12-01-2020, 10:35 PM
अध्याय 3
रागिनी और पूनम रागिनी की गाड़ी से श्रीगंगानगर जा रहे थे तो गाड़ी चलाते-चलाते अचानक रागिनी बोली
“पूनम! तुम मुझे कितना जानती हो?”
“कितना मतलब? में तुम्हें तब से जानती हूँ जब तुमने कॉलेज मे बी॰कॉम मे एड्मिशन लिया था... “
“मतलब ये कि मेरे घर-परिवार के बारे में .... क्या तुम कभी मेरे घर गयी थीं?”
“नहीं में असल में तुम्हारी सहेली नहीं.... में विक्रम को जानती थी”
“और विक्रम को कितना जानती थी”
“ज्यादा नहीं... बस विक्रम के साथ मजे लूटती थी.... प्यार-व्यार से तो विक्रम का दूर-दूर तक कोई रिश्ता ही नहीं था....उसे तो बस जिस्म कि भूख मिटानी होती थी..... और मेरा भी यही मकसद था.... क्योंकि मेरे घरवाले मेरी शादी एक ऐसे लड़के से तो हरगिज नहीं करते जिसके नाम के चर्चे शहर भर में हवस के पुजारी के रूप मे हों ..... हाँ इतना पता है कि उसने कॉलेज से बाहर कि किसी लड़की से शादी कर ली थी.... लेकिन उसके बाद वो मुझे कई साल तक मिला ही नहीं.... जब मिला तो तुम्हें लेकर.... लेकिन उससे कुछ पूंछने कि मेरी हिम्मत भी नहीं हुई... क्योंकि अगर मेरे और उसके रिश्ते कि भनक लग जाती तो मेरा घर, मेरा पति और बच्चे ....शायद सब कुछ बिखर जाता.... इसलिए वो जैसा कहता गया ...में मानती गयी.... कम से कम मेरे घर परिवार पर तो कोई आंच नहीं आयी अब तक उसकी वजह से” पूनम ने कहा तो रागिनी चुपचाप कुछ सोचती रही...फिर बोली
“लेकिन मेरे और विक्रम के रिश्ते के बारे में तुमने उससे कुछ पूंछा नहीं... क्योंकि तुमने बताया था कि कॉलेज में मुझे विक्रम से नफरत थी”
“पूंछा था... तो उसने कहा कि तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के बारे मे वो समय आने पर बताएगा..... वैसे ये प्रबल तो तुम्हारा बेटा हो भी सकता है लेकिन अनुराधा तुम्हारी बेटी हरगिज नहीं हो सकती”
“में भी जानती हूँ इस बात को.... दोनों ही बच्चे मेरे नहीं हो सकते” रागिनी ने गंभीरता से कहा
“तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?” पूनम ने सवाल किया
“क्योंकि अब से 6 महीने पहले मुझे कुछ दिन के लिए बीमारी कि वजह से कोटा हॉस्पिटल मे एड्मिट रहना पड़ा था... तुम और मोहन भी मुझे देखने आए थे.... तभी मेरे वहाँ मुझे कुछ परेशानी लगी थी” रागिनी ने अपनी टांगों के जोड़ की ओर इशारा करते हुये कहा “तो मेंने गाईनाकोलोजिस्ट को दिखाया था... उसने बताया कि मेंने तो अभी तक कभी सेक्स भी नहीं किया है... मेरी झिल्ली भी नहीं टूटी.... तो मेरे बच्चे कैसे हो सकते हैं?” रागिनी ने अजीब सी मुस्कुराहट के साथ कहा
“क्या? तो फिर तुमने विक्रम से नहीं पूंछा?”
“वही तो नहीं बताया विक्रम ने.... बल्कि कुछ नहीं बताया.... कभी कभी तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मुझे एक तरह से मेरे दिमाग से कैद करके रखा हुआ है विक्रम ने... वो मेरे बारे मे सबकुछ जानता है.... लेकिन हर बात के लिए कह देता है कि समय आने पर बताऊंगा.......... अब तो विक्रम ही नहीं रहा.... मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि मेरी ज़िंदगी का क्या होगा?”
पूनम को भी कुछ समझ नहीं आया तो वो भी चुपचाप बैठी रही...
........................................................................................
अचानक ब्रेक लगने से प्रबल की आँख खुली तो उसने बाहर देखते हुये पूंछा...
“दीदी! कहाँ आ गए हम? और कितनी देर लगेगी?”
“जयपुर से आगे आ गए हैं हम... हरियाणा मे रेवाड़ी पाहुचने वाले हैं.... तू तो कोटा से ही सोता चला आ रहा है...” अनुराधा ने कहा
“आपने जगाया क्यों नहीं मुझे... आधे रास्ते में भी ड्राइव कर लेता.... अप अकेले ही चलाकर ला रही हो”
“रहने दे तू चला रहा होता तो अभी जयपुर भी नहीं पहुँचते” अनुराधा ने झिड़कते हुये कहा “कुछ खाएगा तो बता?”
“नहीं! रहने दो... अब दिल्ली पहुँच ही रहे हैं... वहीं देखेंगे”
“अच्छा दीदी माँ ये क्यों कह रहीं थीं कि विक्रम भैया ही नहीं हैं तो वो यहाँ रहकर क्या करेंगी.... कहाँ गए विक्रम भैया”
“मुझे नहीं पता...” अनुराधा ने बुरा सा मुंह बनाते हुये कहा तो प्रबल ने मुसकुराते हुये पूंछा
“वैसे दीदी आप भैया से इतना चिढ़ती क्यों हैं... माना कि वो हुमसे सख्ती से पेश आते हैं... लेकिन हम उनके दुश्मन थोड़े ही हैं.... वो हमारे लिए कितना करते हैं...और उनके सिवा हमारा है ही कौन..... आज उनके बिना माँ हम दोनों को अकेली कैसे पाल पाती”
“तू जानना चाहता है... तो सुन.... मेंने बचपन से माँ को देखा है... में हमेशा उनही के पास रहती थी... पिताजी का तो मुझे याद भी नहीं...कि वो कैसे थे....हमारा घर भी कहीं और था..... फिर एक बार माँ कहीं चलीं गईं तो मुझे एक औरत जो उस घर मे रहती थी॥ उसने कहा कि वो मेरी असली माँ हैं... फिर कुछ दिन बाद एक दिन विक्रम हमारे घर आया.... में नहीं जानती थी कि ये कौन है.... लेकिन वो औरत इसे पहचानती थी..... विक्रम अपने साथ सिक्युरिटी को भी लेकर आया था, उस औरत को सिक्युरिटी पकड़ कर ले गई और मुझे विक्रम यहाँ ले आया.... फिर कुछ दिन बाद वो तुम्हें गोद में यहाँ लेकर आया और बाद मे माँ को....तब तुम बहुत छोटे से थे शायद 1-2 दिन के ही होते जब तुम्हें लाया गया था.... लेकिन मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि जब पिताजी थे ही नहीं तो तुम कैसे पैदा हुये...और माँ को विक्रम कहाँ से लेकर आया.... तुम भी अब बच्चे नहीं हो... मेरी बात को समझते होगे.... माना कि तुम मेरे भाई हो... लेकिन मेरे पिताजी को तो मेंने तुम्हारे जन्म के पहले से ही नहीं देखा.... और माँ के साथ तब से लेकर अब तक सिर्फ एक ही आदमी को देखा है.......विक्रम। और इन दोनों कि उम्र में भी मुझे कोई फर्क नहीं लगता.......... अगर इन दोनों का कोई ऐसा रिश्ता है तो खुलकर सामने क्यों नहीं आते......... माँ-बेटे क्यों बने हुये हैं..... इसीलिए मुझे इनसे नफरत है........ अब तो माँ से भी नफरत सी हो गई है.... क्योंकि वो भी विक्रम के इशारो पर ही चलती हैं”
प्रबल मुंह फाड़े अनुराधा कि बात सुनता है, शर्म से उसका चेहरा लाल हो जाता है और वो गुस्से से बोलता है “दीदी! आपके कहने का क्या मतलब है........ माँ पर इतना बड़ा इल्ज़ाम लगाते आपको शर्म नहीं आयी.... वो मुझ से पहले आपकी माँ हैं... मेंने बहुत बार देखा है कि वो आपको मुझसे ज्यादा प्यार करती हैं”
“में भी माँ से बहुत प्यार करती हूँ... बल्कि उनही से प्यार करती हूँ...जब से होश संभाला है....उनके सिवा मेरा इस दुनिया में है ही कौन.... लेकिन में तुझे वो बता रही हूँ.... जो मेरे सामने हुआ... जो मेंने देखा....” अनुराधा ने अपनी पलकों पर आयी नमी को पोंछते हुये आगे कहना जारी रखा “मेंने तुझे बचपन से पाला है... माँ से ज्यादा तू मेरे साथ रहा है......में तुझसे बहुत प्यार करती हूँ.... मेरा इरादा तेरे जन्म के बारे मे सवाल उठाकर तुझे नीचा दिखाना नहीं था.... पहले में खुद बच्ची थी... लेकिन अब में भी इस बारे मे सोचती हूँ तो मन मे ये सवाल उठने लगते हैं.... तू खुद बता... क्या तेरे मन मे ये सवाल नहीं उठा?”
प्रबल शांत होकर बैठ गया... उसके भी दिमाग मे सवालों का तूफान उठ खड़ा हुआ था....
शेष अगले अध्याय में
रागिनी और पूनम रागिनी की गाड़ी से श्रीगंगानगर जा रहे थे तो गाड़ी चलाते-चलाते अचानक रागिनी बोली
“पूनम! तुम मुझे कितना जानती हो?”
“कितना मतलब? में तुम्हें तब से जानती हूँ जब तुमने कॉलेज मे बी॰कॉम मे एड्मिशन लिया था... “
“मतलब ये कि मेरे घर-परिवार के बारे में .... क्या तुम कभी मेरे घर गयी थीं?”
“नहीं में असल में तुम्हारी सहेली नहीं.... में विक्रम को जानती थी”
“और विक्रम को कितना जानती थी”
“ज्यादा नहीं... बस विक्रम के साथ मजे लूटती थी.... प्यार-व्यार से तो विक्रम का दूर-दूर तक कोई रिश्ता ही नहीं था....उसे तो बस जिस्म कि भूख मिटानी होती थी..... और मेरा भी यही मकसद था.... क्योंकि मेरे घरवाले मेरी शादी एक ऐसे लड़के से तो हरगिज नहीं करते जिसके नाम के चर्चे शहर भर में हवस के पुजारी के रूप मे हों ..... हाँ इतना पता है कि उसने कॉलेज से बाहर कि किसी लड़की से शादी कर ली थी.... लेकिन उसके बाद वो मुझे कई साल तक मिला ही नहीं.... जब मिला तो तुम्हें लेकर.... लेकिन उससे कुछ पूंछने कि मेरी हिम्मत भी नहीं हुई... क्योंकि अगर मेरे और उसके रिश्ते कि भनक लग जाती तो मेरा घर, मेरा पति और बच्चे ....शायद सब कुछ बिखर जाता.... इसलिए वो जैसा कहता गया ...में मानती गयी.... कम से कम मेरे घर परिवार पर तो कोई आंच नहीं आयी अब तक उसकी वजह से” पूनम ने कहा तो रागिनी चुपचाप कुछ सोचती रही...फिर बोली
“लेकिन मेरे और विक्रम के रिश्ते के बारे में तुमने उससे कुछ पूंछा नहीं... क्योंकि तुमने बताया था कि कॉलेज में मुझे विक्रम से नफरत थी”
“पूंछा था... तो उसने कहा कि तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के बारे मे वो समय आने पर बताएगा..... वैसे ये प्रबल तो तुम्हारा बेटा हो भी सकता है लेकिन अनुराधा तुम्हारी बेटी हरगिज नहीं हो सकती”
“में भी जानती हूँ इस बात को.... दोनों ही बच्चे मेरे नहीं हो सकते” रागिनी ने गंभीरता से कहा
“तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?” पूनम ने सवाल किया
“क्योंकि अब से 6 महीने पहले मुझे कुछ दिन के लिए बीमारी कि वजह से कोटा हॉस्पिटल मे एड्मिट रहना पड़ा था... तुम और मोहन भी मुझे देखने आए थे.... तभी मेरे वहाँ मुझे कुछ परेशानी लगी थी” रागिनी ने अपनी टांगों के जोड़ की ओर इशारा करते हुये कहा “तो मेंने गाईनाकोलोजिस्ट को दिखाया था... उसने बताया कि मेंने तो अभी तक कभी सेक्स भी नहीं किया है... मेरी झिल्ली भी नहीं टूटी.... तो मेरे बच्चे कैसे हो सकते हैं?” रागिनी ने अजीब सी मुस्कुराहट के साथ कहा
“क्या? तो फिर तुमने विक्रम से नहीं पूंछा?”
“वही तो नहीं बताया विक्रम ने.... बल्कि कुछ नहीं बताया.... कभी कभी तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मुझे एक तरह से मेरे दिमाग से कैद करके रखा हुआ है विक्रम ने... वो मेरे बारे मे सबकुछ जानता है.... लेकिन हर बात के लिए कह देता है कि समय आने पर बताऊंगा.......... अब तो विक्रम ही नहीं रहा.... मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि मेरी ज़िंदगी का क्या होगा?”
पूनम को भी कुछ समझ नहीं आया तो वो भी चुपचाप बैठी रही...
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अचानक ब्रेक लगने से प्रबल की आँख खुली तो उसने बाहर देखते हुये पूंछा...
“दीदी! कहाँ आ गए हम? और कितनी देर लगेगी?”
“जयपुर से आगे आ गए हैं हम... हरियाणा मे रेवाड़ी पाहुचने वाले हैं.... तू तो कोटा से ही सोता चला आ रहा है...” अनुराधा ने कहा
“आपने जगाया क्यों नहीं मुझे... आधे रास्ते में भी ड्राइव कर लेता.... अप अकेले ही चलाकर ला रही हो”
“रहने दे तू चला रहा होता तो अभी जयपुर भी नहीं पहुँचते” अनुराधा ने झिड़कते हुये कहा “कुछ खाएगा तो बता?”
“नहीं! रहने दो... अब दिल्ली पहुँच ही रहे हैं... वहीं देखेंगे”
“अच्छा दीदी माँ ये क्यों कह रहीं थीं कि विक्रम भैया ही नहीं हैं तो वो यहाँ रहकर क्या करेंगी.... कहाँ गए विक्रम भैया”
“मुझे नहीं पता...” अनुराधा ने बुरा सा मुंह बनाते हुये कहा तो प्रबल ने मुसकुराते हुये पूंछा
“वैसे दीदी आप भैया से इतना चिढ़ती क्यों हैं... माना कि वो हुमसे सख्ती से पेश आते हैं... लेकिन हम उनके दुश्मन थोड़े ही हैं.... वो हमारे लिए कितना करते हैं...और उनके सिवा हमारा है ही कौन..... आज उनके बिना माँ हम दोनों को अकेली कैसे पाल पाती”
“तू जानना चाहता है... तो सुन.... मेंने बचपन से माँ को देखा है... में हमेशा उनही के पास रहती थी... पिताजी का तो मुझे याद भी नहीं...कि वो कैसे थे....हमारा घर भी कहीं और था..... फिर एक बार माँ कहीं चलीं गईं तो मुझे एक औरत जो उस घर मे रहती थी॥ उसने कहा कि वो मेरी असली माँ हैं... फिर कुछ दिन बाद एक दिन विक्रम हमारे घर आया.... में नहीं जानती थी कि ये कौन है.... लेकिन वो औरत इसे पहचानती थी..... विक्रम अपने साथ सिक्युरिटी को भी लेकर आया था, उस औरत को सिक्युरिटी पकड़ कर ले गई और मुझे विक्रम यहाँ ले आया.... फिर कुछ दिन बाद वो तुम्हें गोद में यहाँ लेकर आया और बाद मे माँ को....तब तुम बहुत छोटे से थे शायद 1-2 दिन के ही होते जब तुम्हें लाया गया था.... लेकिन मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि जब पिताजी थे ही नहीं तो तुम कैसे पैदा हुये...और माँ को विक्रम कहाँ से लेकर आया.... तुम भी अब बच्चे नहीं हो... मेरी बात को समझते होगे.... माना कि तुम मेरे भाई हो... लेकिन मेरे पिताजी को तो मेंने तुम्हारे जन्म के पहले से ही नहीं देखा.... और माँ के साथ तब से लेकर अब तक सिर्फ एक ही आदमी को देखा है.......विक्रम। और इन दोनों कि उम्र में भी मुझे कोई फर्क नहीं लगता.......... अगर इन दोनों का कोई ऐसा रिश्ता है तो खुलकर सामने क्यों नहीं आते......... माँ-बेटे क्यों बने हुये हैं..... इसीलिए मुझे इनसे नफरत है........ अब तो माँ से भी नफरत सी हो गई है.... क्योंकि वो भी विक्रम के इशारो पर ही चलती हैं”
प्रबल मुंह फाड़े अनुराधा कि बात सुनता है, शर्म से उसका चेहरा लाल हो जाता है और वो गुस्से से बोलता है “दीदी! आपके कहने का क्या मतलब है........ माँ पर इतना बड़ा इल्ज़ाम लगाते आपको शर्म नहीं आयी.... वो मुझ से पहले आपकी माँ हैं... मेंने बहुत बार देखा है कि वो आपको मुझसे ज्यादा प्यार करती हैं”
“में भी माँ से बहुत प्यार करती हूँ... बल्कि उनही से प्यार करती हूँ...जब से होश संभाला है....उनके सिवा मेरा इस दुनिया में है ही कौन.... लेकिन में तुझे वो बता रही हूँ.... जो मेरे सामने हुआ... जो मेंने देखा....” अनुराधा ने अपनी पलकों पर आयी नमी को पोंछते हुये आगे कहना जारी रखा “मेंने तुझे बचपन से पाला है... माँ से ज्यादा तू मेरे साथ रहा है......में तुझसे बहुत प्यार करती हूँ.... मेरा इरादा तेरे जन्म के बारे मे सवाल उठाकर तुझे नीचा दिखाना नहीं था.... पहले में खुद बच्ची थी... लेकिन अब में भी इस बारे मे सोचती हूँ तो मन मे ये सवाल उठने लगते हैं.... तू खुद बता... क्या तेरे मन मे ये सवाल नहीं उठा?”
प्रबल शांत होकर बैठ गया... उसके भी दिमाग मे सवालों का तूफान उठ खड़ा हुआ था....
शेष अगले अध्याय में