15-01-2020, 11:06 AM
(This post was last modified: 15-01-2020, 11:07 AM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
घर से निकलने के 10 दिन बाद अस्तापोवो नाम के एक गांव में ठंड लगने से तोल्स्तोय को निमोनिया हो गया. वहां के रेलवे स्टेशन मास्टर तोल्स्तोय को अपने घर ले गए. लेकिन इस अस्तापोवो स्टेशन को इतिहास में ‘आखिरी स्टेशन’ के नाम से दर्ज होना था. 20 नबंवर 1910 को 82 साल की आयु में भगवान को लिख-लिखकर खोजते इस बुढ़े का देहांत हो जाता है. एक जुआरी, नशेड़ी से लेकर दुनिया के महानतम लेखक होने का सफर खत्म होता है. तोल्स्तोय के देहांत के बाद ये खबर आग की तरह फैल गई. सिक्युरिटी को भीड़ रोकने में पसीने छूट गए. किसान-गरीब टूट पड़े, विरोध प्रदर्शन भी हुए. सिक्युरिटी और प्रशासन की बंदिशों के बावजूद तोल्स्तोय की अंतिम यात्रा में हज़ारों लोग आए. इस किस्से पर हॉलीवुड में ‘लास्ट स्टेशन’ नाम से फिल्म भी बनी है.
तोल्स्तोय का स्थान आज तक खाली है. विश्व साहित्य में कोई ऐसा नहीं है जिससे तोल्स्तोय की तुलना की जा सके. वो लेखक तो बाद में हुए थे. किशोर अवस्था नशे और जुए में बिताई, फिर जबरदस्त वफ़ादार प्रेमी बने और फिर बने गरीबों के मसीहा…नए ज़माने में अहिंसा और आज़ादी का आईडिया सबसे पहले तोल्स्तोय ने लिख दिया था खुदा खोजते-खोजते…
तोल्स्तोय का स्थान आज तक खाली है. विश्व साहित्य में कोई ऐसा नहीं है जिससे तोल्स्तोय की तुलना की जा सके. वो लेखक तो बाद में हुए थे. किशोर अवस्था नशे और जुए में बिताई, फिर जबरदस्त वफ़ादार प्रेमी बने और फिर बने गरीबों के मसीहा…नए ज़माने में अहिंसा और आज़ादी का आईडिया सबसे पहले तोल्स्तोय ने लिख दिया था खुदा खोजते-खोजते…
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
