम ही देखना कि कैसी बाते करते है. मैं चाहे लाख कोसिस करू इनकार करने की पर ना जाने क्या जादू है उनके बात करने मे मुझे तुरंत राज़ी कर लाते है. लड़के बच्चे बड़े हो गये है और काम काज करने सहर चले गये है. तो घर पर कोई होता नही है. अगर ये काम काज ना हो तो ये तो बस मेरे उपर ही चढ़े रहे.. हहहे. पर जो मज़ा उस समय आता था वो मज़ा अब नही आता है. हर वक़्त डर लगा रहता है कि कही किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगे कि इस उमर मे भी बुड्ढे बुढ़िया को चैन नही है” उसने फिर से मुस्कुराते हुए कहा.
“वैसे आप को देख कर कोई नही कह सकता है आप बूढ़े हो गये हो” मैने भी इस बार थोड़ी सी मस्ती भरे अंदाज मे कहा.
“अरे अब कहाँ ये तो सब केवल अपने मियाँ को खुस करने के लिए बाल काले पीले कर लेती हू. वरना बुढ़ापा तो आ ही गया है. अब तो जैसे ही मेरा निकल जाता है करने की इच्छा ही नही होती है. और ये मानते ही नही है.”
उसकी बात सुन कर मुझे बड़ी शर्म आ रही थी और हँसी भी की कैसे वो अपनी पर्सनल लाइफ को किसी और के साथ मे शेर कर रही है.. मैं भी उसकी बात सुन कर दबी हुई हँसी हंस दी.
हम दोनो को बात करते हुए काफ़ी समय हो गया था और अभी तक अनिता का कोई पता नही था घर भी वापस जाना था मुझे चिंता होने लग गयी.
मैं वहाँ से उठ कर अनिता को देखने बाहर जाने ही वाली थी कि तभी दरवाजे पर एक बुड्ढ़ा आ कर खड़ा हो गया उसके हाथ मे एक बॅग था और वो मुझे बोहोत हैरत भरी नज़ारो से देख रहा था. वो आदमी अपने हाथ मे बॅग पकड़े हुए ही अंदर आ गया और कभी उस औरत की तरफ तो कभी मेरी तरफ हैरत भरी नजारो से देख रहा था. उसको देख कर मुझे लगा कि वो भी कोई गाँव वाला है और इस शॉप पर अपने कपड़े सिलवाने के लिए आया है.
पर अगले ही पल उसने उस औरत को आँखो ही आँखो मे कुछ इशारा किया और वो औरत उसके हाथ से बॅग लेकर अंदर की तरफ चली गयी. वो आदमी एक टक मुझे उपर से नीचे तक देखे जा रहा था उसकी नज़रे मुझे अपने जिस्म पर किसी आरी के जैसे चलती हुई महसूस हो रही थी मेरे जिस्म से होती हुई उसकी नज़र आ कर मेरे हाथ मे लगी पॉलयथीन बॅग जिसमे मैं सिलवाने के लिए कपड़े ले कर आई थी पर टिक गयी.
उस आदमी के सर पर एक ,., टोपी लगी हुई थी और दाढ़ी के बाल बढ़े हुए थे बाल ज़रूरत से ज़्यादा काले हो रखे थे जिस से सॉफ पता चल रहा था कि उसने अपनी दाढ़ी को कलर/डाई किया है. बिल्कुल दुबला सा शरीर था उसका अगर कोई एक हाथ उसमे जमा कर मार दे तो वो वही के वही अपना दम तोड़ दे. कद भी ज़्यादा नही था. मगर उसे ठिगना भी नही कहा जा सकता था. सफेद कुर्ता पायज़मा पहन रखा था उसने जो की सफेद कम काला ज़्यादा लगता था. ऐसा लगता था जैसे बरसो से धोया नही है. एक दो जगह से उसका कुर्ता फटा भी हुवा था. ऐसे बेकार से टेलर को देख कर मेरा खून खोल गया और मुझे अनिता पर गुस्सा आने लगा. अनिता का ख़याल आते ही मुझे और भी चिंता होने लगी पता नही कहाँ रह गयी वो अभी तक आई क्यू नही..
“जी कहिए मोहतार्मा क्या सिलवाना है आप को ?” उस आदमी ने अपनी आँखो पर लगे चश्मे को जो गाँधी टाइप वाले स्टाइल मे था को अपनी आँखो पर सही करते हुए कहा.
“आप टेलर है ?” मुझे अभी भी यकीन नही आ रहा था इस लिए मैने उस से सवाल पूछ लिया.
“क्या बात कर रही हैं मोहतार्मा गाँव का बच्चा बच्चा जावेद टेलर को अच्छे से जानता है अरे हमारी सिलाई के किस्से तो दूर दूर के गाँव तक माशूर है. और आप हम से हमारे ही पेशे के बारे मे ऐसा सवाल कर रही है.” उसने मेरी तरफ फिर से हैरानी भरे अंदाज मे देखते हुए कहा. पर इस बार मैने गौर किया कि उसकी निगाहे मेरी छाती पर ही जमी हुई है जैसे वो आँखो ही आँखो मेरी छाती को मापने की कोसिस कर रहा हो.. “अब भी आप को यकीन ना आए तो अंदर जो हमारी जाने जिगर जानेमन जाने तम्म्न्ना हमारी बेगम है उसने गवाही दिलवादे कि हम है इस गाँव के माशूर टेलर मास्टर मियाँ जावेद ख़ान”
“जी उसकी कोई ज़रूरत नही” मैने उस से कम बातो मे ही पीछा छुड़ाने की सोची.
“तो मोहतार्मा आप को क्या सिलवाना है” उसने मेरे हाथ मे लगी पॉलयथीन को देखते हुए कहा..
“जी कुछ नही” मैने अपन