15-01-2020, 11:05 AM
तोल्स्तोय एक कामयाब प्रेमी थे. आन्ना कारेनिना में तोल्स्तोय ने अपनी पत्नी को ‘कहो ना प्यार है’ कहने से लेकर बाप बनने तक की खुशी का खूबसूरत चित्रण किया है. उनकी पत्नी ही उनकी निजी सचिव थीं. वही सारे काग़ज़ात तैयार करती थीं. जब तोल्स्तोय साहित्य के रॉकस्टार हो गए तब उनको पता चला कि कॉपीराइट और रॉयल्टी कैसे काम करती है. ये सुनकर तोल्स्तोय ने कहा,’यह तथ्य की पिछले दस सालों में मेरी रचनाओं की खरीद-बिक्री हुई है, मेरे लिए मेरे जीवन की सबसे दुखद घटना है.’
सौजन्य: http://humweb.ucsc.edu/
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तोल्स्तोय गरीबों के मसीहा थे. अकाल पड़ने की ख़बर मिलते ही, घोड़े-गाड़ी जोड़कर किसानों और गरीबों की मदद करने यूरोपियन रूस से एशियन रूस तक पहुंच जाते थे. कितने ही तरीकों से उन्होंने गरीबों की मदद करनी चाही और की भी. और उनमें एक चीज़ और थी. हम अपने लिखे हुए को काटना तक पसंद नहीं करते और वो थे कि अपने लिखे हुए को नष्ट तक कर देते थे. जब आन्ना कारेनिना पूरे यूरोप में धूम मचा रहा था तब तोल्स्तोय बड़े शर्मिंदा हुए, जो कोई भी पूछता उसे कह देते – ऐसा वाहियात उपन्यास कोई कैसे लिख सकता है. एक अमीर औरत और जवान फ़ौजी अफ़सर की प्रेम कहानी लोगों को क्यों पसंद आ रही है ?
तोल्स्तोय की ख्याति पूरी दुनिया में फैल चुकी थी लेकिन तोल्स्तोय को अपने आध्यात्मिक शिष्य महात्मा गांधी की तरह ही नोबेल पुरस्कार कभी नहीं मिला. दरअसल नोबेल वाले कभी भी निष्पक्ष नहीं रहे हैं. तब भी नहीं थे. तोल्स्तोय के जीवनकाल में नोबेल देने वाले स्कैंडिनेवियन देशों के साथ रूस के संबंध खराब रहे. खैर, ये नोबेल का ही नुकसान है कि वो दुनिया के महानतम लेखक को नोबेल नहीं दे पाया.
सौजन्य: http://humweb.ucsc.edu/
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तोल्स्तोय गरीबों के मसीहा थे. अकाल पड़ने की ख़बर मिलते ही, घोड़े-गाड़ी जोड़कर किसानों और गरीबों की मदद करने यूरोपियन रूस से एशियन रूस तक पहुंच जाते थे. कितने ही तरीकों से उन्होंने गरीबों की मदद करनी चाही और की भी. और उनमें एक चीज़ और थी. हम अपने लिखे हुए को काटना तक पसंद नहीं करते और वो थे कि अपने लिखे हुए को नष्ट तक कर देते थे. जब आन्ना कारेनिना पूरे यूरोप में धूम मचा रहा था तब तोल्स्तोय बड़े शर्मिंदा हुए, जो कोई भी पूछता उसे कह देते – ऐसा वाहियात उपन्यास कोई कैसे लिख सकता है. एक अमीर औरत और जवान फ़ौजी अफ़सर की प्रेम कहानी लोगों को क्यों पसंद आ रही है ?
तोल्स्तोय की ख्याति पूरी दुनिया में फैल चुकी थी लेकिन तोल्स्तोय को अपने आध्यात्मिक शिष्य महात्मा गांधी की तरह ही नोबेल पुरस्कार कभी नहीं मिला. दरअसल नोबेल वाले कभी भी निष्पक्ष नहीं रहे हैं. तब भी नहीं थे. तोल्स्तोय के जीवनकाल में नोबेल देने वाले स्कैंडिनेवियन देशों के साथ रूस के संबंध खराब रहे. खैर, ये नोबेल का ही नुकसान है कि वो दुनिया के महानतम लेखक को नोबेल नहीं दे पाया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.