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Non-erotic लिख-लिख कर खुदा खोजता रहा वो बूढ़ा
#25
माधो—अभ्यास बड़ी वस्तु है, मनुष्य यदि चाहे तो सबकुछ सीख सकता है।
मनुष्य—मैं सीखने को तैयार हूं, आप सिखा दीजिए।

माधो—तुम्हारा नाम क्या है?

मनुष्य—मैकू।

माधो—भाई मैकू, यदि तुम अपना हाल सुनाना नहीं चाहते तो न सुनाओ, परन्तु कुछ काम अवश्य करो। जूते बनाना सीख लो और यहीं रहो।
मैकू—बहुत अच्छा।

अब माधो ने मैकू को सूत बांटना, उस पर मोम च़ाना, जूते सीना आदि काम सिखाना शुरू कर दिया। मैकू तीन दिन में ही ऐसे जूते बनाने लगा, मानो सदा से चमार का ही काम करता रहा हो। वह घर से बाहर नहीं निकलता था, बोलता भी बहुत कम था। अब तक वह केवल एक बार उस समय हंसा था जब मालती ने उसे भोजन कराया था, फिर वह कभी नहीं हंसा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: लिख-लिख कर खुदा खोजता रहा वो बूढ़ा - by neerathemall - 15-01-2020, 12:26 PM



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