15-01-2020, 12:59 AM
अध्याय 4
इधर अभय के ऑफिस में अभय ने उस फ़ाइल को उठाया और काफी देर तक उसमें मौजूद कागजों को पढ़ता रहा....बार बार उसके चेहरे पर अलग अलग रंग आ जा रहे थे... फ़ाइल को पूरा पढ़ने के बाद वो कुर्सी के पीछे सिर टिकाकर लेट सा गया और अपनी आँखें बंद कर लीं... ऋतु सामने बैठी उसे बड़े गौर से देख रही थी... अचानक उसने कहा
“सर आखिर इस फ़ाइल में ऐसा क्या है जो अप इतनी टेंशन मे आ गए और इस फ़ाइल को किसलिए निकलवाया आपने.... मेरे ख्याल से जो कोटा से अनुराधा सिंह के नाम से फोन आया था... उसी सिलसिले में है.... विक्रम भैया भी तो शायद कोटा के पास ही रहते हैं.... ये अनुराधा सिंह कौन है?”
“रुको! रुको! में तुम्हें सबकुछ बताता हूँ लेकिन उससे पहले तुम्हें विक्रम के बारे मे एक जरूरी सूचना देनी थी.... पहले तो ये बताओ की विक्रम से तुम्हारा कितना नजदीक का रिश्ता है.... क्योंकि कज़न तो दूर के रिश्तेदार भी हो सकते हैं और आज के वक़्त में तो... बिना रिश्ते के भी” अभय ने पैनी नजरों से ऋतु को देखते हुये कहा... जैसे उसके दिमाग मे झाँककर देख रहा हो।
“आपका कहना सही है सर, लेकिन वो मेरे पिताजी के बड़े भाई के बेटे हैं.... बल्कि मेरे पिताजी और उनके भाइयों मे इकलौते बेटे...मेरे इकलौते भाई लेकिन वो कभी हमारे साथ नहीं रहे...इसलिए मुझे उनके बारे मे ज्यादा जानकारी नहीं है...”
“ठीक है! क्या तुम देवराज सिंह, रागिनी सिंह, अनुराधा सिंह या प्रबल प्रताप सिंह को जानती हो?”
“देवराज सिंह तो मेरे चाचाजी हैं जिनके पास विक्रम भैया रहते हैं” इतने सवाल जवाब से परेशान होते हुये ऋतु ने कहा “बाकी में किसी को नहीं जानती... लेकिन आप मुझे कुछ भी बताने की बजाय इतने सवाल जवाब क्यों किए जा रहे हैं?”
“आज सुबह कोटा से रागिनी सिंह का फोन आया था, उन्हें श्रीगंगानगर सिक्युरिटी से सूचना मिली है की वहाँ एक सड़ी-गली लवारीश लाश बरामद हुई है जिसकी जेब से विक्रम का मोबाइल और कागजात मिले हैं...”
“क्या? विक्रम भैया....” रागिनी आगे कुछ न बोल पायी और रोने लगी
“अभी कुछ पक्का पता नहीं ... रागिनी गंगानगर के लिए निकाल चुकी है...वहाँ पहुँचकर फोन करेगी की क्या हुआ...” ऋतु को दिलाशा देते हुये अभय ने कहा “हो सकता है वो कोई जेबकतरे की लाश हो जिसने विक्रम का मोबाइल और पर्स चुरा लिया हो... विक्रम ऐसे आसानी से मरनेवालों मे से नहीं है...तुम चाहो तो अपने घरवालों को ये सूचना अभी दे दो या फिर रागिनी का फोन आ जाने दो”
ऋतु ने कोई जवाब दिये बिना घर फोन मिलाया जो उसकी माँ ने उठाया तो ऋतु ने उनसे अपने पिताजी से बात कराने को कहा... लेकिन वो बैंक गए हुये थे किसी कम से... तो ऋतु ने अपनी माँ को कुछ नहीं बताया।
तब अभय ने उससे कहा की अब रागिनी का फोन आ जाने दो तभी बताना और कुछ देर मे अनुराधा और प्रबल भी दिल्ली पहुँच रहे हैं।
“लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा की ये रागिनी सिंह कौन हैं और ये अनुराधा-प्रबल...आप पहले भी पूंछ रहे थे...लेकिन बताया नहीं मुझे”
“रागिनी मेरे और विक्रम के साथ कॉलेज मे पढ़ा करती थी लेकिन 5-6 साल पहले वो विक्रम के साथ मेरे ऑफिस आयी थी तब विक्रम ने बताया था की उसकी शादी देवराज सिंह से हो गयी है... और उसके 2 बच्चे हैं बड़ी बेटी अनुराधा और छोटा बेटा प्रबल... लेकिन मुझे ये समझ नहीं आया कि 17-18 साल पहले वो हमारे साथ कॉलेज मे पढ़ती थी, उसके बाद शादी हुई तो उसके दोनों बच्चे 18 साल से ज्यादा के कैसे हो गए... शायद देवराज सिंह कि पहली पत्नी के बच्चे होंगे... “
“देवराज चाचाजी ने तो कभी शादी ही नहीं कि... गजराज ताऊजी कि मौत और ताईजी के घर छोडकर चले जाने के बाद वो विक्रम भैया को अपने साथ ले गए और उन्हें पाला-पोसा....”
“अब मेरी भी कुछ समझ मे नहीं आ रहा विक्रम तो मुझे कॉलेज में भी बड़ा रहस्यमय सा लगता था...अब तो लगता है पूरा परिवार ही रहस्यमय है... थोड़ी देर मे अनुराधा और प्रबल को आने दो उनसे पता करना, में भी रागिनी से पता करता हूँ कब तक पहुंचेगी”
ऋतु चुपचाप अपनी सीट पर जाकर बैठ गयी और आँखें बंद करके कुछ सोचने लगी
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“अभय में गंगानगर मे सिक्युरिटी स्टेशन मे हूँ, लाश पहचाने जाने के काबिल नहीं है.... लेकिन शायद विक्रम की ही है... कद काठी से और लाश के साथ मिले सामान से तो ऐसा ही लग रहा है” उधर से रागिनी की हिचकियों के साथ अटक-अटक कर आती रागिनी की आवाज को सुनते ही अभय की आँखें भी भर आयीं
“रागिनी! विक्रम के चाचा बलराज सिंह दिल्ली मे रहते हैं तुम उसे लेकर दिल्ली आ जाओ, उन्हें में सूचना दे रहा हूँ, अनुराधा और प्रबल कुछ देर मे मेरे पास ही पहुँच रहे हैं”
इतना कहकर अभय ने फोन काटा ही था दरवाजे पर नॉक करके अभय के ऑफिस का एक क्लर्क अंदर आकर बोला
“सर! अनुराधा सिंह.....” क्लर्क की बात पूरी होने पहले ही अभय ने उसे अनुराधा को अंदर भेजने को कहा
उनके अंदर आने पर उसने दोनों को बैठने को कहा ऋतु भी अपनी सीट से उठकर आकर उनके बराबर मे ही अभय के सामने बैठ गयी।
“तो तुम दोनों देवराज सिंह के बच्चे हो?” ऋतु ने सवाल किया
“एक मिनट ऋतु! मुझे बात करने दो” अभय ने ऋतु से कहा और अनुराधा की ओर देखते हुये बोलना शुरू किया “आप दोनों को मेंने इसलिए बुलाया है की विक्रमादित्य सिंह की मृत्यु हो सूचना मिली है और उनकी वसीयत मेरे पास है जो उनके बाद उनके वारिस आप दोनों को सौंपी जानी है....”
अनुराधा, प्रबल और ऋतु तीनों एक साथ चोंक जाते हैं और ऋतु व प्रबल की आँखों से आँसू बहने लगते हैं... जबकि अनुराधा एकदम गुमसुम सी रह जाती है...जैसे की समझ न आ रहा हो की क्या हुआ
अचानक रोते रोते ही ऋतु बेहोश होकर कुर्सी से गिर पड़ी...अभय ने प्रबल की सहायता से उसे उठाकर सोफ़े पर लिटाया और ऋतु का फोन मेज से उठाकर उसके घर का नंबर मिलाया...
“हैलो”
“आंटी नमस्ते! में एडवोकेट अभय प्रताप सिंह बोल रहा हूँ...”
“हाँ बेटा नमस्ते! क्या बात हो गयी...ऋतु ठीक तो है...” अभय का इस तरह अचानक फोन आने से ऋतु की माँ मोहिनी देवी ने घबराते हुये पूंछा... क्योंकि इस समय ऋतु ऑफिस मे ही होनी चाहिए थी... तो अगर सब कुछ ठीक होता तो फोन ऋतु का आता ...अभय का नहीं...
“आंटी! ऋतु तो ठीक है... आप और अंकल से मुझे कुछ काम था...इसलिए मेंने कॉल किया.... अगर आप दोनों ऑफिस आ सकें तो बेहतर रहेगा” अभय ने कहा
“बेटा तुम्हारे अंकल तो सुबह से बैंक गए हुये हैं... उनके आने पर फोन करती हूँ... या शाम को तुम ही घर आ जाओ....” मोहिनी देवी ने जवाब दिया
“ठीक है आंटी जी में ऋतु को साथ लेकर आता हूँ... 1-2 घंटे में” कहते हुये अभय ने फोन कट दिया और घड़ी की ओर देखा साढ़े तीन बज रहे थे
फिर उसने एक कॉल करके डॉक्टर को अपने ऑफिस आने को बोला और आकर अपनी सीट पर बैठ गया। और किसी को कॉफी भेजने को कहा
फिर अनुराधा की ओर देखकर कहा “देखो अनुराधा अभी एक जरूरी बात और तुम्हें बता दूँ... देवराज सिंह और विक्रम की फॅमिली दिल्ली की रहनेवाली है ...इनके परिवार के बाकी मेम्बर्स दिल्ली मे रहते हैं जिन्हें तुम शायद नहीं जानती... विक्रम, रागिनी और में दिल्ली में एक ही कॉलेज में पढ़ते थे.... ये जो मेरी असिस्टेंट बेहोश हो गईं विक्रम की मौत की खबर सुनकर .... ये विक्रम की चचेरी बहन हैं... बलराज सिंह की बेटी एडवोकेट ऋतु सिंह... अभी मेंने ऋतु की माँ से बात की है तो हम सब को वहीं उनके घर चलना होगा.... रागिनी भी विक्रम की लाश को लेकर यहीं आ रही है... अब जो भी बात होगी बलराज सिंह के सामने ही होगी”
“ठीक है...” अनुराधा ने भी उलझे से स्वर मे कहा...उसे भी सुबह से हो रही घटनाओ ने उलझकर रख दिया था...और अब विक्रम की मृत्यु के खुलासे से तो वो स्तब्ध रह गयी थी। इधर प्रबल बेखयाली में न कुछ बोल रहा था न सुन रहा था बस रोये जा रहा था....
इसके बाद कोई कुछ नहीं बोला थोड़ी देर बाद डॉक्टर ने आकर ऋतु को देखा, ब्लड प्रैशर चेक किया और कुछ दवाएं दी... ऋतु के होश मे आने पर उसे पानी से हाथ मुंह धोने और दवा खाने को कहा.....
डॉक्टर के जाने के बाद ऋतु फिर से सोफ़े पर चुपचाप बैठकर आँसू बहाने लगी तो अनुराधा जाकर उसके पास बैठ गयी और और उसे चुप कराने लगी। इधर अभय ने अपने स्टाफ के एक सीनियर को बुलाकर उससे ऑफिस संभालने को कहा और उसे बताया की वो और ऋतु किसी जरूरी काम से जा रहे हैं...शाम को ऑफिस लौटकर नहीं आएंगे...
इसके बाद अभय ने प्रबल को अपने साथ लिया और अनुराधा ऋतु को साथ लेकर बाहर आयी। पार्किंग से अभय ने अपनी गाड़ी निकाली तो अनुराधा ने उससे कहा की वो और ऋतु उनकी गाड़ी से चलेंगे.... अभय ने पार्किंग वाले को बुलाकर उसे ऋतु की गाड़ी वहीं पार्किंग में छोडने का बताकर वो सब ऋतु के घर की ओर चल दिये....
..................................अभी इतना ही
इधर अभय के ऑफिस में अभय ने उस फ़ाइल को उठाया और काफी देर तक उसमें मौजूद कागजों को पढ़ता रहा....बार बार उसके चेहरे पर अलग अलग रंग आ जा रहे थे... फ़ाइल को पूरा पढ़ने के बाद वो कुर्सी के पीछे सिर टिकाकर लेट सा गया और अपनी आँखें बंद कर लीं... ऋतु सामने बैठी उसे बड़े गौर से देख रही थी... अचानक उसने कहा
“सर आखिर इस फ़ाइल में ऐसा क्या है जो अप इतनी टेंशन मे आ गए और इस फ़ाइल को किसलिए निकलवाया आपने.... मेरे ख्याल से जो कोटा से अनुराधा सिंह के नाम से फोन आया था... उसी सिलसिले में है.... विक्रम भैया भी तो शायद कोटा के पास ही रहते हैं.... ये अनुराधा सिंह कौन है?”
“रुको! रुको! में तुम्हें सबकुछ बताता हूँ लेकिन उससे पहले तुम्हें विक्रम के बारे मे एक जरूरी सूचना देनी थी.... पहले तो ये बताओ की विक्रम से तुम्हारा कितना नजदीक का रिश्ता है.... क्योंकि कज़न तो दूर के रिश्तेदार भी हो सकते हैं और आज के वक़्त में तो... बिना रिश्ते के भी” अभय ने पैनी नजरों से ऋतु को देखते हुये कहा... जैसे उसके दिमाग मे झाँककर देख रहा हो।
“आपका कहना सही है सर, लेकिन वो मेरे पिताजी के बड़े भाई के बेटे हैं.... बल्कि मेरे पिताजी और उनके भाइयों मे इकलौते बेटे...मेरे इकलौते भाई लेकिन वो कभी हमारे साथ नहीं रहे...इसलिए मुझे उनके बारे मे ज्यादा जानकारी नहीं है...”
“ठीक है! क्या तुम देवराज सिंह, रागिनी सिंह, अनुराधा सिंह या प्रबल प्रताप सिंह को जानती हो?”
“देवराज सिंह तो मेरे चाचाजी हैं जिनके पास विक्रम भैया रहते हैं” इतने सवाल जवाब से परेशान होते हुये ऋतु ने कहा “बाकी में किसी को नहीं जानती... लेकिन आप मुझे कुछ भी बताने की बजाय इतने सवाल जवाब क्यों किए जा रहे हैं?”
“आज सुबह कोटा से रागिनी सिंह का फोन आया था, उन्हें श्रीगंगानगर सिक्युरिटी से सूचना मिली है की वहाँ एक सड़ी-गली लवारीश लाश बरामद हुई है जिसकी जेब से विक्रम का मोबाइल और कागजात मिले हैं...”
“क्या? विक्रम भैया....” रागिनी आगे कुछ न बोल पायी और रोने लगी
“अभी कुछ पक्का पता नहीं ... रागिनी गंगानगर के लिए निकाल चुकी है...वहाँ पहुँचकर फोन करेगी की क्या हुआ...” ऋतु को दिलाशा देते हुये अभय ने कहा “हो सकता है वो कोई जेबकतरे की लाश हो जिसने विक्रम का मोबाइल और पर्स चुरा लिया हो... विक्रम ऐसे आसानी से मरनेवालों मे से नहीं है...तुम चाहो तो अपने घरवालों को ये सूचना अभी दे दो या फिर रागिनी का फोन आ जाने दो”
ऋतु ने कोई जवाब दिये बिना घर फोन मिलाया जो उसकी माँ ने उठाया तो ऋतु ने उनसे अपने पिताजी से बात कराने को कहा... लेकिन वो बैंक गए हुये थे किसी कम से... तो ऋतु ने अपनी माँ को कुछ नहीं बताया।
तब अभय ने उससे कहा की अब रागिनी का फोन आ जाने दो तभी बताना और कुछ देर मे अनुराधा और प्रबल भी दिल्ली पहुँच रहे हैं।
“लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा की ये रागिनी सिंह कौन हैं और ये अनुराधा-प्रबल...आप पहले भी पूंछ रहे थे...लेकिन बताया नहीं मुझे”
“रागिनी मेरे और विक्रम के साथ कॉलेज मे पढ़ा करती थी लेकिन 5-6 साल पहले वो विक्रम के साथ मेरे ऑफिस आयी थी तब विक्रम ने बताया था की उसकी शादी देवराज सिंह से हो गयी है... और उसके 2 बच्चे हैं बड़ी बेटी अनुराधा और छोटा बेटा प्रबल... लेकिन मुझे ये समझ नहीं आया कि 17-18 साल पहले वो हमारे साथ कॉलेज मे पढ़ती थी, उसके बाद शादी हुई तो उसके दोनों बच्चे 18 साल से ज्यादा के कैसे हो गए... शायद देवराज सिंह कि पहली पत्नी के बच्चे होंगे... “
“देवराज चाचाजी ने तो कभी शादी ही नहीं कि... गजराज ताऊजी कि मौत और ताईजी के घर छोडकर चले जाने के बाद वो विक्रम भैया को अपने साथ ले गए और उन्हें पाला-पोसा....”
“अब मेरी भी कुछ समझ मे नहीं आ रहा विक्रम तो मुझे कॉलेज में भी बड़ा रहस्यमय सा लगता था...अब तो लगता है पूरा परिवार ही रहस्यमय है... थोड़ी देर मे अनुराधा और प्रबल को आने दो उनसे पता करना, में भी रागिनी से पता करता हूँ कब तक पहुंचेगी”
ऋतु चुपचाप अपनी सीट पर जाकर बैठ गयी और आँखें बंद करके कुछ सोचने लगी
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“अभय में गंगानगर मे सिक्युरिटी स्टेशन मे हूँ, लाश पहचाने जाने के काबिल नहीं है.... लेकिन शायद विक्रम की ही है... कद काठी से और लाश के साथ मिले सामान से तो ऐसा ही लग रहा है” उधर से रागिनी की हिचकियों के साथ अटक-अटक कर आती रागिनी की आवाज को सुनते ही अभय की आँखें भी भर आयीं
“रागिनी! विक्रम के चाचा बलराज सिंह दिल्ली मे रहते हैं तुम उसे लेकर दिल्ली आ जाओ, उन्हें में सूचना दे रहा हूँ, अनुराधा और प्रबल कुछ देर मे मेरे पास ही पहुँच रहे हैं”
इतना कहकर अभय ने फोन काटा ही था दरवाजे पर नॉक करके अभय के ऑफिस का एक क्लर्क अंदर आकर बोला
“सर! अनुराधा सिंह.....” क्लर्क की बात पूरी होने पहले ही अभय ने उसे अनुराधा को अंदर भेजने को कहा
उनके अंदर आने पर उसने दोनों को बैठने को कहा ऋतु भी अपनी सीट से उठकर आकर उनके बराबर मे ही अभय के सामने बैठ गयी।
“तो तुम दोनों देवराज सिंह के बच्चे हो?” ऋतु ने सवाल किया
“एक मिनट ऋतु! मुझे बात करने दो” अभय ने ऋतु से कहा और अनुराधा की ओर देखते हुये बोलना शुरू किया “आप दोनों को मेंने इसलिए बुलाया है की विक्रमादित्य सिंह की मृत्यु हो सूचना मिली है और उनकी वसीयत मेरे पास है जो उनके बाद उनके वारिस आप दोनों को सौंपी जानी है....”
अनुराधा, प्रबल और ऋतु तीनों एक साथ चोंक जाते हैं और ऋतु व प्रबल की आँखों से आँसू बहने लगते हैं... जबकि अनुराधा एकदम गुमसुम सी रह जाती है...जैसे की समझ न आ रहा हो की क्या हुआ
अचानक रोते रोते ही ऋतु बेहोश होकर कुर्सी से गिर पड़ी...अभय ने प्रबल की सहायता से उसे उठाकर सोफ़े पर लिटाया और ऋतु का फोन मेज से उठाकर उसके घर का नंबर मिलाया...
“हैलो”
“आंटी नमस्ते! में एडवोकेट अभय प्रताप सिंह बोल रहा हूँ...”
“हाँ बेटा नमस्ते! क्या बात हो गयी...ऋतु ठीक तो है...” अभय का इस तरह अचानक फोन आने से ऋतु की माँ मोहिनी देवी ने घबराते हुये पूंछा... क्योंकि इस समय ऋतु ऑफिस मे ही होनी चाहिए थी... तो अगर सब कुछ ठीक होता तो फोन ऋतु का आता ...अभय का नहीं...
“आंटी! ऋतु तो ठीक है... आप और अंकल से मुझे कुछ काम था...इसलिए मेंने कॉल किया.... अगर आप दोनों ऑफिस आ सकें तो बेहतर रहेगा” अभय ने कहा
“बेटा तुम्हारे अंकल तो सुबह से बैंक गए हुये हैं... उनके आने पर फोन करती हूँ... या शाम को तुम ही घर आ जाओ....” मोहिनी देवी ने जवाब दिया
“ठीक है आंटी जी में ऋतु को साथ लेकर आता हूँ... 1-2 घंटे में” कहते हुये अभय ने फोन कट दिया और घड़ी की ओर देखा साढ़े तीन बज रहे थे
फिर उसने एक कॉल करके डॉक्टर को अपने ऑफिस आने को बोला और आकर अपनी सीट पर बैठ गया। और किसी को कॉफी भेजने को कहा
फिर अनुराधा की ओर देखकर कहा “देखो अनुराधा अभी एक जरूरी बात और तुम्हें बता दूँ... देवराज सिंह और विक्रम की फॅमिली दिल्ली की रहनेवाली है ...इनके परिवार के बाकी मेम्बर्स दिल्ली मे रहते हैं जिन्हें तुम शायद नहीं जानती... विक्रम, रागिनी और में दिल्ली में एक ही कॉलेज में पढ़ते थे.... ये जो मेरी असिस्टेंट बेहोश हो गईं विक्रम की मौत की खबर सुनकर .... ये विक्रम की चचेरी बहन हैं... बलराज सिंह की बेटी एडवोकेट ऋतु सिंह... अभी मेंने ऋतु की माँ से बात की है तो हम सब को वहीं उनके घर चलना होगा.... रागिनी भी विक्रम की लाश को लेकर यहीं आ रही है... अब जो भी बात होगी बलराज सिंह के सामने ही होगी”
“ठीक है...” अनुराधा ने भी उलझे से स्वर मे कहा...उसे भी सुबह से हो रही घटनाओ ने उलझकर रख दिया था...और अब विक्रम की मृत्यु के खुलासे से तो वो स्तब्ध रह गयी थी। इधर प्रबल बेखयाली में न कुछ बोल रहा था न सुन रहा था बस रोये जा रहा था....
इसके बाद कोई कुछ नहीं बोला थोड़ी देर बाद डॉक्टर ने आकर ऋतु को देखा, ब्लड प्रैशर चेक किया और कुछ दवाएं दी... ऋतु के होश मे आने पर उसे पानी से हाथ मुंह धोने और दवा खाने को कहा.....
डॉक्टर के जाने के बाद ऋतु फिर से सोफ़े पर चुपचाप बैठकर आँसू बहाने लगी तो अनुराधा जाकर उसके पास बैठ गयी और और उसे चुप कराने लगी। इधर अभय ने अपने स्टाफ के एक सीनियर को बुलाकर उससे ऑफिस संभालने को कहा और उसे बताया की वो और ऋतु किसी जरूरी काम से जा रहे हैं...शाम को ऑफिस लौटकर नहीं आएंगे...
इसके बाद अभय ने प्रबल को अपने साथ लिया और अनुराधा ऋतु को साथ लेकर बाहर आयी। पार्किंग से अभय ने अपनी गाड़ी निकाली तो अनुराधा ने उससे कहा की वो और ऋतु उनकी गाड़ी से चलेंगे.... अभय ने पार्किंग वाले को बुलाकर उसे ऋतु की गाड़ी वहीं पार्किंग में छोडने का बताकर वो सब ऋतु के घर की ओर चल दिये....
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