15-01-2020, 11:09 AM
तोल्स्तोय का लिखा सब कुछ मूल रूसी से हिंदी में अनुवाद होकर छपा है और आज भी उपलब्ध है. डॉ मधुसूदन ‘मधु’ ने तो युद्ध और शांति का अनुवाद करने में तीन साल लगा दिए थे. वो भी तब जब रोज़ 6-8 घंटे अनुवाद करते थे. इन्होंने ही आन्ना कारेनिना का अनुवाद किया है और भीष्म साहनी ने पुनरुत्थान और इवान इल्यीच की मौत का हिंदी उल्था किया है. प्रेमचंद ने भी तोल्स्तोय की कुछ कहानियों का अनुवाद किया था. वक्त मिले तो पढ़िएगा…ये सब मिल जाता है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.