15-01-2020, 10:40 AM
(This post was last modified: 15-01-2020, 11:59 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
कली अब फूल
एक बार तो मैं सहम गई, लेकिन रितू भाभी ने मुझे आँख मार के इशारा किया, अरे कच्ची कली की चूत फटी है,
वो भी मूसल ऐसे लण्ड से।
ये तो होना ही था। अब नदी पार हो गई है, घबड़ाना मत।
और सच में, उन्होंने भी अब और चोदना छोड़कर, छुटकी के प्यारे-प्यारे गालों को चूमना शुरू किया,
उसके होंठों को अपने होंठों के बीच लेकर चूसने लगे,
एक हाथ छुटकी की छोटी-छोटी चूची को दबा सहला रहा था
तो दूसरा हाथ उसका सर हल्के-हल्के सहला रहा था।
5-7 मिनट के बाद, उसने आँख खोल दी और टुकुर-टुकुर अपने जीजा की ओर देखकर हल्के से मुश्कुराया।
फिर उसने मुझे और रितू भाभी को देखा और, हल्के से उसकी आँखों में खुशी नाच रही थी।
मेरी और रितू भाभी की आँखों ने हाई फाइव किया।
उन्होंने प्यार से उसके होंठों के बीच अपनी जीभ पेल दी, और लगे उसका मुँह चोदने।
वो भी जैसे लण्ड चूस रही हो, उनकी जीभ चूस रही थी।
अब बारी थी गीयर बदलने की,
लेकिन वो भी, हमसे ज्यादा उन्हें अपनी साली की चिंता थी।
वो सिर्फ आधे लण्ड से छुटकी की चूत चोदने लगे, वो भी बहुत हल्के-हल्के।
दर्द उसे अभी भी हो रहा था, लेकिन मजा भी आ रहा था, कभी दर्द से कराहती तो कभी मजे से सिसकती।
लेकिन ये आधे लण्ड की चुदायी, न तो रितू भौजी को कबूल थी न मुझे।
बांस ऐसे लण्ड वाले जीजा का क्या फायदा अगर साल्ली, आधे तीहे लण्ड से चुदे।
जब तक बच्चेदानी पे धक्के पे धक्का न लगे, और दिन में तारे न नजर आएं तो चुदाई क्या?
रितू भाभी ने पीछे से उन्हें पकड़ा और उनके टिट्स को स्क्रैच करती हुई, इयर लोब्स काटती बोलीं-
“अरे नंदोई भड़ुवे, ये बाकी का आधा लण्ड क्या मेरी ननद की ननदों के लिए बचा रखा है?”
“नहीं भौजी, आपकी ननद की सास के लिए…”
जवाब मैंने दिया।
और साथ ही रितू भाभी की मंझली उंगली जो उनके पिछवाड़े को सहला रही थी, एक धक्के में हचक के पूरी तरह उनकी गाण्ड में।
असर ये हुआ की उन्होंने भी पूरी ताकत से धक्का मारा और बचा हुआ लण्ड, छुटकी की चूत में।
पूरा 9” इंच अंदर।
वो बहुत जोर से चीखी, जैसे किसी ने चाकू मार दिया हो।
लेकिन मैंने तारीफ से उसकी ओर देखा, सुहागरात की पहली चुदाई में, जब इन्होने मेरी झिल्ली फाड़ी थी, मैं सिर्फ आठ इंच अंदर ले पायी थी। उस रात की तीसरी चुदाई में जाकर, जड़ तक इनका एक बालिश्त का घोंटा था मैंने,
और आज मेरी बहन ने पहली बार में ही।
उसकी आँखों से फिर आंसू निकल रहे थे, वो दर्द से कराह रही थी
लेकिन मैं और रितू भाभी मुश्कुरा रहे थे, उसकी हिम्मत बढ़ा रहे थे।
ये भी बजाय लण्ड अंदर-बाहर करने के, जड़ तक घुसे बित्ते भर के लण्ड को दबा के, उसके बेस को उसकी चूत के पपोटों पे रगड़-रगड़ के मजा दे रहे थे। साथ में उनकी उंगलियां भी कभी क्लिट को छेड़तीं तो कभी टिकोरों को मसलतीं।
और जब उसके आंसू सूख गए, कराहें कम हो गई तो फिर हल्के-हल्के धक्के मारने उन्होंने शुरू कर दिए।
झूलेकर पेंग की तरह और… और अब छुटकी भी उनको बाहों में भींच रही थी, उनके चुम्बन का जवाब दे रही थी
और बार-बार मजे से सिसक रही थी। धक्कों की रफ्तार धीरे-धीरे तेज हो गई।
और ऊपर से थी न रितू भाभी, उकसाने वाली-
“का हो नंदोई? अरे हचक के पेला सबसे लहुरी साली हौ…”
दर्द उसे अभी भी हो रहा था, लेकिन साथ में एक नया नया मजा भी आ रहा था।
जब वो उसे दुहरी करके पूरी ताकत से धक्का मारते तो सुपाड़ा सीधे बच्चेदानी से टकराता।
वो दर्द से कहर उठती, लेकिन साथ में मजे से सिहर भी उठती।
और अब उनके होंठों, उंगलियों का लण्ड के साथ मिलकर तिहरा हमला हो रहा था। मस्त कच्चे टिकोरों पर, जोश में आके फूली क्लिट पर, और चूत की हचक कर चुदाई तो हो ही रही थी।
छुटकी दो बार झड़ी।
पहली बार लण्ड के मजे से वो झड़ रही थी, तूफान में पत्ते की तरह वो काँप रही थी।
और जैसे ही तूफान रुकता उसकी ओखली में मूसल फिर पूरी तेजी से चलने लगता।
20-25 मिनट फुल स्पीड चुदाई के बाद वो झड़े, छुटकी के पैर उनके कंधे पे थे, और लण्ड एकदम बच्चेदानी पर सटा,
जैसे लहर पर लहर आ रही, सफेद गाढ़ी थक्केदार मलाई।
छुटकी मजे में बेहोश शिथिल पड़ी थी।
गाढ़ा, सफेद, चिपचिपा वीर्य निकलकर उसकी गोरी-गोरी जाँघों पर बह रहा था।
और कुछ देर में वह भी, छुटकी के ऊपर निढाल, गिरे हुए, उसको अपनी देह से दबाये, बाँहों में भींचे, वीर्य सरिता अभी भी अनवरत बह रही थी।
पहले सम्भोग रस, फिर वीर्य रस और उसके बाद शांत रस। तूफान के बाद की शान्ति छायी थी।
मैं और रितू भाभी एक दूसरे को देखकर मुश्कुरा रहे थे, काम हो गया था।
कली अब फूल बन चुकी थी।
उसके जीवन में बसंत आ गया था,
और अभी तो ये बस शुरुवात थी।
एक बार तो मैं सहम गई, लेकिन रितू भाभी ने मुझे आँख मार के इशारा किया, अरे कच्ची कली की चूत फटी है,
वो भी मूसल ऐसे लण्ड से।
ये तो होना ही था। अब नदी पार हो गई है, घबड़ाना मत।
और सच में, उन्होंने भी अब और चोदना छोड़कर, छुटकी के प्यारे-प्यारे गालों को चूमना शुरू किया,
उसके होंठों को अपने होंठों के बीच लेकर चूसने लगे,
एक हाथ छुटकी की छोटी-छोटी चूची को दबा सहला रहा था
तो दूसरा हाथ उसका सर हल्के-हल्के सहला रहा था।
5-7 मिनट के बाद, उसने आँख खोल दी और टुकुर-टुकुर अपने जीजा की ओर देखकर हल्के से मुश्कुराया।
फिर उसने मुझे और रितू भाभी को देखा और, हल्के से उसकी आँखों में खुशी नाच रही थी।
मेरी और रितू भाभी की आँखों ने हाई फाइव किया।
उन्होंने प्यार से उसके होंठों के बीच अपनी जीभ पेल दी, और लगे उसका मुँह चोदने।
वो भी जैसे लण्ड चूस रही हो, उनकी जीभ चूस रही थी।
अब बारी थी गीयर बदलने की,
लेकिन वो भी, हमसे ज्यादा उन्हें अपनी साली की चिंता थी।
वो सिर्फ आधे लण्ड से छुटकी की चूत चोदने लगे, वो भी बहुत हल्के-हल्के।
दर्द उसे अभी भी हो रहा था, लेकिन मजा भी आ रहा था, कभी दर्द से कराहती तो कभी मजे से सिसकती।
लेकिन ये आधे लण्ड की चुदायी, न तो रितू भौजी को कबूल थी न मुझे।
बांस ऐसे लण्ड वाले जीजा का क्या फायदा अगर साल्ली, आधे तीहे लण्ड से चुदे।
जब तक बच्चेदानी पे धक्के पे धक्का न लगे, और दिन में तारे न नजर आएं तो चुदाई क्या?
रितू भाभी ने पीछे से उन्हें पकड़ा और उनके टिट्स को स्क्रैच करती हुई, इयर लोब्स काटती बोलीं-
“अरे नंदोई भड़ुवे, ये बाकी का आधा लण्ड क्या मेरी ननद की ननदों के लिए बचा रखा है?”
“नहीं भौजी, आपकी ननद की सास के लिए…”
जवाब मैंने दिया।
और साथ ही रितू भाभी की मंझली उंगली जो उनके पिछवाड़े को सहला रही थी, एक धक्के में हचक के पूरी तरह उनकी गाण्ड में।
असर ये हुआ की उन्होंने भी पूरी ताकत से धक्का मारा और बचा हुआ लण्ड, छुटकी की चूत में।
पूरा 9” इंच अंदर।
वो बहुत जोर से चीखी, जैसे किसी ने चाकू मार दिया हो।
लेकिन मैंने तारीफ से उसकी ओर देखा, सुहागरात की पहली चुदाई में, जब इन्होने मेरी झिल्ली फाड़ी थी, मैं सिर्फ आठ इंच अंदर ले पायी थी। उस रात की तीसरी चुदाई में जाकर, जड़ तक इनका एक बालिश्त का घोंटा था मैंने,
और आज मेरी बहन ने पहली बार में ही।
उसकी आँखों से फिर आंसू निकल रहे थे, वो दर्द से कराह रही थी
लेकिन मैं और रितू भाभी मुश्कुरा रहे थे, उसकी हिम्मत बढ़ा रहे थे।
ये भी बजाय लण्ड अंदर-बाहर करने के, जड़ तक घुसे बित्ते भर के लण्ड को दबा के, उसके बेस को उसकी चूत के पपोटों पे रगड़-रगड़ के मजा दे रहे थे। साथ में उनकी उंगलियां भी कभी क्लिट को छेड़तीं तो कभी टिकोरों को मसलतीं।
और जब उसके आंसू सूख गए, कराहें कम हो गई तो फिर हल्के-हल्के धक्के मारने उन्होंने शुरू कर दिए।
झूलेकर पेंग की तरह और… और अब छुटकी भी उनको बाहों में भींच रही थी, उनके चुम्बन का जवाब दे रही थी
और बार-बार मजे से सिसक रही थी। धक्कों की रफ्तार धीरे-धीरे तेज हो गई।
और ऊपर से थी न रितू भाभी, उकसाने वाली-
“का हो नंदोई? अरे हचक के पेला सबसे लहुरी साली हौ…”
दर्द उसे अभी भी हो रहा था, लेकिन साथ में एक नया नया मजा भी आ रहा था।
जब वो उसे दुहरी करके पूरी ताकत से धक्का मारते तो सुपाड़ा सीधे बच्चेदानी से टकराता।
वो दर्द से कहर उठती, लेकिन साथ में मजे से सिहर भी उठती।
और अब उनके होंठों, उंगलियों का लण्ड के साथ मिलकर तिहरा हमला हो रहा था। मस्त कच्चे टिकोरों पर, जोश में आके फूली क्लिट पर, और चूत की हचक कर चुदाई तो हो ही रही थी।
छुटकी दो बार झड़ी।
पहली बार लण्ड के मजे से वो झड़ रही थी, तूफान में पत्ते की तरह वो काँप रही थी।
और जैसे ही तूफान रुकता उसकी ओखली में मूसल फिर पूरी तेजी से चलने लगता।
20-25 मिनट फुल स्पीड चुदाई के बाद वो झड़े, छुटकी के पैर उनके कंधे पे थे, और लण्ड एकदम बच्चेदानी पर सटा,
जैसे लहर पर लहर आ रही, सफेद गाढ़ी थक्केदार मलाई।
छुटकी मजे में बेहोश शिथिल पड़ी थी।
गाढ़ा, सफेद, चिपचिपा वीर्य निकलकर उसकी गोरी-गोरी जाँघों पर बह रहा था।
और कुछ देर में वह भी, छुटकी के ऊपर निढाल, गिरे हुए, उसको अपनी देह से दबाये, बाँहों में भींचे, वीर्य सरिता अभी भी अनवरत बह रही थी।
पहले सम्भोग रस, फिर वीर्य रस और उसके बाद शांत रस। तूफान के बाद की शान्ति छायी थी।
मैं और रितू भाभी एक दूसरे को देखकर मुश्कुरा रहे थे, काम हो गया था।
कली अब फूल बन चुकी थी।
उसके जीवन में बसंत आ गया था,
और अभी तो ये बस शुरुवात थी।