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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक
#25
अध्याय 5


घर की घंटी बजने पर मोहिनी देवी ने दरवाजा खोला तो बाहर अभय और ऋतु एक अंजान लड़की और लड़के के साथ खड़े दिखे... उन्होने किनारे हटते हुये रास्ता दिया और सबके अंदर आने के बाद दरवाजा बंद करके उन सभी को सोफ़े पर बैठने का इशारा करते हुये खुद भी बैठ गईं... ऋतु की हालत उनको कुछ ठीक नहीं लगी तो उन्होने पूंछा

“क्या हुआ ऋतु... तेरी तबीयत ठीक नहीं है क्या?”

“नहीं माँ! में ठीक हूँ...” ऋतु ने धीरे से कहा और नौकर को आवाज देकर सबके लिए चाय लाने को कहा, फिर अपनी माँ से पूंछा “पापा अभी नहीं आए क्या?”

“आने ही वाले हैं...मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कोई बात है जो तू मुझसे कहना चाहती है”

“माँ! विक्रम भैया नहीं रहे....”अपने रुके हुये आंसुओं को बाहर आने का रास्ता देते हुये ऋतु ने मोहिनी के गले लगकर रोते हुये कहा... तो एक बार को मोहिनी देवी उसका मुंह देखती ही रह गईं... फिर जब समझ में आया की ऋतु ने क्या कहा है तो उनकी भी आँखों से आँसू बहने लगे... तभी फिर से दरवाजे की घंटी बजी तो अभय ने उठकर दरवाजा खोला... बाहर बलराज सिंह थे ...अभय को अपने घर का दरवाजा खोलते देखकर उनको अजीब सा लग और बिना कुछ बोले चुप खड़े रह गए।

“अंकल नमस्ते!” अभय ने चुप्पी को तोड़ते हुये कहा और उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया

अंदर आते ही बलराज सिंह ने देखा की एक सोफ़े पर मोहिनी बैठी हुई है, उसकी आँखों से आँसू निकाल रहे हैं, ऋतु उसे सम्हाले हुये है लेकिन खुद भी रो रही है... दूसरे सोफ़े पर एक लड़का और एक लड़की बैठे हुये हैं... सबकी नज़र दरवाजे की ओर बलराज सिंह पर है... तो वो जाकर मोहिनी के पास खड़ा होता है

“क्या हुआ मोहिनी? क्यों रो रही हो तुम दोनों? और ये दोनों कौन हैं”

“अंकल अप बैठिए में बताता हूँ” पीछे से अभय ने कहा तो बलराज सिंह ने सवालिया नजरों से उसकी ओर देखा और जाकर मोहिनी के बराबर मे सोफ़े पर बैठ गए

अभय भी आकार सिंगल सीट सोफ़े पर बैठ गया और बोला

“अंकल जैसा की आपको पता ही है की में विक्रम का दोस्त हूँ, हम कॉलेज मे साथ पढे थे”

“हाँ!” बलराज ने फिर प्रश्नवाचक दृष्टि से अभय को देखा

“आज सुबह मेरे पास कोटा से रागिनी का फोन आया था की श्रीगंगानगर मे सिक्युरिटी को एक लाश मिली है उन्होने रागिनी को फोन किया था ... तो रागिनी वहाँ पहुंची और लाश के पास मिले कागजातों, फोन तथा लाश के कद काठी से उसने विक्रम की लाश होने की शिनाख्त की है” अभय ने सधे हुये शब्दों मे बलराज सिंह को विक्रम की मौत की सूचना दी... एक बार को तो बलराज सिंह भावुक होते लगे लेकिन तुरंत ही संभलकर उन्होने अभय से पूंछा

“तो अब श्रीगंगानगर जाना है, विक्रम की लाश लेने?”

“नहीं अंकल रागिनी ने लाश ले ली है और वो सीधा यहीं दिल्ली आ रही है... में आपका एड्रैस उसे मैसेज कर देता हूँ...” अभय ने बताया

“ये रागिनी कौन है? ....ये सब बाद मे देखते हैं.... पहले तो उसे एक एड्रैस मैसेज करो पाहुचने के लिए.... क्योंकि विक्रम का दाह संस्कार दिल्ली मे नहीं.... उसी गाँव मे होगा जहाँ उसने और हम भाइयों ने, हमारे पुरखों ने जन्म लिया और राख़ हुये... एड्रैस नोट करो.... गाँव ...... ....... कस्बे के पास जिला..... उत्तर प्रदेश राजस्थान बार्डर से 100 किलोमीटर है .....”

अभय ने एड्रैस टाइप किया और रागिनी को मैसेज कर दिया साथ ही मैप पर लोकेशन सर्च करके भी भेज दी... फिर रागिनी को फोन किया

“हाँ अभय ये एड्रैस किसका है?” रागिनी ने फोन उठाते ही पूंछा

“रागिनी...तुम्हें विक्रम की लाश लेकर इस एड्रैस पर पाहुचना है, ये विक्रम के गाँव का पता है... में अभी विक्रम के चाचाजी बलराज सिंह जी के साथ हूँ उनका कहना है की विक्रम का दाह संस्कार उनके गाँव में ही किया जाएगा.... हम भी वहीं पहुँच रहे हैं” अभय ने उसे बताया

“ठीक है! अनुराधा और प्रबल तुम्हारे पास पहुंचे?” रागिनी ने पूंछा

“हाँ! वो दोनों अभी मेरे साथ ही यहीं पर हैं...वो हमारे साथ ही वहीं पहुंचेंगे” अभय ने अनुराधा की ओर देखते हुये कहा। अनुराधा अभय की ओर ही देख रही थी लेकिन उसने अभय की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वैसे ही चुपचाप बैठी रही

“ठीक है...” कहते हुये रागिनी ने फोन काट दिया

फोन कटते ही बलराज सिंह ने अनुराधा और प्रबल की ओर इशारा करते हुये पूंछा “ये दोनों कौन हैं?”

“ये आपके भाई देवराज सिंह और रागिनी के बच्चे हैं” अभय ने बताया

“देवराज के बच्चे... लेकिन उसने तो शादी ही नहीं की” बलराज ने उलझे हुये स्वर मे कहा फिर गहरी सांस छोडते हुये अभय के जवाब देने से पहले ही बोले “अभी ये सब छोड़ो.... तुम हमारे साथ गाँव चल रहे हो ना?”

“जी हाँ! में और ये दोनों भी”

“ठीक है! ऋतु तुम अपनी माँ को सम्हालो... इन्हें और तुम्हें जो कुछ लेना हो ले लो.... हम सब अभी निकाल रहे हैं 200 किलोमीटर का सफर है...रास्ता भी खराब है.... हमें उन लोगों से पहले गाँव में पहुँचना होगा...” कहते हुये बलराज सिंह ने फोन उठाकर कोई नंबर डायल किया

........................................................

 

उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा गाँव.... सड़क के दोनों ओर घर बने हुये... लेकिन ज्यादा नहीं एक ओर 5-6 घर दूसरी ओर 10-12 घर गाँव के हिसाब से  अच्छे बने हुये, देखने से ही लगता है की गाँव सम्पन्न लोगो का है,,,,,,,,, लेकिन ये क्या? ज़्यादातर घरों पर ताले लगे हुये जैसे उनमे किसी को आए अरसा बीत गया हो....धूल और सूखी पत्तियों के ढेर सड़क पर से नज़र आते हैं..... हर घर का मुख्य दरवाजा सड़क पर ही है....कोई गली नहीं....गाँव के शुरू में बाहर सड़क किनारे एक मंदिर है...उसकी साफ सफाई देखकर लगता है की गाँव मे कोई रहता भी है....मंदिर के सामने 2-3 बुजुर्ग सुबह के 5 बजे खड़े हुये हाइवे की तरफ सड़क पर नजरें गड़ाए हैं.... शायद किसी का इंतज़ार कर रहे हैं... लेकिन इतनी सुबह वहाँ कोई हलचल ही नज़र नहीं आ रही थी....

तभी उन्हें दूर से कुछ गाडियाँ इस ओर आती दिखाई देती हैं तो वो चोकन्ने होकर खड़े हो जाते हैं और एक बुजुर्ग गाँव मे आवाज देकर किसी को बुलाता है उसकी आवाज सुनकर 5-6 युवा लड़के गाँव की ओर से आकार मंदिर पर खड़े हो जाते हैं...

तब तक गाडियाँ भी आ जाती है... सबसे पहली गाड़ी का दरवाजा खुलता है और बलराज सिंह बाहर निकलते हैं... उन्हें देखते ही वो सब बुजुर्ग आकर उनसे गले मिलते हैं.... सभी लड़के शव लेकर आयी गाड़ी के पास पाहुचते हैं और उसमें से विक्रम का शव निकालकर मंदिर के बराबर ही खाली मैदान मे जामुन के पेड़ के नीचे जमीन पर रख देते हैं...... उस मैदान मे गाँव के अन्य आदमी औरतें शव के पास बैठने लगते हैं..... बलराज सिंह सभी को गाड़ियों से उतारने को बोलते हैं और खुद भी उन बुजुर्गों के साथ जाकर वहीं बैठ जाते हैं..... उनको देखकर ऋतु भी मोहिनी देवी को लेकर वही बढ्ने लगती है तो रागिनी आगे बढ़कर मोहिनी देवी को दूसरी ओर से सहर देकर चलने लगती है..... पीछे-पीछे अभय, पूनम, अनुराधा और प्रबल भी वहीं जाकर बैठ जाते हैं..... गाँव के युवा दाह संस्कार की प्रक्रिया शुरू करने के लिए बलराज सिंह व अन्य बुजुर्गो से पूंछते हैं तो सभी बुजुर्ग कहते हैं की विक्रम का विवाह तो शायद हुआ नहीं तो उसकी कोई संतान भी नहीं.... और कोई बेटा इनके घर मे है नहीं इसलिए बलराज सिंह को ही ये सब करना पड़ेगा... क्योंकि वो विक्रम के पिता समान ही हैं....

तभी अभय बलराज सिंह से इशारे में कुछ बात करने को कहता है.... बलराज सिंह और अभय उठकर एक ओर जाकर कुछ बातें करते हैं और लौटकर बलराज सिंह सभी से कहते हैं

“मुझे अभी अभय प्रताप सिंह वकील साहब ने बताया है की विक्रम की वसीयत इनके पास है.... उसमें विक्रम ने इच्छा जाहीर की हुई है की विक्रम की मृत्यु होने पर उसका दाह संस्कार प्रबल प्रताप सिंह करेंगे... जो हमारे साथ आए हुये हैं....”

गाँव वालों को इसमें कोई आपत्ति नहीं हुई क्योंकि ये विक्रम और उसके परिवार का निजी फैसला है की दाह संस्कार कौन करे..... लेकिन ये सुनकर मोहिनी देवी, ऋतु, रागिनी और प्रबल-अनुराधा सभी चौंक गए.....

लेकिन ऐसे समय पर किसी ने कुछ कहना या पूंछना सही नहीं समझा.... गाँव के युवाओं ने प्रबल को साथ लेकर शव को नहलाना धुलना शुरू किया.... कुछ काम जो स्त्रियॉं के करने के थे वो गाँव की स्त्रियॉं ने मोहिनी देवी को साथ लेकर शुरू किए.... कुछ युवा श्मशान मे चिता की तयारी करने चले गए....

अंततः सभी पुरुष शव को लेकर श्मशान पहुंचे और प्रबल के द्वारा दाह संस्कार करके वापस गाँव मे आए तो गाँव की स्त्रियाँ मोहिनी देवी, रागिनी व अन्य सभी को लेकर एक घर मे अंदर पहुंची और पुरुष बलराज सिंह, प्रबल आदि को लेकर उसी घर के बाहर बैठक पर पहुंचे......

…………………………………………..

 

“अंकल! आप सभी को रात 10 बजे एक जगह इकट्ठा होने को बोल दीजिये ... तब तक गाँव वाले और आपके जान पहचान रिश्तेदार सभी जा चुके होंगे.... मे वो वसीयत आप सभी के सामने रखना चाहता हूँ जो मुझे विक्रम ने दी थी.....उसमें कुछ दस्तावेज़ मेंने पढे हैं और कुछ लोगों ...बल्कि अप सभी के नाम अलग अलग लिफाफे हैं जो में नहीं खोल सकता... वो लिफाफे जिस जिस के हैं उन्हें सौंप दूंगा.... फिर उनकी मर्जी है की वो सबको या किसी को उसमें लिखा हुआ बताएं या न बताएं.......... जितना सबके लिए है... वो में सबके सामने रखूँगा” अभय ने बलराज सिंह को एकांत मे बुलाकर उनसे कहा

“ठीक है में घर मे बोल देता हूँ” बलराज सिंह ने बोला और अंदर जाकर मोहिनी देवी के को देखा तो वो औरतों के बीच खोयी हुई सी बैठी थीं तो उन्होने ऋतु को अपने पास बुलाकर उससे बोल दिया।

...................................

रात 10 बजे सभी लोग बैठक में इकट्ठे हुये क्योंकि घर गाँव के पुराने मकानों की तरह बना हुआ था तो केवल कमरे, बरामदा और आँगन थे.... आँगन मे सभी को इकट्ठा करने की बजाय बैठक का कमरा जो एक हाल की तरह था....वहाँ सभी इकट्ठे हुये........

अभय ने अपना बैग खोलकर उसमें से एक बड़ा सा फोंल्डर निकाला जो लिफाफे की तरह बंद था और उसमें से कागजात निकालकर पढ़ना शुरू किया

“में विक्रमादित्य सिंह अपनी वसीयत पूरे होशो हवास मे लिख रहा हु जो मेरी मृत्यु के बाद मेरी सम्पत्तियों के वारिसों का निर्धारण करेगी और परिवार के सदस्यों के अधिकार व दायित्व को भी निश्चित करेगी......

मेरी संपत्ति मे पहला विवरण मेरे दादाजी श्री रुद्र प्रताप सिंह जी की संपत्ति है जिसका विवरण अनुसूची 1 में संलग्न है.....मेरे दादा की संपत्ति संयुक्त हिन्दू पारिवारिक संपत्ति है.... जिसमें परिवार का प्रत्येक सदस्य हिस्सेदार है लेकिन वो संपत्ति परिवार के मुखिया के नाम ही है...और उसका बंटवारा नहीं होगा.... उस संपत्ति को परिवार का मुखिया ही पूरी तरह से देखभाल और व्यवस्था करेगा.... यदि परिवार का कोई सदस्य अपना हिस्सा लेना चाहे तो उसे उसके हिस्से की संपत्ति की कीमत देकर परिवार से अलग कर दिया जाएगा....... मेरे दादाजी के बाद इस संपत्ति के मुखिया मेरे पिता श्री गजराज सिंह थे लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने के पश्चात और उनके मँझले भाई श्री बलराज सिंह के परिवार से निकाल दिये जाने तथा उनके छोटे भाई श्री देवराज सिंह के परिवार से अलग हो जाने के कारण में इस संयुक्त परिवार का मुखिया हूँ.... मेरे बाद इस संपत्ति का मुखिया प्रबल प्रताप सिंह को माना जएगा....और संपत्ति में मोहिनी देवी, रागिनी सिंह, ऋतु सिंह व प्रबल प्रताप सिंह बराबर के हिस्सेदार होंगे..... लेकिन प्रबल प्रताप सिंह का विवाह होने तक उनके हर निर्णय पर मोहिनी देवी की लिखित स्वीकृति आवश्यक है.... वो मोहिनी देवी की सहमति के बिना कोई फैसला नहीं ले सकते

मेरी दूसरी संपत्ति मेरे नाना श्री भानु प्रताप सिंह की है जिनकी एकमात्र वारिस मेरी माँ कामिनी देवी थीं लेकिन उनके कई वर्षों से लापता होने के कारण में उस संपत्ति का एकमात्र वारिस हूँ..... ये संपत्ति में मेरी मृत्यु के बाद रागिनी सिंह, ऋतु सिंह और अनुराधा सिंह  तीनों बराबर की हिस्सेदार होंगी लेकिन ये संपत्ति ऋतु और अनुराधा की शादी होने तक रागिनी सिंह के अधिकार में रहेगी

मेरी तीसरी संपत्ति मेरे छोटे चाचाजी देवराज सिंह की है जिनको अपनी ननिहाल की संपत्ति विरासत मे मिली और उनके द्वारा गोद लिए जाने के कारण मुझे विरासत मे मिली.... ये संपत्ति अनुराधा और प्रबल को आधी-आधी मिलेगी  लेकिन इन दोनों की शादी होने तक रागिनी सिंह के अधिकार मे रहेगी.....

और अंतिम महत्वपूर्ण बात................

रागिनी सिंह देवराज सिंह की पत्नी नहीं हैं

अनुराधा और प्रबल देवराज सिंह या रागिनी के बच्चे नहीं हैं

अनुराधा और प्रबल आपस मे भाई बहन भी नहीं हैं

लेकिन रागिनी की याददस्त चले जाने और अनुराधा व प्रबल दोनों को बचपन से इस रूप मे पालने की वजह से इन तीनों को ये जानकारी नहीं है.... लेकिन में इस दुनिया से जाते हुये इनको उस भ्रम मे छोडकर नहीं जा सकता, जो इनकी सुरक्षा के लिए मेंने इनके दिमाग मे बैठकर एक परिवार जैसा बना दिया था..... इन तीनों के लिए अलग अलग लिफाफे दे रहा हूँ.... जिनमें इनके बारे में जितना मुझे पता है... उतनी जानकारी मिल जाएगी.... ये चाहें तो इन लिफाफों मे लिखी जानकारियाँ किसी को दें या न दें.... अगर ये किसी तरह अपने असली परिवार को ढूंढ लेते हैं तो भी इनके अधिकार और शर्तों मे कोई बदलाव नहीं आयेगा”

ये कहते हुये अभय ने रागिनी, अनुराधा और प्रबल को उनके नाम लिखे हुये लिफाफे फोंल्डर में से निकालकर दिये...........

लेकिन इस वसीयत के इस आखिरी भाग ने सभी को हैरान कर दिया और उसमें सबसे ज्यादा उलझन रागिनी, अनुराधा और प्रबल को थी..... क्योंकि उन तीनों की तो पहचान ही खो गयी..... लेकिन अचानक रागिनी को कुछ याद आया तो उसने अभय से कहा

“तुम तो मेरे और विक्रम के साथ कॉलेज मे पढ़ते थे... तो तुम्हें तो मेरे बारे में पता होगा?” और उम्मीद भरी नज़रों से अभय को देखने लगी......

शेष अगले भाग में
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RE: मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक - by kamdev99008 - 17-01-2020, 11:06 AM



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