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Non-erotic लिख-लिख कर खुदा खोजता रहा वो बूढ़ा
#8
तोल्स्तोय का कुछ भी उठा लीजिए सब कुछ क्लासिक है. एक आदमी इतनी क्लासिक रचनाएं कैसे लिख सकता है, वो भी ऐसी किताबें जो अपने देश में ही नहीं, पूरी दुनिया में छा गईं ? अमीर ज़मींदार परिवार में पैदा हुए तोल्स्तोय ने भगवा चोला धारण नहीं किया था बस, बाकि उनका सब-कुछ खुद को और ईश्वर को ढूंढने में लगा रहा. वो अपनी तरह के बाबा थे जो अपने लिखने में भगवान ढूंढते थे. हालांकि उनकी आत्मकथा लिखने की इच्छा कभी पूरी नहीं हो पाई लेकिन एक पतली सी किताब ‘मुक्ति की खोज’ में तोल्स्तोय ने कई जगह लिखा है, ‘मैं ज़िंदगी के मकसद और भगवान् के अस्तित्व से जुड़े सवालों से तंग आकर आत्महत्या करना चाहता था.’ और भगवान् की खोज करते-करते तोल्स्तोय दुनिया का हर धर्म, हर दर्शन पढ़ गए. हमारे भारत का अध्यात्म भी चाट गए.

तोल्स्तोय भयंकर आस्तिक थे और जीवन के उत्तरार्ध में शाकाहारी हो गए थे. रूस में शाकाहारी होना मुश्किल और अनोखी बात थी तब. उनके उपन्यासों में ईसाई धर्म दिखेगा. इसका मतलब ये नहीं की वो कट्टर ईसाई थे. उनकी किताबों में सारे पात्र ही ईसाई धर्म के थे और उन कथानकों में दूसरी आस्थाओं का समावेश संभव नहीं था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: लिख-लिख कर खुदा खोजता रहा वो बूढ़ा - by neerathemall - 15-01-2020, 11:04 AM



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