15-01-2020, 12:14 PM
मूरत—माई, बाहर ठंड में क्यों खड़ी हो? बालक को जाड़ा लग रहा है, भीतर आकर कपड़ा ओ़ लो।
स्त्री भीतर आई। मूरत ने उसे चूल्हे के पास बिठाया और बालक को मिठाई दी।
मूरत—माई, तुम कौन हो?
स्त्री—मैं एक सिपाही की स्त्री हूं। आठ महीने से न जाने कर्मचारियों ने मेरे पति को कहां भेज दिया है, कुछ पता नहीं लगता। गर्भवती होने पर मैं एक जगह रसोई का काम करने पर नौकर थी। ज्योंही यह बालक उत्पन्न हुआ, उन्होंने इस भय से कि दो जीवों को अन्न देना पड़ेगा, मुझे निकाल दिया। तीन महीने से मारीमारी फिरती हूं। कोई टहलनी नहीं रखता। जो कुछ पास था, सब बेचकर खा गई। इधर साहूकारिन के पास जाती हूं। स्यात नौकर रख ले।
मूरत—तुम्हारे पास कोई ऊनी वस्त्र नहीं है?
स्त्री—वस्त्र कहां से हो, छदाम भी तो पास नहीं।
मूरत—यह लो लोई, इसे ओढ़ लो।
स्त्री—भगवान तुम्हारा भला करे। तुमने बड़ी दया की। बालक शीत के मारे मरा जाता था।
मूरत—मैंने दया कुछ नहीं की। श्री कृष्णचन्द्र की इच्छा ही ऐसी है।
फिर मूरत ने स्त्री को रात वाला स्वप्न सुनाया।
स्त्री—क्या अचरज है, दर्शन होने कोई असम्भव तो नहीं।
स्त्री के चले जाने पर सेव बेचने वाली आयी। उसके सिर पर सेवों की टोकरी थी और पीठ पर अनाज की गठरी। टोकरी धरती पर रखकर खम्भे का सहारा ले वह विश्राम करने लगी कि एक बालक टोकरी में से सेव उठाकर भागा। सेव वाली ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और सिर के बाल खींचकर मारने लगी। बालक बोला—मैंने सेव नहीं उठाया।
मूरत ने उठकर बालक को छुड़ा दिया।
मूरत—माई, क्षमा कर, बालक है।
सेव वाली—यह बालक बड़ा उत्पाती है। मैं इसे दंड दिये बिना कभी न छोडूंगी।
मूरत—माई, जाने दे, दया कर। मैं इसे समझा दूंगा। वह ऐसा काम फिर नहीं करेगा।
बुढ़िया ने बालक को छोड़ दिया। वह भागना चाहता था कि सूरत ने उसे रोका और कहा—बुढ़िया से अपना अपराध क्षमा कराओ और प्रतिज्ञा करो कि चोरी नहीं करोगे। मैंने आप तुम्हें सेव उठाते देखा है। तुमने यह झूठ क्यों कहा?
बालक ने रोकर बुढ़िया से अपना अपराध क्षमा कराया और प्रतिज्ञा की कि फिर झूठ नहीं बोलूंगा। इस पर मूरत ने उसे एक सेव मोल ले दिया।
बुढ़िया —वाहवाह, क्या कहना है! इस प्रकार तो तुम गांव के समस्त बालकों का सत्यानाश कर डालोगे। यह अच्छी शिक्षा है! इस तरह तो सब लड़के शेर हो जायेंगे।
मूरत—माई, यह क्या कहती हो! बदला और दंड देना तो मनुष्यों का स्वभाव है, परमात्मा का नहीं, वह दयालु है। यदि इस बालक को एक सेव चुराने का कठिन दंड मिलना उचित है, तो हमको हमारे अनन्त पापों का क्या दंड मिलना चाहिए? माई, सुनो, मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। एक कर्मचारी पर राजा के दस हजार रुपये आते थे। उसके बहुत विनय करने पर राजा ने वह ऋ़ण छोड़ दिया। उस कर्मचारी की भी अपने सेवकों से सौ-सौ रुपये पावने थे, वह उन्हें बड़ा कष्ट देने लगा। उन्होंने बहुतेरा कहा कि हमारे पास पैसा नहीं, ऋण कहां से चुकावें? कर्मचारी ने एक न सुनी। वे सब राजा के पास जाकर फरियादी हुए। राजा ने उसी दम कर्मचारी को कठिन दंड दिया। तात्पर्य यह कि हम जीवों पर दया नहीं करेंगे, तो परमात्मा भी हम पर दया नहीं करेगा।
बुढ़िया —यह सत्य है, परंतु ऐसे बर्ताव से बालक बिगड़ जाते हैं।
मूरत—कदापि नहीं। बिगड़ते नहीं, वरन सुधरते हैं।
स्त्री भीतर आई। मूरत ने उसे चूल्हे के पास बिठाया और बालक को मिठाई दी।
मूरत—माई, तुम कौन हो?
स्त्री—मैं एक सिपाही की स्त्री हूं। आठ महीने से न जाने कर्मचारियों ने मेरे पति को कहां भेज दिया है, कुछ पता नहीं लगता। गर्भवती होने पर मैं एक जगह रसोई का काम करने पर नौकर थी। ज्योंही यह बालक उत्पन्न हुआ, उन्होंने इस भय से कि दो जीवों को अन्न देना पड़ेगा, मुझे निकाल दिया। तीन महीने से मारीमारी फिरती हूं। कोई टहलनी नहीं रखता। जो कुछ पास था, सब बेचकर खा गई। इधर साहूकारिन के पास जाती हूं। स्यात नौकर रख ले।
मूरत—तुम्हारे पास कोई ऊनी वस्त्र नहीं है?
स्त्री—वस्त्र कहां से हो, छदाम भी तो पास नहीं।
मूरत—यह लो लोई, इसे ओढ़ लो।
स्त्री—भगवान तुम्हारा भला करे। तुमने बड़ी दया की। बालक शीत के मारे मरा जाता था।
मूरत—मैंने दया कुछ नहीं की। श्री कृष्णचन्द्र की इच्छा ही ऐसी है।
फिर मूरत ने स्त्री को रात वाला स्वप्न सुनाया।
स्त्री—क्या अचरज है, दर्शन होने कोई असम्भव तो नहीं।
स्त्री के चले जाने पर सेव बेचने वाली आयी। उसके सिर पर सेवों की टोकरी थी और पीठ पर अनाज की गठरी। टोकरी धरती पर रखकर खम्भे का सहारा ले वह विश्राम करने लगी कि एक बालक टोकरी में से सेव उठाकर भागा। सेव वाली ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और सिर के बाल खींचकर मारने लगी। बालक बोला—मैंने सेव नहीं उठाया।
मूरत ने उठकर बालक को छुड़ा दिया।
मूरत—माई, क्षमा कर, बालक है।
सेव वाली—यह बालक बड़ा उत्पाती है। मैं इसे दंड दिये बिना कभी न छोडूंगी।
मूरत—माई, जाने दे, दया कर। मैं इसे समझा दूंगा। वह ऐसा काम फिर नहीं करेगा।
बुढ़िया ने बालक को छोड़ दिया। वह भागना चाहता था कि सूरत ने उसे रोका और कहा—बुढ़िया से अपना अपराध क्षमा कराओ और प्रतिज्ञा करो कि चोरी नहीं करोगे। मैंने आप तुम्हें सेव उठाते देखा है। तुमने यह झूठ क्यों कहा?
बालक ने रोकर बुढ़िया से अपना अपराध क्षमा कराया और प्रतिज्ञा की कि फिर झूठ नहीं बोलूंगा। इस पर मूरत ने उसे एक सेव मोल ले दिया।
बुढ़िया —वाहवाह, क्या कहना है! इस प्रकार तो तुम गांव के समस्त बालकों का सत्यानाश कर डालोगे। यह अच्छी शिक्षा है! इस तरह तो सब लड़के शेर हो जायेंगे।
मूरत—माई, यह क्या कहती हो! बदला और दंड देना तो मनुष्यों का स्वभाव है, परमात्मा का नहीं, वह दयालु है। यदि इस बालक को एक सेव चुराने का कठिन दंड मिलना उचित है, तो हमको हमारे अनन्त पापों का क्या दंड मिलना चाहिए? माई, सुनो, मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। एक कर्मचारी पर राजा के दस हजार रुपये आते थे। उसके बहुत विनय करने पर राजा ने वह ऋ़ण छोड़ दिया। उस कर्मचारी की भी अपने सेवकों से सौ-सौ रुपये पावने थे, वह उन्हें बड़ा कष्ट देने लगा। उन्होंने बहुतेरा कहा कि हमारे पास पैसा नहीं, ऋण कहां से चुकावें? कर्मचारी ने एक न सुनी। वे सब राजा के पास जाकर फरियादी हुए। राजा ने उसी दम कर्मचारी को कठिन दंड दिया। तात्पर्य यह कि हम जीवों पर दया नहीं करेंगे, तो परमात्मा भी हम पर दया नहीं करेगा।
बुढ़िया —यह सत्य है, परंतु ऐसे बर्ताव से बालक बिगड़ जाते हैं।
मूरत—कदापि नहीं। बिगड़ते नहीं, वरन सुधरते हैं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.