11-01-2020, 11:18 PM
अध्याय 2
“हैलो! क्या में एडवोकेट अभय प्रताप सिंह से बात कर सकती हूँ?”
“में एडवोकेट ऋतु सिंह, उनकी असिस्टेंट बोल रही हूँ...आप का नाम?”
“में कोटा से अनुराधा सिंह बोल रही हूँ... मेरी माँ रागिनी सिंह ने ये नंबर दिया था वकील साहब से बात करने के लिए”
“जस्ट होल्ड ऑन ... मे अभी बात करती हु....”
थोड़ी देर फोन होल्ड रहने के बाद उस पर एक मर्दाना आवाज सुनाई दी
“हैलो अनुराधा... में अभय बोल रहा हूँ...”
“जी मुझे माँ ने आपसे बात करने को कहा है”
“हाँ! मेरे पास रागिनी का कॉल आया था... तुम और प्रबल मुझसे दिल्ली आकार मिलो... कानूनी औचरीकताओं के लिए तुम्हें खुद यहाँ आना पड़ेगा... जितना जल्दी हो सके”
“ठीक है आप मुझे अपना एड्रैस मैसेज कीजिये.... हम अभी निकल रहे हैं....”
“ठीक है.... और दिल्ली पहुँचते ही तुम मुझे कॉल करना...जिससे में ऑफिस में ही मिल सकूँ”
कॉल काटने के बाद अनुराधा के मोबैल में मैसेज आता है जिसमें एडवोकेट अभय शर्मा के ऑफिस का एड्रैस होता है
“प्रबल चलो दिल्ली चलना है....अभी... अपना जरूरी समान ले लो... कपड़े वगैरह”
प्रबल अपने कमरे में जाकर अपने बेग मे लैपटाप और जरूरत का समान, कपड़े वगैरह डालकर बाहर निकालकर आता है.... अनुराधा भी अपना बेग लेकर अपने कमरे से बाहर निकलती है
दोनों भाई बहन अपने बैग गाड़ी मे रखते हैं और ड्राइविंग सीट पर अनुराधा बैठ जाती है,,, गाड़ी स्टार्ट करके हवेली के फाटक पर लाकर रोकती है...
“हम दिल्ली जा रहे हैं माँ आयें या उनका कोई फोन आए तो उन्हें बता देना...”
अनुराधा ने दरबान से कहा और गाड़ी लेकर निकाल गयी......
.......................इधर दिल्ली में.........
एडवोकेट अभय प्रताप सिंह के ऑफिस में....
“रागिनी! में अभय बोल रहा हूँ... कहाँ हो तुम”
“में कोटा से श्रीगंगानगर जा रही हूँ... विक्रम की लाश मिली है। वहाँ से किसी सिक्युरिटीवाले का फोन आया था”
“क्या? विक्रम की लाश.... लेकिन कैसे हुआ ये”
“मुझे भी कुछ नहीं पता .... वहाँ पहुँचकर बताती हूँ”
“तुम अकेली ही जा रही हो क्या?”
“नहीं मेंने पूनम को साथ ले लिया है........तुमने अचानक किसलिए फोन किया”
“मेरे पास अनुराधा का फोन आया था... कह रही थी.....”
रागिनी ने बात बीच में ही काटते हुये कहा “हाँ! मेंने ही उसे तुमसे बात करने के लिए कहा था.......... प्रबल और अनुराधा को अब सबकुछ जान लेना चाहिए....और जो भी है उन्हें सौंप दो...उन्हें दिल्ली बुला लो”
“वो दोनों दिल्ली आ रहे हैं अभी” अभय ने कहा “क्या ऋतु को भी उनसे मिलवा दूँ.... और विक्रम की मौत के बारे में शायद ऋतु को भी नहीं पता”
“कौन ऋतु?”
“क्या तुम ऋतु को नहीं जानती... विक्रम की कज़न... मेरी असिस्टेंट एडवोकेट ऋतु सिंह”
“मेरी कुछ समझ मे नहीं आ रहा की विक्रम ने मुझसे कितने राज छुपाए हुये हैं...”
“तुम वहाँ पहुँचकर मुझे कॉल करो.... अगर जरूरत हुई तो में खुद वहाँ आ जाऊंगा..... और ये सब बातें हम बाद में बैठकर करेंगे”
अभय ने फोन काटकर ऋतु को आवाज दी... ऋतु के आने पर उससे कहा
“ऋतु! ये चाबियाँ लो और पुरानी वाली लोहे की अलमारी से एक फ़ाइल निकालो.... बहुत पुरानी रखी हुई है.... उसके ऊपर विक्रमादित्य सिंह का नाम होगा”
“विक्रम भैया की है क्या” ऋतु ने उत्सुकता से कहा
“हाँ! करीब 5-6 साल पहले दी थी उसने तब से वो कभी आया ही नहीं”
“अब क्या आज भैया आ रहे हैं यहाँ?”
“विक्रम नहीं आ रहा ....उस फ़ाइल को क्यों निकलवा रहा हूँ में बाद मे बताऊंगा”
ऋतु चुपचाप चाबियाँ लेकर ऑफिस के दूसरे कोने मे रखी एक पुरानी लोहे की अलमारी की ओर बढ़ गयी.... उसे जाते हुये पीछे से देखकर अभय ने एक ठंडी सांस भरी... उसकी काली पेंट में कसे उभरे हुरे नितंब देखते हुये
“साली की घोड़ी बनाकर गांड मारने मे बड़ा मजा आयेगा.... लेकिन क्या करू ....विक्रम की बहन है.... साला दोस्त से प्यार दिखाने तो कभी आता नहीं.... लेकिन उसकी बहन चोद दी तो आकार मेरी ही गांड मार लेगा...” सोचते हुये अभय मुस्कुराया.... लेकिन तभी उसे कुछ याद आया और उसकी पलकें नम हो गईं.... शायद विक्रम की मौत की खबर.... और फिर मन ही मन बुदबुदाया “ऋतु को कैसे बताऊँ? लेकिन बताना तो पड़ेगा ही.... देखते हैं पहले रागिनी को वहाँ पहुँचकर फोन करने दो... या अनुराधा को आ जाने दो”
ऋतु के जाते ही अभय अपनी कुर्सी से पीठ टिका कर आँखें बंद करके सोच में डूब गया... लगभग 5 साल पहले वो अपने ऑफिस मे बैठ हुआ था... तब इतना शानदार और बड़ा ऑफिस नहीं था उसका... नया नया वकील था छोटा सा दफ्तर... उसके मुंशी ने दफ्तर के गेट से अंदर झाँकते हुये कहा
“वकील साहब! कोई विक्रमादित्य सिंह आए हैं आपसे मिलने”
“अंदर भेज दो” अभय ने नाम को दिमाग मे सोचते हुये कहा...उसे ये नाम काफी जाना पहचाना सा लगा।
तभी दरवाजा खुला और एक नौजवान आदमी और औरत ने अंदर आते हुये कहा
“कैसे हैं वकील साहब!”
“विक्रम तुम? और रागिनी तुम भी... वो भी विक्रम के साथ” अभय ने उन्हें देखकर चौंकते हुये कहा और अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया
“क्यों क्या हम दोनों साथ नहीं आ सकते” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा
“क्यों नहीं... लगता है...कॉलेज में लड़ते लड़ते थक गए तो हमेशा लड़ते रहने के लिए शादी कर ली होगी... अब दोनों साथ मिलकर अपने दोस्तों से लड़ने निकले हो” अभय ने भी मुसकुराते हुये कहा
“नहीं हमने आपस मे शादी नहीं की... बल्कि रागिनी अब मेरी माँ हैं” विक्रम ने गंभीरता से जवाब दिया
“तुम्हारी माँ हैं....क्या मतलब?”
“ये मेरे पिताजी देवराज सिंह की पत्नी हैं.... तो मेरी माँ ही हुई न”
अभय ने दोनों को सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठने का इशारा किया और अपनी कुर्सी पर बैठते हुये दोनों के लिए चाय मँगवाने को अपने मुंशी से कहा तो विक्रम ने मुसकुराते हुये मुंशी को मट्ठी भी लाने को कह दिया। मुंशी चाय लाने चला गया
“यार तू तो वकील बनकर स्टेटस मैंटेन करने लगा है.... लेकिन हम तो हमेशा टपरी पर चाय...मट्ठी के साथ ही पीते थे” विक्रम ने मुसकुराते हुये अभय से कहा
“तू हमेशा ऐसा ही रहा है.... वो करता है जो कोई सोच भी नहीं सकता.... मुझे तो दिखावा करना ही पड़ता है” अभय ने भी मुसकुराते हुये कहा “और सुना आज मेरी याद कैसे आ गयी”
“सर! ये रही फ़ाइल” ऋतु की आवाज सुनकर अभय अपनी सोच से बाहर आया
...............................................................................अभी इतना ही मित्रो
“हैलो! क्या में एडवोकेट अभय प्रताप सिंह से बात कर सकती हूँ?”
“में एडवोकेट ऋतु सिंह, उनकी असिस्टेंट बोल रही हूँ...आप का नाम?”
“में कोटा से अनुराधा सिंह बोल रही हूँ... मेरी माँ रागिनी सिंह ने ये नंबर दिया था वकील साहब से बात करने के लिए”
“जस्ट होल्ड ऑन ... मे अभी बात करती हु....”
थोड़ी देर फोन होल्ड रहने के बाद उस पर एक मर्दाना आवाज सुनाई दी
“हैलो अनुराधा... में अभय बोल रहा हूँ...”
“जी मुझे माँ ने आपसे बात करने को कहा है”
“हाँ! मेरे पास रागिनी का कॉल आया था... तुम और प्रबल मुझसे दिल्ली आकार मिलो... कानूनी औचरीकताओं के लिए तुम्हें खुद यहाँ आना पड़ेगा... जितना जल्दी हो सके”
“ठीक है आप मुझे अपना एड्रैस मैसेज कीजिये.... हम अभी निकल रहे हैं....”
“ठीक है.... और दिल्ली पहुँचते ही तुम मुझे कॉल करना...जिससे में ऑफिस में ही मिल सकूँ”
कॉल काटने के बाद अनुराधा के मोबैल में मैसेज आता है जिसमें एडवोकेट अभय शर्मा के ऑफिस का एड्रैस होता है
“प्रबल चलो दिल्ली चलना है....अभी... अपना जरूरी समान ले लो... कपड़े वगैरह”
प्रबल अपने कमरे में जाकर अपने बेग मे लैपटाप और जरूरत का समान, कपड़े वगैरह डालकर बाहर निकालकर आता है.... अनुराधा भी अपना बेग लेकर अपने कमरे से बाहर निकलती है
दोनों भाई बहन अपने बैग गाड़ी मे रखते हैं और ड्राइविंग सीट पर अनुराधा बैठ जाती है,,, गाड़ी स्टार्ट करके हवेली के फाटक पर लाकर रोकती है...
“हम दिल्ली जा रहे हैं माँ आयें या उनका कोई फोन आए तो उन्हें बता देना...”
अनुराधा ने दरबान से कहा और गाड़ी लेकर निकाल गयी......
.......................इधर दिल्ली में.........
एडवोकेट अभय प्रताप सिंह के ऑफिस में....
“रागिनी! में अभय बोल रहा हूँ... कहाँ हो तुम”
“में कोटा से श्रीगंगानगर जा रही हूँ... विक्रम की लाश मिली है। वहाँ से किसी सिक्युरिटीवाले का फोन आया था”
“क्या? विक्रम की लाश.... लेकिन कैसे हुआ ये”
“मुझे भी कुछ नहीं पता .... वहाँ पहुँचकर बताती हूँ”
“तुम अकेली ही जा रही हो क्या?”
“नहीं मेंने पूनम को साथ ले लिया है........तुमने अचानक किसलिए फोन किया”
“मेरे पास अनुराधा का फोन आया था... कह रही थी.....”
रागिनी ने बात बीच में ही काटते हुये कहा “हाँ! मेंने ही उसे तुमसे बात करने के लिए कहा था.......... प्रबल और अनुराधा को अब सबकुछ जान लेना चाहिए....और जो भी है उन्हें सौंप दो...उन्हें दिल्ली बुला लो”
“वो दोनों दिल्ली आ रहे हैं अभी” अभय ने कहा “क्या ऋतु को भी उनसे मिलवा दूँ.... और विक्रम की मौत के बारे में शायद ऋतु को भी नहीं पता”
“कौन ऋतु?”
“क्या तुम ऋतु को नहीं जानती... विक्रम की कज़न... मेरी असिस्टेंट एडवोकेट ऋतु सिंह”
“मेरी कुछ समझ मे नहीं आ रहा की विक्रम ने मुझसे कितने राज छुपाए हुये हैं...”
“तुम वहाँ पहुँचकर मुझे कॉल करो.... अगर जरूरत हुई तो में खुद वहाँ आ जाऊंगा..... और ये सब बातें हम बाद में बैठकर करेंगे”
अभय ने फोन काटकर ऋतु को आवाज दी... ऋतु के आने पर उससे कहा
“ऋतु! ये चाबियाँ लो और पुरानी वाली लोहे की अलमारी से एक फ़ाइल निकालो.... बहुत पुरानी रखी हुई है.... उसके ऊपर विक्रमादित्य सिंह का नाम होगा”
“विक्रम भैया की है क्या” ऋतु ने उत्सुकता से कहा
“हाँ! करीब 5-6 साल पहले दी थी उसने तब से वो कभी आया ही नहीं”
“अब क्या आज भैया आ रहे हैं यहाँ?”
“विक्रम नहीं आ रहा ....उस फ़ाइल को क्यों निकलवा रहा हूँ में बाद मे बताऊंगा”
ऋतु चुपचाप चाबियाँ लेकर ऑफिस के दूसरे कोने मे रखी एक पुरानी लोहे की अलमारी की ओर बढ़ गयी.... उसे जाते हुये पीछे से देखकर अभय ने एक ठंडी सांस भरी... उसकी काली पेंट में कसे उभरे हुरे नितंब देखते हुये
“साली की घोड़ी बनाकर गांड मारने मे बड़ा मजा आयेगा.... लेकिन क्या करू ....विक्रम की बहन है.... साला दोस्त से प्यार दिखाने तो कभी आता नहीं.... लेकिन उसकी बहन चोद दी तो आकार मेरी ही गांड मार लेगा...” सोचते हुये अभय मुस्कुराया.... लेकिन तभी उसे कुछ याद आया और उसकी पलकें नम हो गईं.... शायद विक्रम की मौत की खबर.... और फिर मन ही मन बुदबुदाया “ऋतु को कैसे बताऊँ? लेकिन बताना तो पड़ेगा ही.... देखते हैं पहले रागिनी को वहाँ पहुँचकर फोन करने दो... या अनुराधा को आ जाने दो”
ऋतु के जाते ही अभय अपनी कुर्सी से पीठ टिका कर आँखें बंद करके सोच में डूब गया... लगभग 5 साल पहले वो अपने ऑफिस मे बैठ हुआ था... तब इतना शानदार और बड़ा ऑफिस नहीं था उसका... नया नया वकील था छोटा सा दफ्तर... उसके मुंशी ने दफ्तर के गेट से अंदर झाँकते हुये कहा
“वकील साहब! कोई विक्रमादित्य सिंह आए हैं आपसे मिलने”
“अंदर भेज दो” अभय ने नाम को दिमाग मे सोचते हुये कहा...उसे ये नाम काफी जाना पहचाना सा लगा।
तभी दरवाजा खुला और एक नौजवान आदमी और औरत ने अंदर आते हुये कहा
“कैसे हैं वकील साहब!”
“विक्रम तुम? और रागिनी तुम भी... वो भी विक्रम के साथ” अभय ने उन्हें देखकर चौंकते हुये कहा और अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया
“क्यों क्या हम दोनों साथ नहीं आ सकते” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा
“क्यों नहीं... लगता है...कॉलेज में लड़ते लड़ते थक गए तो हमेशा लड़ते रहने के लिए शादी कर ली होगी... अब दोनों साथ मिलकर अपने दोस्तों से लड़ने निकले हो” अभय ने भी मुसकुराते हुये कहा
“नहीं हमने आपस मे शादी नहीं की... बल्कि रागिनी अब मेरी माँ हैं” विक्रम ने गंभीरता से जवाब दिया
“तुम्हारी माँ हैं....क्या मतलब?”
“ये मेरे पिताजी देवराज सिंह की पत्नी हैं.... तो मेरी माँ ही हुई न”
अभय ने दोनों को सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठने का इशारा किया और अपनी कुर्सी पर बैठते हुये दोनों के लिए चाय मँगवाने को अपने मुंशी से कहा तो विक्रम ने मुसकुराते हुये मुंशी को मट्ठी भी लाने को कह दिया। मुंशी चाय लाने चला गया
“यार तू तो वकील बनकर स्टेटस मैंटेन करने लगा है.... लेकिन हम तो हमेशा टपरी पर चाय...मट्ठी के साथ ही पीते थे” विक्रम ने मुसकुराते हुये अभय से कहा
“तू हमेशा ऐसा ही रहा है.... वो करता है जो कोई सोच भी नहीं सकता.... मुझे तो दिखावा करना ही पड़ता है” अभय ने भी मुसकुराते हुये कहा “और सुना आज मेरी याद कैसे आ गयी”
“सर! ये रही फ़ाइल” ऋतु की आवाज सुनकर अभय अपनी सोच से बाहर आया
...............................................................................अभी इतना ही मित्रो